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नीति आयोग की रिपोर्ट : कृषि क्षेत्र का बेहतर प्रदर्शन

Lokesh Pal October 12, 2024 05:15 166 0

संदर्भ 

नीति आयोग के एक नए अध्ययन में कहा गया है कि पिछले 10 वर्षों में भारतीय कृषि ने बेहतर प्रदर्शन किया है, लेकिन यह वृद्धि फसलों की तुलना में पशुधन, बागवानी और मत्स्य पालन से अधिक हुई है।

भारतीय कृषि का उभरता क्षेत्र  

  • हाल के वर्षों में भारत के कृषि विकास में उल्लेखनीय परिवर्तन आया है, जो विविधीकरण और बाजार-संचालित अवसरों पर ध्यान केंद्रित करते हुए पिछले दशकों से आगे निकल गया है।
  • विकास दर : पिछले 10 वर्षों (2014-2024) के दौरान वार्षिक कृषि विकास औसतन 3.7 प्रतिशत रहा।
    • यूपीए के दौरान विकास दर 3.5 रही, जबकि पिछले वर्षों में यह 2.9 प्रतिशत थी।

वृद्धि के प्रमुख क्षेत्र 

  • पशुधन क्षेत्र में उछाल : पशुधन उप-क्षेत्र ने 2014-15 से 2022-23 के दौरान 5.8 प्रतिशत की प्रभावशाली औसत वार्षिक वृद्धि का अनुभव किया है।

पशुधन 

  • पशुधन का अर्थ है वे पशु और पक्षी जिन्हें पशुपालकों द्वारा पाला जाता है, जैसे गाय, भेड़ या मुर्गियाँ आदि ।

  • जलीय कृषि में उल्लेखनीय वृद्धि : इसी अवधि में मत्स्य पालन उपक्षेत्र में प्रति वर्ष 9.1 प्रतिशत की उल्लेखनीय वृद्धि देखी गई है। 
  • बागवानी में उल्लेखनीय वृद्धि : 2014-15 से 2022-23 के दौरान बागवानी फसलों का उत्पादन सालाना 3.9 प्रतिशत की प्रभावशाली दर से बढ़ा है।

बागवानी 

  • बागवानी एक कृषि विज्ञान की अवधारणा है, साथ ही बागवानी फसलों, जैसे कि फल और सब्जियां, और मसालों, वृक्षारोपण, औषधीय और सुगंधित पौधों के उत्पादन, उपयोग और सुधार की एक कला भी है। 
  • उदाहरण : अंगूर, खट्टे फल, चीकू, गुलदाउदी, चमेली, हल्दी आदि। 

कृषि पोर्टफोलियो में विविधिकरण 

  • इन क्षेत्रों में वृद्धि मुख्य रूप से प्रोटीन युक्त, पौष्टिक खाद्य पदार्थों की बढ़ती उपभोक्ता मांग के कारण हुई है। लोगों ने आपूर्ति के साथ-साथ मांग को पूरा करने के लिए पशुधन और मत्स्य पालन पर ध्यान केंद्रित किया है।
  • विविधीकरण : जिन राज्यों ने अपने कृषि पोर्टफोलियो में विविधता सुनिश्चित किया है, उन्हें बाजार की बढ़ती मांग का लाभ मिला है।
  • खेत की फसलों में ठहराव : इसके विपरीत, चावल और गेहूं जैसी फसलों में न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की उपलब्धता के बावजूद, इसी अवधि के दौरान मात्र 1.6 प्रतिशत औसत वार्षिक वृद्धि देखी गई।
  • उच्च वृद्धि वाले राज्य : आंध्र प्रदेश, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और गुजरात में पशुधन, जलीय कृषि और बागवानी द्वारा संचालित सबसे अधिक कृषि वृद्धि देखी गई है।
  • कम वृद्धि वाले राज्य : पंजाब और हरियाणा, जिनका ध्यान अनाज और फसलों पर है, ने हाल के वर्षों में अपेक्षाकृत कम वृद्धि देखी है। हरित क्रांति के बाद इन राज्यों में महत्वपूर्ण वृद्धि देखी गई, लेकिन अब वे पिछड़ रहे हैं।
  • नवाचार और आधुनिकीकरण की आवश्यकता : औद्योगिकीकरण के परिणामस्वरूप खेत की फसलों की मांग में ठहराव आ गया है, जिससे कृषि क्रांति की तत्काल आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया है। पुरानी प्रथाओं के साथ उत्पादन में उल्लेखनीय वृद्धि नहीं की जा सकती; बढ़ती जरूरतों को पूरा करने के लिए नवाचार और आधुनिकीकरण आवश्यक है।
    • बढ़ते प्रदूषण, घटते भूजल स्तर और उर्वरकों के अत्यधिक उपयोग ने भी भूमि की उर्वरता को प्रभावित किया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश, पंजाब और हरियाणा जैसे क्षेत्रों को फसलों के लिए न्यूनत्तम समर्थन मूल्य (एमएसपी) मिलने के बावजूद, उनमें कोई उल्लेखनीय वृद्धि नहीं देखी गई है।

