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भारत-यूरोपीय संघ संबंध: अवसर, चुनौतियां और आगे की राह: बदलती दुनिया के लिए एक ‘रणनीतिक वार्ता’

Lokesh Pal February 08, 2025 05:00 17 0

संदर्भ:

जनवरी 2025 में, यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला वॉन डेर लेयेन ने घोषणा की थी कि उनके दूसरे कार्यकाल की पहली यात्रा रणनीतिक साझेदारी को उन्नत करने के लिए भारत की होगी।

परिचय:

  • यूरोपीय संघ (ईयू) केवल भौगोलिक रूप से एक महाद्वीप नहीं है, बल्कि 27 देशों का संघ है, जो इसे दुनिया की सबसे महत्वपूर्ण आर्थिक और राजनीतिक संस्थाओं में से एक बनाता है।
    • मास्ट्रिच संधि से उत्पत्ति : यूरोपीय संघ तब अस्तित्व में आया जब 1992 में मास्ट्रिच संधि पर हस्ताक्षर किए गए। इस संधि के पश्चात सभी सदस्य देशों ने अपनी मुद्रा का त्याग कर यूरो (€) को अपना लिया।
  • यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन: 2004 में, पांचवें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान, भारत और यूरोपीय संघ एक-दूसरे के रणनीतिक साझेदार बन गए थे।
    • अब तक 15 भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन आयोजित हो चुके हैं, जो प्रगति की समीक्षा और प्रतिवर्ष नये लक्ष्य निर्धारित करने के लिए एक मंच प्रदान करते हैं।

ऐतिहासिक पृष्ठभूमि:

  • उत्पत्ति: भारत ने 1962 में यूरोपीय आर्थिक समुदाय (ईईसी) के साथ अपने संबंधों की शुरुआत की थी और तब से वह ऐसा करने वाले पहले देशों में से एक बन गया।
  • प्रथम शिखर सम्मेलन: पहला भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन जून 2000 में लिस्बन में सम्पन्न हुआ था, जो दोनों के संबंधों में एक बड़ा कदम था।
  • सामरिक साझेदारी: 2004 में हेग में आयोजित 5वें भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन के दौरान इस संबंध को रणनीतिक साझेदारीके स्तर तक उन्नत किया गया।
  • 15 वां शिखर सम्मेलन: 15वां भारत-यूरोपीय संघ शिखर सम्मेलन 15 जुलाई, 2020 को वर्चुअली आयोजित किया गया था। इस शिखर सम्मेलन के दौरान, दोनों देशों के नेताओं ने अपने संबंधों को और मजबूत करने के लिए भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी: 2025 के लिए एक रोडमैपनामक एक आम योजना पर सहमति व्यक्त की।

अभिसारी और अपसारी रुचियां

साझा हित: (विभिन्न मंचों पर भारत और यूरोपीय संघ सहमत)

  • साझा मूल्य: भारत और यूरोपीय संघ दोनों ही संयुक्त राष्ट्र, विश्व व्यापार संगठन और पेरिस जलवायु समझौते जैसी वैश्विक संस्थाओं का दृढ़ता से समर्थन करते हैं तथा शांति, स्थिरता और एक पूर्वानुमानित अंतर्राष्ट्रीय प्रणाली की वकालत करते हैं।
    • लोकतंत्र: दक्षिण एशियाई क्षेत्र में भारत एकमात्र ऐसा देश है, जहां पश्चिमी शैली का कार्यात्मक लोकतंत्र है। अतः यह एक ऐसा सिद्धांत माना जाता है जिसका यूरोपीय संघ भी समर्थन करता है।
  • सतत विकास: भारत और यूरोपीय संघ जलवायु परिवर्तन, गरीबी और स्वच्छ ऊर्जा जैसी वैश्विक चुनौतियों से निपटने के उद्देश्य को साझा करते हैं।
    • इस लक्ष्य को आगे बढ़ाने के लिएभारत-यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी की स्थापना की गई है। इस साझेदारी के माध्यम से पर्यावरणीय मुद्दों के समाधान और सतत विकास को बढ़ावा देने में महत्त्वपूर्ण प्रगति हासिल की जा सकती है।

