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भारत के लिए हिंद-प्रशांत क्षेत्र का महत्त्व

Lokesh Pal January 15, 2025 05:30 14 0

संदर्भ :

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में चीन का निरंतर प्रभुत्व अन्य महाद्वीपीय देशों के लिए समस्याएँ उत्पन्न कर रहा है।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में भू-रणनीतिक प्रतिद्वंद्विता

  • हिंद-प्रशांत का समुद्री महत्त्व : अमेरिका के पश्चिमी तट से लेकर अफ्रीका के पूर्वी तट तक विस्तृत  इस क्षेत्र का समुद्री क्षेत्र सामरिक दृष्टि से बहुत महत्त्वपूर्ण है। 8000×8000 किलोमीटर का यह विशाल क्षेत्र लगभग 36 राष्ट्रों का निवास स्थान है तथा वैश्विक अर्थव्यवस्था में इसका दो-तिहाई भाग  है।
  • हिंद-प्रशांत में भू-रणनीतिक प्रतिस्पर्धा : हिंद-प्रशांत चीन के उदय से प्रेरित होकर प्रतिद्वंद्विता का क्षेत्र बनता जा रहा है। इस क्षेत्र के देशों को पक्ष चुनने के लिए दबाव का सामना करना पड़ रहा है, कुछ देश चीन के साथ गठबंधन कर रहे हैं, अन्य उसके प्रभाव का मुकाबला कर रहे हैं तथा कई राष्ट्र स्वयं को किसी भी गठबंधन से मुक्त रखने का प्रयास कर रहे हैं।
    • इस क्षेत्र में प्रतिद्वंद्विता की प्रतिस्पर्धी प्रवृत्ति प्रभावी है, क्योंकि प्रत्येक पक्ष अपनी रणनीतिक स्थिति को अधिकतम करने का प्रयास करता है।
  • परिवर्तित सुरक्षा परिदृश्य : पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में निरंतर होने वाली झड़पें और ताइवान को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली आक्रामक कार्रवाइयाँ बढ़ते तनाव को उजागर करती हैं। उच्च हिमालय में चीन की आक्रामकता क्षेत्र के अस्थिर सुरक्षा परिदृश्य को और बढ़ा देती है। 
    • संघर्ष के बढ़ते जोखिम हिंद-प्रशांत क्षेत्र के तेजी से बदलते भू-राजनीतिक परिदृश्य को रेखांकित करते हैं।

हिंद-प्रशांत क्षेत्र में प्रतिस्पर्धी धारणाएँ

  • प्रमुख परिप्रेक्ष्य : हिंद-प्रशांत एक एकल भू-रणनीतिक स्थान है, जहाँ अमेरिका के नेतृत्व में समान विचारधारा वाले राष्ट्र, QUAD और AUKUS जैसे गठबंधनों के माध्यम से चीन के उदय का मुकाबला करने के लिए सहयोग करते हैं। 
    • विश्वास की कमी और हिंद तथा प्रशांत महासागर के अलग-अलग रणनीतिक अभिविन्यास के कारण एकीकृत सुरक्षा संरचना के रूप में हिंद-प्रशांत क्षेत्र के बारे में संदेह।
  • विशिष्ट रणनीतिक अभिविन्यास : पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र सैन्य प्रतिस्पर्धा से चिह्नित है, जबकि हिंद महासागर अपेक्षाकृत शांत बना हुआ है। प्रशांत महासागर की एक सुपरिभाषित रणनीतिक पहचान है, जबकि हिंद महासागर क्षेत्र (आईओआर) में एक सुसंगत पहचान का अभाव है।
  • समुद्री बनाम भूमि आयाम : प्रचलित दृष्टिकोण समुद्री क्षेत्र पर बल देता है, सुरक्षा संबंधी विचारों में भूमि की प्रासंगिकता को दरकिनार करता है। भूमि महत्त्वपूर्ण बनी हुई है क्योंकि सरकारें, आबादी और संघर्ष मुख्य रूप से भूमि पर आधारित तथा भूमि द्वारा संचालित हैं। 
    • उदाहरण के लिए: रूस ने यूक्रेन पर भूमि मार्ग से हमला किया और इज़राइल-हमास संघर्ष भी भूमि मार्ग द्वारा ही हुए | 
    • मुख्य प्रश्न यह है, कि भूमि कारक किस प्रकार समुद्री रणनीतियों को प्रभावित करता है तथा किसी राज्य की सुरक्षा नीतियों को आकार देता है।

