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आईएमएफ की प्रासंगिकता : शासन सुधार व न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व की मांग

Lokesh Pal October 30, 2024 05:15 27 0

संदर्भ: 

आईएमएफ और विश्व बैंक की स्थापना द्वितीय विश्व युद्ध के बाद, विश्व अर्थव्यवस्था के पुनर्निर्माण के लिए ब्रेटन वुड्स सम्मेलन में की गई थी। 

  • आज, आईएमएफ के प्रशासन में सुधार की मांग बढ़ती जा रही है, तथा उभरती अर्थव्यवस्थाएं जी-7 देशों के पक्ष में असंगत मताधिकार की समस्या से निपटने के लिए अधिक न्यायपूर्ण प्रतिनिधित्व की मांग कर रही हैं।

आईएमएफ की संरचना

बोर्ड बोर्ड ऑफ गवर्नर्स 

  • सर्वोच्च निर्णय लेने वाला निकाय बोर्ड ऑफ गवर्नर्स है, जिसमें प्रत्येक सदस्य देश से एक गवर्नर और एक वैकल्पिक गवर्नर शामिल होता है, जो आमतौर पर उस देश का वित्त मंत्री या केंद्रीय बैंक का प्रमुख होता  है। 
  • जबकि अधिकांश शक्तियां कार्यकारी बोर्ड को सौंपी गई हैं, बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के पास कोटा वृद्धि, विशेष आहरण अधिकार आवंटन और समझौते के अनुच्छेदों में संशोधन का अधिकार होता है।

मंत्रिस्तरीय समितियां

  • बोर्ड को सलाह देने वाली दो मंत्रिस्तरीय समितियाँ हैं: अंतर्राष्ट्रीय मौद्रिक और वित्तीय समिति (आईएमएफसी) और विकास समिति, दोनों ही पूर्ण सदस्यता का प्रतिनिधित्व करती हैं। 
  • आईएमएफसी वैश्विक आर्थिक चिंताओं पर ध्यान देती है, जबकि विकास समिति उभरते और विकासशील देशों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करती है।

कार्यकारी बोर्ड

  • 24 सदस्यीय कार्यकारी बोर्ड दैनिक कार्यों का संचालन करता है और सर्वसम्मति के आधार पर निर्णय लेता है, जो इस संगठन के सभी 190 सदस्य देशों के हितों और वैश्विक अर्थव्यवस्था की बदलती गतिशीलता को प्रतिबिंबित करता है।

आईएमएफ की अप्रभाविता या निष्क्रियता  :

  • वैश्विक खतरों और संकटों का प्रबंधन: कोविड के बाद बढ़ते कर्ज, जलवायु जोखिम और उभरते रोगजनकों के साथ आर्थिक भेद्यता बढ़ रही है। आईएमएफ से कमजोर देशों की सहायता करने में अग्रणी रहने की उम्मीद है, लेकिन इन बढ़ती मांगों को पूरा करने में संघर्ष करना पड़ रहा है।
  • बढ़ता संरक्षणवाद और व्यापार बाधाएं: राष्ट्रीय सुरक्षा के बहाने बढ़ता संरक्षणवाद, खुले वैश्विक व्यापार को बढ़ावा देने के आईएमएफ के मिशन को चुनौती देता है, क्योंकि देश स्थानीय बाजारों को प्राथमिकता देते हैं।
  • बढ़ता पलायन संकट: आर्थिक कठिनाइयों के कारण लोगों का पलायन बढ़ रहा है क्योंकि लोग बेहतर आजीविका की तलाश में हैं। हालाँकि आईएमएफ अर्थव्यवस्थाओं को स्थिर करने में मदद करने के लिए तैयार है, लेकिन इसकी सीमाएँ प्रवास के मूल कारणों को संबोधित करने की इसकी क्षमता को सीमित करती हैं।
  •  राजनीतिक दबावों के तहत ऋण वितरण में बाधा : संकटग्रस्त अर्थव्यवस्थाओं के लिए ऋणदाता के रूप में आईएमएफ की भूमिका राजनीतिक दबावों के कारण बाधित होती है, जिससे निष्पक्ष मार्गदर्शन और वैश्विक सहयोग प्रदान करने की इसकी क्षमता सीमित हो जाती है।