भारत-यूरोपीय संघ स्वच्छ ऊर्जा और जलवायु साझेदारी की स्थापना 30 मार्च, 2016 को यूरोपीय संघ-भारत शिखर सम्मेलन के तहत की गई थी। इसका लक्ष्य स्वच्छ ऊर्जा पर सहयोग को बढ़ाना और सौर और पवन ऊर्जा जैसे जलवायु-अनुकूल ऊर्जा स्रोतों को तैनात करने के लिए संयुक्त प्रयासों को बढ़ावा देकर पेरिस समझौते के कार्यान्वयन का समर्थन करना है।

  • व्यापार और निवेश: वर्तमान समय में, यूरोपीय संघ भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक साझेदार है, दोनों के बीच वस्तु व्यापार 2023 में €124 बिलियन (11 लाख करोड़) तक पहुंचने का अनुमान लगाया गया था।
    • निर्यात में बढ़त : अतः यूरोपीय संघ को भारत का निर्यात बढ़ा है, जिससे यह अमेरिका के बाद भारतीय वस्तुओं के लिए दूसरा सबसे बड़ा गंतव्य बन गया है।
    • एफडीआई: प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआई) के संदर्भ में, यूरोपीय संघ ने 2022 में भारत में €108.3 बिलियन का निवेश किया, हालांकि यह चीन (€247.5 बिलियन) और ब्राजील (€293.4 बिलियन) में यूरोपीय संघ के निवेश की तुलना में काफी कम है।
    • रोजगार : इसके अतिरिक्त, 6,000 से अधिक यूरोपीय कंपनियां भारत में काम कर रही हैं, जो 1.7 मिलियन प्रत्यक्ष नौकरियां और 5 मिलियन अप्रत्यक्ष नौकरियां प्रदान करती हैं, जिससे दोनों के आर्थिक संबंध और भी मजबूत हो रहे हैं।

मतभेद (भारत और यूरोपीय संघ में वैचारिक विभेद)

  • भू-राजनीतिक प्राथमिकताएँ: भारत अपने राष्ट्रीय हितों को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ाता है और मुख्य रूप से क्षेत्रीय सुरक्षा पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • उदाहरण के लिए, यूक्रेन-रूस युद्ध के दौरान भारत ने रूस की निंदा करने से परहेज किया, जबकि यूरोपीय संघ ने इसके खिलाफ मुखर रुख अपनाया है।
    • इसके विपरीत, यूरोपीय संघ एक सामूहिक इकाई के रूप में अपनी सुरक्षा के लिए अमेरिका और नाटो पर निर्भर करता है तथा अपनी ट्रान्साटलांटिक साझेदारियों को प्राथमिकता देता है।
    • हालाँकि, भारत किसी भी सैन्य समूह के साथ गठबंधन नहीं करना चाहता है तथा अपनी विदेश नीति में रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखता है।
  • सुरक्षात्मक दृष्टिकोण: भारत अपनी सुरक्षा के लिए स्वयं जिम्मेदार है। अतः भारत का कोई बाहरी सुरक्षा गारंटर नहीं है, जबकि यूरोपीय संघ अपनी सुरक्षा के लिए नाटो पर निर्भर है।
    • हिंद-प्रशांत: हिंद-प्रशांत सुरक्षा सहयोग में, यूरोपीय संघ की भूमिका सीमित है, जिससे यह भारत की तात्कालिक सुरक्षा चिंताओं के लिए, विशेष रूप से क्षेत्रीय चुनौतियों के संदर्भ में, कम प्रासंगिक है।
    • यूरोपीय संघ की प्राथमिकता: यही कारण है कि भारत QUAD समूह में शामिल हुआ है। इसके विपरीत, यूरोपीय संघ की सुरक्षा प्राथमिकता अटलांटिक क्षेत्र में, बनी हुई है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) सुधार: हालांकि कई यूरोपीय संघ के सदस्य देश संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (यूएनएससी) में स्थायी सीट के लिए भारत की दावेदारी का समर्थन करते हैं, लेकिन इस मामले पर यूरोपीय संघ का कोई एकीकृत या संयुक्त रुख नहीं है। इस महत्वपूर्ण वैश्विक शासन मुद्दे पर आम सहमति की कमी उनके कूटनीतिक रुख में भिन्नता को उजागर करती है।
  • मानवाधिकार और लोकतंत्र को बढ़ावा: यूरोपीय संघ अक्सर भारत के मानवाधिकार रिकॉर्ड की, विशेष तौर पर अल्पसंख्यकों के साथ व्यवहार के मामले में, आलोचना करता रहा है। हालांकि, भारत ऐसी आलोचना को अपने आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप मानता है।
  • यूरोपीय संघ-चीन संबंध: इसके अलावा, यूरोपीय संघ चीन के मानवाधिकार उल्लंघनों, जैसे तिब्बत में उइगरों और दलाई लामा के समर्थकों के दमन के बावजूद उसके साथ मजबूत व्यापारिक संबंध बनाए रखता है। यह मानवाधिकारों के मामले में यूरोपीय संघ के दोहरे मानदंडों को उजागर करता है।
    • लोकतंत्र पर भारत का रुख: यूरोपीय संघ और अमेरिका के विपरीत, भारत विदेशों में लोकतंत्र को सक्रिय रूप से बढ़ावा नहीं देता है। भारत का मानना ​​है कि लोकतंत्र एक वैचारिक विकास यात्रा है और वह अपने किसी भी मॉडल को दूसरे देशों पर थोपना नहीं चाहता है।
    • वैश्विक लोकतंत्र को बढ़ावा देने के दृष्टिकोण में, यह बुनियादी अंतर भारत और यूरोपीय संघ के बीच मतभेद का एक बिंदु है।

