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भारतीय संविधान की प्रस्तावना और बंधुत्व की भावना

Lokesh Pal August 22, 2024 05:15 68 0

संविधान में बंधुत्व

  • 1949 में संविधान सभा को संबोधित करते हुए बी. आर. अंबेडकर ने कहा था, “स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व के इन सिद्धांतों को अलग-अलग तत्त्वों के रूप में नहीं माना जाना चाहिए। वे इस अर्थ में एक संघ बनाते हैं कि एक को दूसरे से अलग करना लोकतंत्र के मूल उद्देश्य को समाप्त करना है।”
  • भारतीय संविधान की प्रस्तावना में तीन मुख्य मूल्यों को शामिल किया गया है : स्वतंत्रता, समानता और बंधुत्व। स्वतंत्रता का अर्थ है राज्य या अन्य संस्थाओं द्वारा अनुचित प्रतिबंध या दबाव के बिना कार्य करने, बोलने या सोचने की व्यक्तियों की स्वतंत्रता। समानता का तात्पर्य है कि सभी व्यक्तियों को समान अधिकार और अवसर प्राप्त हैं, जो जाति, धर्म, लिंग या सामाजिक-आर्थिक स्थिति के आधार पर भेदभाव से मुक्त हैं। बंधुत्व सभी नागरिकों के बीच भाई-चारे और एकजुटता की भावना का प्रतिनिधित्व करता है, जो आपसी सम्मान और सहयोग पर आधारित हों।
  • बंधुत्व की अवधारणा को इस सिद्धांत में व्यक्त किया जा सकता है : “दूसरों के साथ वैसा व्यवहार न करें जैसा आप नहीं चाहते कि वे आपके साथ करें; दूसरों के साथ हमेशा वैसा ही व्यवहार करें जैसा आप उनसे चाहते हैं।” यह सिद्धांत व्यक्तियों के बीच पारस्परिक सम्मान और सकारात्मक वार्ता के महत्त्व को रेखांकित करता है।
  • बंधुत्व को कभी-कभी स्पष्ट रूप से परिभाषित सिद्धांत के बजाय एक भावनात्मक आदर्श के रूप में देखा जाता है। यह लोगों के बीच संबंधों और भावनात्मक बंधन की भावना को दर्शाता है, साथ ही प्रेम और परस्पर  सम्मान की भावनाओं को बढ़ावा देता है।

बंधुत्व का संवैधानिक अर्थ

भारतीय संदर्भ में, बंधुत्व को नागरिकता के एक महत्त्वपूर्ण घटक के रूप में परिभाषित किया गया है, जो व्यक्ति की गरिमा और राष्ट्र की एकता तथा अखंडता को सुनिश्चित करता है। यह केवल भावना से परे जाकर सभी नागरिकों के बीच सद्भाव और बंधुत्व को बढ़ावा देने हेतु व्यक्तियों के लिए एक कानूनी और नैतिक दायित्व को शामिल करता है।

बधुत्व, असमानता और सामाजिक न्याय

  • ऐतिहासिक रूप से, भारतीय समाज असमानता और अस्पृश्यता के मुद्दों से जूझता रहा है। जबकि कानूनी ढाँचों के माध्यम से राजनीतिक समानता स्थापित की गई है, परंतु सामाजिक समानता एक सतत चुनौती बनी हुई है। बी. आर. अंबेडकर ने इस मुद्दे पर टिप्पणी करते हुए कहा कि “सामाजिक समानता के बिना राजनीतिक समानता की उपस्थिति विरोधाभासों से भरे जीवन की ओर ले जाती है।”
  • भारत में बंधुत्व की अवधारणा सामाजिक एकीकरण को बढ़ावा देकर, रूढ़ हो चुके सामाजिक विभाजनों से मुकाबला करते हुए इन मुद्दों को संबोधित करने का प्रयास करती है। भारतीय संविधान बंधुत्व को राजनीतिक और सामाजिक समानता के बीच की खाई को पाटने के साधन के रूप में देखता है। 

