100% तक छात्रवृत्ति जीतें

रजिस्टर करें

शास्त्रीय भाषाओं की सूची का विस्तार : नई प्रविष्टियों के निहितार्थ

Lokesh Pal October 07, 2024 05:15 217 0

संदर्भ : 

केंद्रीय मंत्रिमंडल द्वारा पाँच भाषाओं खासकर मराठी, पाली, प्राकृत, असमिया और बंगाली को आधिकारिक तौर पर शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता दे दी गई है, जिससे इस सूची पर अब कुल शास्त्रीय भाषाओं की संख्या ग्यारह हो गई है। इस निर्णय ने सामाजिक एकता और भाषाई विविधता के संरक्षण और इसके निहितार्थों के विषय में भाषा विद्वानों के मध्य विचार-विमर्श हो रही हैं।

महत्वपूर्ण तथ्य :

  • किसी भाषा को शास्त्रीय भाषा घोषित करने के मानदंड :
    • ऐतिहासिक पृष्ठभूमि : उस भाषा में प्रारंभिक ग्रन्थ और लिखित इतिहास 1,500-2,000 वर्ष पुराना होना चाहिए।
    • समृद्ध साहित्यिक विरासत : इसमें प्राचीन ग्रंथों या साहित्य का संग्रह होना चाहिए जिसे पीढ़ियों से मूल्यवान सांस्कृतिक विरासत माना जाता रहा हो।
    • मूल ज्ञान आधार : उस भाषा की अपनी स्वयं की साहित्यिक परंपरा विकसित होनी चाहिए, न कि अन्य भाषाई समुदायों से उधार या ग्रहण की गयी होनी चाहिए।
    • विशिष्ट विकास : भाषा का शास्त्रीय रूप, इसके साहित्य के साथ, इसके आधुनिक संस्करणों से अलग होना चाहिए (उदाहरण के लिए तमिल मूल तमिल भाषा का आधुनिक संस्करण है) जिसमें शास्त्रीय भाषा और इसके बाद के रूपों या व्युत्पन्नों के मध्य निरंतरता में स्पष्ट विराम की संभावना हो।
  • शास्त्रीय भाषा के तहत पहचान करने  के लाभ :
    • अध्ययन और संरक्षण के लिए समर्थन : सरकार भारत की बौद्धिक और सांस्कृतिक विरासत की सुरक्षा करते हुए शास्त्रीय भाषाओं के अध्ययन, संरक्षण और पुनरोद्धार को बढ़ावा देती है।
    • विद्वानों के शोध को प्रोत्साहन : इन भाषाओं को मान्यता देने से अकादमिक शोध और प्राचीन ग्रंथों और ज्ञान प्रणालियों की पुनः खोज को प्रोत्साहन मिलता है।
    • प्रतिष्ठित पुरस्कार : दो अंतरराष्ट्रीय पुरस्कार – राष्ट्रपति प्रमाण पत्र पुरस्कार और महर्षि बादरायण सम्मान – शास्त्रीय भाषा अनुसंधान और संवर्धन में उत्कृष्ट प्रदर्शन करने वाले व्यक्तियों को प्रतिवर्ष दिए जाते हैं।
    • शैक्षणिक वित्तपोषित व अनुसंधान : विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) शास्त्रीय भाषा अध्ययन को आगे बढ़ाने के लिए केंद्रीय विश्वविद्यालयों और अनुसंधान संस्थानों में व्यावसायिक पीठों की स्थापना को वित्तपोषित करता है।
    • रोजगार के अवसर :  शास्त्रीय भाषाओं के रूप में मान्यता मिलने से शिक्षा, अनुसंधान, अभिलेखीकरण, अनुवाद, प्रकाशन और डिजिटल मीडिया के क्षेत्र में नौकरी की संभावनाएँ बढ़ती हैं।
    • सांस्कृतिक गौरव और एकता : यह वक्ताओं के बीच गौरव और स्वामित्व की भावना को बढ़ावा देता है, राष्ट्रीय एकीकरण का समर्थन करता है और एक आत्मनिर्भर, सांस्कृतिक रूप से समृद्ध भारत के निर्माण को बढ़ावा देता है।
  • ‘शास्त्रीय’ भाषा की अवधारणा का आशय :
    • लोकप्रिय अवधारणा के विपरीत, “शास्त्रीय” स्थिति एक अंतर्निहित भाषाई विशेषता नहीं है, बल्कि एक पूर्वव्यापी ऐतिहासिक वर्गीकरण है।
    • संस्कृत, तमिल और ग्रीक जैसी शास्त्रीय भाषाओं को “मूल” भाषा माना जाता है, जो शब्द, प्रत्यय और संरचना प्रदान करके आधुनिक भाषाओं के विकास को प्रभावित करती हैं।
      • उदाहरण :”computer” में लैटिन प्रत्यय “-er” इस प्रभाव को दर्शाता है।
    • “क्लासिकल” शब्द को यूरोपीय ज्ञानोदय के दौरान प्रमुखता मिली, क्योंकि जब फ्रांस, प्रशिया और इंग्लैंड जैसे राष्ट्रों ने अपनी साम्राज्यवादी महत्वाकांक्षाओं को बढ़ावा देने के लिए लैटिन और ग्रीक भाषाओं की विरासत को पुनर्जीवित करने की कोशिश की।
    • यह वर्गीकरण, तटस्थ होने के स्थान पर , ऐतिहासिक रूप से सामाजिक-राजनीतिक महत्त्व रखता है, जिसका उपयोग सामान्य स्थितियों में एक भाषा को “श्रेष्ठ” के रूप में मान्यता प्रदान करने के लिए किया जाता है, जबकि अन्य को “स्थानीय” या “असभ्य” करार दिया जाता है।

