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Dec 03 2024

संदर्भ

मध्य प्रदेश में रातापानी वन्यजीव अभयारण्य को आधिकारिक तौर पर टाइगर रिजर्व के रूप में अधिसूचित किया गया है और NTCA ने हाल ही में माधव राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व घोषित करने के लिए सैद्धांतिक मंजूरी दे दी है।

 रातापानी वन्यजीव अभयारण्य (Ratapani Tiger Reserve)

  • अवस्थिति: मध्य प्रदेश के रायसेन और सीहोर जिलों में फैला हुआ है।
    • यह राज्य के बाघ आवास का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा है और सतपुड़ा पर्वतमाला से बाघों के लिए प्रवास गलियारे के रूप में कार्य करता है।
  • बाघों की आबादी: यह लगभग 90 बाघों का घर है।
  • रिजर्व में खतरा: आवास अतिक्रमण और मानव-वन्यजीव संघर्ष की चुनौतियाँ।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष
      • आवास क्षरण और अपर्याप्त शिकार के कारण बाघ अक्सर मानव बस्तियों में भटक जाते हैं। 
      • ग्रामीणों द्वारा बाघों के हमलों और प्रतिशोध में उनकी हत्या की रिपोर्टों ने इस मुद्दे की गंभीरता को उजागर किया।
    • आवास क्षरण
      • बफर जोन में अतिक्रमण और बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं की मंजूरी ने पारिस्थितिकी तंत्र के लिए खतरा पैदा कर दिया। 
      • कोयला आधारित ताप विद्युत संयंत्रों और रेलवे लाइनों जैसी परियोजनाओं को बाघों के आवासों पर उनके प्रभाव का आकलन किए बिना मंजूरी दे दी गई।

बाघ संरक्षण के लिए प्रासंगिक विधियाँ और प्रावधान

  • वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972: यह भारत में वन्यजीव संरक्षण को नियंत्रित करने वाला प्राथमिक कानून है, जिसमें बाघ संरक्षण भी शामिल है। 
  • वन्यजीव (संरक्षण) संशोधन अधिनियम, 2006: इस संशोधन ने बाघ संरक्षण के प्रावधानों को मजबूत किया और NTCA का गठन किया। 
  • राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) नियम, 2009: ये नियम बाघ अभयारण्यों के प्रबंधन के लिए प्रक्रियाओं और दिशा-निर्देशों को रेखांकित करते हैं।

  • महत्त्व: यह अब मध्य प्रदेश का आठवाँ बाघ अभयारण्य है, जिससे राज्य की “भारत के बाघ राज्य” के रूप में प्रतिष्ठा और मजबूत हो गई है।

बाघ अभयारण्य को मान्यता देने की प्रक्रिया

  • संभावित क्षेत्रों की पहचान
    • पारिस्थितिकी मूल्यांकन: बाघों के लिए उपयुक्त आवास, शिकार आधार और जल स्रोतों वाले क्षेत्रों की पहचान करना।
    • वन्यजीव सर्वेक्षण: बाघों की आबादी और उनके वितरण का आकलन करने के लिए नियमित वन्यजीव सर्वेक्षण आयोजित करना।
    • मानव-वन्यजीव संघर्ष मूल्यांकन: मनुष्यों और वन्यजीवों के बीच संघर्ष की संभावना का मूल्यांकन करना।
  • प्रस्ताव प्रस्तुत करना
    • राज्य वन विभाग: राज्य वन विभाग, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (NTCA) को एक प्रस्ताव प्रस्तुत करता है।
    • प्रस्ताव विवरण: प्रस्ताव में प्रस्तावित क्षेत्र, कोर और बफर जोन, प्रबंधन योजना और मानव-वन्यजीव संघर्ष के लिए शमन उपायों जैसे विवरण शामिल होने चाहिए।
  • NTCA स्वीकृति
    • तकनीकी जाँच: NTCA की तकनीकी समिति प्रस्ताव की व्यवहार्यता और वन्यजीव संरक्षण अधिनियम, 1972 तथा अन्य प्रासंगिक विनियमों के अनुपालन का आकलन करने के लिए इसकी समीक्षा करती है। 
    • सैद्धांतिक स्वीकृति: यदि प्रस्ताव उपयुक्त पाया जाता है, तो एनटीसीए सैद्धांतिक स्वीकृति प्रदान करता है।
  • अधिसूचना
    • राज्य सरकार की अधिसूचना: राज्य सरकार एक औपचारिक अधिसूचना जारी करके क्षेत्र को बाघ अभयारण्य घोषित करती है। 
    • राजपत्र अधिसूचना: अधिसूचना को कानूनी प्रभाव देने के लिए आधिकारिक राजपत्र में प्रकाशित किया जाता है।

