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खाद्य सुरक्षा हेतु कृषि में महिलाओं का सशक्तीकरण

Lokesh Pal June 11, 2025 05:00 42 0

संदर्भ:

संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) ने 100 से अधिक सह-प्रायोजकों के समर्थन से 2026 को “अंतर्राष्ट्रीय महिला किसान वर्ष घोषित किया है।

संगोष्ठी के प्रमुख बिंदु

  • सहयोगात्मक संवाद: रॉयल नॉर्वेजियन दूतावास और भारत में संयुक्त राष्ट्र विश्व खाद्य कार्यक्रम (WFP) द्वारा आयोजित कृषि में महिलाओं पर एक संगोष्ठी में विविध क्षेत्रों से 200 प्रतिभागियों ने भाग लिया।
  • भागीदारी: इस कार्यक्रम में भारत सरकार की सक्रिय भागीदारी रही, जिसने महिला किसानों को सशक्त बनाने पर छह महीने तक संवाद और नीतिगत विचार-विमर्श में योगदान दिया।

असम में ENACT परियोजना

  • प्रकृति-आधारित और लिंग-केंद्रित: ENACT परियोजना (प्रकृति-आधारित समाधानों और लिंग परिवर्तनकारी दृष्टिकोणों के माध्यम से कमजोर समुदायों के जलवायु अनुकूलन को बढ़ाना) जलवायु अनुकूलन और लैंगिक समानता पर केंद्रित है।
  • परियोजना लक्ष्य: WFP और असम सरकार द्वारा नागाँव, असम में कार्यान्वित यह परियोजना जलवायु संबंधी जानकारी और निर्णय लेने की क्षमता तक पहुँच को बढ़ाकर छोटे महिला किसानों को सशक्त बनाती है
  • वित्तपोषण और समर्थन: इस पहल को नॉर्वे सरकार द्वारा वित्तपोषित किया जा रहा है, जिसका लक्ष्य खाद्य आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देना और खाद्य उत्पादन में महिलाओं की भूमिका को मजबूत करना है।

वैश्विक कृषि में महिलाओं की महत्त्वपूर्ण भूमिका

  • वैश्विक खाद्य आपूर्ति: वैश्विक खाद्य आपूर्ति का लगभग आधा हिस्सा महिलाओं द्वारा उत्पादित किया जाता है, जो विश्व भर में खाद्य सुरक्षा में उनके विशाल योगदान को रेखांकित करता है।
  • प्रमुख उत्पादक: विकासशील देशों में, महिलाएँ खाद्य उत्पादन के 60% से 80% के लिए उत्तरदायी हैं
  • महत्त्वपूर्ण श्रम शक्ति: दक्षिण एशिया में, महिलाएँ कृषि श्रम शक्ति का 39% हिस्सा निर्मित करती हैं
  • कृषि क्षेत्र की रीढ़: भारत में, आर्थिक रूप से सक्रिय महिलाओं का 80% हिस्सा कृषि में कार्यरत है, जो देश के कृषि क्षेत्र की रीढ़ के रूप में उनकी स्थिति को मजबूत करता है।
  • कृषि का महिलाकरण: यह प्रवृत्ति, जहाँ महिलाएँ कृषि कार्यबल के बढ़ते अनुपात में शामिल हैं, विशेष रूप से विकासशील क्षेत्रों में कृषि का महिलाकरण कहा जाता है।

