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दक्षिण – पश्चिम भारत, तथा उत्तर – पूर्व भारत के बीच असमानता बढ़ना एवं उत्पन्न चुनौतियाँ

Lokesh Pal September 14, 2024 05:15 8 0

संदर्भ: 

उत्तर भारत और पूर्वी भारत की तुलना में दक्षिण और पश्चिम भारत के बीच असमानता बढ़ती जा रही है। विनिर्माण, सेवा और उपभोग सहित आर्थिक गतिविधियाँ मुख्य रूप से दक्षिणी और पश्चिमी क्षेत्रों में केंद्रित हैं। यह असंतुलन दोनों क्षेत्रों के मध्य असमानताओं को बढ़ा रहा है और गहरे विभाजन पैदा कर रहा है।

उत्तर भारत और पूर्वी भारत के असंतुलन का तुलनात्मक अध्ययन  

बिहार और आंध्र प्रदेश: 2023-24 की अवधि में, आंध्र प्रदेश की प्रति व्यक्ति औसत आय बिहार की प्रति व्यक्ति की तुलना में लगभग चार गुना अधिक थी। यह मानते हुए कि दोनों राज्य अपनी ऐतिहासिक वृद्धि दर को बनाए रखते हैं, आय असमानता बढ़ने की उम्मीद है, दशक के अंत तक आंध्र प्रदेश की औसत आय बिहार की तुलना में लगभग साढ़े चार गुना हो जाएगी। यह अत्यधिक विचारणीय तथ्य है कि आंध्र प्रदेश में अभी भी आर्थिक दृष्टि से मजबूत दक्षिणी राज्यों की तुलना में प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है।

  • यदि इस विकास दर को उलट दिया जाय तो,  बिहार आंध्र प्रदेश की मौजूदा दर से वृद्धि करता है, और आंध्र प्रदेश बिहार की धीमी गति से वृद्धि करता है। इसके बावजूद भी 15 साल बाद, आंध्र प्रदेश का एक औसत व्यक्ति बिहार के किसी व्यक्ति से तीन गुना अमीर होगा। यह क्षेत्रों के बीच आय असमानता की गहरी जड़ों को दर्शाता है।

अर्थव्यवस्था में योगदान

90 के दशक की शुरुआत में इन राज्यों की भारतीय अर्थव्यवस्था में हिस्सेदारी 25 प्रतिशत से भी कम थी। हालांकि वर्ष 2022-23 के आंकड़ों के अनुसार इनकी हिस्सेदारी बढ़कर लगभग 33 प्रतिशत हो गई है।

दक्षिण और पश्चिम भारत के त्वरित विकास के कारण :

  • ऐतिहासिक पहल : औपनिवेशिक काल के दौरान देश के दक्षिण और पश्चिमी भाग में बंदरगाहों, रेलवे और यहाँ तक कि शैक्षणिक संस्थानों का भी व्यापक रूप से विकास हुआ। इससे स्वतंत्रता के बाद क्षेत्र के लोगों को लाभ हुआ।
  • नीतिगत हस्तक्षेप: इन राज्यों की सरकारी नीतियाँ इसका एक कारण हैं। कर्नाटक के बेंगलुरु शहर को भारत के आईटी हब के रूप में जाना जाता है क्योंकि सरकार ने तकनीकी बुनियादी ढाँचा बनाया और ऐसे शैक्षणिक संस्थान बनाए जो आईटी पेशेवरों को तैयार करते हैं।
  • बाजार एवं अनुकूल परिस्थितियाँ : यह आश्चर्य की बात नहीं होनी चाहिए कि कोई भी कंपनी अपना व्यवसाय वहाँ स्थापित करना चाहेगी जहाँ उसे कुशल कर्मचारी, अच्छा बुनियादी ढाँचा, बेहतर रसद आदि मिलें।
  • समूहन प्रभाव: औद्योगिक पारिस्थितिकी तंत्र की उपस्थिति यानी मौजूदा विनिर्माण और सेवा आधार, एक कुशल कार्यबल, वित्तीय नेटवर्क और बुनियादी ढाँचा आदि इन राज्यों को उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों की तुलना में व्यवसाय की स्थापना के लिए वांछनीय बनाते हैं।
    • उदाहरणस्वरूप दिल्ली के माध्यम से एग्लोमरेशन को समझना: दिल्ली को एक समानांतर रेखा का माध्यम बनाया जा सकता है जो कि एक अध्ययन केंद्र है। यहाँ हमेशा छात्रों का एक वृहद समूह , मार्गदर्शक व सलाहकार वर्ग तथा अध्ययन सामग्री आदि की पर्याप्त उपलब्धता देखी जा सकती है । इसलिए जब भी कोई एड-टेक कंपनी अपने संस्थान स्थापित करने के लिए देखती थी तो वह अक्सर दिल्ली को चुनती थी। हालाँकि हम वर्तमान बदलते परिदृश्य को नज़रअंदाज़ नहीं कर सकते जो ऑनलाइन शिक्षा की बढ़ती लोकप्रियता के कारण है।

इससे दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों को क्या लाभ हुआ है?

