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एक मजबूत रक्षा औद्योगिक आधार (DIB) का महत्त्व

Lokesh Pal December 20, 2025 05:00 10 0

संदर्भ:

2047 तक विकसित राष्ट्र बनने का भारत का लक्ष्य न केवल सामाजिक और आर्थिक प्रगति पर, बल्कि मजबूत रणनीतिक क्षमताओं, विशेष रूप से एक सुदृढ़ रक्षा औद्योगिक आधार (Defence Industrial Base) पर निर्भर करता है।

रक्षा औद्योगिक आधार (DIB) की परिभाषा

DIB एक व्यापक पारिस्थितिकी तंत्र है, जिसमें देश की राष्ट्रीय सुरक्षा और सैन्य आवश्यकताओं को पूर्ण करने के लिए आवश्यक अनुसंधान (R&D), विनिर्माण, परीक्षण तथा एक मजबूत आपूर्ति शृंखला शामिल है।

संरचनात्मक कमजोरियाँ

  • प्रतिबंधात्मक नीतियाँ: दशकों तक प्रतिबंधात्मक नीतियों ने घरेलू निजी अभिकर्ताओं को बाहर रखा, जबकि भारत विदेशी निजी निर्माताओं से आयात पर व्यापक रूप से निर्भर रहा। इसने रणनीतिक और आर्थिक कमजोरियाँ पैदा कीं।

रक्षा क्षेत्र में प्रमुख सुधार और परिणाम

  • FDI उदारीकरण: ऑटोमैटिक रूट के माध्यम से 74% FDI की अनुमति।
  • निजी क्षेत्र का प्रवेश: निजी कंपनियों को मिसाइल और ड्रोन बनाने की अनुमति देना।
  • आयुध निर्माणी बोर्ड (OFB) का निगमीकरण: OFB विभाग को सात पेशेवर सार्वजनिक क्षेत्र के उपक्रमों (PSUs) में बदलना।
  • ‘निर्माण’ प्रक्रियाएँ: स्थानीय उत्पादन को बढ़ावा देने के लिए “नकारात्मक आयात सूची” का कार्यान्वयन।
  • परिणाम: रक्षा उत्पादन ₹1 लाख करोड़ को पार कर गया है। भारत अब फिलीपींस को ब्रह्मोस मिसाइल तथा अर्मेनिया को पिनाका सहित 80 से अधिक देशों को आयुध निर्यात कर रहा है।

रणनीतिक संदर्भ – रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता की आवश्यकता के कारण

  • वैश्विक संघर्षों का प्रभाव: यूरोप, पश्चिम एशिया और एशिया में विद्यमान संघर्षों ने अंतर्राष्ट्रीय शांति की संवेदनशीलता और आपूर्ति शृंखला में व्यवधान के जोखिमों को उजागर किया है।
  • घरेलू रक्षा क्षमता का महत्त्व: मजबूत घरेलू रक्षा उद्योगों वाले राष्ट्रों ने ऐसी स्थितियों में अधिक लचीलापन प्रदर्शित किया है।
  • भारत की सुरक्षा आवश्यकताएँ: भारत के लिए, जो अपनी सीमाओं और समुद्री क्षेत्र में निरंतर चुनौतियों का सामना करता है, रक्षा क्षेत्र में आत्मनिर्भरता अपरिहार्य है।

भारत के लिए उभरते भू-राजनीतिक अवसर:

  • यूरोप में रक्षा माँग: यूरोप द्वारा रक्षा व्यय पर नए सिरे से बल देने से नए अवसर उत्पन्न हो रहे हैं।
  • पारंपरिक आपूर्तिकर्ताओं की संतृप्ति: रूस और पश्चिमी राष्ट्रों जैसे पारंपरिक रक्षा आपूर्तिकर्ताओं की सीमाओं के कारण नए प्रवेशकों के लिए स्थान खुल रहा है।
  • लागत प्रभावी प्लेटफॉर्म की माँग: देश तेजी से लागत प्रभावी और विश्वसनीय रक्षा प्रणालियों की तलाश कर रहे हैं।
  • रणनीतिक भूगोल और कूटनीति: हिंद महासागर क्षेत्र में भारत की रणनीतिक स्थिति और इसकी विस्तारित कूटनीतिक छवि एक विश्वसनीय रक्षा आपूर्तिकर्ता के रूप में इसकी क्षमता को मजबूत करती है।

विद्यमान चुनौतियाँ

  • विनियामक जटिलताएँ: लालफीताशाही और जटिल नियम अभी भी निजी क्षेत्र की भागीदारी, विशेष रूप से MSMEs और स्टार्टअप्स के लिए बाधा बने हुए हैं।
  • अनुमोदन में देरी: निर्यात लाइसेंसिंग, संयुक्त उद्यम और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण (ToT) के अनुमोदन के लिए तीव्र प्रसंस्करण की आवश्यकता है।

आगे की राह

  • विनियामक प्रक्रियाओं का सरलीकरण: रक्षा विनिर्माण प्रक्रियाओं को सुव्यवस्थित किए जाने के साथ नीतिगत निरंतरता सुनिश्चित होनी चाहिए।
  • DRDO की भूमिका को पुनर्परिभाषित करना: DRDO को केवल अग्रणी अनुसंधान पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए, जबकि उत्पादन और व्यावसायीकरण को निजी तथा सार्वजनिक उद्योगों में स्थानांतरित किया जाना चाहिए।
  • निर्यात सुविधा एजेंसी का निर्माण: वैश्विक भागीदारों के लिए ‘सिंगल-विंडो इंटरफेस’ के रूप में एक समर्पित रक्षा निर्यात सुविधा एजेंसी स्थापित करें।
  • वित्तीय ढाँचे में सुधार: रक्षा निर्यात से जुड़ी ‘लाइन ऑफ क्रेडिट’ के लिए आक्रामक दृष्टिकोण अपनाएँ और हथियारों की बिक्री के लिए ‘सरकार-से-सरकार’ (G2G) समझौतों को मजबूत करें।
  • परीक्षण सुविधाओं का विस्तार: रक्षा उत्पादों के परीक्षण में देरी को कम करने के लिए एकीकृत परीक्षण सुविधाओं का विस्तार किया जाना चाहिए।

निष्कर्ष

राजनयिक संबंधों का विस्तार और दीर्घकालिक प्रभाव को बढ़ाकर, रक्षा निर्यात स्वदेशी आर्थिक तथा सैन्य शक्ति को वास्तविक संप्रभुता में बदल देता है| यह कौटिल्य के इस विचार को प्रतिध्वनित करता है, कि स्थायी शक्ति आत्मनिर्भरता से प्रवाहित होती है, उधार ली गई क्षमता से नहीं।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न

प्रश्न. “2047 तक एक विकसित राष्ट्र बनने की भारत की आकांक्षा इसके रक्षा औद्योगिक आधार की शक्ति से गहराई से जुड़ी हुई है।” भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा और आर्थिक विकास के लिए एक मजबूत रक्षा औद्योगिक आधार के महत्त्व पर चर्चा कीजिए, और रक्षा निर्यात बढ़ाने के उपाय सुझाइए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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