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भारतीय युवाओं द्वारा सरकारी नौकरी को प्राथमिकता

Lokesh Pal March 01, 2024 05:00 103 0

संदर्भ:

हाल ही में, उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा एक घोषणा के तहत 17 और 18 फरवरी, 2024 को आयोजित पुलिस कांस्टेबल भर्ती परीक्षा को रद्द कर दिया गया और छह महीने के भीतर इसके पुनः आयोजन की बात की गई है। यह मुद्दा एक बार पुनः सरकारी नौकरियों के लिये छात्रों की प्राथमिकता को उजागर करता है।

मुख्य परीक्षा के लिए प्रासंगिकता: भारतीय युवाओं द्वारा सरकारी नौकरियों को प्राथमिकता, संबंधित कारक और आगे की राह।

सरकारी नौकरियों को प्राथमिकता के अन्तर्निहित कारक :

  • स्थिरता: सरकारी नौकरियों में उनके पूरे कार्यकाल के दौरान वेतन की निश्चितता उनके लिए सबसे आकर्षण का विषय होती है।
    •  हालाँकि, इस स्थिति का प्रभाव संगठन और व्यक्ति की कार्यक्षमता पर पड़ता है, क्योंकि इसके कारण अधिकांश लोग स्थायी नौकरी का लाभ उठाते हुए कुशल तरीके से काम नहीं करते हैं ।
  • सरकारी क्षेत्र की नौकरियों में विभिन्न सुविधाओं की उपलब्धता: लोगों के लिये सरकारी नौकरी, एक बेहतर और सस्ती स्वास्थ्य सेवा, रियायती आवास, शिक्षा और परिवहन तक पहुँच बनाने के मार्ग के रूप में कार्य करती है और साथ ही लोगों में यह  विश्वास भी गहरे तक बना हुआ है कि ऐसी नौकरी के द्वारा समाज में शक्ति और सम्मान तक पहुँच प्राप्त की जा सकती है ।
  • LPG सुधारों का प्रभाव: भारत में हुए LPG सुधारों के कारण सेवा क्षेत्र में सकारात्मक वृद्धि हुई है, जिसके लिए विशिष्ट उच्च कौशल की आवश्यकता होती है I इस संदर्भ में  भारत की अधिकांश जनसंख्या द्वारा इस चुनौती का सामना किया जा रहा है, जिसके परिणामस्वरूप लोगों का सरकारी नौकरियों की ओर झुकाव देखा जा रहा है।
    • हालाँकि भारत में LPG सुधारों के कई सकारात्मक परिणाम भी देखे गए हैं लेकिन विनिर्माण उद्योगों में इन सुधारों के कारण बहुत कम ही रोजगार अवसरों का सृजन हुआ और दूसरी तरफ बाजार-आधारित सुधारों के कारण अमीर एवं गरीब वर्ग के मध्य आर्थिक असमानता भी पैदा हुई।

आवधिक श्रम बल सर्वेक्षण (PLFS) द्वारा डेटा:

    • संपादन : 2017-18 से प्रति वर्ष  PLFS द्वारा इसका प्रकाशन किया जा रहा है एवं  इसमें लगभग 1,00,000 घरों के 4,00,000 से अधिक लोगों को शामिल किया गया है।
    • करदाता: इसके अनुसार सिर्फ 11% लोगों की आय अर्जन इतनी हैं कि उनके द्वारा आयकर का भुगतान किया जा सकें।
    • नौकरी प्रोफ़ाइल: आय अर्जित करने वालों में से लगभग 57% स्व-रोज़गार (Self-employed) हैं, 21% को मजदूरी या वेतन द्वारा आय अर्जित होती हैं और 22% अनौपचारिक श्रम (Casual labour) द्वारा आय अर्जित करते हैं।
    • सरकारी बनाम निजी नौकरियाँ: सरकारी सेवा में जहाँ 9% लोग कमर्चारी के रूप में कार्यरत हैं, वहीं 12% लोग निजी रोजगार में संलग्न हैं।
  • विभिन्न आय समूहों में आय भिन्नता: सभी कमाई करने वालों में सबसे कम तीन दशमलव (Deciles) वाले के अंतर्गत, मजदूरी या वेतनभोगी आय, स्व-रोज़गार के माध्यम से अर्जित आय से कहीं अधिक देखा गया है।
  • औसत आय: एक वेतनभोगी कर्मचारी के संदर्भ में औसत आय लगभग 20,000 रुपये देखी गयी है और स्व-रोज़गार के लिए यह लगभग 13,347 रुपये है।
  • स्व-रोज़गार: 11,000 रुपये से 25,000 रुपये की मासिक आय वाले वर्ग में स्व-रोज़गार के तहत अधिक आय अर्जित की जाती हैं।
  • वेतनभोगी: 25,000 रुपये से अधिक की  मासिक आय के संदर्भ में वेतनभोगी कर्मचारी दूसरों की अपेक्षा अधिक आय अर्जित करते हैं।

