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Lokesh Pal
June 09, 2025 05:30
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हाल ही में प्रकाशित एक लेख में वाक् एवं अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की सुरक्षा तथा उसे बनाए रखने के न्यायपालिका के वर्तमान दृष्टिकोण की आलोचना की गई है एवं इसे न्यायिक पतन का संकेत तथा लोकतांत्रिक अभिव्यक्ति के मूल को कमजोर करने वाला बताया गया है।
संवैधानिक शक्ति से ज़्यादा सुविधा को महत्त्व देने वाली न्यायपालिका लोकतंत्र को बनाए रखने वाली असहमति को दबाने का जोखिम उठाती है। वास्तविक न्याय केवल सहमति के अधिकार का ही नहीं, बल्कि विचारों को अभिव्यक्त करने की स्वतंत्रता की भी रक्षा करता है।
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