 भूमि-समुद्री सुरक्षा संबंध

  • समुद्री सुरक्षा पर भूमि चिंताओं का प्रभाव : भारत-प्रशांत सुरक्षा संबंधी चिंता में इस बात पर विचार किया जाना चाहिए, कि भूमि संदर्भ समुद्री नीतियों को कैसे आकार देते हैं, क्योंकि भूमि पर सामाजिक गतिशीलता अक्सर समुद्री डकैती, अवैध मत्स्यन और तस्करी जैसी समुद्री चुनौतियों को जन्म देती है। 
    • नॉर्ड स्ट्रीम हमले जैसी घटनाएँ इस बात पर प्रकाश डालती हैं, कि किस प्रकार भूमि संबंधी संघर्ष समुद्री क्षेत्र में फैल सकते हैं।
  • रणनीतिक अभिविन्यास : राज्यों का रणनीतिक अभिविन्यास उनकी भौगोलिक विशेषताओं से प्रभावित होता है, जिसमें स्थलरुद्ध और प्रायद्वीपीय राज्य भूमि सुरक्षा पर अधिक ध्यान केंद्रित करते हैं, जबकि तटीय राज्य भूमि और समुद्री दोनों प्राथमिकताओं में संतुलन बनाए रखते हैं। 
    • अरब प्रायद्वीप के देश तटीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करेंगे।
    • भारत, थाईलैंड, वियतनाम और दक्षिण कोरिया जैसे राष्ट्र विवादित स्थलीय सीमाओं के कारण स्थल सेना को प्राथमिकता देते हैं।
  • द्वीपीय राष्ट्रों की समुद्री प्राथमिकताएँ : मलेशिया, इंडोनेशिया, फिलीपींस, ऑस्ट्रेलिया और जापान जैसे द्वीपीय राष्ट्र समुद्री सुरक्षा को प्राथमिकता देते हुए प्रादेशिक जल, आंतरिक जलमार्ग, बंदरगाहों और तटीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करते हैं। 
    • चीन के साथ अपनी निकटता के कारण ताइवान पारंपरिक समुद्री सुरक्षा रणनीतियों की अपेक्षा तटीय और वायु रक्षा रणनीति अपनाता है।
  • स्थल सेना की भूमिका : स्थल आधारित सैन्य घटक चीन जैसे शत्रुओं का मुकाबला करने के लिए बड़े पैमाने पर संचालन के लिए अधिक संभावना और पैमाना प्रदान करते हैं। 
    • थल सेनाएँ, नौसेना और वायु सेना द्वारा प्राप्त उपलब्धियों को सुदृढ़ करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हैं तथा विशेष राष्ट्रीय हितों की रक्षा और बचाव के लिए भी महत्त्वपूर्ण हैं। 
  • स्थल सेना का प्रभुत्व : हिंद-प्रशांत क्षेत्र में सैन्य बलों का लगभग 68% भाग स्थल सेना का है, जिसमें भारत (सशस्त्र बलों का 85% हिमालय क्षेत्र में तैनात है), इंडोनेशिया (75%) और फिलीपींस (70%) जैसे देश अपनी सेना का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा स्थल रक्षा के लिए तैनात करते हैं। 
    • स्थल सेना में कमी किसी राज्य की समग्र सुरक्षा को कमजोर कर सकती है, जैसा कि भारत की हिमालय में शक्ति बनाए रखने की आवश्यकता के साथ-साथ अपने समुद्री हितों को सुरक्षित रखने से भी ज्ञात होता है।

आगे की राह

  • भूमि और समुद्री प्राथमिकताओं में संतुलन : भारत की समुद्री सुरक्षा रणनीति में भूमि और समुद्री हितों के बीच संतुलन होना चाहिए, विशेष रूप से भूमि सीमाओं और हिंद महासागर में चीन की आक्रामक स्थिति के साथ।
  • बजट संबंधी दुविधाएँ : भारत वर्तमान में अपने रक्षा बजट का 14-17% नौसेना को आवंटित करता है, जिससे भूमि रक्षा की उपेक्षा किए बिना, विशेष रूप से हिंद महासागर क्षेत्र (IOR) में नौसेना की शक्ति को प्राथमिकता देने संबंधी चुनौती उजागर होती है।
  • भारत के महासागरीय हितों को परिभाषित करना : भारत को यह आकलन करना होगा कि क्या उसके समुद्री हित खाड़ी क्षेत्र तक ही सीमित हैं या मलक्का जलडमरूमध्य और प्रशांत क्षेत्र तक विस्तृत हैं , जिससे वह अपने समुद्री सुरक्षा उद्देश्यों को बेहतर ढंग से तैयार कर सके।
  • महाद्वीपीय से समुद्री रणनीति की ओर परिवर्तन : भारत के पारंपरिक महाद्वीपीय दृष्टिकोण से  समुद्र-केंद्रित रणनीति की ओर परिवर्तन के लिए महत्त्वपूर्ण नीतिगत बदलावों की आवश्यकता होगी, जो संभवतः चीन के साथ सीमा मुद्दों के समाधान पर निर्भर करेगा।
  • कमजोरियों का प्रबंधन : भारत को भीड़-भाड़ वाले और विवादित पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र में अपनी नौसैनिक क्षमताओं और कमजोरियों के बीच संतुलन बनाना होगा, अति-विस्तार से बचना होगा तथा  समुद्री सुरक्षा प्राथमिकताओं पर ध्यान केंद्रित करना होगा।

निष्कर्ष

हिंद-प्रशांत क्षेत्र भारत के लिए रणनीतिक, आर्थिक और सामरिक दृष्टि से अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। यह क्षेत्र व्यापार मार्गों, समुद्री सुरक्षा, ऊर्जा आपूर्ति और क्षेत्रीय स्थिरता के लिए केंद्रीय भूमिका निभाता है। भारत की एक्ट ईस्ट नीति, क्वाड जैसे साझेदारी और समुद्री शक्ति के विकास में इसका महत्त्व और बढ़ गया है। यह क्षेत्र न केवल भारत की क्षेत्रीय बल्कि वैश्विक भूमिका को भी सशक्त करता है, जिससे भारत के आर्थिक और सुरक्षा हित मजबूत होते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

भारत-प्रशांत क्षेत्र में अपने महाद्वीपीय और समुद्री सुरक्षा हितों को संतुलित करने में भारत की रणनीतिक चुनौतियों का परीक्षण कीजिए । चर्चा कीजिए कि भौगोलिक बाधाएँ और संसाधन आवंटन भारत की नौसैनिक आकांक्षाओं को कैसे प्रभावित करते हैं, साथ ही भूमि सुरक्षा से समझौता किए बिना अपनी समुद्री क्षमताओं को बढ़ाने के लिए एक व्यवस्थित राजनीति का सुझाव दें ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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