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भारत में बढ़ता आर्थिक विभाजन : संघवाद पर प्रभाव

Lokesh Pal October 30, 2024 05:45 37 0

संदर्भ: 

घरेलू बचत और निजी निवेश का मुख्यतः धनी देशों व मेगा शहरों में केंद्रित होने के परिणामस्वरूप समृद्ध और गरीब क्षेत्रों के बीच अंतर बढ़ रहा है। भारतीय राज्यों के बीच बढ़ते आर्थिक विभाजन के परिणामस्वरूप भारतीय संघवाद के लिए महत्वपूर्ण चुनौती उत्पन्न हो रही हैं।

देश की प्रति व्यक्ति आय संबंधी आंकड़े: 

  • भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन : प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन पर आधारित आँकड़ों को वर्ष 1960-61 से 2023-24 तक देश की आय में प्रत्येक राज्य की हिस्सेदारी और प्रति व्यक्ति आय की तुलना अखिल भारतीय औसत से प्रस्तुत करती है।
  • प्रति व्यक्ति आय संबंधी आंकड़ों का महत्व : आंकड़े हमें देश की अर्थव्यवस्था में प्रत्येक राज्य के महत्व और अखिल भारतीय स्तर के सापेक्ष प्रत्येक राज्य के नागरिकों के औसत कल्याण के बारे में बताते हैं। 
  • असमानता को दबाना : औसत कल्याण डेटा असमानता को दबाकर केवल समानता को उजागर करता है। 
    • उदाहरण के लिए, भारत की अर्थव्यवस्था में सबसे अधिक योगदान देने वाले राज्य महाराष्ट्र, की प्रति व्यक्ति आय राष्ट्रीय औसत का लगभग 150% है। हालाँकि, इसमें समृद्ध मुंबई और गरीब विदर्भ दोनों शामिल हैं, जो किसानों की आत्महत्या के लिए अक्सर चर्चा में रहता है। 
    • व्यापक असमानता: जबकि मुंबई के धनी लोग सबसे अधिक प्रत्यक्ष कर देते हैं और इसकी नगरपालिका (बीएमसी) भारत की सबसे समृद्ध नगरपालिकाओं में से एक है, शहर में बड़े पैमाने पर झुग्गी-झोपड़ियाँ (धारावी) भी हैं, जहाँ रहने की स्थिति बहुत खराब है।

रिपोर्ट से महत्वपूर्ण बिंदुओं का अवलोकन :

  • प्रदर्शन में अंतर को चिन्हित करना : यह रिपोर्ट भारत के पश्चिमी और दक्षिणी क्षेत्रों के लगातार बेहतर प्रदर्शन तथा पूर्वी राज्यों (बंगाल, असम आदि) के कमजोर प्रदर्शन की ओर इशारा करती है। 
    • एलपीजी सुधारों के बाद की अवधि: रिपोर्ट में उदारीकरण (1991) को आर्थिक प्रगति का सूचक बताया गया है जिसके तहत दक्षिणी राज्यों ने बेहतर प्रदर्शन करना शुरू किया। लेकिन इसमें इसके मूल कारणों के बारे में नहीं बताया गया है।
  • उत्तरी राज्यों का खराब प्रदर्शन: रिपोर्ट के मुताबिक हरियाणा और दिल्ली को छोड़कर उत्तरी राज्यों का प्रदर्शन खराब रहा है।
  • बढ़ती आर्थिक असमानता: यह रिपोर्ट देश में बढ़ती आर्थिक असमानता की तस्वीर पेश करती है, जो भारत जैसे संघीय और विविधतापूर्ण राष्ट्र के लिए सकारात्मक संकेत नहीं है। अतः असमानता की यह बढ़ती खाई संघवाद पर सवाल उठा रही है।
  • तटीय क्षेत्रों का बेहतर प्रदर्शन: यह रिपोर्ट तटीय क्षेत्रों के बेहतर प्रदर्शन की ओर इशारा करती है, जिसमें पूर्व में स्थित ओडिशा भी शामिल है। यही कारण है कि व्यवसायियों को इन स्थानों पर व्यवसाय शुरू करना लाभदायक लगता है क्योंकि ये रणनीतिक स्थान आयात और निर्यात लागत और बंदरगाहों की उपलब्धता को प्रभावित करते हैं।

सहयोग के अनुसार संसाधन आवंटन में भेदभाव और संघवाद के लिए खतरा:

  • दक्षिण भारतीय राज्यों की चिंताएं : हाल ही में केरल में धनी राज्यों के प्रतिनिधियों ने एक सम्मेलन आयोजित किया और तर्क दिया कि राष्ट्रीय खजाने में अधिक योगदान देने के बावजूद उन्हें केंद्र से संसाधनों का उचित हिस्सा नहीं मिल रहा है।
  • सफल लोगों का सम्मेलन: वर्ष 2000 में भी ग्यारहवें वित्त आयोग द्वारा विकेंद्रीकरण के विरोध में ‘सफल लोगों का सम्मेलन’ आयोजित किया था। इसलिए धीरे-धीरे संघवाद की भावना कमजोर होती जा रही है।