कृषि क्षेत्र में महिलाओं से संबंधित चुनौतियाँ

  • भूमि स्वामित्व अंतराल: हालाँकि भारत में आर्थिक रूप से सक्रिय 80% महिलाएँ कृषि क्षेत्र में कार्यरत हैं, लेकिन केवल 14% भूमि स्वामित्व महिलाओं के पास हैंराष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण में यह आँकड़ा 8.3% और भी कम बताया गया है।
  • भूमि नहीं, तो संपार्श्विक नहीं: भूमि स्वामित्व की यह गंभीर कमी सीधे तौर पर ऋण के लिए कोई संपार्श्विक नहीं होने का संकेत देती है। सुरक्षा के तौर पर भूमि के बिना, महिला किसानों को औपचारिक रूप से ऋण प्राप्त करने में गंभीर रूप से समस्या का सामना करना पड़ता है।
  • संसाधनों तक सीमित पहुँच: महिला किसानों को औपचारिक बैंक ऋण, सरकारी कृषि योजनाओं और आधुनिक कृषि प्रौद्योगिकी जैसे आवश्यक संसाधनों तक पहुँचने के लिए संघर्ष करना पड़ता है।
  • सीमित निर्णय-शक्ति: भूमि स्वामित्व का अभाव भी महत्त्वपूर्ण रूप से कृषि क्षेत्र में और प्रायः उनके परिवारों के भीतर उनकी निर्णय लेने की शक्ति को भी सीमित कर देता है, जिससे शक्तिहीनता का चक्र चलता रहता है।
  • औपचारिक ऋण से बहिष्कार: भूमि स्वामित्व के बिना, महिला किसनों को प्रभावी रूप से औपचारिक ऋण और वित्तीय संस्थानों से ऋण तक पहुँच से वंचित कर दिया जाता है। भूमि का स्वामित्व आमतौर पर संपार्श्विक के रूप में आवश्यक होता है, और इसकी अनुपस्थिति एक महत्त्वपूर्ण बाधा उत्पन्न करती है।
  • बैंक खाता खोलने में कठिनाई: मान्यता प्राप्त भूमि स्वामित्व की कमी भी इसका कारण हो सकती है। बैंक खाते खोलने में भी कठिनाई हो सकती है, जिससे महिलाएँ औपचारिक वित्तीय प्रणाली से अलग-थलग हो जाती हैं और उनकी बचत करने या भुगतान प्राप्त करने की क्षमता सीमित हो जाती है।
  • प्रौद्योगिकी तक खराब पहुँच: भूमि के बिना, महिलाओं को प्रायः महत्त्वपूर्ण सूचना और प्रौद्योगिकी क्षेत्र तक खराब पहुँच प्राप्त होती है
    • इसमें महत्त्वपूर्ण कृषि सलाह, वास्तविक समय मौसम अपडेट और आवश्यक बाजार जानकारी शामिल है, जो प्रभावी कृषि हेतु महत्त्वपूर्ण हैं।
  • निर्णयों से बहिष्करण: भूमि स्वामित्व की कमी का सीधा अर्थ है महत्त्वपूर्ण कृषि निर्णयों से बहिष्कृत होना, जैसे कौन सी फसल बोनी है, कब कटाई करनी है, या उपज को कैसे बेचना है।
    • इससे उनकी आर्थिक स्थिति कमजोर होती है और हाशिए की स्थिति बनी रहती है।
  • सूक्ष्म-वित्तीयन की सीमाएँ: जबकि सूक्ष्म वित्तीयन और स्वयं सहायता समूह (SHG) पूँजी तक कुछ पहुँच प्रदान करते हैं, ये ऋण आमतौर पर प्रमुख कृषि निवेशों जैसे मशीनरी खरीदने, सिंचाई प्रणालियों में सुधार, या नई, अधिक उत्पादक प्रौद्योगिकियों को अपनाने हेतु अपर्याप्त हैं।
    • वे भूमि स्वामित्व से जुड़ी बड़ी, औपचारिक ऋण लाइनों तक पहुँच की कमी की भरपाई नहीं कर सकते।

महिला किसानों के लिए सरकारी प्रयास

  • महिला किसान सशक्तीकरण परियोजना: यह कार्यक्रम छोटी महिला किसानों के लिए कौशल विकास और संसाधन पहुँच बढ़ाने पर केंद्रित है
  • कृषि यंत्रीकरण संबंधी उप-मिशन: यह कृषि मशीनरी पर 50% से 80% सब्सिडी प्रदान करता है, जिससे महिलाओं द्वारा लघु-स्तरीय कृषि के मशीनीकरण को प्रोत्साहन मिलता है।
  • राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन (NFSM): राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन अपने बजट का 30% विशेष रूप से चयनित राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में महिला किसानों के लिए आवंटित करता है, जिससे समावेशी कृषि विकास को बढ़ावा मिलता है

जलवायु परिवर्तन का प्रभाव

  • असमान प्रभाव: जलवायु परिवर्तन महिला किसानों को असमान रूप से प्रभावित करता है, न केवल कृषि जोखिम को बढ़ाकर, बल्कि महिलाओं द्वारा पारंपरिक रूप से निभाई जाने वाली घरेलू जिम्मेदारियों को बढ़ाकर भी।

