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भारत के राज्यों के मध्य व्याप्त आय असमानता (Income inequality prevalent among the states of India)

Samsul Ansari January 17, 2024 05:01 196 0

संदर्भ:

पिछले तीन दशकों में भारत के राज्यों के मध्य आय संबंधी असमानताएँ काफी बढ़ गई हैं।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारत में क्षेत्रीय आय असमानताएँचुनौतियाँ और आगे की राह।

असमानताओं का अवलोकन:

  • राज्य घरेलू उत्पाद (SDP) का भौगोलिक विभाजन: पाया गया है कि 2019-20 में राष्ट्रीय औसत से ऊपर प्रति व्यक्ति एसडीपी वाले राज्यों और उससे नीचे के राज्यों के मध्य एक स्पष्ट भौगोलिक अंतर मौजूद है।
    • समृद्ध राज्य दक्षिण, पश्चिम और उत्तरपश्चिम में स्थित हैं, जबकि कम समृद्ध राज्य उत्तर, केंद्र और पूर्व में स्थित हैं।
    • 1990-91 के दौरान, उच्च आय वाले राज्यों की प्रति व्यक्ति एसडीपी, निम्न आय वाले राज्यों की तुलना में 1.7 गुना थी जो 2019-20 तक बढ़कर 2.5 गुना हो गई।

भारत में क्षेत्रीय असमानताओं के निहित कारण:

  • ऐतिहासिक कारक: ब्रिटिश और उद्योगपतियों ने केवल उन्हीं क्षेत्रों का विकास किया जिनमें समृद्ध विनिर्माण और व्यापारिक गतिविधियों की प्रचुर संभावना थी, उदहारणकोलकाता, मुंबई और चेन्नई
  • योजना तंत्र की विफलता: नियोजन तंत्र ने भी भारत के विकसित और कम विकसित राज्यों के मध्य असमानता को बढ़ाने का कार्य किया है
  • पिछड़े राज्यों में सहायक उद्योगों की वृद्धि में कमी: सरकार ने पिछड़े क्षेत्रों के विकास के लिए विकेंद्रीकृत दृष्टिकोण अपनाया है हालाँकि, सहायक उद्योगों की वृद्धि में कमी के कारण ये क्षेत्र पिछड़े ही रहे।
  • भारत की औद्योगीकरण रणनीति की विफलता: चीन के विपरीत, भारत अपने औद्योगीकरण के गतिहीन इतिहास को नहीं तोड़ सका और औद्योगीकरण के क्षेत्र में कोई खास विकास नहीं कर पाया बल्कि सेवा क्षेत्र ही आर्थिक विकास के चालक के रूप में उभर कर सामने आया लेकिन इसके बावजूद  वर्ष 2012 से 2019 के मध्य सेवा क्षेत्र में  नियोजित कार्यबल में 1% अंक की भी वृद्धि नहीं हुई
  • उच्च आय वाले राज्यों में सेवा क्षेत्र का संकेंद्रण: सेवा क्षेत्र लगभग पूरी तरह से कुछ उच्च आय वाले राज्यों में ही स्थित हैं, जिनमें पश्चिम बंगाल (कोलकाता) अपवाद माना जाता है।
  • सार्वजनिक निवेश में गिरावट: प्रति व्यक्ति एसडीपी में बढ़ती असमानता में योगदान देने वाला प्राथमिक कारक, 1991 के बाद के उदारीकरण युग के दौरान, निवेश का सार्वजनिक से निजी क्षेत्र की ओर प्रतिस्थापन माना जाता है जो  प्रति व्यक्ति आय में व्यापक अंतर का कारण है।
  • आर्थिक केन्द्रों की ख़राब कनेक्टिविटी : भारत के विकास केन्द्र एकदूसरे से जुड़े हुए नहीं हैं। कुछ विकास केन्द्रों के विकास का लाभ अन्य स्थानों को मिल पाने के कारण राज्यों में रोजगार का समान वितरण नहीं हुआ, जिससे गरीब राज्यों में गरीबी की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • हरित क्रांति (GR) की सीमित सफलता: इसके लाभ भी असमान रूप से वितरित हुए हैं। हरित क्रांति का लाभ पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश जैसे क्षेत्रों में ही केंद्रित था
  • अन्य: श्रम बल असमानता: उत्तरी और मध्य राज्यों में श्रम बल भागीदारी दर और नियमित वेतन वाले श्रमिकों का प्रतिशत राष्ट्रीय औसत से नीचे है।
  • इंजीनियरिंग शिक्षा तक पहुँच में असमानता: इंजीनियरिंग क्षेत्र की  70% सीटें उच्च आय वाले राज्यों में देखने को मिलती हैं।
  • शिक्षा क्षेत्र में निवेश की कमी :शिक्षा क्षेत्र में किये जाने वाला निवेश 10.8% से घटकर 9.7% हो गया है
  • उद्यमिता असंतुलन: उद्योगों के वार्षिक सर्वेक्षण 2019-20 के अनुसार, उच्च आय वाले राज्यों में लगभग 75% कारखाने और रोजगार की उपलब्धता है।

