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आर्कटिक महासागर का वैश्विक महत्त्व और भारत के लिए इसके निहितार्थ

Lokesh Pal June 10, 2025 05:00 34 0

संदर्भ:

मार्च 2025 में रूसी राजदूत डेनिस अलीपोव ने नई दिल्ली में “आर्कटिक क्षेत्र में सतत विकास के लिए उत्तर और दक्षिण को एकजुट करनाविषय पर एक सम्मेलन को संबोधित किया।

आर्कटिक महासागर का वैश्विक महत्त्व

  • भौगोलिक अवस्थिति: आर्कटिक महासागर, विश्व के अन्य महासागरों में सबसे छोटा और उथला है, जो यूरेशिया और उत्तरी अमेरिका से घिरा हुआ है।
  • संबंधित मार्ग: इसके दो प्रमुख मार्ग हैं:
    • ग्रीनलैंड-आइसलैंड-यूके (GI-UK) गैप से होकर अटलांटिक महासागर।
    • बेरिंग जलडमरूमध्य से होते हुए प्रशांत महासागर (अलास्का और साइबेरिया के बीच)।
      • बेरिंग जलडमरूमध्य एक संकरा जलमार्ग है, जो अपने सबसे संकरे बिंदु पर 85 किमी. (53 मील) चौड़ा है, जो रूस तथा अलास्का को अलग करता है, साथ ही आर्कटिक महासागर को बेरिंग सागर से जोड़ता है।
  • लवणता स्तर: लवणता में कमी के कारण समुद्री बर्फ का आवरण व्यापक हो जाता है, जो मौसम के अनुसार बदलता रहता है, जिससे नौवहन कठिन हो जाता है
  • संसाधन संपदा: अनुमान है, कि विश्व के दुर्लभ खनिज, धातु और प्रचुर मात्रा में मत्स्यन भंडार से समृद्ध अप्रयुक्त तेल तथा गैस भंडार का 25% हिस्सा यहीं है।
  • वैज्ञानिक अनुमान: अमेरिकी भू-वैज्ञानिक सर्वेक्षण (USGS) के अनुसार आर्कटिक में 90 बिलियन बैरल तेल और 1,670 ट्रिलियन क्यूबिक फीट प्राकृतिक गैस है।
  • सामरिक और आर्थिक क्षमता: यह आरंभिक प्रयास करने वालों के लिए बड़े पैमाने पर आर्थिक अवसर प्रदान करता है। आर्कटिक विश्व के सबसे कम दोहन वाले लेकिन संसाधन संपन्न क्षेत्रों में से एक है।

उभरते रणनीतिक मार्ग

  • पारंपरिक मार्ग: पारंपरिक स्वेज नहर मार्ग यूरोप और एशिया के बीच व्यापार के लिए व्यापक रूप से उपयोग किया जाने वाला समुद्री मार्ग बना हुआ है।
  • उत्तर-पश्चिमी मार्ग (NWP): यह कनाडा के आर्कटिक द्वीप समूह से होकर गुजरता है, जो उत्तरी कनाडा से होकर अटलांटिक और प्रशांत महासागर के बीच सीधा मार्ग प्रदान करता है। कनाडा इसे आंतरिक जल क्षेत्र होने का दावा करता है, जबकि अन्य अंतरराष्ट्रीय मार्ग अधिकारों के लिए तर्क देते हैं।
  • उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR): यह रूस के साइबेरियाई तट के साथ-साथ बैरेंट्स सागर से बेरिंग जलडमरूमध्य तक जाता है। यह रूसी अवसंरचना और नीतियों द्वारा समर्थित है।
  • नौवहन क्षमता: जलवायु परिवर्तन के कारण आर्कटिक समुद्री बर्फ मौसमी रूप से पिघल रही है, जिससे नौवहन क्षमता में वृद्धि हो रही है। इसके बावजूद, कई क्षेत्रों में बर्फ तोड़ने वाले जहाज़ अब भी आवश्यक हैं। रूस, चीन और अन्य देश ध्रुवीय श्रेणी के जहाजों और रसद सहायता में व्यापक निवेश कर रहे हैं
  • तुलना या अंतर: यूरोप और एशिया के बीच यात्रा के लिए उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) स्वेज नहर मार्ग की तुलना में दूरी एवं समय में व्यापक रूप से कम है।
    • उत्तरी समुद्री मार्ग लगभग 12,800 किमी. जबकि स्वेज नहर मार्ग लगभग 21,000 किमी. लंबा है।
    • इससे 10-15 दिन के समय की बचत होती है तथा NSR से एक महीने की यात्रा दो सप्ताह से भी कम समय में पूरी हो जाती है।