समुदाय-आधारित जलवायु अनुकूलन

  • जमीनी स्तर के मॉडल: महिला किसानों को शामिल करने से गाँव और समुदाय के स्तर पर जलवायु अनुकूलन के लिए अनुकरणीय मॉडल बनाने में मदद मिलती है, जिससे यह सुनिश्चित होता है कि समाधान स्थानीय रूप से प्रासंगिक हैं।
  • तकनीक-सक्षम ज्ञान साझाकरण: ENACT परियोजना मोबाइल-आधारित संचार का उपयोग करके नागाँव के 17 गाँवों में 300 से अधिक महिला किसानों को साप्ताहिक जलवायु और कृषि संबंधी सलाह प्रदान करती है।
  • सूचना केन्द्र: जलवायु अनुकूलन सूचना केन्द्र वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग और बैठकों को सक्षम बनाते हैं, जिससे ग्रामीण महिलाओं के लिए कृषि और आजीविका समाधान पर वास्तविक समय पर अद्यतन जानकारी मिलती है।
  • स्केलेबल प्रभाव: यह परियोजना तकनीकी विशेषज्ञता, आजीविका विविधीकरण, डिजिटल सलाह और सामाजिक व्यवहार परिवर्तन प्रथाओं को एकीकृत करके स्केलेबल प्रभाव प्राप्त करती है।
  • बहु-स्तरीय सहयोग: ENACT राज्य और जिला प्रशासन के साथ साझेदारी करता है, जिसमें कृषि विभाग, राज्य ग्रामीण आजीविका मिशन तथा मौसम विज्ञान और पर्यावरण विभाग शामिल हैं।
  • प्रौद्योगिकी और ज्ञान साझेदार शैक्षणिक और अनुसंधान संस्थान जलवायु-अनुकूल फसल किस्मों, विशेष रूप से बाढ़-प्रवण क्षेत्रों के लिए उपयुक्त किस्मों की आपूर्ति और स्रोत द्वारा योगदान करते हैं।

आगे की राह

  • बाढ़ प्रतिरोधी फसलें: बाढ़ प्रतिरोधी चावल की किस्मों, पोषक तत्त्वों से युक्त स्थानीय फसलों और आजीविका विविधीकरण पर ध्यान केंद्रित किया जाता है, जिससे जलवायु के प्रति संवेदनशीलता को कम किया जा सके और वर्ष पर्यंत आय सुनिश्चित की जा सके
  • स्मार्ट बीज उत्पादन: महिला किसान समूह समुदाय आधारित स्मार्ट बीज उत्पादन प्रणाली में शामिल हैं, जो जलवायु लचीलापन और स्थानीय स्थिरता दोनों को मजबूत करता है।
  • डेटा और डिज़ाइन: नीतिगत ढाँचों में महिला किसानों की विशिष्ट आवश्यकताओं को प्रतिबिंबित किया जाना चाहिए। इसमें हस्तक्षेप को आकार देने के लिए लिंग-विभाजित डेटा का उपयोग शामिल है, जो निम्न को संबोधित करता है:
    • उपकरण डिजाइन
    • वित्तीय पहुँच
    • बचत और ऋण व्यवहार
  • कृषि-मूल्य शृंखलाएँ: कृषि-मूल्य शृंखलाओं पर बल दिया जाना चाहिए, जिनका नेतृत्व और प्रबंधन महिलाओं द्वारा किया जाए तथा उन्हें निम्नलिखित तक पहुँच प्राप्त हो:
    • वित्तीयन
    • जानकारी
    • महिला स्वयं सहायता समूहों जैसे- सामूहिक नेटवर्क।
  • ऐतिहासिक अवसर: वर्ष 2026 को अंतर्राष्ट्रीय महिला कृषक वर्ष के रूप में घोषित किया जाना एक महत्त्वपूर्ण क्षण है, जिसके माध्यम से:
    • अनुकूल कृषि विकास
    • लैंगिक समानता
    • खाद्य सुरक्षा और आर्थिक स्थिरता में महिलाओं के योगदान की मान्यता।

निष्कर्ष

सतत कृषि और समावेशी विकास के लिए, भारत तथा विश्व में महिला किसानों द्वारा निभाई गई महत्त्वपूर्ण भूमिका को समर्थन, मान्यता देना और संस्थागत बनाना अनिवार्य है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत में महिला किसानों के समक्ष आने वाली सामाजिक-आर्थिक चुनौतियों के साथ-साथ खाद्य सुरक्षा के लिए कृषि में महिलाओं को सशक्त बनाने हेतु राष्ट्रीय तथा अंतर्राष्ट्रीय पहलों पर चर्चा कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

 

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