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ग्रीनहाउस गैस ‘मीथेन’ के उत्सर्जन को लेकर भारत का दृष्टिकोण

Lokesh Pal June 02, 2025 05:00 22 0

संदर्भ:

जैसे-जैसे वैश्विक प्रयास तीव्र हो रहे हैं और 2025 मीथेन न्यूनीकरण शिखर सम्मेलन की तैयारी हो रही है, भारत जलवायु लक्ष्यों को खाद्य सुरक्षा एवं किसानों की आजीविका वृद्धि के साथ संतुलित करने का प्रयास कर रहा है।

मीथेन उत्सर्जन

  • मीथेन की भूमिका: जलवायु परिवर्तन के निपटान के लिए ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन को कम करना अत्यंत आवश्यक है। कार्बन डाइऑक्साइड (CO) के बाद, मीथेन दूसरी सबसे शक्तिशाली ग्रीनहाउस गैस है, जो वैश्विक तापन (ग्लोबल वॉर्मिंग) के लगभग एक तिहाई भाग हेतु उत्तरदायी है।
  • भौतिक गुण: मीथेन एक रंगहीन और गंधहीन गैस है, जिसके स्रोत प्राकृतिक और मानवजनित दोनों हो सकते हैं।
  • प्राकृतिक स्रोत:
    • आर्द्रभूमि (Wetlands): यह मीथेन का प्रमुख प्राकृतिक स्रोत है, जहाँ पानी के नीचे वनस्पतियों के अपघटन के कारण मीथेन गैस उत्पन्न होती है।
    • अन्य स्रोत: दीमक, ज्वालामुखी और वनों में लगने वाली आग से प्राकृतिक रूप से मीथेन गैस का उत्सर्जन होता है।
    • मीथेन उत्सर्जन के स्रोत: मानवजनित मीथेन मुख्य रूप से तीन क्षेत्रों से उत्सर्जित होती है:
      •  कृषि (40%): इसमें पशु अपशिष्ट और धान की फसल शामिल हैं।
      •  जीवाश्म ईंधन (35%): इसमें ईंधन के उत्खनन, प्रसंस्करण और वितरण के दौरान होने वाला उत्सर्जन शामिल है।
      • अपशिष्ट प्रबंधन (20%): यह लैंडफिल, खुले अपशिष्ट संग्रह और अपशिष्ट जल शोधन प्रणालियों से उत्पन्न होता है।
  • मीथेन की उपयोगिता: हालाँकि मीथेन एक ग्रीनहाउस गैस है, फिर भी इसका व्यापक उपयोग विद्युत उत्पादन, हीटिंग, खाना पकाने, औद्योगिक प्रक्रियाओं (जैसे- हाइड्रोजन, अमोनिया, मेथेनॉल उत्पादन) और परिवहन में CNG/LNG के रूप में – नवीकरणीय बायोगैस के रूप में किया जाता है।
  • रणनीतिक महत्त्व: मीथेन की वायुमंडलीय उपस्थिति कार्बन डाइऑक्साइड की तुलना में कम अवधि की है, लेकिन यह विकिरण को रोकने में कहीं अधिक प्रभावशाली हैजलवायु संकट के बढ़ते प्रभाव को देखते हुए, मीथेन उत्सर्जन को कम करने को अब वैश्विक तापन (ग्लोबल वॉर्मिंग) से निपटने की एक अत्यधिक प्रभावशाली और तात्कालिक रणनीति के रूप में देखा जा रहा है।