नए आर्कटिक समुद्री मार्गों के लाभ

  • बाधाओं में कमी: व्यापारिक जहाजों द्वारा नए आर्कटिक मार्ग को अपनाने से स्वेज तथा पनामा नहरों से होकर गुजरने संबंधी बाधाएँ दूर हो जाएंगी
  • कम दूरी और लागत: इससे यूरोप, अमेरिका के पश्चिमी तट, एशिया और सुदूर पूर्व के बीच की दूरी 5,000-6,000 किमी. या 15-20 दिन तक कम हो जाएगी, जिससे शिपिंग लागत में कमी आएगी

आर्कटिक में भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा

  • रूस: वर्ष 2007 में, रूस ने उत्तरी ध्रुव के समुद्र तल पर 13,000 फीट की गहराई पर एक पनडुब्बी का उपयोग करके टाइटेनियम ध्वज लगाया। यह महाद्वीपीय शेल्फ अधिकारों का दावा करता है और हाइड्रोकार्बन एवं खनिज संसाधनों का दोहन करता है। यह क्षेत्रीय और सामरिक हितों का प्रतीकात्मक दावा है।
    • विशाल तटरेखा: आर्कटिक महासागर में रूस की तटरेखा सबसे बड़ी है, जिसमें कुल तटरेखा का 53% से अधिक शामिल है।
      • लगभग 24,150 किलोमीटर तक विस्तृत यह विशाल तटरेखा रूस के आर्कटिक क्षेत्र तथा इसके सामरिक महत्त्व में विशेष योगदान देती है।
  • चीन: यह स्वयं को निकट-आर्कटिक राज्यमानता है तथा आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा रखता है।
    • चीन का लक्ष्य: प्राकृतिक संसाधनों की खोज, ध्रुवीय रेशम मार्ग की शुरुआत और वाणिज्यिक आर्कटिक नौवहन के लिए बर्फ तोड़ने वाले जहाजों का निर्माण आदि।
  • पश्चिमी देशों की चिंताएँ: रूस की इन आक्रामक कार्रवाइयों और चीन के बढ़ते प्रभाव ने पश्चिमी देशों को चिंतित कर दिया है। आर्कटिक में सैन्यीकरण की आशंकाएँ बढ़ रही हैं, जो इस क्षेत्र में सैन्य उपस्थिति एवं रणनीतिक प्रतिस्पर्धा में वृद्धि की ओर संभावित परिवर्तन का संकेत देती हैं।

रणनीतिक महत्त्व का विकास

  • शीत युद्ध का महत्त्व: ऐतिहासिक तौर से, ध्रुवीय जल मुख्य रूप से वैज्ञानिक अभियानों के लिए थे। शीत युद्ध के दौरान बैलिस्टिक-मिसाइल परमाणु पनडुब्बियों (SSBN) के आगमन ने आर्कटिक क्षेत्र को सामरिक महत्त्व प्रदान किया।
  • लघु उड़ान समय: आर्कटिक से प्रक्षेपित अंतरमहाद्वीपीय मिसाइलों का महाद्वीपीय अमेरिका और रूसी क्षेत्र तक पहुँचने का उड़ान समय सबसे कम होगा
  • नौसैनिक केंद्र: सोवियत संघ ने एसएसबीएन के लिए नौसैनिक केंद्र स्थापित किए, जिन पर नाटो बलों द्वारा निरंतर निगरानी रखी जाती थी।
  • वर्तमान भू-राजनीतिक प्रतिस्पर्धा: अब ध्यान प्राकृतिक संसाधनों के दोहन पर केंद्रित हो गया है, जिसके कारण व्यापक अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धा बढ़ गई है।