बेहतर प्रदर्शन के निर्धारक के रूप में निवेश :

  • उत्पादन का मुख्य चालक: उच्च निवेश स्तर भारत के दक्षिणी राज्यों को बड़ी अर्थव्यवस्था की ओर ले जाता है जहाँ शासन, बुनियादी ढाँचा, रसद और कुशल श्रम की उपलब्धता सुनिश्चित करता है। 
  • निवेश दो प्रकार के होते हैं- सार्वजनिक और निजी। 
    • सार्वजनिक निवेश: सरकार द्वारा इस तरह के निवेश ज्यादातर पिछड़े स्थानों पर किए जाते हैं ताकि विकास की प्रक्रिया में संतुलन सुनिश्चित किया जा सके और अल्पावधि में अर्जित लाभ की चिंता न की जाए।
    • निजी निवेश: निजी निवेश उन क्षेत्रों में किया जाता है जहाँ निजी कंपनियों को ज़्यादा मुनाफ़ा मिलने की संभावना होती है। इसके अलावा, निजी कंपनियाँ उन क्षेत्रों में निवेश करती हैं जो पहले से ही विकसित हैं जैसे दक्षिणी राज्य। 
      • निजी क्षेत्र ऐसा तब तक नहीं करेगा जब तक सरकार उसे कर में छूट और रियायती दरों पर बिजली जैसी रियायतें सुविधाएं प्रदान नहीं करती हैं।
  • बड़े बाजारों, शहरी व विकसित क्षेत्रों को प्राथमिकता: निजी निवेश बड़े बाजार वाले विकसित क्षेत्रों को तरजीह देता है, जिससे मुंबई, दिल्ली, चेन्नई, बेंगलुरु और हैदराबाद जैसे शहर प्रमुख गंतव्य बन जाते हैं। 
    • हरियाणा (मुख्यतः फरीदाबाद) को दिल्ली से निकटता का लाभ मिलता है, जबकि कोलकाता विभिन्न कारणों से कम पसंद किया जाता है।
  • तटीय क्षेत्रों को प्राथमिकता:  अक्सर निवेश हेतु ऐसे क्षेत्रों को प्राथमिकता दी जाती है क्योंकि वे निर्यात के माध्यम से बाहरी बाजारों तक सस्ती पहुंच प्रदान करते हैं। साथ ही, इन क्षेत्रों में सस्ते आयातित इनपुट भी उपलब्ध हो सकते हैं।

 अमीर राज्यों द्वारा बेहतर प्रदर्शन हेतु उत्तरदायी कारक :

  • ऋण सुविधाएँ : बिहार जैसे राज्यों में लोग बैंकों में अपने धन को जमा करके अपना पैसा बचाना पसंद करते हैं। भले ही ऐसे राज्यों में बड़ी मात्रा में धन जमा किया जाता है और ऋण सुविधाओं के लिए उपलब्ध होता है, लेकिन बैंक इन राज्यों में अपनी ऋण सुविधाएँ बढ़ाना पसंद नहीं करते हैं, बल्कि वे अधिक लाभ की पेशकश करने वाले समृद्ध और विकसित राज्यों को ऋण देने के लिए अधिक इच्छुक होते हैं।
  • उदारीकरण से सार्वजनिक क्षेत्र की भूमिका में बदलाव: 1991 में नई आर्थिक नीतियों (एनईपी) के लागू होने के बाद, अर्थव्यवस्था में अग्रणी शक्ति के रूप में सार्वजनिक क्षेत्र का स्थान बाजार ने ले लिया, तथा अधिक लाभ वाले धनी राज्यों की ओर अधिक निवेश को निर्देशित किया। 
  • संगठित क्षेत्र पर ध्यान:  नई आर्थिक नीति (एनईपी) संगठित क्षेत्र का पक्षधर है, जबकि गरीब राज्य असंगठित क्षेत्र पर अधिक निर्भर हैं, जो निम्न उत्पादकता और निम्न आय के साथ काम करता है। 
    • माल ढुलाई गलियारों और राजमार्गों जैसे बुनियादी ढांचे में सुधार ने संगठित क्षेत्र को ग्रामीण क्षेत्रों में विस्तार करने का अवसर दिया है, जिससे समृद्ध राज्यों का अधिक तेजी से विकास हुआ है।

 गरीब राज्यों में कम निवेश हेतु उत्तरदायी कारक :