  • जीवन की गुणवत्ता:  भारत के पाँच प्रमुख दक्षिणी राज्य (कर्नाटक , तमिलनाडु , महाराष्ट्र , तेलंगाना और आंध्रप्रदेश) न केवल समृद्ध हैं, बल्कि इन राज्यों में रहने वाले लोगों के लंबे समय तक जीने की संभावना अधिक है, बेहतर शिक्षित होने की संभावना अधिक है, और उनके बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य की संभावना है।
  • कारखाने और कर्मचारी: वास्तव में उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण के अनुसार पाँच दक्षिणी राज्यों में सभी कारखानों का 37 प्रतिशत और सभी औपचारिक क्षेत्र के कर्मचारियों (जो EPFO ​​में योगदान करते हैं) का 33 प्रतिशत हिस्सा समाहित है। 
  • निर्यातक जिले: देश के शीर्ष 20 निर्यातक जिलों में से 18 पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों में स्थित हैं।
  • वैश्विक क्षमता केंद्रों की उपस्थिति: स्थापित किए जा रहे वैश्विक क्षमता केंद्रों का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बेंगलुरु, हैदराबाद और चेन्नई शहरों और मुंबई और पुणे में स्थित है।
  • एप्पल इकोसिस्टम: यह फॉक्सकॉन एप्पल का अनुबंध निर्माता है और बड़े पैमाने पर इन क्षेत्रों में स्थित है।
  • सेमीकंडक्टर परियोजनाएँ: केंद्र द्वारा अनुमोदित पाँच में से चार सेमीकंडक्टर परियोजनाएँ गुजरात में स्थापित किए जाने हैं

नोएडा और गाजियाबाद की अवस्थिति व प्रभाव 

नोएडा और गाजियाबाद जैसे कुछ शहरों को दिल्ली के निकट होने का फायदा मिलता है। उत्तर प्रदेश में सभी औपचारिक नौकरियों (जो ईपीएफओ में योगदान देती हैं) का 46 प्रतिशत हिस्सा इन दो शहरों में केंद्रित है।

  • कंपनी के लिए प्रोत्साहन: उत्तरी राज्यों में युवा और गरीब लोगों की बड़ी संख्या सस्ते श्रम की तलाश करने वाले निर्माताओं को आकर्षित करती है।
    • नोएडा और गाजियाबाद जैसे शहरों (और यहां तक ​​कि अन्य शहरों) में राजमार्गों और हवाई अड्डों का स्थिर बुनियादी ढांचा है, जो राज्य के कुछ हिस्सों में आर्थिक गति को बढ़ावा दे सकता है।

अंतर के लगातार बढ़ने का प्रभाव

भारतीय राज्यों के मध्य तेजी से बढ़ता यह अंतर दोधारी तलवार की तरह काम कर सकता है ।

  • पिछड़े व गरीब इलाकों से लोग काम की तलाश में अमीर इलाकों की ओर पलायन करेंगे।
  • तीव्र  पलायन बुनियादी ढांचे पर दबाव डाल सकता है, जिससे प्रवासियों के प्रति दुश्मनी पैदा हो सकती है।
  • आरक्षण की मांग: इन अमीर राज्यों के स्थानीय समुदाय आरक्षण की मांग कर सकते हैं। नौकरियों की कमी के कारण निम्न आय वाले राज्यों में विभिन्न जाति समूहों द्वारा भी इसी तरह की मांग की जा सकती है।
  • यह सरकार को न केवल आरक्षण (लोकलुभावनवाद) प्रदान करने के लिए मजबूर कर सकता है, बल्कि दीर्घकालिक के बजाय अल्पकालिक नौकरियों के सृजन के बारे में सोच-विचार के लिए भी मजबूर कर सकता है।

आगे की राह 

  • सरकारों को पश्चिमी और दक्षिणी राज्यों द्वारा प्रदान की गई उत्पादन-लिंक्ड प्रोत्साहन योजना की तरह कंपनियों को प्रोत्साहन प्रदान करना होगा।
  • सरकार को समाज की आर्थिक संरचना में सुधार करने और संतुलित विकास का विकल्प चुनने की आवश्यकता है।
  • उत्तरी और पूर्वी राज्यों में राजनीतिक नेतृत्व की ओर से कम से कम विनिर्माण कंपनियों को राज्यों में अपने कारखाने स्थापित करने के लिए प्रोत्साहित करने की आवश्यकता है।

निष्कर्ष :

क्षेत्रीय असमानता को दूर करने के लिए दीर्घकालिक योजना बनाना आवश्यक है, जिसके लिए एक मजबूत और जीवंत नागरिक समाज का निर्माण कर समानता व समान विकास को प्रोत्साहित किया जा सके ।

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