असमान विकास के प्रभाव:

  • इस असमान  विकास का स्वास्थ्य, पोषण और भौतिक बुनियादी ढाँचे जैसी बुनियादी सेवाओं तक परिवारों की पहुँच, अत्यधिक विषम जनसंख्या वितरण, भीड़भाड़ वाले शहर, गरीबों का शहरी क्षेत्रों में प्रवास, मलिन बस्तियों में वृद्धि और शहरी आवास की लागत में वृद्धि पर प्रभाव पड़ता है।

पिछड़े क्षेत्रों के सम्बन्ध में सरकारी हस्तक्षेप:

  • 14वें वित्त आयोग द्वारा आय अंतराल को 50% भार (weight) दिया जाना
  • विकास में क्षेत्रीय असंतुलन को दूर करने के लिए पिछड़ा क्षेत्र अनुदान निधि योजना
  • राष्ट्रीय सम विकास योजना पिछड़े क्षेत्रों के लिए विकास कार्यक्रमों पर केंद्रित है।
  • आकांक्षी जिला कार्यक्रम देश भर के 112 सबसे कम विकसित जिलों को बदलने के लिए लाया गया है।
  • राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन का उद्देश्य गरीबी उन्मूलन को बढ़ावा देना है।

आगे की राह:

  • उच्च आय वाले राज्यों में मूल्य श्रृंखलाओं को कम आय वाले राज्यों से जोड़ना: इसे देखते हुए एक ऐसे राष्ट्रीय नीति की आवश्यकता है, जो उत्तरी और पूर्वी राज्यों में इनपुट आपूर्ति के लिये दक्षिणी और पश्चिमी राज्यों में उद्यमों को जोड़ने वाली मूल्य श्रृंखलाओं को बढ़ावा दे सके I
  • कौशल विकास: कौशल विकास और इंजीनियरिंग शिक्षा को बढ़ाने के लिए त्वरित कार्रवाई की आवश्यकता है। इससे उद्यमों को आकर्षित करने के लिए आवश्यक क्षमता विकसित होगी।
  • क्षेत्रविशिष्ट हस्तक्षेप: इसमें शिक्षा और स्वास्थ्य में महत्वपूर्ण निवेश के साथसाथ विशिष्ट क्षेत्रीय आयामों पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
  • गरीब राज्यों के लिए उधार सीमा में ढील: इससे गरीब राज्यों को अपना पूंजीगत व्यय बढ़ाने, विकास में वृद्धि करने और अन्य राज्यों के साथ बराबरी करने में मदद मिलेगी।
  • महिला श्रम बल भागीदारी दर में वृद्धि: आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण रिपोर्ट 2022-23 के अनुसार 2023 में  महिला श्रम बल भागीदारी दर 37.0% है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न : भारत के विभिन्न राज्यों के मध्य व्याप्त आय संबंधी असमानताओं के क्या कारण हैं ? इनके समाधान हेतु संबंधित सरकारों द्वारा किये जा रहे प्रयासों पर प्रकाश डालिएI

                                                                                                                                                                                                                                                              News Source: Business Standard

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