भारत-यूरोपीय संघ सहयोग के प्रमुख क्षेत्र

  • व्यापार और निवेश: हाल ही में, यूरोपीय संघ भारत का शीर्ष व्यापारिक साझेदार बनकर उभरा है, जिसने अमेरिका और चीन दोनों को पीछे छोड़ दिया है। 2023 में भारत और यूरोपीय संघ के बीच वस्तुओं का व्यापार €124 बिलियन तक पहुंच गया, जबकि सेवाओं का व्यापार €50.8 बिलियन तक पहुंच गया।
    • गैर-टैरिफ बाधाएं: हालांकि वर्तमान समय में, भारत ने अपनी टैरिफ बाधाओं को कम कर दिया है परंतु यूरोपीय संघ के समक्ष गैर-टैरिफ बाधाओं पर चिंता बनी हुई है, जिसमें जटिल प्रमाणन प्रक्रियाएं और कोटा शामिल हैं जो व्यापार प्रवाह को प्रभावित करते हैं।
    • निवेश: भारत में यूरोपीय संघ का प्रत्यक्ष निवेश पर्याप्त है, लेकिन फिर भी यह चीन और ब्राजील में उसके निवेश से पीछे है।
  • स्वच्छता और पादप स्वच्छता (एसपीएस) विनियम: भारतीय कृषि निर्यात परिदृश्य को यूरोपीय संघ द्वारा लगाए गए कड़े खाद्य सुरक्षा और गुणवत्ता मानकों का सामना करना पड़ता है। उदाहरण के लिए, अल्फांसो आम पर यूरोपीय संघ के मानकों का पालन न करने के कारण प्रतिबंध लगा दिया गया था।
  • मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) का अभाव: भारत-यूरोपीय संघ व्यापार-आधारित व्यापक संधि और निवेश समझौते (बीटीआईए) के लिए बातचीत कई वर्षों से चल रही है, लेकिन अभी तक समझौता नहीं हो पाया है, जिससे दोनों के मध्य सतत व्यापार में बाधा आ रही है।
  • जलवायु परिवर्तन और नवीकरणीय ऊर्जा: भारत और यूरोपीय संघ दोनों ही पेरिस जलवायु समझौते के प्रति प्रतिबद्ध हैं, लेकिन जलवायु परिवर्तन से निपटने में उन्हें अलग-अलग चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • भारत का परिप्रेक्ष्य: भारत आर्थिक वृद्धि और विकास को प्राथमिकता देता है, तथा पर्यावरण संबंधी चिंताओं के साथ औद्योगीकरण की आवश्यकता को संतुलित करता है।
    • यूरोपीय संघ का दृष्टिकोण: इसके विपरीत, यूरोपीय संघ कठोर जलवायु विनियमों पर जोर दे रहा है, क्योंकि वह पहले ही विकास का ऐसा स्तर प्राप्त कर चुका है जो उसे पर्यावरणीय मानकों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने की अनुमति देता है।
  • परमाणु ऊर्जा क्षेत्र: भारत-यूरोपीय संघ असैन्य परमाणु सहयोग समझौते में परमाणु ऊर्जा के क्षेत्र में, निवेश बढ़ाने की महत्वपूर्ण क्षमता है, जिससे भारत को कार्बन उत्सर्जन को कम करते हुए अपनी ऊर्जा मांगों को पूरा करने में मदद मिल सकती है।
  • प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास (आर एंड डी): भारत के पास प्रौद्योगिकी और अनुसंधान एवं विकास के संदर्भ में, मजबूत वैज्ञानिक और तकनीकी आधार है, लेकिन उसे अपर्याप्त वित्त पोषण और बुनियादी ढांचे से संबंधित चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।
    • सहयोग की संभावना: जैव प्रौद्योगिकी, नैनो प्रौद्योगिकी और कृत्रिम बुद्धिमत्ता (एआई) जैसे क्षेत्रों में सहयोग पारस्परिक लाभ का अवसर प्रस्तुत करता है, जिसमें यूरोपीय संघ अपनी विशेषज्ञता और संसाधनों को शामिल कर सकता है।
    • समर्थन के अन्य तरीके: यूरोपीय संघ छात्रवृत्ति, अनुसंधान अनुदान और अंतर्राष्ट्रीय परियोजनाओं पर सहयोग करने के इच्छुक भारतीय वैज्ञानिकों के लिए अधिक लचीली वीज़ा व्यवस्था के माध्यम से भारतीय अनुसंधान एवं विकास को और अधिक समर्थन प्रदान कर सकता है।
  • सामाजिक विकास सहयोग: यूरोपीय संघ भारत के सामाजिक विकास कार्यक्रमों के लिए महत्वपूर्ण वित्तीय सहायता प्रदान करता है, जिसमें शिक्षा के लिए सर्व शिक्षा अभियान (एसएसए) और स्वास्थ्य देखभाल के लिए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन (एनआरएचएम) शामिल हैं।
    • भारत विकसित व विकासशील देशों के बीच एक सेतु के रूप में : भारत, विकसित और विकासशील देशों के बीच एक सेतु के रूप में, सामाजिक क्षेत्रों में सहयोग के लिए एक अद्वितीय अवसर प्रदान करता है, और इन क्षेत्रों में यूरोपीय संघ का समर्थन विकास और सामाजिक कल्याण के साझा लक्ष्यों को आगे बढ़ाने में मदद कर सकता है।

