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अरावली का संरक्षण और सर्वोच्च न्यायालय का हालिया निर्णय

Lokesh Pal December 19, 2025 05:30 53 0

संदर्भ:

पिछले महीने एक आदेश में, उच्चतम न्यायालय (SC) ने अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं की एक समान परिभाषा तय की है, तथा दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान और गुजरात में फैले इसके क्षेत्रों के भीतर नए खनन पट्टों को जारी करने पर रोक लगा दी है।

अरावली पर्वतमाला का महत्त्व:

  • भू-वैज्ञानिक और पारिस्थितिक महत्त्व: अरावली पर्वतमाला लगभग दो अरब वर्ष पुरानी है, जो इसे भारत की सबसे प्राचीन पर्वत श्रृंखला बनाती है।
  • मरुस्थलीकरण को रोकने में भूमिका: यह भारत-गंगा के मैदानों के मरुस्थलीकरण को रोकने के लिए एक आवश्यक पारिस्थितिक बाधा के रूप में कार्य करती है।
    • ये पर्वत थार मरुस्थल के हरियाणा, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में पूर्व की ओर विस्तार को रोकने में मदद करते हैं।
  • जलवायु और जैव विविधता में योगदान: यह श्रृंखला जलवायु को स्थिर करती है, जैव विविधता का समर्थन और भू-जल पुनर्भरण में सहायता करती है।
  • विस्तार और जल विज्ञान संबंधी भूमिका: दिल्ली से गुजरात तक 650 किमी. क्षेत्र में विस्तृत यह पर्वतमाला जल-पुनर्भरण प्रणालियों का समर्थन करती है और चंबल, साबरमती तथा लूनी जैसी महत्त्वपूर्ण नदियों का स्रोत है।
  • खनिज संपदा और ऐतिहासिक खनन: अरावली सैंडस्टोन, चूना पत्थर, संगमरमर, ग्रेनाइट और सीसा, जस्ता, तांबा, सोना तथा टंगस्टन जैसे खनिजों से समृद्ध है।
    • ऐतिहासिक रूप से इन संसाधनों के लिए खनन की जाने वाली इस श्रृंखला ने पिछले चार दशकों में पत्थर और रेत के अत्यधिक उत्खनन का सामना किया है।
  • पर्यावरणीय चिंताएँ: अत्यधिक खनन ने बिगड़ती वायु गुणवत्ता और गिरते भू-जल पुनर्भरण में योगदान दिया है। कुछ खनन गतिविधियाँ अवैध भी रही हैं।
  • अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताएँ: उच्चतम न्यायालय ने उल्लेख किया, कि भारत “मरुस्थलीकरण से निपटने के लिए संयुक्त राष्ट्र अभिसमय” (UN Convention to Combat Desertification – UNCCD) के तहत अरावली पर्वतमाला जैसे सुभेद्य पारिस्थितिकी तंत्रों की रक्षा के लिए अंतरराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं से बंधा हुआ है।

खनन के विरुद्ध किए गए उपाय:

  • विगत विनियामक उपाय: 1990 के दशक की शुरुआत से, पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने स्वीकृत परियोजनाओं तक ही खनन को सीमित करने वाले नियम बनाए हैं, लेकिन इन नियमों का खुलेआम उल्लंघन किया गया है।
  • उच्चतम न्यायालय का हस्तक्षेप: 2009 में, उच्चतम न्यायालय ने हरियाणा के फरीदाबाद, गुरुग्राम और मेवात जिलों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया था।
  • 2024 के उच्चतम न्यायालय के निर्देश: मई 2024 में, उच्चतम न्यायालय ने अरावली श्रृंखला में नए खनन पट्टों को जारी करने तथा उनके नवीनीकरण पर रोक लगा दी और अपनी ‘केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति’ (Central Empowered Committee – CEC) को विस्तृत जाँच करने का निर्देश दिया।
  • CEC की सिफारिशें:
    • वैज्ञानिक मानचित्रण (Scientific Mapping): सभी राज्यों में पूरी अरावली श्रृंखला का व्यापक और एकसमान मानचित्रण।
    • मैक्रो पर्यावरण प्रभाव आकलन: खनन गतिविधियों का क्षेत्र-व्यापी पर्यावरण प्रभाव आकलन (Environmental Impact Assessment – EIA)।
    • पारिस्थितिक सुरक्षा उपाय: पारिस्थितिक रूप से संवेदनशील क्षेत्रों जैसे- संरक्षित आवासों, जल निकायों, बाघ गलियारों, प्रमुख जलभृत पुनर्भरण क्षेत्रों और राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र (NCR) में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध।
    • औद्योगिक विनियमन: पत्थर तोड़ने वाली इकाइयों (Stone-crushing units) का कड़ा विनियमन।
    • खनन स्थगन: वैज्ञानिक मानचित्रण और प्रभाव आकलन पूरा होने तक कोई नया खनन पट्टा या नवीनीकरण नहीं।
  • अरावली ‘ग्रीन वॉल’ परियोजना: जून 2025 में, केंद्र ने गुजरात, राजस्थान, हरियाणा और दिल्ली के 29 जिलों में अरावली के चारों ओर पाँच किमी. के बफर क्षेत्र में हरित आवरण का विस्तार करने के लिए ‘अरावली ग्रीन वॉल परियोजना’ शुरू की।
    • इस पहल का लक्ष्य 2030 तक 26 मिलियन हेक्टेयर क्षरित भूमि को बहाल करना है।

