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भारत और चीन संबंधों में निकटता शांति स्थापना का सूचक

Lokesh Pal February 01, 2025 05:15 104 0

संदर्भ:

हाल के दिनों में, भारत और चीन के संबंधों में विभिन्न मुद्दों को लेकर वार्ताएँ हो रही हैं। दोनों देशों के विदेश मंत्री अनेक विवादित मुद्दों को हल करते हुए संबंधों में निकटता सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहे हैं। 

ऐतिहासिक रूपरेखा (1988 से आगे):

  • कूटनीतिक रूपरेखा: 
  • राजीव गांधी की चीन यात्रा: वर्ष 1988 में राजीव गांधी की सफल बीजिंग यात्रा के बाद से भारत-चीन संबंधों को मोटे तौर पर चार प्रमुख स्तंभों द्वारा आकार दिया गया है:
    • शिखर सम्मेलन: नियमित उच्च स्तरीय बैठकें, द्विपक्षीय और बहुपक्षीय, प्रायः वर्ष में एक से अधिक बार।
    • सीमा वार्ता: क्षेत्रीय विवादों को सुलझाने के उद्देश्य से तीन दशकों से चल रही चर्चाएं।
    • विश्वास निर्माण उपाय (सीबीएम): दोनों देशों की सीमाओं पर संघर्ष की संभावना को कम करना, विशेष रूप से सैन्य गतिरोध के मुद्दों को हल करना।
    • लोगों से लोगों के बीच (पी2पी) संबंध : सांस्कृतिक आदान-प्रदान, पर्यटन, शैक्षिक सहयोग और व्यापार, जिससे सामाजिक स्तर पर संबंधों को स्थिर बनाने में मदद मिली।
  • सीमा पर तनाव: सीमा पर सैन्य झड़पों की संभावना को देखते हुए, तनाव बढ़ने के जोखिम को कम करने के लिए विश्वास-निर्माण उपाय (CBMs) स्थापित किए गए थे। सैन्य विघटन प्रोटोकॉल और संचार चैनलों सहित इन उपायों ने सैन्य स्थिरता के स्तर को बनाए रखने में मदद की।
  • गलवान की विशिष्टता: 2020 में गलवान में हुई झड़प, पहले की मुठभेड़ों की तुलना में कम घातक प्रकृति की एक अपवाद थी, लेकिन इसने भविष्य के जोखिमों के प्रबंधन में विश्वास-निर्माण उपाय के महत्व को उजागर किया। यह तथ्य कि समान वैश्विक संघर्षों की तुलना में मौतें अपेक्षाकृत कम थीं, जो यह दर्शाता है कि निवारक तंत्र ने अपनी महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
  • पी2पी संबंधों की भूमिका: राजनयिक तनावों के बावजूद, लोगों के बीच संबंध (जैसे शिक्षा और व्यापार) दोनों देशों के बीच की खाई को पाटने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 
    • चीन में उच्च गुणवत्ता वाली, सस्ती शिक्षा प्राप्त करने वाले भारतीय छात्र इस सतत् संबंध का उदाहरण हैं।

भारत-चीन सामान्य कूटनीति को प्रेरित करने वाले कारक:

  • आर्थिक अंतरनिर्भरता: भारत और चीन दोनों आर्थिक रूप से एक दूसरे पर निर्भर हैं। भारत की वृद्धि दर सालाना 7% के आसपास धीमी हो गई है, जबकि चीन की अर्थव्यवस्था 5% की वृद्धि का सामना कर रही है, जिसमें आगे और गिरावट की संभावना है।
    • भारतीय व्यवसायों को  चीनी उत्पादों की ज़रूरत है, ख़ास तौर पर फार्मास्यूटिकल्स, इलेक्ट्रॉनिक्स और इंफ्रास्ट्रक्चर जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में, चीनी उत्पाद भारतीय ग्राहकों के लिए लागत प्रभावी होते हैं। बदले में, चीन भारत को एक बढ़ते बाज़ार के रूप में देखता है, जहाँ व्यापार के लिए पर्याप्त अवसर हैं।
  • विविधीकरण की आवश्यकता: बढ़ते पश्चिमी संरक्षणवाद के बीच, चीनी व्यवसाय भारत जैसे बाजारों में विविधीकरण और विस्तार करने के लिए उत्सुक हैं, जो एक बड़ा संभावित उपभोक्ता आधार प्रस्तुत करता है
  • सैन्य गतिरोध: गलवान संघर्ष ने सैन्य संबंधों में गतिरोध को उजागर किया है। भारत और चीन दोनों ने चुनौतीपूर्ण सीमावर्ती इलाकों में बड़ी सैन्य ताकतें तैनात की हैं। 
    • इन सैन्य बलों को बनाए रखने की भारी लागत – कार्मिकों और संसाधनों दोनों के संदर्भ में – दीर्घकालिक सैन्य संघर्ष को अवांछनीय बनाती है। 
    • किसी भी देश को अपने भूभाग और जलवायु परिस्थितियों के कारण सीमा क्षेत्र में पूर्ण सफलता प्राप्त होने की संभावना नहीं है।
  • अन्य सैन्य चिंताएं: भारत के लिए पाकिस्तान संघर्ष चिंता का विषय बना हुआ है, विशेष रूप से पाकिस्तान और चीन दोनों के साथ  दो मोर्चों पर युद्ध का खतरा बना हुआ है।
    • चीन का ध्यान मुख्य रूप से पूर्वी एशिया पर है, विशेष रूप से ताइवान, जापान और दक्षिण चीन सागर के साथ तनाव, जहां संभावित संघर्ष अमेरिका को भी अपने प्रभाव में ला सकता है।
  • साझा चिंताएँ: भारत और चीन दोनों ही अमेरिकी प्रभाव और नीतियों से चिंतित हैं। जबकि भारत और अमेरिका के बीच चीन की तुलना में घनिष्ठ संबंध हैं, लेकिन व्यापार, आव्रजन और लोकतांत्रिक प्रथाओं जैसे मुद्दों पर उनके बीच मतभेद बने हुए हैं। 
    • चीन के लिए, तिब्बतशिनजियांग तथा व्यापार एवं प्रौद्योगिकी के शस्त्रीकरण पर अमेरिका का रुख तनाव पैदा करता है।
  • अमेरिका के साथ सौदेबाजी की शक्ति: जैसे-जैसे दोनों देश अमेरिका के साथ अपने संबंधों को आगे बढ़ा रहे हैं, वे एक-दूसरे के साथ कूटनीतिक जुड़ाव का उपयोग यह संकेत देने के लिए कर सकते हैं कि यदि वाशिंगटन द्वारा उन पर बहुत अधिक दबाव डाला जाता है, तो उनके पास भरोसा करने के लिए अन्य रणनीतिक विकल्प मौजूद हैं।
    • इससे अमेरिका के साथ वार्ता में उनकी सौदेबाजी की शक्ति बढ़ने की उम्मीद  है।

