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ऐतिहासिक युद्ध नीतियाँ व वर्तमान समय में बदलते आयामों की वास्तविकता

Lokesh Pal July 24, 2025 05:30 29 0

संदर्भ:

युद्ध अपनी पारंपरिक सीमाओं से आगे बढ़कर एक जटिल, बहुआयामी और तकनीकी रूप से संचालित घटना के रूप में विकसित होते जा रहे हैं

  • वर्ष 2025, द्वितीय विश्व युद्ध की समाप्ति के बाद के आठ दशकों के सापेक्षिक शांति का भी जश्न मनाएगा, हालांकि बीच के वर्षों में अनेक संघर्ष देखे गए परंतु वे द्वितीय विश्व युद्ध के पैमाने पर नहीं थे।

ऐतिहासिक संघर्षों से लेकर विकसित होते युद्धक्षेत्रों तक:

  • युद्ध नीतियों का रूपांतरण: मैकियावेली का मानना था कि राजनीति शक्ति और अस्तित्व के इर्द-गिर्द घूमती है, तथा राज्य की रक्षा के लिए उन्होंने आवश्यकता पड़ने पर अत्यधिक बल और छल का प्रयोग करने की भी वकालत की।
    • वेस्टफेलिया की शांति: वर्ष 1648 में इसने राष्ट्र-राज्य और अहस्तक्षेप की अवधारणा को जन्म दिया।
    • वर्ष 1814-15 में वियना कांग्रेस का आयोजन, जिसका उद्देश्य संघर्षों को रोकने के लिए शक्ति संतुलन स्थापित करना था हालांकि यह अंततः अपर्याप्त साबित हुआ।
    • द्वितीय विश्व युद्ध के बाद नियम -आधारित विश्व व्यवस्था के लिए जोर दिया गया, जो सामान्य कानूनों और समझौतों पर आधारित थी, लेकिन कोरियाई युद्ध, वियतनाम युद्ध और शीत युद्ध जैसे बाद के संघर्षों को रोकने में विफल रही
    • वर्ष 1990 में शीत युद्ध की समाप्ति से शांति के बजाय, अधिक अराजकता और अस्थिरता का युग शुरू हो गया।
  • 1991 का निर्णायक मोड़: जबकि कुछ लोग युद्ध की प्रकृति में आए इस बदलाव का श्रेय 9/11 जैसी घटनाओं को देते हैं, जिसने अमेरिका को अफगानिस्तान, इराक और लीबिया जैसे शत्रुओं को निशाना बनाने का अवसर प्रदान किया, युद्ध कैसे लड़े जाएंगे, इसमें वास्तविक परिवर्तन 1991 में सामने आया।
    • यह ऑपरेशन डेजर्ट स्टॉर्म के दौरान स्पष्ट हुआ, जब इराक ने कुवैत पर कब्ज़ा करने का प्रयास किया। और अमेरिका ने वायु, जल और थल सेनाओं से त्रि-आयामी हमले शुरू किये

आधुनिक युद्ध की परिभाषित विशेषताएँ:

  • आज के संघर्ष, जिसका उदाहरण यूक्रेन-रूस युद्ध है, मूलतः स्वचालन के युद्ध के उदाहरण हैं।
  • ड्रोन की अपरिहार्यता: खुफिया जानकारी जुटाने और सटीक हमले करने के लिए आज ड्रोन का उपयोग बढ़ गया है।
    • अर्ध-स्वायत्त ड्रोन विशेष रूप से छवियों की व्याख्या कर सकते हैं, लक्ष्यों को पहचान सकते हैं और उन्हें प्राथमिकता दे सकते हैं।
    • घूमते हुए हथियार, जिन्हें आत्मघाती या कामिकेज़ ड्रोन भी कहा जाता है, तब तक मंडराते रहते हैं जब तक कि उन्हें लक्ष्य प्राप्त नहीं हो जाता, उसके बाद वे आत्म-विनाशकारी हमला शुरू कर देते हैं।
  • भारत -पाकिस्तान संघर्ष, विशेष रूप से ऑपरेशन सिंदूर के तहत भारत द्वारा व्यापक तकनीकी तैनाती का प्रदर्शन किया गया, जिसमें फिक्स्ड-विंग ड्रोन, लोइटरिंग म्यूनिशन, लड़ाकू जेट, उन्नत हवा से हवा में मार करने वाली मिसाइलें और ब्रह्मोस मिसाइलें शामिल थीं।

