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सार्वभौमिक मताधिकार की शुचिता: आधार योजना व कानूनी विसंगतियाँ

Lokesh Pal April 23, 2025 05:00 51 0

संदर्भ: 

भारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) ने मतदाता पहचान-पत्रों को स्पष्ट करनेफर्जी मतदाताओं को हटाने और चुनावी शुचिता बढ़ाने जैसे उद्देश्यों का हवाला देते हुए आधार को मतदाता पहचान-पत्रों से जोड़ने के लिए अपना प्रयास फिर से शुरू कर दिया है।

आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने में आने वाली समस्याएं:

  • स्वैच्छिकता का भ्रम: यद्यपि भारतीय निर्वाचन आयोग का दावा है कि आधार लिंकेज स्वैच्छिक है, फॉर्म 6बी मतदाताओं को या तो अपना आधार नंबर प्रस्तुत करने के लिए बाध्य करता है, या यह घोषित करने के लिए बाध्य करता है कि उनके पास आधार नहीं है, जिससे अनिच्छुक लोगों को भी अनुपालन के लिए मजबूर किया जाता है।
  • संदिग्ध प्रथाएं: सितंबर 2023 तक के आंकड़ों के मुताबिक लगभग 66 करोड़ से अधिक आधार संख्याएं जोड़ी गईं, जो कि एक बलपूर्वक कानूनी ढांचे और कानूनी रूप से संदिग्ध डेटा-साझाकरण प्रथाओं जैसे कि डीबीटी सीडिंग डेटा व्यूअर द्वारा तीसरे पक्ष की पहुंच की अनुमति देना, और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर और अन्य सरकारी स्रोतों से डेटा का पुन: उपयोग करना द्वारा संभव बनाया गया।
  • बहिष्कार का जोखिम: नवीनतम प्रस्ताव के तहत गैर-आधार धारकों को निर्वाचन पंजीकरण अधिकारी के समक्ष अपनी पसंद का भौतिक रूप से औचित्य सिद्ध करना होगा, जिससे बुजुर्ग नागरिकोंविकलांग व्यक्तियोंप्रवासी श्रमिकों और दूरदराज के लोगों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
    • इससे व्यक्तिगत गरिमा और लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं में विश्वास कम होने की आशंका है
  • प्राकृतिक न्याय का उल्लंघन: स्पष्ट अपीलीय तंत्र की अनुपस्थिति इस मुद्दे को और गंभीर बनाती है। लाल बाबू हुसैन (1995) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि मतदाता सूची से नाम हटाने के लिए प्राकृतिक न्याय और प्रक्रियात्मक निष्पक्षता का पालन किया जाना चाहिए।
  • नागरिकता संबंधी भ्रांति: आधार एक निवास-आधारित पहचान पत्र हैनागरिकता प्रमाण नहीं। आधार अधिनियम, 2016 की धारा 9 में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि आधार नागरिकता का वैध प्रमाण नहीं है।
  • कानूनी विसंगतियां: भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI) के अनुसार, भारत में 182 दिन से अधिक अवधि तक निवास करने वाले गैर-नागरिक भी कुछ शर्तों के साथ आधार के लिए पात्र हैं। उच्च न्यायालय और भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण दोनों ने पुष्टि की है कि आधार नागरिकता प्रमाणित नहीं करता है।
  • आधार के उपयोग पर सीमाएं: न्यायमूर्ति केएस पुट्टस्वामी (2018) में सर्वोच्च न्यायालय ने आधार अधिनियम की धारा 7 के तहत कल्याणकारी योजनाओं तक आधार के उपयोग को प्रतिबंधित कर दिया। अतः मतदाता सत्यापन के लिए आधार का उपयोग करना इस संवैधानिक आदेश का उल्लंघन है
  • तेलंगाना और आंध्र प्रदेश: 2015 के एनईआरपीएपी अभ्यास के दौरान, 55 लाख से अधिक मतदाता आधार बेमेल के कारण  गलत तरीके से हटा दिए गए थे।
    • कई मतदाताओं को चुनाव के दिन ही पता चला कि उनके नाम सूची में नहीं हैं । तमाम समस्याओं के कारण सुप्रीम कोर्ट ने 11 अगस्त 2015 के अपने आदेश के ज़रिए इस पहल पर रोक लगा दी थी।
  • मतदाता प्रोफाइलिंग जोखिम: आधार को मतदाता डेटा से जोड़ने से अन्य डेटाबेस के साथ क्रॉस-रेफ़रेंसिंगमतदाताओं की सूक्ष्म-लक्ष्यीकरणविपक्षी गढ़ों का दमन संभव हो जाता है और मतदाता सूचियों में हेरफेर संभव हो जाता है
  • निगरानी: डिजिटल व्यक्तिगत डेटा संरक्षण (डीपीडीपी) अधिनियम, 2023 इस संदर्भ में, व्यापक छूट प्रदान करता है सरकारी निकायों के लिए, जिससे संभावित डेटा निगरानी और प्रोफाइलिंग की सुविधा मिलती है
  • संस्थागत स्वतंत्रता से समझौताभारतीय निर्वाचन आयोग (ECI) एक संवैधानिक निकाय है जो चुनाव कराने के लिए जिम्मेदार है, जबकि यूआईडीएआई कार्यकारी नियंत्रण के तहत एक वैधानिक निकाय है, जो सरकारी निर्देशों (धारा 50) और अधिक्रमण (धारा 48) के अधीन है।
    • भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण (UIDAI)  को चुनावी डेटा सौंपना संस्थागत स्वतंत्रता से समझौता करना है, जो कि चुनावों की अखंडता को कमजोर करता है
  • सीएजी की ऑडिट रिपोर्ट: 2022 भारत का नियंत्रक और महालेखापरीक्षक  (सीएजी) ऑडिट रिपोर्ट (2021 की संख्या 24) के अनुसार, दोहराव और बायोमेट्रिक त्रुटियों के कारण 4.75 लाख आधार नंबर रद्द कर दिए गए
  • बुनियादी ढांचे का अभाव:   भारतीय विशिष्‍ट पहचान प्राधिकरण के पास विशिष्ट निवास सत्यापन और मजबूत पात्रता निर्धारण प्रक्रिया के लिए एक प्रणाली का अभाव है। इस तरह के त्रुटि-प्रवण डेटाबेस पर निर्भर रहना मतदाता सूची की सटीकता और समावेशिता खतरे में पड़ जाती है।