रातापानी मामले में सामने आई चुनौतियाँ

  • नौकरशाही देरी: राज्य सरकार की नौकरशाही बाधाओं और तत्परता की कमी ने अधिसूचना प्रक्रिया में बाधा उत्पन्न की। 
  • निहित स्वार्थ: क्षेत्र में खनन गतिविधियों और अन्य मानवीय दबावों ने बाघों के आवास के लिए खतरा पैदा किया।
  •  मानव-वन्यजीव संघर्ष: बढ़ते मानव-वन्यजीव संघर्ष को कम करने के लिए प्रभावी उपाय आवश्यक थे। 
  • पर्याप्त शिकार आधार की कमी: बाघों के लिए पर्याप्त शिकार आधार सुनिश्चित करना इस रिजर्व की दीर्घकालिक व्यवहार्यता के लिए महत्त्वपूर्ण था। 
  • जनहित याचिका (PIL) की भूमिका: देरी के खिलाफ दायर जनहित याचिका ने अधिसूचना प्रक्रिया को तेज करने में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई।
    • उच्च न्यायालय के हस्तक्षेप से मामले की गंभीरता उजागर हुई तथा राज्य सरकार पर कार्रवाई करने का दबाव पड़ा।

भविष्य के संरक्षण प्रयास

  • सीमा निर्धारण: आगे अतिक्रमण को रोकने के लिए कोर और बफर जोन को स्पष्ट रूप से परिभाषित करना।
  • शिकार-रोधी उपाय: शिकार-रोधी गश्त को मजबूत करना और रिजर्व में निगरानी बढ़ाना।
  • सामुदायिक सहभागिता: वन्यजीव-अनुकूल प्रथाओं को अपनाने के लिए स्थानीय समुदायों के साथ सहयोग करना।
    • वन संसाधनों पर निर्भरता कम करने के लिए वैकल्पिक आजीविका की पेशकश करना।
  • शिकार आधार बहाली: बाघों के लिए एक स्थायी शिकार आधार बनाने के लिए शाकाहारी जानवरों को फिर से लाना और वनस्पति की रक्षा करना।

माधव राष्ट्रीय उद्यान

  • अवस्थिति और भूगोल: मध्य प्रदेश के शिवपुरी जिले में स्थित, यह उद्यान लगभग 1,751 वर्ग किलोमीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसमें शामिल हैं:
  • वनस्पतियाँ: पार्क में शुष्क पर्णपाती वन हैं, जिनमें सागौन, साल और मिश्रित वनस्पतियाँ प्रमुख हैं।
  • जीव: उल्लेखनीय वन्यजीवों में शामिल हैं:
    • स्तनधारी: बाघ, तेंदुआ, साँभर, चीतल, नीलगाय, चिंकारा और भालू। 
    • पक्षी: 200 से अधिक पक्षी प्रजातियाँ, जिनमें सर्दियों के दौरान प्रवासी प्रजातियाँ भी शामिल हैं।
  • संरक्षण: सफल बाघ प्रजनन कार्यक्रम, जिसके परिणामस्वरूप सितंबर 2024 में बाघ शावकों का जन्म हुआ, जो बाघ बहाली में महत्त्वपूर्ण प्रगति को दर्शाता है। 
  • बाघ पुनर्स्थापना कार्यक्रम: वर्ष 1990 में बाघों को फिर से लाया गया, जिसमें हाल ही में शावकों के जन्म से उल्लेखनीय प्रगति हुई, जो एक समृद्ध पर्यावरण का संकेत है। 
    • कार्यक्रम के दूसरे चरण का उद्देश्य बांधवगढ़, कान्हा और संजय-दुबरी राष्ट्रीय उद्यानों से अतिरिक्त बाघों को लाना है। 
  • दीर्घकालिक विस्तार योजनाएँ: पार्क को पाँच वर्षों में 1,600 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में विकसित करने की योजना है, जिसमें आवास कनेक्टिविटी और शिकार बहाली पर ध्यान केंद्रित किया जाएगा।

संदर्भ

उत्तर प्रदेश के 20 से अधिक जिलों के किसान भूमि अधिग्रहण और कृषि सुधारों से संबंधित मुद्दों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं।