भारत-यूरोपीय संघ संबंधों में विद्यमान चुनौतियाँ:

  • यूरोपीय संघ में राजनीतिक एकजुटता का अभाव: हालांकि यूरोपीय संघ लगातार विकसित हो रहा है, परंतु इसके आंतरिक मतभेद अक्सर निर्णय लेने की प्रक्रिया को धीमा कर देते हैं।
    • एकजुट नीति का अभाव: यूरोपीय संघ के प्रत्येक सदस्य देश की अपनी विदेश नीति संबंधी विविध प्राथमिकताएं हैं, जिससे भारत के प्रति एकीकृत दृष्टिकोण विकसित करना चुनौतीपूर्ण हो जाता है। यूरोपीय संघ के भीतर राजनीतिक एकजुटता की यह कमी अधिक सुव्यवस्थित और सुसंगत सहयोग की संभावना को बाधित करती है।
  • यूरोपीय संघ पर चीन का प्रभाव: राजनीतिक मतभेदों के बावजूद, यूरोपीय संघ चीन के साथ मजबूत आर्थिक संबंध बनाए रखता है, जिससे यूरोपीय संघ की रणनीतिक प्रतिबद्धताओं के संबंध में भारत के लिए सतर्कता का स्तर बढ़ जाता है।
  • व्यापार वार्ता की धीमी प्रगति: भारत-यूरोपीय संघ मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) के लिए वार्ता कई वर्षों से चल रही है, फिर भी इस संदर्भ में, कोई निर्णायक समझौता नहीं हो पाया है।
    • विलंब के कारण: यूरोपीय संघ भारत के वित्तीय, कानूनी और ई-कॉमर्स क्षेत्रों में अधिक एक्सेस या पहुँच चाहता है, जबकि भारत वीज़ा नियमों में ढील और कम व्यापार प्रतिबंध चाहता है। इन अलग-अलग प्राथमिकताओं के कारण व्यापक व्यापार समझौते को अंतिम रूप देने में देरी हुई है।
  • सुरक्षा और रक्षा सहयोग का सीमित दायरा : अमेरिका और रूस के विपरीत, यूरोपीय संघ भारत को महत्वपूर्ण सुरक्षा सहायता प्रदान नहीं करता है, जिससे उनके सुरक्षा सहयोग का दायरा सीमित हो जाता है।
    • रक्षा साझेदारी: भारत और यूरोपीय संघ के बीच मजबूत रक्षा संबंधों के विपरीत, भारत-यूरोपीय संघ के संबंधों में मजबूत सैन्य या रक्षा सहयोग ढांचे का अभाव है। यह सीमित या कमजोर सुरक्षा सहयोग भारत और यूरोपीय संघ के बीच गहरे रणनीतिक संरेखण को बढ़ावा देने में चुनौती पेश करता है।

