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समय रहते कार्रवाई: न्यायपालिका और पर्यावरण मंत्रालय की अधिसूचना

Lokesh Pal May 21, 2025 05:30 6 0

संदर्भ:

सर्वोच्च न्यायालय ने हाल ही में केंद्रीय पर्यावरण मंत्रालय की दो अधिसूचनाओं को अवैध घोषित कर दिया है, जिसके तहत उद्योगों को पूर्व पर्यावरणीय मंज़ूरी को दरकिनार करने की अनुमति दी गई थी। यह निर्णय 2006 के पर्यावरण प्रभाव आकलन अधिसूचना के तहत पूर्व अनुमोदन के आवश्यक सिद्धांत को पुष्ट करता है।

पृष्ठभूमि: अधिसूचनाओं के पीछे दोषपूर्ण तर्क:

  • 2017 पूर्वव्यापी विंडो: पर्यावरणीय मंज़ूरी की कमी वाले उद्योगों को पूर्वव्यापी रूप से आवेदन करने के लिए एक “एकमुश्त” छह महीने की विंडो प्रदान की गई थी।
  • 2021 नियमितीकरण प्रक्रिया: एक मानक संचालन प्रक्रिया ने कानूनों का उल्लंघन करने वाली परियोजनाओं को भारी जुर्माना देकर नियमितीकरण के लिए आवेदन करने की अनुमति दी।
  • संसदीय प्रक्रिया को दरकिनार करना: दोनों उपाय पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के संसदीय संशोधन को दरकिनार करते हुए कार्यकारी आदेशों के माध्यम से जारी किए गए।

अधिसूचनाओं के लिए केंद्र का औचित्य:

  • 2012-2013 UPA पहल: UPA सरकार ने नियमितीकरण प्रक्रिया शुरू की लेकिन प्रक्रियात्मक आधार पर अदालतों ने इसे खारिज कर दिया।
  • आर्थिक और पर्यावरणीय जोखिम: कार्यरत संयंत्रों को ध्वस्त करने से अर्थव्यवस्था और रोजगार को नुकसान हो सकता है तथा प्रदूषण की स्थिति और भी खराब हो सकती है
  • न्यायालयों का संतुलित दृष्टिकोण: न्यायालयों ने पहले भी तांबा खदानों और दवा कंपनियों जैसे उद्योगों से जुड़े विवादों में “संतुलितदृष्टिकोण का समर्थन किया था
  • उल्लंघन जुर्माना प्रणाली: इस प्रणाली में कार्य अवधि के दौरान उल्लंघन के लिए जुर्माना शामिल था।

सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय और निहितार्थ:

  • पूर्व मंजूरी का सिद्धांत: न्यायालय ने पूर्वपर्यावरणीय मंजूरी के सिद्धांत की पुष्टि की
  • विनियमित कंपनियों पर प्रभाव: 2017 और 2021 के आदेशों के तहत विनियमित की गई कंपनियां इस फैसले से अप्रभावित रहेंगी।
  • प्रवर्तन विफलताएं: कानूनों का उल्लंघन करने वाली औद्योगिक इकाइयों का व्यापक अस्तित्व, प्रवर्तन में क्षेत्रीय पर्यावरण बोर्डों की विफलताओं को उजागर करता है।
  • जुर्माना-आधारित प्रणाली की अप्रभावीता: दोषपूर्ण प्रक्रियाओं के तहत उल्लंघनकर्ताओं को जुर्माना भरने की अनुमति देना, अप्रभावी होगा।
  • निर्णय का उद्देश्य: इस निर्णय का उद्देश्य भविष्य में सरकारों द्वारा आर्थिक बहाने के तहत उल्लंघनों को अनदेखा करने के प्रयासों को रोकना है।
  • प्रवर्तन की आवश्यकता: इसमें जमीनी स्तर पर प्रभावी प्रवर्तन की तत्काल आवश्यकता पर बल दिया गया है।

निष्कर्ष:

यह फैसला आर्थिक लाभ के लिए पर्यावरण उल्लंघनों को अनदेखा करने के खिलाफ एक कड़ा संदेश देता है। यह संधारणीय औद्योगिक विकास सुनिश्चित करने और पारिस्थितिकी संतुलन की रक्षा के लिए पर्यावरण कानूनों के सख्त क्रियान्वयन की तत्काल आवश्यकता को रेखांकित करता है।

मुख्य परीक्षा हेतु अभ्यास प्रश्न:

प्रश्न: भारत में पर्यावरण शासन के लिए ‘पूर्व पर्यावरणीय मंजूरी’ का सिद्धांत केंद्रीय है। हाल ही में सर्वोच्च न्यायालय के निर्णयों के संदर्भ में, कार्यकारी अधिसूचनाओं के माध्यम से इस सिद्धांत को दरकिनार करने के निहितार्थों का आलोचनात्मक परीक्षण कीजिए।

(15 अंक, 250 शब्द)

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