वैश्विक जलवायु प्रयासों में मीथेन का न्यूनीकरण

  • आधारभूत संरचना: मीथेन उत्सर्जन को कम करने के प्रयास लंबे समय से जलवायु परिवर्तन को कम करने की रणनीतियों का हिस्सा रहे हैं।
  • यूएनएफसीसीसी (UNFCCC): 1992 में स्थापित संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिवर्तन रूपरेखा सम्मेलन (UNFCCC) ने सामान्य लेकिन विभेदित उत्तरदायित्व और संबंधित क्षमताओं (CBDR-RC) के सिद्धांत को स्थापित किया।
    • इस सिद्धांत के तहत, विकसित देशों पर ग्रीनहाउस गैस (GHG) उत्सर्जन में कटौती का प्राथमिक उत्तरदायित्व निर्धारित किया गया है।
    • हालाँकि, यूएनएफसीसीसी (UNFCCC) केवल एक रूपरेखा थी और इसमें न तो विशिष्ट ग्रीनहाउस गैस (GHG) का उल्लेख किया गया, और न ही कोई बाध्यकारी लक्ष्य निर्धारित किए गए थे।
  • क्योटो प्रोटोकॉल (1997-2005): UNFCCC को लागू करने के लिए, 1997 में क्योटो प्रोटोकॉल को अपनाया गया, जो 2005 में लागू हुआ। इसमें मीथेन सहित छह ग्रीनहाउस गैसों को सूचीबद्ध किया गया और विकसित देशों पर बाध्यकारी उत्सर्जन कटौती लक्ष्यों को लागू किया गया।
  • पेरिस समझौता (2015): यह एक स्वैच्छिक, राष्ट्रीय स्तर पर निर्धारित दृष्टिकोण की ओर परिवर्तन को दर्शाता है। फिर भी, विकसित देशों से उत्सर्जन में कटौती में नेतृत्व करने की अपेक्षा की गई। मीथेन उत्सर्जन में कटौती को वैश्विक तापमान वृद्धि को सीमित करने की एक किफायती रणनीति के रूप में मान्यता दी गई।
  • COP26 – वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (GMP): यह एक स्वैच्छिक अंतरराष्ट्रीय पहल के रूप में शुरू की गई, जिसका लक्ष्य है – 2030 तक 2020 के स्तर की तुलना में वैश्विक मीथेन उत्सर्जन में कम-से-कम 30% की कटौती करना
  • UNEP की निगरानी प्रणालियाँ: GMP और वैश्विक पारदर्शिता को समर्थन देने के लिए अंतर्राष्ट्रीय मीथेन उत्सर्जन वेधशाला (IMEO) की स्थापना की गई।
  • MARS: COP27 (2022) में, मीथेन अलर्ट और रिस्पांस सिस्टम (MARS) पेश किया गया, यह एक उपग्रह-आधारित प्रणाली है, जो मीथेन उत्सर्जन का पता लगाने और उसकी रिपोर्ट करने के लिए विकसित की गई है।
  • COP28 – तेल और गैस डीकार्बोनाइजेशन चार्टर (ODGC): इसका उद्देश्य तेल और गैस क्षेत्र का डिकार्बोनाइजेशन करना है, जिसमे 2030 तक अपस्ट्रीम (उत्पादन-स्तर) मीथेन उत्सर्जन को शून्य करने (Net-zero) का लक्ष्य रखा गया है।।
  • COP29 – जैविक अपशिष्ट से मीथेन पर घोषणा-पत्र: 30 से अधिक देशों ने इस घोषणा-पत्र का समर्थन किया, जिसका उद्देश्य खाद्य अपशिष्ट, कृषि अवशेषों और सीवेज से उत्पन्न मीथेन को नियंत्रित करना है, जो मानवजनित मीथेन उत्सर्जन का लगभग 20% है।
  • वैश्विक मीथेन पहल (GMI): 2004 में शुरू की गई वैश्विक मीथेन पहल (GMI) जिसे पहले मीथेन टू मार्केट्स पार्टनरशिप कहा जाता था, का उद्देश्य है:
    • मीथेन उत्सर्जन में कमी के लिए अंतर्राष्ट्रीय सहयोग और निवेश को बढ़ावा देना। जलवायु और स्वच्छ वायु गठबंधन (CCAC), वैश्विक मीथेन हब और विश्व बैंक समूह के साथ मिलकर कार्य करता है।
  • क्षमतावर्धन: पिछले कुछ वर्षों में, GMI ने मीथेन के जलवायु और स्वास्थ्य पर प्रभावों को लेकर जागरूकता बढ़ाई है, कार्यक्रमों को प्रायोजित किया है तथा मीथेन न्यूनीकरण के लिए संसाधनों का एकत्रण किया है।
  • आगामी वैश्विक शिखर सम्मेलन: औद्योगिक डीकार्बोनाइजेशन नेटवर्क द्वारा आयोजित इस शिखर सम्मेलन (2–4 जून, 2025) को ऑस्टिन, टेक्सास (संयुक्त राज्य अमेरिका) में आयोजित किया जाएगा। इसमें ऊर्जा कंपनियाँ, गैर-सरकारी संगठन और तकनीकी नवप्रवर्तक भाग लेंगे। इसका ध्यान मुख्य रूप से तेल और गैस क्षेत्र में मीथेन उत्सर्जन के मापन, निगरानी और कमी पर होगा।