नए आयाम और अवधारणाएँ:

  • नेटवर्क-केंद्रित युद्ध: हालांकि सेनाएँ कठोर पदानुक्रम से दूर जा रही हैं। युद्ध के सभी महत्वपूर्ण घटक – सेंसर, सूचना साझाकरण और निर्णय लेने की प्रक्रिया में, एक ही नेटवर्क में परस्पर जुड़े हुए हैं, जिससे निर्णय प्रक्रियाएँ तेज़ और अधिक कुशल हो रही हैं।
  • जटिल बहु-क्षेत्रीय संघर्ष क्षेत्र: संघर्ष अब भूमि, वायु और जल तक ही सीमित नहीं हैं बल्कि यह अब अंतरिक्ष और साइबरस्पेस तक फैल गए हैंइसमें आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस (AI) और साइबर युद्ध का महत्वपूर्ण उपयोग शामिल है।
  • हाइपरसोनिक हथियार: ये मिसाइलें मैक 5 या उससे अधिक की गति से चलती हैं, जिससे ये पहचानना, ट्रैक करना और प्रभावी ढंग से मुकाबला करना असाधारण रूप से कठिन हो जाता है।

भारत के लिए अनुकूलन की आवश्यकता:

  • रक्षा आधुनिकीकरण की आवश्यकता: भारत को पूरी तरह से तेजी से विकसित हो रहे युद्ध गतिशीलता के मद्देनजर अपनी सैन्य आधुनिकीकरण रणनीतियों को पूरी तरह से संशोधित करना होगा।
  • खरीद योजनाओं का पुनर्मूल्यांकन करना: वर्तमान हथियार खरीद निविदाएं हो सकती हैं अप्रचलित हो सकती हैं। अतः आधुनिक संघर्ष की मांगों के अनुरूप इनका पुनर्मूल्यांकन करने की आवश्यकता है।
  • लड़ाकू जेट क्षमताओं से संघर्ष: चीन जहां 5वीं और 6वीं पीढ़ी के जेट विमानों के साथ आगे बढ़ रहा है, वहीं भारत को इस क्षेत्र में संघर्ष करना पड़ रहा है। भारत कम प्रदर्शन करने वाले और धीमी गति से उत्पादित तेजस के साथ संघर्ष कर रहा है
  • उन्नत ड्रोन और UAV की आवश्यकता: भारत को इस तकनीकी में निवेश करना चाहिए तथा भारत को उच्च ऊंचाई वाले, लंबे समय तक टिकने वाले ड्रोन और मानव रहित हवाई वाहनों को प्राथमिकता देनी चाहिए, जो तकनीक-संचालित युद्ध के लिए आवश्यक हैं।
  • आपूर्तिकर्ता विविधीकरण: एक विविध आपूर्तिकर्ता आधार भारत की रणनीतिक स्वायत्तता और लचीलेपन को मजबूत करने के लिए महत्वपूर्ण है।

निष्कर्ष:

भारत को अपनी रक्षा रणनीतियों में सुधार करके आधुनिक, तकनीक-संचालित युद्ध की वास्तविकताओं के साथ अनुकूल होने की आवश्यकता है ताकि वह निकट भविष्य में अपनी सीमा संबंधी रक्षा चुनौतियों का आसानी से सामना कर सके

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: आधुनिक युद्धकला तेज़ी से डिजिटल रूप से स्वायत्त, बहु-क्षेत्रीय और भौतिक सैन्य तैनाती पर कम निर्भर होती जा रही है। भारत के राष्ट्रीय सुरक्षा सिद्धांत के लिए इस आधुनिक युद्धकला के निहितार्थों पर चर्चा कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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