विरोध प्रदर्शन की मुख्य बातें

  • विरोध प्रदर्शन का नेतृत्व भारतीय किसान परिषद (BKP) ने किसान मजदूर मोर्चा (KMM) और संयुक्त किसान मोर्चा (SKM) सहित अन्य किसान समूहों के साथ समन्वय में किया।
  • मुख्य माँगें
    • न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) के लिए कानूनी गारंटी।
    • अपनी जमीन खोने वाले किसानों को 10% विकसित भूखंडों का आवंटन।
    • भूमि अधिग्रहण के लिए मुआवजा (64.7%) बढ़ाया गया, खासकर उन लोगों के लिए जिन्हें अभी तक यह नहीं मिला है।
    • वर्ष 2013 में पारित भूमि अधिग्रहण अधिनियम का कार्यान्वयन।
  • पुलिस द्वारा उपाय: तीन-स्तरीय सुरक्षा व्यवस्था में पानी की बौछारें, दंगा-रोधी उपकरण और निगरानी के लिए ड्रोन शामिल थे। 
    • स्थिति को सँभालने के लिए यातायात सलाह और डायवर्जन जारी किए गए थे।
  • प्रशासनिक प्रतिक्रिया: अधिकारियों ने किसानों के साथ वार्ता जारी रखी और उनकी माँगों पर कार्रवाई का आश्वासन दिया। 
    • दिल्ली पुलिस ने यातायात विभाग के साथ समन्वय किया और शहर की सीमाओं पर एहतियाती उपाय लागू किए। 
  • विरोध प्रदर्शन की स्थिति: किसानों ने अपने मुद्दों के समाधान होने तक नोएडा में दलित प्रेरणा स्थल पर रुकने का निर्णय लिया।

न्यूनतम समर्थन मूल्य

  • MSP की परिभाषा: न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) भारत सरकार द्वारा स्थापित एक बाजार हस्तक्षेप तंत्र है, जो विशेष रूप से बम्पर उत्पादन के वर्षों के दौरान फसल की कीमतों में तीव्र गिरावट के विरुद्ध कृषि उत्पादकों की रक्षा के लिए है। 
  • कानूनी स्थिति: MSP को कानून में वैधानिक समर्थन नहीं है, जिसका अर्थ है कि यह कानूनी रूप से बाध्यकारी नहीं है। 
  • घोषणा प्राधिकरण: MSP की घोषणा आर्थिक मामलों की कैबिनेट समिति (CCEA) द्वारा की जाती है, जिसकी अध्यक्षता भारत के प्रधानमंत्री करते हैं।
    • यह घोषणा कृषि लागत एवं मूल्य आयोग (CACP) द्वारा की गई सिफारिशों पर आधारित होती है।
  • घोषणा का समय: MSP की घोषणा बुवाई के मौसम की शुरुआत में की जाती है ताकि किसानों को अपने फसल पैटर्न की योजना बनाने में मदद मिल सके। 
  • MSP के अंतर्गत आने वाली फसलें
    • कुल फसलें: 22 फसलों के लिए MSP की सिफारिश की गई है, साथ ही गन्ने के लिए उचित और लाभकारी मूल्य (FRP) की भी सिफारिश की गई है।
      • यह ध्यान रखना महत्त्वपूर्ण है कि गन्ने के लिए FRP का निर्धारण खाद्य एवं सार्वजनिक वितरण विभाग द्वारा किया जाता है।
    • खरीफ फसलें (14): धान, बाजरा, ज्वार, मक्का, अरहर, रागी, मूंग, छिलका रहित मूंगफली, उड़द, सोयाबीन, नाइजर बीज, सूरजमुखी, तिल और कपास। 
    • रबी फसलें (6): जौ, गेहूँ, चना, रेपसीड/सरसों के बीज, मसूर (मसूर), और कुसुम।
    • अन्य वाणिज्यिक फसलें (2): खोपरा और जूट।
  • अतिरिक्त MSP निर्धारण
    • तोरिया के लिए MSP रेपसीड और सरसों के MSP पर आधारित है। 
    • छिलका रहित नारियल के लिए MSP खोपरा के MSP पर आधारित है।

कानूनी अधिकार के रूप में MSP के पक्ष और विपक्ष में तर्क

पक्ष

विपक्ष

किसानों के लिए आय सुरक्षा: उनकी उपज के लिए न्यूनतम मूल्य की गारंटी देता है, जिससे आय में अस्थिरता कम होती है। राजकोषीय बोझ: खरीद और भंडारण पर सरकारी व्यय में वृद्धि।
उत्पादन को प्रोत्साहित करता है: किसानों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रोत्साहन प्रदान करता है, जिससे कृषि उत्पादन बढ़ता है। बाजार विकृतियाँ: अधिक उत्पादन और बाजार असंतुलन को जन्म दे सकती हैं, जो संभावित रूप से कीमतों को प्रभावित कर सकती हैं।
खाद्य सुरक्षा: पर्याप्त खाद्य उत्पादन और उपलब्धता सुनिश्चित करता है, जिससे राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा में योगदान मिलता है। अकुशल संसाधन आवंटन: कम लाभदायक फसलों की खेती को प्रोत्साहित कर सकता है, जिससे संसाधनों का अकुशल उपयोग हो सकता है।
सामाजिक समानता: ग्रामीण आजीविका का समर्थन करता है और कृषि समुदायों में गरीबी को कम करता है। भ्रष्टाचार और अकुशलता: खरीद और वितरण प्रक्रियाओं में भ्रष्टाचार और अकुशलता की संभावना।
राजनीतिक लाभ: किसानों को उनके हितों की वकालत करने के लिए राजनीतिक सौदेबाजी की शक्ति प्रदान करता है। पर्यावरणीय प्रभाव: असंवहनीय कृषि पद्धतियों को जन्म दे सकता है, जैसे अत्यधिक जल उपयोग और रासायनिक उर्वरक।