आईएमएफ प्रशासन के संरचनात्मक मुद्दे

  • राजनीतिक पूर्वाग्रह के ग्रसित शासन संरचना: 
    • आईएमएफ की निर्णय लेने की शक्ति जी-7 देशों के पास केंद्रित है, जो इसके कार्यकारी बोर्ड पर हावी हैं। 
    • यह व्यवस्था इन देशों को अपने सहयोगियों को अनुकूल दरों पर ऋण देने की अनुमति देती है, जबकि अक्सर उभरती अर्थव्यवस्थाओं के हितों की अनदेखी की जाती है। 
    • उदाहरण के लिए, 1994 में मैक्सिकन संकट के दौरान, अमेरिका ने मैक्सिको के बेलआउट में पर्याप्त योगदान दिया था, जो फंड के राजनीतिक पूर्वाग्रह को दर्शाता है।
  • अमेरिकी प्रभाव और तटस्थ मध्यस्थ से बदलाव:
    • कभी खुले बाजारों का समर्थक रहा अमेरिका अब अपनी शर्तों पर वैश्वीकरण का पक्षधर हो गया है, जिससे उसकी निष्पक्षता कम हो रही है और आईएमएफ की नीतियां प्रभावित हो रही हैं।
  • असमान मतदान शेयर:
    • अमेरिका के पास 16.5% मतदान शक्ति है, जिससे उसे वीटो का अधिकार प्राप्त है, जबकि भारत और चीन जैसी उभरती अर्थव्यवस्थाओं का प्रतिनिधित्व कम है। 
    • भारत की मतदान में भागीदारी या हिस्सा, अपने आर्थिक आकार के बावजूद ब्रिटेन और फ्रांस से कम है, तथा चीन की मतदान भागीदारी या हिस्सा जापान के बराबर है, यद्यपि चीन की अर्थव्यवस्था काफी बड़ी है।
  • चीन के मताधिकार को बढ़ाने की चुनौतियाँ:
    • आर्थिक वास्तविकताओं को प्रतिबिम्बित करने के लिए मतदान शेयरों का पुनर्वितरण जोखिमपूर्ण है। 
    • उदाहरण के लिए, चीन की मतदान शक्ति को दोगुना करने से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद जैसी स्थिति पैदा हो सकती है, जिससे जी-7-संबद्ध देशों को ऋण मिलने में बाधा उत्पन्न हो सकती है तथा राजनीतिकरण बढ़ सकता है। 

आईएमएफ की चुनौतियों से निपटने के लिए संरचनात्मक सुधार:

  • बोर्ड ऑफ गवर्नर्स के लिए परिचालन स्वायत्तता: आईएमएफ के बोर्ड ऑफ गवर्नर्स, जो सभी सदस्य देशों का प्रतिनिधित्व करता है, को परिचालन निर्णयों की देखरेख का कार्य सौंपा जाना चाहिए, जिसमें ऋण कार्यक्रम भी शामिल हों, अतः बेहतर परिणामों के लिए उन्हें जी-7-प्रभुत्व वाले कार्यकारी बोर्ड पर नहीं छोड़ना चाहिए। 
  • प्रशासनिक निकाय के रूप में कार्यकारी बोर्ड: कार्यकारी बोर्ड की भूमिका फंड के व्यापक परिचालन अधिदेश को निर्धारित करने, निष्पादन की देखरेख करने और प्रबंधन की नियुक्ति पर केंद्रित होनी चाहिए, न कि दिन-प्रतिदिन के निर्णयों पर। 

आगे की राह:

  • संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता पर बल देना  : एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है, जहां चीन जैसी उभरती और स्थापित शक्तियों द्वारा संगठन के लिए सुधारों पर सहयोग करना चाहिए। आपसी समझौते के बिना, सार्थक परिवर्तन की अपेक्षा नहीं की जा सकती है और आईएमएफ के अप्रभावी होने का जोखिम  बना रह सकता है।
  • एक समान नियमावली व अधिकार लागू करना : नियम सभी देशों पर समान रूप से लागू होने चाहिए, ताकि राजनीतिक रूप से प्रेरित अपवादों को रोका जा सके। सहयोगी अभी भी एक-दूसरे का समर्थन कर सकते हैं, लेकिन फंड की अखंडता को बनाए रखने के लिए उन्हें ऐसा आईएमएफ ढांचे के बाहर करना चाहिए।
  • ऋण देने में राजनीतिक लचीलापन: आईएमएफ के निदेशक वर्तमान वैश्विक आर्थिक आकलन के आधार पर ऋण देने के नियमों को संशोधित कर सकते हैं, जिससे निष्पक्षता से समझौता किए बिना स्थितिजन्य लचीलेपन की अनुमति मिल सकती है।

निष्कर्ष: 

अतः आईएमएफ प्रशासन में सुधार करना महत्वपूर्ण है ताकि यह आज की वैश्विक चुनौतियों का सामना करने में प्रासंगिक और प्रभावी बना रहे। पुरानी और उभरती हुई शक्तियों के बीच एक संतुलित और सहयोगी समझौता संस्था को आधुनिक बनाने के लिए सबसे बेहतर उपाय हो सकता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: आईएमएफ की निर्णय-निर्माण प्रक्रियाओं में उभरती अर्थव्यवस्थाओं के सामने आने वाली चुनौतियों पर चर्चा करें। आईएमएफ के भीतर उनके प्रतिनिधित्व और प्रभावशीलता को बढ़ाने के लिए प्रभावी उपाय सुझाइए ?

(15 अंक, 250 शब्द)

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