  • वामपंथी विचारधाराएँ: मुख्यतः पश्चिम बंगाल और केरल इससे संबंधित दो विशेष मामले हैं। दोनों राज्यों में वामपंथी आंदोलन और मज़दूर उग्रवाद मज़बूत रहे हैं। इसलिए, निजी क्षेत्र ने इन राज्यों में बहुत कम निवेश किया है।
  • उग्रवाद और विद्रोह: भारत के सीमावर्ती राज्यों में रणनीतिक कारणों से कम सार्वजनिक निवेश हुआ है। ऐसा इसलिए भी है क्योंकि उनमें से कई उग्रवाद से पीड़ित हैं जिससे निजी क्षेत्र निवेश करने के विचार से दूर रहता है।
  • राजनीतिक हस्तक्षेप : विपक्ष शासित राज्यों ने केंद्र पर सार्वजनिक निवेश का राजनीतिकरण करने का आरोप लगाया है, जो “डबल इंजन की सरकार” के नारे में परिलक्षित होता है। 
  • भाई-भतीजावाद का प्रभाव: भारत में बढ़ती भाई-भतीजावाद (क्रोनिज्म) की संस्कृति निवेश निर्णयों को प्रभावित करती है, जिससे विषम वातावरण बनता है। परिणामस्वरूप क्रोनीज को कम जोखिम का सामना करना पड़ता है, जबकि अन्य को अधिक जोखिम का सामना करना पड़ता है। इससे समग्र निवेश दरों में गिरावट आती है, जिसका गरीब राज्यों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
  • आनुपातिक रूप से अवैध अर्थव्यवस्था : यह गरीब राज्यों में आनुपातिक रूप से अधिक प्रचलित है। नीतिगत विफलता और कमजोर शासन के कारण यह निवेश संबंधी दृष्टिकोण को प्रभावित करता है और उन्हें मिलने वाले निवेश को कम करता है, जिससे विकास की संभावना कम हो जाती है।

आगे की राह:

  • बेहतर शासन को प्रोत्साहित करना : विभिन्न राज्यों के आर्थिक प्रदर्शन में निवेश की आसमान प्रक्रिया लगातार अंतर संघवाद के लिए खतरा बन रही है। 
    • इसके लिए शासन और बुनियादी ढांचे में सुधार, काली अर्थव्यवस्था पर नियंत्रण, भ्रष्टाचार को सीमित करने और कम से कम निचले स्तर पर शैक्षिक सुविधाओं में सुधार के प्रयास किए जाने की आवश्यकता है। 
  • राज्य और केंद्र के बीच सहयोग : केंद्र और राज्य दोनों को ही इस दिशा में मिलकर कार्य करना चाहिए। राज्यों को अपने अधिकार क्षेत्र में शासन में सुधार करने और भ्रष्टाचार के स्तर को कम करने की आवश्यकता है।
  • सार्वजनिक व्यय में वृद्धि: सामाजिक क्षेत्रों पर सार्वजनिक व्यय में उल्लेखनीय वृद्धि की जानी चाहिए। बाजार संचालित अर्थव्यवस्था में गरीब राज्यों में निजी निवेश अनिवार्य नहीं किया जा सकता; इसके लिए असंगठित क्षेत्र को समर्थन देने के लिए केंद्र की रणनीति में बदलाव की आवश्यकता है। 
  • निवेश आकर्षित करने हेतु असंगठित क्षेत्रों को प्राथमिकता देना : असंगठित क्षेत्र पर ध्यान केंद्रित करने से हाशिए पर रहने वाली आबादी की आय बढ़ेगी, गरीब राज्यों में मांग और उत्पादन को बढ़ावा मिलेगा। जिससे अंततः अधिक निजी निवेश आकर्षित होगा। 

निष्कर्ष:

प्रधानमंत्री की आर्थिक सलाहकार परिषद (ईएसी-पीएम) भारतीय राज्यों का सापेक्ष आर्थिक प्रदर्शन पर आधारित रिपोर्ट में इस बात पर जोर दिया गया है कि भारत की संघीय एकता को मजबूत करने के लिए क्षेत्रीय असमानताओं में कमी की आवश्यकता है, अन्यथा आर्थिक विभाजन को कम करना जोखिम उत्पन्न कर सकता है। निवेश नीति में आवश्यक परिवर्तन अमीर राज्यों के विकास को प्रभावित किए बगैर ही असमानताओं को कम करने में सहायक सिद्ध होगा। जो निम्न वर्ग व अल्पविकसित क्षेत्रों को समावेशित करके विकास को बढ़ावा देकर, संघवाद को मजबूत करेगा और राष्ट्रीय एकता को बनाए रखने में सहायक होगा।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: “भारतीय राज्यों के बीच आर्थिक असमानता सहकारी संघवाद के लिए एक बड़ी चुनौती है।” विकसित और विकासशील राज्यों के बीच बढ़ते अंतर के विशेष संदर्भ में इस कथन का विश्लेषण करें।

(15 अंक, 250 शब्द) 

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