MSP को कानूनी अधिकार मानने के खिलाफ सरकार के तर्क

  • WTO द्वारा निर्धारित सीमाएँ:  MSP और विश्व व्यापार संगठन के नियमों के साथ इसके संभावित टकराव के संबंध में प्राथमिक चिंताओं में से एक ‘न्यूनतम नियम’ है।
    • यह नियम घरेलू समर्थन के स्तर पर एक सीमा निर्धारित करता है, जिसे देश व्यापार विवादों को जन्म दिए बिना अपने कृषि क्षेत्रों को प्रदान कर सकते हैं। 
    • भारत का MSP कार्यक्रम, विशेष रूप से जब सख्ती से लागू किया जाता है, तो संभावित रूप से इस न्यूनतम सीमा को पार कर सकता है। यह अन्य डब्ल्यूटीओ सदस्य देशों, विशेष रूप से उन देशों से चुनौतियों को आमंत्रित कर सकता है, जो प्रमुख कृषि निर्यातक हैं। 
    • निर्यात प्रतिबंध: घरेलू बाजारों की रक्षा करने और MSP को प्रभावी बनाने के लिए, भारत कुछ कृषि वस्तुओं पर निर्यात प्रतिबंध लगा सकता है। हालाँकि, ऐसे उपायों को WTO में चुनौती दी जा सकती है क्योंकि वे वैश्विक व्यापार को बाधित कर सकते हैं। 
    • भारत का रुख: भारत ने लगातार तर्क दिया है कि MSP सहित इसकी कृषि नीतियाँ खाद्य सुरक्षा और ग्रामीण विकास के लिए आवश्यक हैं। 
      • इसका तर्क है कि ये नीतियाँ अपने कमजोर कृषक समुदाय की रक्षा करने और स्थिर खाद्य आपूर्ति बनाए रखने के लिए आवश्यक हैं। 
  • मौजूदा नीतियाँ: सरकार का तर्क है कि MSP और खरीद संचालन जैसी मौजूदा नीतियाँ पहले से ही किसानों को पर्याप्त समर्थन प्रदान करती हैं।

भूमि अधिग्रहण अधिनियम

  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन हेतु उचित मुआवजा और पारदर्शिता का अधिकार अधिनियम, 2013 ने पुराने भूमि अधिग्रहण अधिनियम 1894 का स्थान ले लिया। 
  • भूमि अधिग्रहण, पुनर्वास और पुनर्स्थापन अधिनियम, 2013 द्वारा लाए गए प्रमुख परिवर्तन
    • पुराने अधिनियम के विपरीत, नया अधिनियम भूमि अधिग्रहण के कारण विस्थापित लोगों के पुनर्वास और पुनर्स्थापन का प्रावधान करेगा।
    • सहमति: पहले पूर्व सहमति की कोई आवश्यकता नहीं थी। नए अधिनियम में निजी परियोजनाओं के लिए 80% भूमि मालिकों की सहमति और सार्वजनिक-निजी भागीदारी परियोजनाओं के लिए 70% भूमि मालिकों की सहमति प्राप्त करना आवश्यक है।
    • मुआवजा मूल्य में वृद्धि: ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में भूमि अधिग्रहण के लिए बाजार दर का क्रमशः 4 और 2 गुना अधिक मुआवजा।
    • सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA): पहले के अधिनियम में समाज के विभिन्न वर्गों पर भूमि अधिग्रहण के प्रभाव को ध्यान में नहीं रखा गया था।
      • भूमि अधिग्रहण से पहले सामाजिक प्रभाव आकलन (SIA) शुरू करके इस मुद्दे को संबोधित किया गया है।
    • कृषि भूमि पर प्रतिबंध: सिंचित बहु-फसल भूमि के भूमि अधिग्रहण पर प्रतिबंध है। यह संकुचित कृषि भूमि के मुद्दे को संबोधित करता है।
    • आदिवासी समुदायों के लिए विशेष सुरक्षा उपायों से आदिवासी विस्थापन के मुद्दे को हल करने की उम्मीद है।

ब्रेन रोट (Brain Rot)

हाल ही में ‘ब्रेन रोट’ (Brain Rot) नामक एक शब्द को अब आधिकारिक तौर पर वर्ष 2024 के लिए ‘ऑक्सफोर्ड वर्ड ऑफ द ईयर’ के रूप में मान्यता दी गई है।

ब्रेन रोट (Brain Rot) क्या है?