प्राकृत भाषा

  • “प्राकृत” भाषा विभिन्न क्षेत्रीय बोलियों की एक विविध श्रृंखला का प्रतिनिधित्व करती है, जिनमें गांधारी, महाराष्ट्री, शौरसेनी और कामरूपी शामिल हैं, हालांकि कुछ प्राचीन वर्गीकरणों में पाली को भी प्राकृत भाषा ही माना गया है।
    • ये भाषाएँ पूर्व-संस्कृत भाषाई परंपराओं के अवशेष हैं जो भारतीय उपमहाद्वीप में सहस्राब्दियों तक फली-फूली।
    • प्राकृत शब्द एक प्रारंभिक भाषाई चरण को दर्शाता है जिसने कई आधुनिक भारतीय भाषाओं को जन्म दिया , जैसे गुजराती, बांग्ला, मराठी और ओडिया ।

प्राकृत भाषा को शास्त्रीय भाषा के रूप में शामिल करने की चिंताएँ

  • प्राकृत को शास्त्रीय भाषाओं की श्रेणी में शामिल करने का प्रस्ताव कई चिंताएँ उत्पन्न करता है:
    • संदिग्ध शास्त्रीय स्थिति : इसका योगदान संस्कृत, पाली और तमिल के अधिक स्थापित दिग्गजों की तुलना में खंडित और तुलनात्मक रूप से कम ज्ञात है।
      • इसकी सीमित साहित्यिक विरासत और क्षेत्रीय विविधताओं को देखते हुए, प्राकृत को शास्त्रीय भाषा के रूप में मान्यता देना अन्य भाषाओं के समक्ष महत्त्वहीन लगता है।
  • ऐतिहासिक संदर्भ : लगभग 9,000 से 8,000 वर्ष पूर्व, होलोसीन प्रवास के कारण भारत में मानव बस्तियाँ स्थापित हुईं।
    • हालाँकि संस्कृत-पूर्व लिखित साक्ष्य नहीं है, फिर भी संभवतः उनका प्रभाव प्राकृत पर पड़ा, जिसे एकल भाषा के बजाय बोलियों का एक संग्रह माना जाना चाहिए।

शास्त्रीय भाषा में शामिल करने के नकारात्मक निहितार्थ

  • राजनीतिक परिणाम : किसी भी भाषा को शास्त्रीय दर्जा दिए जाने से अक्सर उनके वक्ताओं में बहुसंख्यकवादी गौरव की भावना को बढ़ावा मिलता है।
  • इससे कम मान्यता प्राप्त भाषाओं के बोलने वाले लोग अलग-थलग पड़ सकते हैं, जिससे जाति और धर्म के कारण पैदा हुए सामाजिक विभाजन जैसे हालात पैदा हो सकते हैं।
    • ऐसी अवधारणाएं इस धारणा को मजबूत करती हैं कि कुछ भाषाओं और उनके बोलने वालों को स्वाभाविक रूप से अधिक “सभ्य” माना जाता है, जिससे भाषाई समानता के सिद्धांत को कमजोर किया जाता है।
  • भाषाई विविधता के लिए खतरा : चूंकि प्रमुख भाषाएं शिक्षा और सार्वजनिक संवाद में हावी हो रही हैं, इसलिए छोटी भाषाओं का महत्तव कम हो सकता है, जिससे सांस्कृतिक विविधता और उनके द्वारा प्रस्तुत अद्वितीय विश्वदृष्टिकोण में कमी आ सकती है।

भाषा पदानुक्रम का संक्षिप्त रेखांकन :

  • 1,000 से अधिक मातृभाषाएँ : आधार परत, जो विशाल भाषाई विविधता का प्रतिनिधित्व करती है।
  • 100 से अधिक भाषाएँ : मान्यता प्राप्त भाषाएँ जो अधिक व्यापक रूप से बोली जाती हैं।
  • 22 अनुसूचित भाषाएँ : भारत के संविधान की आठवीं अनुसूची में आधिकारिक तौर पर मान्यता प्राप्त भाषाएँ।
  • 11 शास्त्रीय भाषाएँ : उच्चतम दर्जा प्राप्त भाषाएं , प्राचीन मूल और महत्वपूर्ण सांस्कृतिक प्रभाव वाली भाषाओं का प्रतिनिधित्व करती हैं।

निष्कर्ष :

हर भाषा एक अनूठी विश्वदृष्टि का प्रतिनिधित्व करती है और सम्मान की हकदार है। यदि विविधता भरे इस देश में केवल कुछ चुनिंदा भाषाओं को ही मान्यता मिलती है, तो यह भारत के समक्ष भाषाओं, का जोखिम हो सकता है। जैसा कि जॉर्ज ऑरवेल के एनिमल फ़ार्म में विवरण दिया गया है, जहाँ कुछ को दूसरों पर तरजीह दी जाती है, जिससे वास्तविक समानता और एकता कमज़ोर हो जाती है।

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      

Final Result – CIVIL SERVICES EXAMINATION, 2023. PWOnlyIAS is NOW at three new locations Mukherjee Nagar ,Lucknow and Patna , Explore all centers Download UPSC Mains 2023 Question Papers PDF Free Initiative links -1) Download Prahaar 3.0 for Mains Current Affairs PDF both in English and Hindi 2) Daily Main Answer Writing , 3) Daily Current Affairs , Editorial Analysis and quiz , 4) PDF Downloads UPSC Prelims 2023 Trend Analysis cut-off and answer key

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.