अरावली की एक समान परिभाषा की आवश्यकता:

  • राज्यों की असंगत परिभाषाएँ: राज्य अरावली संरचनाओं की पहचान करने के लिए असंगत मानदंडों का उपयोग करते थे, यहाँ तक कि ‘भारतीय वन सर्वेक्षण’ (FSI) जैसे विशेषज्ञ समूहों के भीतर भी परिभाषाएँ भिन्न थी।
  • भारतीय वन सर्वेक्षण (FSI) की परिभाषा (2010): FSI ने अरावली पहाड़ियों को उन क्षेत्रों के रूप में परिभाषित किया था जिनमें:
    • ढलान (Slope) >3°
    • तलहटी बफर (Foothill buffer) 100 मीटर
    • पहाड़ियों के बीच की दूरी या घाटी की चौड़ाई 500 मीटर
    • सभी तरफ से ऊपर परिभाषित पहाड़ियों से घिरा क्षेत्र
  • समिति का गठन: उच्चतम न्यायालय ने वैज्ञानिक रूप से आधारित देशव्यापी परिभाषा बनाने के लिए एक समिति का गठन किया।
  • SC का निर्णय: समिति की रिपोर्ट के आधार पर, उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि केवल 100 मीटर से ऊपर की पहाड़ियों को ही अरावली श्रृंखला का हिस्सा माना जाएगा।
  • आपत्तियाँ और प्रतितर्क: यह तर्क दिया गया था, कि 100 मीटर का मानदंड बहुत संकीर्ण है और इससे छोटी पहाड़ियाँ खनन के लिए खुल सकती हैं, जिससे निरंतरता (Continuity) और अखंडता प्रभावित होगी।
    • हालाँकि, यह तर्क दिया गया है कि ढलानों और बफर का उपयोग करने वाली FSI-आधारित परिभाषा अरावली पहाड़ियों और पर्वतमालाओं से बड़े क्षेत्रों को बाहर कर देगी, जबकि 100 मीटर का मानदंड अधिक समावेशी है।

उच्चतम न्यायालय के अन्य निर्देश:

  • सतत खनन हेतु प्रबंधन योजना (MPSM): न्यायालय ने पूरी अरावली श्रृंखला को कवर करने वाली एक विस्तृत ‘सतत खनन हेतु प्रबंधन योजना’ (MPSM) तैयार करने का निर्देश दिया।
    • योजना में उन क्षेत्रों का सीमांकन (Demarcate) होगा, जहाँ खनन पूरी तरह से प्रतिबंधित होना चाहिए।
    • उन क्षेत्रों की पहचान करें, जहाँ सीमित और अत्यधिक विनियमित खनन की अनुमति दी जा सकती है।
    • संवेदनशील आवासों और वन्यजीव गलियारों का मानचित्रण करें।
    • पारिस्थितिक वहन क्षमता निर्धारित करें, और बहाली तथा पुनर्वास उपायों को स्पष्ट करें, इत्यादि।

अरावली में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध न लगाने का कारण:

  • पूर्ण प्रतिबंध के जोखिम: उच्चतम न्यायालय ने स्पष्ट किया, कि पूर्ण प्रतिबंध अक्सर अवैध खनन सिंडिकेट, हिंसक रेत माफिया और अनियंत्रित निष्कर्षण को जन्म देते हैं।
  • कैलिब्रेटेड दृष्टिकोण: न्यायालय ने एक संतुलित दृष्टिकोण चुना:
    1. मौजूदा कानूनी खनन कठोरविनियमन के तहत जारी रहेगा।
    2. वैज्ञानिक योजना तैयार होने तक नए खनन पर रोक रहेगी।
    3. स्थायी रूप से संवेदनशील क्षेत्र प्रतिबंधित रहेंगे।

निष्कर्ष:

अरावली की एक समान परिभाषा तय करके और नए खनन पर रोक लगाकर, उच्चतम न्यायालय पारिस्थितिक संरक्षण और विनियमित विकास के बीच संतुलन स्थापित करता है, जिससे अवैध निष्कर्षण पर अंकुश लगता है और मरुस्थलीकरण नियंत्रण, जैव विविधता, भू-जल सुरक्षा तथा अंतरराष्ट्रीय पर्यावरणीय प्रतिबद्धताओं की रक्षा होती है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न: अरावली पर्वतमाला की रक्षा के लिए उच्चतम न्यायालय के निर्देशों के आलोक में, इसके पारिस्थितिक महत्त्व का परीक्षण कीजिए तथा आकलन कीजिए, कि न्यायिक हस्तक्षेप किस प्रकार पर्यावरणीय संरक्षण को विकासात्मक आवश्यकताओं के साथ संतुलित कर सकता है?

(15 अंक, 250 शब्द)

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