  • यह तुच्छ या चुनौतीपूर्ण ऑनलाइन सामग्री के अत्यधिक उपभोग के कारण होने वाली मानसिक या बौद्धिक क्षमताओं में गिरावट को संदर्भित करता है।
  • उत्पत्ति: इस शब्द का प्रयोग पहली बार वर्ष 1854 में ‘हेनरी डेविड थोरो’ (Henry David Thoreau) द्वारा किया गया था।
  • आधुनिक उपयोग: सोशल मीडिया एवं ऑनलाइन संस्कृति के नकारात्मक प्रभाव का वर्णन करने के लिए इसने हाल के वर्षों में, विशेष रूप से युवा पीढ़ियों के बीच लोकप्रियता हासिल की है।
  • मानसिक स्वास्थ्य पर प्रभाव: इसने मानसिक स्वास्थ्य पर अत्यधिक सोशल मीडिया के उपयोग के संभावित नुकसान के बारे में चर्चा शुरू कर दी है।
  • महत्त्व
    • डिजिटल युग की घटना: यह भाषा एवं समाज पर डिजिटल संस्कृति के प्रभाव पर प्रकाश डालती है।
    • आत्म-जागरूकता: युवा पीढ़ी सोशल मीडिया के संभावित नकारात्मक पहलुओं को प्रतिबिंबित करने के लिए इस शब्द का उपयोग कर रही है।
    • सांस्कृतिक वार्तालाप: यह प्रौद्योगिकी, मानसिक स्वास्थ्य एवं ऑनलाइन संस्कृति के भविष्य के बारे में चल रही चर्चाओं में योगदान देता है।

सिंबैक्स अभ्यास

(CINBAX EXERCISE)

हाल ही में भारतीय सेना एवं कंबोडियन सेना के बीच एक संयुक्त टेबल-टॉप अभ्यास, अभ्यास सिंबैक्स (CINBAX) का पहला संस्करण आयोजित किया गया था। 

अभ्यास सिंबैक्स (CINBAX) के बारे में

  • स्थान: विदेशी प्रशिक्षण नोड, पुणे, भारत में आयोजित किया गया।
  • उद्देश्य: आतंकवाद-रोधी (Counter-Terrorism- CT) अभियानों की योजना बनाना एवं उनका अनुकरण करना। 
  • फोकस क्षेत्र
    • खुफिया, निगरानी एवं टोही के लिए एक संयुक्त प्रशिक्षण कार्य बल की स्थापना।
    • आतंकवाद-रोधी अभियानों के संचालन की योजना बनाना एवं आकस्मिकताओं पर चर्चा करना।

रामप्पा मंदिर (Ramappa Temple)

हाल ही में केंद्र सरकार ने रामप्पा क्षेत्र सतत् पर्यटन सर्किट को विकसित करने के लिए पूँजी निवेश के लिए राज्यों/केंद्र शासित प्रदेशों को विशेष सहायता (Special Assistance to States/Union Territories for Capital Investment- SASCI) योजना के तहत ऋण को मंजूरी दी है।

रामप्पा मंदिर के बारे में

  • रामप्पा मंदिर, जिसे रुद्रेश्वर मंदिर के नाम से भी जाना जाता है, भारत के तेलंगाना में अवस्थित है।
  • यह भगवान शिव को समर्पित है एवं इसका निर्माण 1213 ईसवी में काकतीय शासक काकती गणपति देव (Kakati Ganapathi Deva) के शासनकाल के दौरान किया गया था।
    • इसका निर्माण मुख्य सेनापति रूद्र समानी (Rudra Samani) की देखरेख में हुआ था।
  • इस मंदिर का नाम इसके मुख्य मूर्तिकार रामप्पा के नाम पर रखा गया है, जो इसे अद्वितीय बनाता है क्योंकि यह संभवतः भारत का एकमात्र मंदिर है, जिसका नाम इसके वास्तुकार के नाम पर रखा गया है।
  • यूनेस्को (UNESCO) के तहत मान्यता: वर्ष 2021 में, रामप्पा मंदिर को काकतीय रुद्रेश्वर (रामप्पा) मंदिर, तेलंगाना के नाम से यूनेस्को (UNESCO) विश्व धरोहर स्थल के रूप में दर्ज  किया गया था।