भारत-चीन सीमा पर हुए सैन्य विवाद :

  • भारत-चीन टकराव: भारत और चीन ने 2010 से अनेक बार सीमाओं में टकरावों का सामना किया है, जिसमें 2013 (देपसांग), 2014 (चुमार), 2015 (बुर्त्से), 2017 (डोकलाम), 2020 (गलवान) और 2022 (यांग्त्से) में उल्लेखनीय झड़पें शामिल हैं। 
    • केवल झड़प ही नहीं बल्कि गलवान और यांग्त्से में हताहतों की संख्या की भी सूचना मिली है, जो हाल के वर्षों में सबसे भीषण झड़पों में से एक है। 
    • क्षेत्रीय विवादों और लगातार तनाव के इस पैटर्न को देखते हुए, सवाल उठता है कि क्या मौजूदा प्रयासों के माध्यम से क्षेत्र में, तनाव-मुक्ति कायम रहेगी

स्थायी शांति एक महत्त्वपूर्ण चुनौती:

  • क्षेत्रीय विवाद: क्षेत्रीय मुद्दे, विशेष रूप से भूमि और जल से जुड़े मुद्दे, राष्ट्रीय संप्रभुता और पहचान से गहराई से जुड़े होते हैं। हालांकि इन विवादों को प्रबंधित करना कठिन है और हल करने के प्रयास करना तो और भी कठिन है, जिससे स्थायी समाधान की संभावना चुनौतीपूर्ण है।
    • दोनों देशों की अपनी-अपनी भूमि पर मजबूत भावनात्मक और राजनीतिक हित जुड़े हुए हैं।
  • ऐतिहासिक संवेदनशीलता: भारत और चीन दोनों देशों के पास अपने औपनिवेशिक अतीत और उसके बाद संप्रभुता के लिए संघर्ष से जुड़ी संवेदनशील यादें हैं। दोनों देशों में गुलामी और पीड़ित होने की स्थायी भावना है, जहाँ उनकी संप्रभुता के लिए किसी भी चुनौती को उनकी राष्ट्रीय पहचान पर सीधे हमले के रूप में देखा जाता है। 
    • इससे वार्ता के लिए एक जटिल एवं अस्थिर आधार तैयार होता है।

शांति स्थापना के प्रेरक तत्व :

  • संरचनात्मक कारक: आर्थिक अंतरनिर्भरता, सैन्य गतिरोध और संसाधन तनाव, अमेरिका की भूमिका और प्रभाव पर राजनीतिक चिंताएं महत्त्वपूर्ण कारक हैं।
    • ये दीर्घकालिक कारक यह संकेत देते हैं कि संबंधों में मधुरता जारी रहेगी, भले ही एक व्यापक सीमा और रणनीतिक समझौता अभी भी संभव न हो पाया हो।
  • पूर्ण सामान्यीकरण का दृष्टिकोण : यद्यपि पूर्ण सामान्यीकरण की ओर वापसी संभव है, लेकिन अनसुलझे क्षेत्रीय विवादों और गहरे अविश्वास के कारण समय-समय पर झड़पों की संभावना से इनकार नहीं किया जा सकता।

निष्कर्ष:

इस प्रकार यह महत्त्वपूर्ण है कि भारत-चीन संबंधों को नरम और सामान्य बनाना जारी रखना चाहिए, भले ही दीर्घकालिक सीमा और रणनीतिक समझौता हासिल करना कठिन प्रतीत हो।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत-चीन संबंध सहयोग और टकराव के बीच झूलते रहे हैं। दोनों देशों के संबंधों के तनाव में हाल ही में आई कमी को प्रभावित करने वाले प्रमुख संरचनात्मक कारकों का विश्लेषण करें और आकलन करें कि क्या यह बदलाव लंबे समय तक टिकाऊ बने रह सकते हैं।

(15 अंक, 250 शब्द)

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