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ग्रैंड स्ट्रैटेजी: भारतीय विदेश नीति क्षेत्रीय रणनीति हेतु नया अध्याय

Lokesh Pal January 08, 2025 05:45 10 0

संदर्भ:

राजनीतिक बदलाव, सत्ता की गतिशीलता, प्रतिद्वंद्विता और बाहरी प्रभाव दक्षिण      एशियाई क्षेत्र को नया आकार दे रहे हैं और भारत के अपने पड़ोसियों के साथ आपसी संबंध तेजी से  विकसित हो रहे हैं। 2025 में भी संभावना है कि भारत की विदेश नीति, दक्षिण एशिया में तेजी से बदलते रणनीतिक माहौल के अनुकूल बनी रहेगी।

दक्षिण एशिया में महाशक्तियों की घटती रुचि:

  • अमेरिकी प्रभाव में कमी:  एक दशक पहले, आतंकवाद, भारत-पाकिस्तान तनाव और अपनी अफ़गान सैन्य उपस्थिति के कारण अमेरिका दक्षिण एशिया की राजनीतिक व क्षेत्रीय गतिविधियों में सक्रियता से शामिल था। आज, इन मुद्दों, की प्रभावशीलता में कमी के कारण यह क्षेत्र वाशिंगटन के एजेंडे में प्राथमिकता खो चुका है। 
  • वैश्विक प्राथमिकताओं में बदलाव: दक्षिण एशिया पर वैश्विक ध्यान कम होने के साथ ही कश्मीर संघर्ष और परमाणु विस्फोट आदि के प्रति भी इसकी स्थिति पर ध्यान कम हो गया है। इस क्षेत्र को अब अन्य वैश्विक हॉटस्पॉट की तुलना में अधिक स्थिर माना जाता है।

भारत-पाकिस्तान संबंध:

  • शांत सीमाएँ: पाकिस्तान के साथ भारत की सीमाएँ अपेक्षाकृत शांत हो गई हैं, विशेषकर कश्मीर में नियंत्रण रेखा पर कुछ हद तक यह सामान्य बने हुए हैं। 
    • राजनयिक संपर्क: हालांकि, भारत और पाकिस्तान के बीच राजनयिक संपर्क कम हो गया है। वर्तमान समय में दोनों देशों के मध्य कोई व्यापारिक या राजनीतिक संपर्क नहीं है और लगभग पिछले पांच वर्षों से उच्चायुक्तों की भी कमी महसूस की जा रही है।
  • तालिबान-पाकिस्तान गतिशीलता: भारत-पाकिस्तान संबंधों को प्रभावित करने वाली एक नई गतिशीलता तालिबान के नेतृत्व वाले अफगानिस्तान और पाकिस्तान के बीच बढ़ता तनाव है। 
    • विपरीत स्थिति: पहले भारत को डर था कि पाकिस्तान तालिबान के समर्थन से अफगानिस्तान में रणनीतिक स्थिति हासिल कर लेगा, लेकिन अब स्थिति उलट गई है।
    • पाकिस्तान के प्रति तालिबान की बढ़ती शत्रुता, जिसमें क्षेत्रीय दावे भी शामिल हैं, भारत से अधिक इस्लामाबाद के लिए चिंता का विषय बने हुए हैं।

शरिया कानून की स्थापना का मुद्दा 

शरिया कानून स्थापित करने की मांग कर रहे तहरीक-ए-तालिबान के सदस्यों को अफगानिस्तान में सुरक्षित पनाह मिल गई है, जिसका पाकिस्तान विरोध करता है। दिसंबर 2025 में, पाकिस्तान ने अफगानिस्तान में पाकिस्तानी तालिबान के कई संदिग्ध ठिकानों को निशाना बनाकर दुर्लभ हवाई हमले किए, जिसमें महिलाओं और बच्चों सहित लगभग 15 लोग मारे गए।

दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सहयोग में गिरावट:

  • सार्क की निष्क्रियता: दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) 2014 से निष्क्रिय है, तथा इस संगठन से संबंधित देशों के मध्य क्षेत्रीय सहयोग काफी कमजोर हो गया है।
    • दक्षिण एशियाई देशों के बीच व्यापार, यात्रा, पर्यटन और शैक्षिक आदान-प्रदान में तेजी से गिरावट आई है, तथा क्षेत्रवाद की तुलना में द्विपक्षीयता को प्राथमिकता मिल गई है।
  • भारत का द्विपक्षीय दृष्टिकोण: दक्षिण एशिया के प्रति भारत का दृष्टिकोण समग्र क्षेत्र से हटकर व्यक्तिगत देशों पर ध्यान केंद्रित करने की ओर स्थानांतरित हो गया है। 
    • इस बदलाव के कारण भारत दक्षिण एशिया के साथ एक समूह के रूप में जुड़ने के बजाय छोटे क्षेत्रीय राज्यों के साथ संबंधों को प्राथमिकता देने पर जोर दे रहा है।