आगे की राह:

  • तंत्र को मजबूत करना: गोपनीयता का उल्लंघन करने वाले तकनीकी समाधानों पर निर्भर रहने के बजाय, भारत के चुनाव आयोग (ECI) को समय-परीक्षणित मतदाता सत्यापन विधियों को मजबूत करने की दिशा में पहल करनी चाहिए।
    • इसके लिए, बूथ लेवल अधिकारियों (बीएलओ) द्वारा घर-घर जाकर सत्यापन भी शामिल है । मतदाता सूचियों का स्वतंत्र ऑडिट और कार्यात्मक लोक शिकायत निवारण प्रणालियां भी शामिल हैं
  • सामाजिक ऑडिट: इसके अतिरिक्त, स्वतंत्र सामाजिक ऑडिट लागू करने से पारदर्शिता सुनिश्चित हो सकती है, हेरफेर को रोका जा सकता है और लोकतांत्रिक जवाबदेही को बढ़ाया जा सकता है
  • वोट के अधिकार की सुरक्षा: वोट का अधिकार एक संवैधानिक गारंटीकृत अधिकार है। कोई भी उपाय जो नागरिकों पर अनुचित बोझ डालता हैअविश्वसनीय सत्यापन उपकरणों पर निर्भर करता है, या राजनीतिक प्रोफाइलिंग की सुविधा देता है, अस्वीकार किया जाना चाहिए।  
    • आधार -मतदाता पहचान पत्र को जोड़ने से ये तीनों बातें प्रभावित होती हैं, जिससे यह संवैधानिक रूप से अक्षम्य हो जाता है

निष्कर्ष:

हालांकि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में, इस बेहद समस्याग्रस्त योजना को दोनों दलों का समर्थन मिला है जो कि सार्वजनिक जांच और न्यायिक निगरानी की आवश्यकता को और बढ़ाता है। अतः सार्वभौमिक मताधिकार की पवित्रता की रक्षा के लिए इससे कम कोई भी विकल्प स्वीकार करने योग्य नहीं माना जा सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: आधार को मतदाता पहचान पत्र से जोड़ने के संवैधानिक और प्रशासनिक निहितार्थों की आलोचनात्मक जांच करें। चर्चा करें कि यह पहल चुनावी अखंडता, निजता के अधिकार और लोकतांत्रिक भागीदारी को कैसे प्रभावित करती है, साथ ही सटीक मतदाता सूची सुनिश्चित करने के लिए वैकल्पिक दृष्टिकोण सुझाएँ।

(15 अंक, 250 शब्द)

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