मूल कर्तव्य

  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 51A(E) : 42वाँ संविधान संशोधन, 1976 मूल कर्तव्यों को प्रस्तुत करता है, जिसमें प्रत्येक नागरिक की जवाबदेही शामिल है कि वह “भारत के सभी लोगों के बीच सद्भाव और समान बंधुत्व की भावना को बढ़ावा दे, जो धार्मिक, भाषाई और क्षेत्रीय या वर्गीय विविधताओं से परे हो।” यह कर्तव्य बंधुत्व की अवधारणा के अनुरूप है और राष्ट्रीय एकता तथा अखंडता को बढ़ावा देने में व्यक्तिगत जवाबदेही के महत्त्व को पुष्ट करता है।

बंधुत्व पर असमानता का प्रभाव

  • भारतीय समाज में असमानता कई रूपों में प्रकट होती है। एक स्तर पर यह आर्थिक है, तो दूसरे स्तर पर यह क्षेत्रीय, जाति-आधारित और धार्मिक है। इनमें से कुछ असमानताएँ स्पष्ट हैं, जबकि अन्य कम करके आँकी गई हैं या मान ली गई हैं।
  • समाजशास्त्रियों ने सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक बहिष्कार का सामना करने वाले लोगों की नौ श्रेणियों की पहचान की है, जिनमें दलित, आदिवासी, महिलाएँ और धार्मिक अल्पसंख्यक शामिल हैं।
  • स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद कई पश्चिमी विद्वानों ने आलोचना की थी कि भारत की विविधता के कारण भारत विखंडित हो जाएगा। लेकिन भारत ने इन आलोचनाओं को गलत साबित कर दिया है और विविधता के बीच एकता का एक उल्लेखनीय उदाहरण बनकर उभरा है।
  • इन पूर्वानुमानों के विपरीत, देश न केवल अपने लोकतांत्रिक ढाँचे को बनाए रखने में कामयाब रहा है, बल्कि एक जीवंत, बहुलवादी समाज के रूप में भी विकसित हुआ है। अपने विविध सांस्कृतिक, भाषाई और धार्मिक समुदायों को एक सुसंगत राष्ट्रीय पहचान में एकीकृत करने की भारत की क्षमता ने सुगमता और शक्ति का प्रदर्शन किया है, जो समान चुनौतियों से जूझ रहे अन्य देशों के लिए एक मॉडल के रूप में कार्य करता है।

22 दिसंबर, 1952 को संविधान सभा में दिए गए अपने भाषण में बी. आर. अंबेडकर ने लोकतंत्र के सफल संचालन के लिए पूर्वापेक्षाएँ बताईं, जिनमें शामिल हैं :

  • स्पष्ट असमानताओं का अभाव
  • विपक्ष की उपस्थिति
  • विधि और शासन के समक्ष समानता
  • संवैधानिक नैतिकता का पालन
  • अल्पसंख्यकों पर बहुसंख्यकों के अत्याचार से बचना
  • समाज में एक कार्यशील नैतिक व्यवस्था
  • सार्वजनिक विवेक

निष्कर्ष

अंबेडकर द्वारा बताए गए सिद्धांत आज भी प्रासंगिक हैं। सामाजिक एकता, न्याय, स्वतंत्रता और समानता के मूल्यों को बनाए रखने के लिए बंधुत्व अत्यंत आवश्यक है। हर नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य है, कि वह समान बंधुत्व की भावना को बढ़ावा दे, मतभेदों को दूर करे और विविधता में एकता को बढ़ावा दे। बंधुत्व का स्थायी महत्त्व राष्ट्र को एक साथ बाँधने तथा सभी व्यक्तियों की गरिमा और सम्मान सुनिश्चित करने की इसकी क्षमता में निहित है, जिससे भारत के लोकतांत्रिक ताने-बाने को मजबूती मिलती है।

मुख्य परीक्षा पर आधारित प्रश्न 

लोकतंत्र में आधारभूत मूल्य के रूप में ‘बंधुत्व’ की भूमिका का परीक्षण कीजिए।

(10 अंक, 150 शब्द)

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