आगे की राह:

  • अधिक प्रभावी रणनीतिक वार्ता की स्थापना: भारत और यूरोपीय संघ दोनों को अपनी रणनीतिक साझेदारी के लिए एक स्पष्ट, यथार्थवादी और कार्य-उन्मुख दृष्टिकोण विकसित करने की आवश्यकता है।
    • भारत को यूरोपीय संघ द्वारा अपनी सामरिक स्वायत्तता को मान्यता दिए जाने की वकालत करनी चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि दोनों पक्ष भारत की स्वतंत्र विदेश नीति के विकल्पों और प्राथमिकताओं का सम्मान करें।
  • द्विपक्षीय व्यापार समझौतों को मजबूत करना: दोनों पक्षों को व्यापार बाधाओं को कम करने, विनियमों को सरल बनाने और लंबे समय से लंबित मुक्त व्यापार समझौते (एफटीए) को अंतिम रूप देने की दिशा में काम करना चाहिए।
    • भारत को आर्थिक विकास को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन के लिए बुनियादी ढांचे, विनिर्माण और प्रौद्योगिकी जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों में यूरोपीय निवेश को बढ़ाने की दिशा में जोर देना चाहिए।
  • जलवायु एवं हरित ऊर्जा साझेदारी: भारत और यूरोपीय संघ को जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए अपनी साझा प्रतिबद्धता का लाभ उठाते हुए हरित ऊर्जा परियोजनाओं पर अधिक व्यापक रूप से सहयोग करना चाहिए।
    • यूरोपीय संघ भारत को स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों की ओर बढ़ने में मदद करने के लिए वित्तीय और तकनीकी सहायता प्रदान कर सकता है, जिससे दोनों क्षेत्रों के लिए अधिक टिकाऊ ऊर्जा भविष्य को बढ़ावा मिलने की उम्मीद है।
  • सुरक्षा और भू-राजनीतिक सहयोग का विस्तार: यूरोपीय संघ को वैश्विक स्थिरता के लिए इस क्षेत्र के बढ़ते महत्व को पहचानते हुए, हिंद-प्रशांत सुरक्षा में अधिक सक्रिय भूमिका निभाने की आवश्यकता है।
    • भारत और यूरोपीय संघ साइबर सुरक्षा, आतंकवाद-निरोध और रक्षा प्रौद्योगिकी जैसे क्षेत्रों में सहयोग बढ़ा सकते हैं, तथा तेजी से जटिल होते वैश्विक परिवेश में साझा सुरक्षा चुनौतियों का समाधान करने के लिए मिलकर काम कर सकते हैं।

निष्कर्ष:

अतः इस प्रकार स्पष्ट है कि सतत प्रयास और राजनीतिक इच्छाशक्ति के साथ, भारत और यूरोपीय संघ वैश्विक चुनौतियों की जटिलताओं से निपट सकते हैं, तथा भविष्य के लिए अधिक मजबूत और लचीले संबंध सुनिश्चित कर सकते हैं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत-यूरोपीय संघ के मध्य संबंधों की उभरती गतिशीलता की जांच करें, जिसमें उनकी रणनीतिक प्राथमिकताओं में अभिसरण और विचलन पर विशेष जोर दिया गया है। यह भी विश्लेषण करें कि रणनीतिक स्वायत्तता बनाए रखते हुए इस साझेदारी का भारत के विकास के लिए किस प्रकार लाभ उठाया जा सकता है।

(15 अंक, 250 शब्द)

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