प्रमुख वास्तुशिल्प विशेषताएँ

  • यह काकतीय स्थापत्य शैली का एक प्रमुख उदाहरण है।
  • इस मंदिर की सबसे विशिष्ट विशेषताओं में से एक इसकी भूकंपरोधी वास्तुकला है। 
    • गोपुरम (मंदिर टॉवर) के निर्माण के लिए उपयोग की जाने वाली ईंटें मिट्टी, बबूल की लकड़ी, भूसी एवं हरड़ के फल के मिश्रण से बनाई गई हैं। 
    • ये ईंटें हल्की हैं एवं जल पर तैर सकती हैं, जिससे मंदिर भूकंपीय गतिविधि के प्रति लचीला हो जाता है।
  • इस मंदिर के निर्माण में सैंडबॉक्स तकनीक का उपयोग किया गया।
    • इस तकनीक में नींव के गड्ढे को रेत-चूना, गुड़ एवं काली हरड़ के मिश्रण से भर दिया जाता था। 
    • यह मिश्रण भूकंप के दौरान एक कुशन के रूप में कार्य करता है, जिससे संरचनात्मक क्षति को रोका जा सकता है।
  • इस मंदिर में कई जटिल नक्काशीदार खंभे हैं, जो इस तरह से अवस्थित हैं कि वे सूर्य की प्रकाश  के साथ संरेखित होते हैं। 
    • इनमें से एक स्तंभ पर भगवान कृष्ण की नक्काशी है एवं जब इस स्तंभ पर धीरे से चोट की जाती है तो इससे संगीतमय स्वर उत्पन्न होता है।
  • सांस्कृतिक एवं धार्मिक महत्त्व: रामप्पा मंदिर मुख्य रूप से भगवान शिव को समर्पित है एवं स्थानीय रूप से इसे श्री रुद्रेश्वर स्वामी मंदिर के रूप में जाना जाता है।
    • मंदिर त्रिकुटलायम (तीन देवताओं) संरचना का अनुसरण करता है, क्योंकि इसमें भगवान शिव, भगवान विष्णु एवं भगवान सूर्य की मूर्तियाँ हैं।

एक्सिओम मिशन 4 (Ax-4)

हाल ही में भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) ने कहा कि जिन भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों को अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (International Space Station- ISS) के आगामी एक्सिओम-4 मिशन के लिए चुना गया है, उन्होंने प्रशिक्षण का प्रारंभिक चरण पूरा कर लिया है।

एक्सिओम-4 मिशन (Ax-4) के बारे में 

  • एक्सिओम-4 मिशन (Ax-4) अंतरराष्ट्रीय अंतरिक्ष स्टेशन (ISS) के लिए एक निजी अंतरिक्ष उड़ान है, जो भारत एवं संयुक्त राज्य अमेरिका के बीच अंतरिक्ष सहयोग में एक महत्त्वपूर्ण कदम है। 
    • यह एक्सिओम मिशन 1, एक्सिओम मिशन 2 एवं एक्सिओम मिशन 3 के बाद एक्सिओम स्पेस की चौथी उड़ान होगी।
  • यह मिशन नासा (NASA) के सहयोग से निजी तौर पर वित्तपोषित अमेरिकी अंतरिक्ष अवसंरचना डेवलपर एक्सिओम स्पेस द्वारा संचालित है। 
  • मिशन के उद्देश्य: लो अर्थ ऑर्बिट (Low Earth Orbit- LEO) में एक स्थायी मानव उपस्थिति स्थापित करना तथा 14 दिनों के लिए ISS के साथ जुड़ना।
  • अंतरिक्ष यान: मिशन स्पेसएक्स क्रू ड्रैगन अंतरिक्ष यान का उपयोग करेगा। 
  • भारतीय अंतरिक्ष यात्री: दो भारतीय अंतरिक्ष यात्रियों, ग्रुप कैप्टन शुभांशु शुक्ला एवं ग्रुप कैप्टन प्रशांत बालाकृष्णन नायर को मिशन के लिए चुना गया था। 
    • उन्होंने अगस्त 2024 में अमेरिका में प्रशिक्षण शुरू किया। शुभांशु शुक्ला अंतरिक्ष की यात्रा करने वाले दूसरे भारतीय होंगे।

अजमेर शरीफ, ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती एवं शाही जामा मस्जिद

हाल ही में अजमेर में ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती की दरगाह के सर्वेक्षण का अनुरोध करते हुए न्यायालयों में याचिकाएँ दायर की गई हैं, इस दावे के आधार पर कि इसका निर्माण हिंदू एवं जैन मंदिरों को ध्वस्त करके किया गया था।

  • इसी तरह की याचिकाएँ उत्तर प्रदेश के संभल में शाही जामा मस्जिद के संबंध में भी दायर की गई हैं, जिसमें आरोप लगाया गया है कि इसे प्राचीन हरि हर मंदिर की जगह पर बनाया गया था।