डेसील्स (Deciles) :

  • डेसील्स एक सांख्यिकीय माप है जिनका उपयोग डेटा के एक सेट को दस बराबर भागों में विभाजित करने के लिए किया जाता है। 
  • आय वितरण के संदर्भ में, व्यक्तियों या परिवारों को उनकी आय के स्तर के आधार पर वर्गीकृत करने के लिए डेसील का उपयोग किया जाता है। 
  • पहला डेसील सबसे कम 10% आय अर्जित करने वालों का प्रतिनिधित्व करता है, जबकि दसवां डेसील उच्चतम 10% का प्रतिनिधित्व करता है।
    • और शेष डेसील, बीच के संबंधित आय समूहों का प्रतिनिधित्व करते हैं। 
  • आय डेटा को दशमलव में व्यवस्थित करके यह देखा जा सकता है कि जनसंख्या के विभिन्न क्षेत्रों में आय का वितरण किस प्रकार है।

राज्यों के मध्य आय-भिन्नता:

  • उच्च आय अर्जन वाले : इसके अंतर्गत वे लोग आते हैं जो भारत में शीर्ष दो दशमलव आय कमाने वालों में शामिल हैं, वेतनभोगी नौकरी में कार्यरत लोगों की आय,  व्यवसाय द्वारा अर्जित आय की तुलना में अधिक पाई गई है।
  • अपवाद: केवल दिल्ली और गोवा में स्व-रोज़गार वाले लोग वेतनभोगी से अधिक आय अर्जित करते हैं।
  • छोटे परिक्षेत्रों में: इन क्षेत्रों में पुडुचेरी, लद्दाख और उत्तर पूर्वी राज्यों की तरह, वेतनभोगी लोग स्व-रोज़गार करने वालों की तुलना में अधिक पैसा कमाते हैं।
  • पंजाब: पंजाब एकमात्र ऐसा राज्य है जहाँ किसानों की औसत कमाई स्व-रोज़गार वाले अन्य लोगों के समान है। हालाँकि, यहाँ व्यापारी किसानों की अपेक्षा अधिक कमाते हैं।
  • तमिलनाडु: यहाँ के वेतनभोगी, स्व-रोज़गार की तुलना में अधिक आय अर्जित करते हैं।
  • अधिकांश राज्यों की स्थिति : अधिकांश राज्यों में, विनिर्माण क्षेत्र के अंतर्गत स्व-रोज़गार में नियोजित लोगों की आय, व्यापार या निर्माण क्षेत्र में संलग्न स्व-रोज़गार की तुलना में काफी कम है।
  • अन्य राज्यों की स्थिति : निम्नवर्गीय आय के ( जहाँ मासिक आय 4,000 रुपये से 10,000 रुपये के मध्य है) तहत वेतन पाने वाले कर्मचारी, स्व-रोज़गार में संलग्न लोगों की तुलना में अधिक पैसा कमाते हैं।

निष्कर्ष:

  • देश के विभिन्न राज्यों में नौकरी एवं आय के मध्य के अनुपातहीन परिदृश्य को देखते हुए, सरकार द्वारा  शिक्षा, स्वास्थ्य और आवास के क्षेत्र में बेहतर और विश्वसनीय सुविधाओं तक न्यायसंगत तरीके से पहुँच और सभी लोगों के लिए नाममात्र दरों पर या मुफ्त में सार्वजनिक परिवहन प्रदान करने किये जाने की आवश्यकता है। 
  • इससे स्वरोजगार को एक आकर्षक विकल्प में परिवर्तित करने में काफी मदद मिलेगी।

News Source: The Indian Express

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