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WEF से लेकर NAM सम्मलेन में विश्वव्यवस्था की खामियाँ (Flaws in the world order from WEF to NAM conference)

Samsul Ansari January 20, 2024 11:16 155 0

संदर्भ

हाल ही में तीन शिखर सम्मेलनों यथा- दावोस, स्विट्जरलैंड में विश्व आर्थिक मंच, कंपाला में NAM और  युगांडा में G77 सम्मलेन के आयोजन ने वर्ष 2024 में वैश्विक राजनीति के बदलते परिदृश्य की ओर संकेत किया है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: विश्व व्यवस्था में बदलाव- महत्त्व, चुनौतियाँ तथा आगे की राह।

शिखर सम्मेलनों की मुख्य बातें

  • अनुकूलन की चुनौती: वैश्विक दक्षिण में अपनी प्रभावशीलता की स्थापना हेतु वैश्विक व्यवस्था में संरचनात्मक बदलावों को अपनाना, चीन और भारत दोनों के लिए एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • नए अवसर: वैश्विक दक्षिण में उत्कृष्टता या राष्ट्रीय लाभ के दोहन के लिए क्षेत्रीय शक्तियों के मध्य उत्पन्न स्पर्द्धा का लाभ उठाने के लिए प्रमुख देशों के पास कई नई संभावनाएँ मौजूद हैं।

दावोस-केंद्रित विश्व व्यवस्था 

  • पश्चिमी विचारों से प्रेरित सिद्धांत: शीतयुद्ध के उपरांत वैश्विक व्यवस्था को वैश्वीकरण, मुक्त बाजार और वैश्विक शासन के सिद्धांतों के आधार पर पश्चिमी अभिजात वर्ग (“DAVOS MAN”) द्वारा रूप दिया गया था। निम्नलिखित कारणों से इन सिद्धांतों में विकृति का आना:
  • वैश्वीकरण और आप्रवासन के खिलाफ पश्चिम में राष्ट्रवादी प्रतिक्रिया
  • ट्रंप प्रशासन के नेतृत्व में अमेरिका का वैश्विक नेतृत्व से विमुख होना
  • महान शक्ति-प्रतिद्वंद्विता की पुनःवापसी (एवं  रूस-चीन गठबंधन)
  • यूक्रेन, मध्य पूर्व, पूर्वी एशिया में संघर्ष।

NAM और G77 जैसे समूहों के समक्ष चुनौतियाँ

  • क्षेत्रीय और अन्य समूह: ब्रिक्स जैसे नए समूहों और आसियान जैसे क्षेत्रीय निकायों का उदय
  • चीन का उदय: अमेरिका के नेतृत्व वाली व्यवस्था के विकल्प के रूप में चीन का उदय
  • उत्तर-दक्षिण विभाजन में अस्पष्टता: ब्रिक्स में रूस की उपस्थिति।

विकासशील देशों के लिए अवसर

  • विश्व में प्रमुख रणनीतिक अवस्थिति वाले और महत्त्वपूर्ण संसाधन युक्त राष्ट्र इससे लाभान्वित हो सकते हैं।
  • एक देश द्वारा दूसरे देश की शक्तियों के अधिग्रहण द्वारा।
  •  किसी एक पक्ष का चयन किए बिना अमेरिका और चीन दोनों से लाभ प्राप्त करना।

भारत और चीन के विरोधाभासी दृष्टिकोण

  • दावोस में: चीन का लक्ष्य व्यवस्था में संशोधन करना है, जबकि भारत एकीकरण पर ध्यान केंद्रित करता है।
  • NAM में: चीन खुद को एक विकल्प के रूप में प्रस्तुत करता है, जबकि भारत एक संयोजक के रूप में स्वयं को प्रस्तुत करता है।

निष्कर्ष

एक तरफ जहाँ पुरानी व्यवस्थाएँ टूट रही हैं वही दूसरी तरफ उभरती हुई नई शक्तियाँ वैश्विक अभिशासन को नया आकार दे रही हैं। इस व्यवस्था परिवर्तन के समाधान हेतु विकासशील देशों के लिए वैचारिक दृढ़ता के बजाय कूटनीति को अपनाना अधिक महत्त्वपूर्ण होगा।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : बदलती वैश्विक व्यवस्था में विकासशील देशों के समक्ष उत्पन्न होने वाली चुनौतियों और उनके समाधान पर प्रकाश डालिएI

                                                                                    News Source: The Indian Express

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