आगे की राह 

  • डेयरी उत्पादों को प्राथमिकता देना : दूध उत्पादन पशुधन उपक्षेत्र की प्रभावशाली वृद्धि का एक प्रमुख चालक रहा है। भारत में कई शाकाहारी लोग हैं जो अंडे जैसे प्रोटीन के अन्य स्रोतों की तुलना में डेयरी उत्पादों को प्राथमिकता देते हैं।
  • पोल्ट्री उत्पादों को महत्त्व देना  : पोल्ट्री उद्योग ने पशुधन विकास की कहानी में भी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। आने वाले समय में अंडे और मांस उत्पादों की मांग में वृद्धि होगी।
  • जलकृषि उत्पादों को प्रोत्साहित करना : मत्स्य पालन उपक्षेत्र ने और भी अधिक उल्लेखनीय विकास प्रक्षेपवक्र का अनुभव किया है और इसमें और भी अधिक वृद्धि की संभावना है।

नीति का कार्यान्वयन

  • बाजारोन्मुखी दृष्टिकोण : किसानों को न्यूनत्तम समर्थन मूल्य (एमएसपी) जैसे सरकारी हस्तक्षेपों पर निर्भर रहने के बजाय बाजार की मांग के अनुसार उत्पादन करने में सक्षम बनाया जाना चाहिए। कृषि क्षेत्र को उदार बनाने की आवश्यकता है। 
    • उदाहरण के लिए, यदि आज प्रोटीन युक्त उपज की मांग बढ़ रही है, तो किसानों को अपनी आय को अधिकतम करने के लिए उन फसलों की ओर अपना ध्यान केंद्रित करना चाहिए।
  • आय आश्वासन : प्रति एकड़ आय हस्तांतरण किसानों के लिए सुरक्षा जाल प्रदान कर सकता है, साथ ही जोखिम उठाने और बाजार-उन्मुख उत्पादन को प्रोत्साहित कर सकता है।
    • यदि किसानों को प्रति एकड़ एक निश्चित राशि की गारंटी दी जाती है, तो वे अपनी खेती को बाजार की माँगों के अनुरूप ढालने की अधिक संभावना रखेंगे।
  • बाजार पहुँच को सुविधाजनक बनाना : किसानों में बाजार जोखिमों के प्रति एक प्रचलित हिचकिचाहट है; वे अक्सर न्यूनत्तम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की सुरक्षा को प्राथमिकता देते हैं। सरकार को उनके विकास और बाजार की माँगों के अनुकूल होने के आत्मविश्वास को समर्थन देने के लिए ऋण, बीमा और प्रौद्योगिकी प्रदान करके उन्हें आश्वस्त करने की आवश्यकता है।
    • इससे हरियाणा में पराली जलाने की समस्या को भी रोका जा सकेगा तथा कृषि क्षेत्र में विकास को गति मिलेगी।

निष्कर्ष

नीति आयोग के अनुसार, पिछले 10 वर्षों में भारतीय कृषि ने बेहतर प्रदर्शन किया है। परंतु कम वृद्धि दर्शाने वाले फसल उपक्षेत्र, विशेष रूप से चावल और गेहूं – को न्यूनतम समर्थन मूल्य व्यवस्था के अंतर्गत शामिल किया जाना केवल मांग-पक्ष कारकों के महत्त्व को उजागर करता है। उत्पादन प्रौद्योगिकी में सुधार के साथ-साथ ये, सरकारी उत्पादन मूल्य या इनपुट सब्सिडी हस्तक्षेपों की तुलना में कृषि विकास को बढ़ावा देने में अधिक प्रभावी हैं।

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