अजमेर शरीफ के बारे में 

  • सबसे पवित्र तीर्थस्थल: अजमेर शरीफ दरगाह भारत के सबसे पवित्र मुस्लिम तीर्थस्थलों में से एक है, जो राजस्थान के अजमेर में अवस्थित है। 
    • यह फारस के सूफी संत ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती (Khwaja Moin-ud-din Chishti) को समर्पित है।
  • निर्माण: इस दरगाह का निर्माण मुगल सम्राट हुमायूँ ने ख्वाजा चिश्ती के निधन के बाद उनके सम्मान में कराया था।
  • योगदान
    • बुलंद दरवाजा निर्माण (1460 ई.): सुल्तान महमूद खान खिलजी एवं उनके बेटे गियासुद्दीन ने दरगाह के विशाल उत्तरी प्रवेश द्वार बुलंद दरवाजा का निर्माण कराया।
    • सफेद संगमरमर का गुंबद (1532 ईसवी): अजमेर दरगाह का वर्तमान सफेद संगमरमर का गुंबद मुगल सम्राट हुमायूँ के शासनकाल के दौरान 1532 ईसवी में बनाया गया था।
    • अकबर के अधीन विस्तार: दरगाह का प्रमुख विस्तार सम्राट अकबर के शासनकाल के दौरान हुआ। 
      • चिश्ती संप्रदाय के कट्टर अनुयायी अकबर ने 1579 ईसवी तक 14 बार दरगाह का दौरा किया।
      • 1570 के दशक की शुरुआत में, अकबर ने मंदिर के दक्षिणी प्रवेश द्वार के पश्चिम में अकबरी मस्जिद का निर्माण करवाया था।
    • जहाँगीर की सोने की रेलिंग (1616 ई.): 1616 ई. में, जहाँगीर ने ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की कब्र के चारों ओर जाली के साथ एक सोने की रेलिंग के निर्माण का आदेश दिया, जिससे मंदिर की वास्तुकला की भव्यता बढ़ गई।
    • शाहजहाँ का योगदान: सम्राट शाहजहाँ ने दरगाह परिसर के भीतर मस्जिदों के निर्माण में योगदान दिया।

ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती के बारे में

  • अजमेर में आगमन: ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती, जिन्हें कुछ लोग पैगंबर मुहम्मद का वंशज मानते हैं, 1192 ईसवी में लाहौर के रास्ते अजमेर पहुँचे एवं वहीं बस गए, जहाँ वह अपनी मृत्यु (1236 ईसवी) तक रहे।
  • मुहम्मद गोरी का भारत पर आक्रमण: वह मुहम्मद गोरी द्वारा भारत पर आक्रमण के दौरान भारत आए थे।
  • पहला अनुयायी: मोइन-उद-दीन ने कुतुबुद्दीन बख्तियार काकी को अपना पहला अनुयायी स्वीकार किया।
  • चिश्ती सिलसिला: ऐसा माना जाता है कि उन्होंने भारत में चिश्ती सिलसिले की शुरुआत की एवं स्थापना की। 
  • मान्यताएँ: ख्वाजा मोइन-उद-दीन चिश्ती की मुख्य मान्यताएँ अल्लाह के साथ एकीकरण करना, ईश्वर के प्रति समर्पण, पवित्र जीवन जीना, सरल भाषा का उपयोग, विभिन्न धर्मों के लोगों के बीच सहिष्णुता, असहाय एवं गरीबों के लिए दया एवं दान देना था।

शाही जामा मस्जिद, संभल, उत्तर प्रदेश के बारे में

  • संरक्षित स्मारक की स्थिति: जामा मस्जिद ‘एक संरक्षित स्मारक है’, जिसे 22 दिसंबर, 1920 को प्राचीन स्मारक संरक्षण अधिनियम, 1904 की धारा 3, उप-धारा (3) के तहत अधिसूचित किया गया था।
  • राष्ट्रीय महत्त्व: इसे ‘राष्ट्रीय महत्त्व का स्मारक’ घोषित किया गया है एवं भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण (ASI) की वेबसाइट पर इसे केंद्रीय संरक्षित स्मारकों की सूची में शामिल किया गया है।
  • ऐतिहासिक महत्त्व: यह मुगल सम्राट बाबर के शासनकाल के दौरान पानीपत एवं अयोध्या में बनी तीन प्रमुख मस्जिदों में से एक है।

संदर्भ

दक्षिण कोरिया के बुसान में संयुक्त राष्ट्र अंतरसरकारी वार्ता समिति (Intergovernmental Negotiating Committee- INC-5) में एक सप्ताह की वार्ता के बावजूद, उत्पादन में कटौती पर महत्त्वपूर्ण असहमति के साथ, एक फ्रेमवर्क समझौते पर कोई सहमति नहीं बन पाई।

  • प्लास्टिक प्रदूषण को समाप्त करने संबंधी चर्चा करने के लिए लगभग 170 देशों के प्रतिनिधियों ने संयुक्त राष्ट्र अंतरसरकारी वार्ता समिति (INC-5) में भाग लिया था।