ध्रुवीय अनुसंधान के प्रति भारत की प्रतिबद्धता

  • वैज्ञानिक सहभागिता: ध्रुवीय क्षेत्रों के बारे में सामान्य धारणा में कोई विशेष रुचि न होने के बावजूद, भारत का वैज्ञानिक समुदाय, पूर्ण राजनीतिक समर्थन के साथ, 1981 से ध्रुवीय अनुसंधान में संलग्न रहा है।
  • राष्ट्रीय ध्रुवीय एवं महासागर अनुसंधान केंद्र (NCPOR): गोवा स्थित NCPOR ध्रुवीय अध्ययन नीति के क्रियान्वयन के लिए उत्तरदायी है, जो वायुमंडलीय विज्ञान, जलवायु संकट, हिमनद विज्ञान और ध्रुवीय जीव विज्ञान को समझने के प्रति इसकी प्रतिबद्धता को दर्शाता है।
  • अनुसंधान केंद्र:
    • अंटार्कटिका: भारत ने 1983-84 में अपना पहला अनुसंधान केंद्र, दक्षिण गंगोत्री, स्थापित किया। जिसके बाद मैत्री और भारती की स्थापना की गई
    • आर्कटिक: आर्कटिक में भारत के वैज्ञानिक प्रयास 1962 में शुरू हुए। नॉर्वे के स्वालबार्ड द्वीपसमूह के नाइ-एलेसंड में हिमाद्रि की स्थापना के साथ शुरू हुए।
  • आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक का दर्जा: भारत बाद में आर्कटिक परिषद में पर्यवेक्षक बन गया, जो एक अंतर-सरकारी निकाय है, जिसमें पाँच ‘आर्कटिक राष्ट्र’ (कनाडा, डेनमार्क, नॉर्वे, रूस, अमेरिका) और पड़ोसी स्वीडन, फिनलैंड एवं आइसलैंड शामिल हैं।

उत्तरी समुद्री मार्ग (NSR) से भारत को सामरिक लाभ

  • ऊर्जा सुरक्षा में वृद्धि: NSR के खुलने से भारत की ऊर्जा सुरक्षा मज़बूत होगी
  • सुदृढ़ सामरिक स्वायत्तता:
    • एक ओर चीन के प्रभाव का मुकाबला करना।
    • दूसरी ओर आर्कटिक सहयोग के माध्यम से रूस के साथ संबंधों को मजबूत करना।

आगे की राह

  • नीतिगत कार्यान्वयन: आर्कटिक नीति के सुदृढ़ कार्यान्वयन की अत्यंत आवश्यकता है
  • तकनीकी निवेश: भारत द्वारा बर्फ तोड़ने वाली तकनीक और आर्कटिक शिपिंग क्षमताओं में निवेश करना चाहिए।
  • समुद्री सिद्धांत अद्यतन: आर्कटिक को स्पष्ट रूप से शामिल करने के लिए भारत के समुद्री सिद्धांत को उन्नत करना आवश्यक है।
  • गठबंधन निर्माण: भारत को आर्कटिक क्षेत्र में वैज्ञानिक, ऊर्जा और व्यापार गठबंधन बनाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • सक्रिय भागीदारी: भारत को आर्कटिक मामलों से संबंधित आर्कटिक परिषद और अन्य वैश्विक मंचों पर अपनी आवाज प्रभावी ढंग से उठाने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष

आर्कटिक में भारत को रणनीतिक साझेदारी, वाणिज्यिक महत्त्वाकांक्षाओं और पर्यावरणीय उत्तरदायित्वों के बीच संतुलन बनाना होगा। पश्चिमी और रूसी दोनों ब्लॉकों के साथ एक तटस्थ लेकिन सक्रिय दृष्टिकोण आवश्यक है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

आर्कटिक में भारत के हितों और इसकी आर्कटिक नीति के विस्तार में रणनीतिक साझेदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (10 अंक, 150 शब्द)

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