भारत-चीन संबंध:

  • अनसुलझे सीमा विवाद: चीन के साथ भारत के संबंधों में अविश्वास और समय-समय पर सम्बन्धों में उतार-चढ़ाव भरा मिश्रण देखने को मिलता है। 
    • वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) पर गश्त पर हाल ही में हुए समझौतों से अस्थायी राहत मिली है, लेकिन तनाव बना हुआ है। 
  • यारलुंग त्सांगपो पर बांध: ब्रह्मपुत्र नदी पर एक विशाल बांध बनाने की चीन की योजना और लद्दाख में उसकी निरंतर गतिविधियां यह संकेत दे रही हैं कि गतिविधियाँ ऐसी ही बनी रही तो भारत के अपने पड़ोसियों  के साथ संबंध तनावपूर्ण बने रहेंगे।

भारत के पड़ोसी संबंधों में निरंतर परिवर्तन:

  • अप्रत्याशित संबंध: नेपाल और बांग्लादेश जैसे छोटे पड़ोसियों के साथ भारत के संबंध गतिशील और उतार-चढ़ाव से ग्रस्त हैं। 
    • विशेषज्ञों का मानना है कि इस क्षेत्र में भारत के संबंध स्थिर स्वरूप में नहीं आ पाएंगे। इसके लिए कूटनीति, सहभागिता और समाधान हेतु निरंतर प्रयास की आवश्यकता होगी।
  • सफलता और चुनौतियाँ: भारत को इन संबंधों में सफलता और चुनौतियों दोनों का सामना करना पड़ेगा। इन संदर्भ में भारतीय  विदेश नीति को इन बदलावों के अनुकूल रहना होगा।

सुझाव:

  • पाकिस्तान के साथ शांति बनाए रखना: भारत की प्राथमिकता पाकिस्तान के साथ मौजूदा शांति को बनाए रखना होना चाहिए, क्योंकि यह व्यापक बातचीत या सैन्य वृद्धि का समय नहीं है।
  • तालिबान के साथ सतर्कतापूर्ण संपर्क: भारत को तालिबान के साथ सतर्कतापूर्वक व्यवहार करना चाहिए तथा उसे न तो सहयोगी के रूप में देखना चाहिए और न ही विरोधी के रूप में। 
    • अफगानियों का समर्थन करते हुए तटस्थ रुख बनाए रखना भारत के हितों के लिए बेहतर होगा, बजाय इसके कि भारत के साथ घनिष्ठ संबंध बनाए जाएं, क्योंकि इससे भारत के लिए बोझ बन सकता है।
  • वैश्विक शक्तियों की घटती रुचि का लाभ उठाना: भारत को अमेरिका, विशेषकर आने वाले प्रशासन के साथ, बांग्लादेश के भविष्य जैसे क्षेत्रीय मुद्दों पर चर्चा करनी चाहिए।
    • अन्य शक्तियों के साथ सहयोग: इसके अतिरिक्त, भारत को दक्षिण एशिया में क्षेत्रीय सार्वजनिक वस्तुएं उपलब्ध कराने के लिए जापान, दक्षिण कोरिया और यूरोपीय शक्तियों के साथ सहयोग करना चाहिए, तथा उनकी वित्तीय और अवसंरचनात्मक क्षमताओं का लाभ उठाना चाहिए।
  • दक्षिण एशिया को व्यापक रणनीतिक उद्देश्यों से जोड़ना: दक्षिण एशिया में भारत की विदेश नीति को हिंद महासागर और हिंद-प्रशांत क्षेत्रों में इसकी व्यापक रणनीतियों के साथ संरेखित किये जाने की आवश्यकता है।
    • दक्षिण एशियाई देशों को अन्य अग्रणी शक्तियों/समूहों के साथ शामिल करना लाभकारी हो सकता है।

निष्कर्ष:

अतः वर्ष 2025 में भी भारत की विदेश नीति को दक्षिण एशिया में जटिल और बदलते रणनीतिक परिदृश्य को ध्यान में रखकर चलना होगा। पाकिस्तान के साथ स्थिरता बनाए रखने, तालिबान के साथ सावधानी से बातचीत करने और बाहरी शक्तियों की कम होती दिलचस्पी का लाभ उठाने पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपनी स्थिति को मजबूत कर सकता है और क्षेत्र की बदलती गतिशीलता को प्रभावित करना जारी रख सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:प्रश्न:

भारत की पड़ोस नीति क्षेत्रीय जुड़ाव से द्विपक्षीय संबंधों की ओर बढ़ रही है, जबकि महाशक्ति गतिशीलता और पारंपरिक प्रतिद्वंद्विता का प्रबंधन भी किया जा रहा है। आलोचनात्मक रूप से विश्लेषण करें कि यह बदलाव भारत के रणनीतिक हितों को कैसे प्रभावित करता है और 2025 में संतुलित पड़ोसी संबद्धता के लिए एक रूपरेखा का सुझाव दें।

(15 अंक, 250 शब्द)

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