मीथेन उत्सर्जन पर भारत का दृष्टिकोंण

  • वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (GMP): भारत ने वैश्विक मीथेन प्रतिज्ञा (GMP) में शामिल नहीं होने का निर्णय लिया है, क्योंकि उसे चिंता है कि इससे वैश्विक ध्यान कार्बन डाइऑक्साइड (CO), जिसका जीवनकाल 100 वर्ष है, से हटकर मीथेन पर केंद्रित हो जाएगा, जिसका जीवनकाल 12 वर्ष है।
  • स्रोत: भारत में मीथेन उत्सर्जन मुख्य रूप से पशुधन क्षेत्र (एंटेरिक फर्मेंटेशन के माध्यम से) और धान की खेती से उत्पन्न होता है। ये उत्सर्जन छोटे और सीमांत किसानों की जीवन-निर्वाह गतिविधियों से जुड़े हुए हैं।
  • खाद्य सुरक्षा बनाम वैश्विक लक्ष्य: भारत में जीएमपी (GMP) को लागू करने से निम्नलिखित पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है:
    •  किसानों की आय
    •  चावल का उत्पादन
    •  भारत की एक प्रमुख चावल निर्यातक के रूप में स्थिति
  • भारत में इस प्रकार के उत्सर्जन कोजीविका आधारित उत्सर्जन माना जाता है, जो खाद्य सुरक्षा के लिए आवश्यक हैं – जबकि विकसित देशों में औद्योगिक कृषि से होने वाले उत्सर्जन को विलासिता उत्सर्जन की श्रेणी में रखा जाता है।
  • अतिरिक्त बोझ नहीं: भारत के छोटे किसानों की आर्थिक संवेदनशीलता को देखते हुए उन पर अतिरिक्त न्यूनीकरण का बोझ नहीं डाला जा सकता।
  • सतत कृषि उपाय: राष्ट्रीय सतत कृषि मिशन (NMSA) के तहत, भारत धान की खेती में मीथेन उत्सर्जन को कम करने वाली तकनीकों को बढ़ावा दे रहा है, जैसे:
    •  राइस इंटेंसिफिकेशन प्रणाली (SRI)
    •  डायरेक्ट सीडेड राइस (DSR)
    •  फसल विविधीकरण कार्यक्रम
  • पशुधन क्षेत्र की पहलें: पशुपालन और डेयरी विभाग (DAHD), राष्ट्रीय पशुधन मिशन के माध्यम से, निम्नलिखित उपायों पर कार्य कर रहा है:
    •  नस्ल सुधार
    • आहार संतुलन, जिससे एंटेरिक फर्मेंटेशन के कारण मीथेन उत्सर्जन कम हो सके।
  • गोबर-धन: गोबर-धन और राष्ट्रीय बायोगैस एवं जैविक खाद कार्यक्रम जैसी योजनाएँ मवेशियों के अपशिष्ट से बायोगैस उत्पादन और जैविक खाद के उपयोग को प्रोत्साहित करते हैं, जिससे स्वच्छ ग्रामीण ऊर्जा को बढ़ावा मिलता है और ग्रीनहाउस गैसों का उत्सर्जन घटता है।

आगामी कार्य योजना

  • मीथेन न्यूनीकरण: मीथेन वैश्विक तापमान वृद्धि में लगभग 30% तक योगदान देता है। यदि इसे नियंत्रित नहीं किया गया, तो मानवजनित मीथेन उत्सर्जन 2020 से 2030 के बीच 13% तक बढ़ सकता है।
    • मीथेन को कम करना वर्तमान में सबसे प्रभावी जलवायु कार्रवाई माना जाता है, लेकिन भारत जैसे देश के लिए, जहाँ मीथेन उत्सर्जन खाद्य सुरक्षा से संबंधित है, यह प्रक्रिया काफी जटिल बनी हुई है।
  • वित्तीय सहायता: विकसित देशों से विकासशील देशों की ओर जलवायु वित्त का पर्याप्त प्रवाह आवश्यक है, ताकि मीथेन उत्सर्जन में कमी से संबंधित पहलों को समर्थन दिया जा सके और आजीविका तथा जीवन-निर्वाह से जुड़े क्षेत्रों में प्रभावशाली जलवायु कार्रवाई को सक्षम बनाया जा सके।
  • फसल विविधीकरण: फसल विविधीकरण योजनाएँ मीथेन उत्सर्जन को कम करने में सहायक हैं, क्योंकि वे एकल फसल प्रणाली से हटकर कृषि को अधिक लचीला और सतत बनाती हैं।
  • क्षेत्रीय लाभ: ऊर्जा क्षेत्र मीथेन का एक प्रमुख स्रोत है, लेकिन यह कुछ सबसे अधिक किफायती और त्वरित न्यूनीकरण के अवसर भी प्रदान करता है।
    • जीवाश्म ईंधन से संबंधित मीथेन का पता लगाना, मापना और नियंत्रित करना अपेक्षाकृत सरल होता है।
    • इसमें कम भागीदारी (मुख्यतः बड़ी कंपनियाँ) होती है, जिससे कृषि क्षेत्र की तुलना में नियमों को लागू करना आसान होता है।
  • विकसित देशों का उत्तरदायित्व: ऐतिहासिक रूप से सबसे बड़े जीवाश्म ईंधन उपभोक्ता रहे विकसित देशों को मीथेन न्यूनीकरण को प्रोत्साहन देकर, और जलवायु वित्त, प्रौद्योगिकी हस्तांतरण तथा क्षमतावर्धन के माध्यम से विकासशील देशों को समर्थन देकर, इन सुधारों का नेतृत्व करना चाहिए।

निष्कर्ष

आगामी मीथेन न्यूनीकरण प्रौद्योगिकी और नवाचार शिखर सम्मेलन ऊर्जा के क्षेत्र में वैश्विक प्रयासों को गति प्रदान कर सकता है और कृषि जैसे जटिल क्षेत्रों में ठोस व समग्र प्रयासों की नींव रख सकता है।

 मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

 भारत द्वारा, मीथेन का एक प्रमुख उत्सर्जक होने के बावजूद, ग्लोबल मीथेन प्रतिज्ञा पर हस्ताक्षर नहीं किया गया है। इस निर्णय के कारणों की विवेचना कीजिए और मीथेन उत्सर्जन को कम करने के लिए भारत द्वारा अपनाई गई वैकल्पिक रणनीतियों का मूल्यांकन कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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