संयुक्त राष्ट्र अंतरसरकारी वार्ता समिति (INC-5)

  • स्थापना: वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण संकट के प्रत्युत्तर में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण सभा (UN Environment Assembly- UNEA) द्वारा वर्ष 2022 में स्थापित किया गया।
  • उद्देश्य: प्लास्टिक प्रदूषण पर अंतरराष्ट्रीय स्तर का एक कानूनी रूप से बाध्यकारी फ्रेमवर्क विकसित करना, जो उत्पादन से लेकर निपटान तक प्लास्टिक के पूर्ण जीवन चक्र को संबोधित करता हो।
  • लक्ष्य: प्लास्टिक प्रदूषण को कम करना, विशेष रूप से समुद्री वातावरण में एवं सतत् प्लास्टिक प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना।

असहमति संबंधी प्रमुख मुद्दे

  • प्लास्टिक उत्पादन में कटौती पर असहमति: यूरोपीय संघ सहित देशों के एक समूह ने प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के लिए प्लास्टिक उत्पादन में कटौती को महत्त्वपूर्ण बताते हुए तर्क दिया।
    • सऊदी अरब एवं कुवैत जैसे देशों ने ऐसे उपायों को पर्यावरणीय कार्रवाई के बजाय आर्थिक प्रतिबंध के रूप में चिह्नित किया।
    • भारत ने विकासात्मक अधिकारों एवं आर्थिक निहितार्थों का हवाला देते हुए प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर उत्पादन को विनियमित करने का विरोध किया।
  • अधिदेश की अलग-अलग व्याख्याएँ: कुछ प्रतिनिधियों ने पर्यावरण संबंधी चिंताओं के संदर्भ में व्यापार प्रतिबंधों एवं वाणिज्यिक प्रतिस्पर्द्धा को शामिल करने के लिए संधि के अधिदेश को बढ़ाने का आरोप लगाया है।
  • विवादास्पद लक्ष्य: मसौदा संधि में प्लास्टिक उत्पादों में एकल-उपयोग प्लास्टिक एवं विशिष्ट रासायनिक यौगिकों को चरणबद्ध तरीके से समाप्त करने के लिए वर्ष-वार लक्ष्य शामिल थे।

संधि पर भारत की स्थिति

  • भारत ने विकास पर इसके प्रभाव पर जोर देते हुए प्राथमिक प्लास्टिक पॉलिमर उत्पादन को विनियमित करने के उपायों का विरोध किया।
  • अल्पकालिक प्लास्टिक उत्पादों पर प्रतिबंध एवं मजबूत विस्तारित उत्पादक जिम्मेदारी (Extended Producer Responsibility- EPR) व्यवस्था सहित घरेलू कार्रवाइयों पर प्रकाश डाला गया।
    • EPR एक नीतिगत दृष्टिकोण है, जो उत्पादकों को उपभोक्ता के बाद अपशिष्ट प्रबंधन सहित अपने उत्पादों के पूरे जीवनचक्र के लिए जिम्मेदार बनाता है।
    • भारत में EPR कार्यान्वयन प्लास्टिक अपशिष्ट प्रबंधन नियम, 2016 द्वारा नियंत्रित होता है। ये नियम अनिवार्य करते हैं कि निर्माता, आयातक एवं ब्रांड मालिक अपने प्लास्टिक अपशिष्ट को इकट्ठा करने तथा रीसाइक्लिंग के लिए जिम्मेदार हैं।
  • टिकाऊ प्लास्टिक पैकेजिंग एवं वर्जिन सामग्री के उपयोग को कम करने के लिए प्रतिबद्ध है, लेकिन उत्पादन लक्ष्य की कीमत पर नहीं।

भविष्य के लिए वार्ता एवं चिंताएँ

  • संबंधित वार्ता वर्ष 2025 में पुनः शुरू होगी, जिसे अस्थायी रूप से INC-5.2 शीर्षक दिया गया है, INC 5 के अंत में संशोधित मसौदा पाठ भविष्य की चर्चाओं के आधार के रूप में कार्य कर सकता है।
  • ट्रंप प्रशासन के तहत अमेरिकी नेतृत्व में प्रत्याशित परिवर्तनों के साथ पर्यवेक्षक इसमें होने वाली देरी एवं महत्त्वाकांक्षी लक्ष्यों के बारे में चिंतित हैं।
  • कई देशों ने चिंता जताई है कि पेट्रोकेमिकल उत्पादक देशों के आर्थिक हित प्लास्टिक प्रदूषण पर सार्थक कार्रवाई को रोक सकते हैं।

आगे की राह

  • समावेशी संवाद को बढ़ावा देना: आर्थिक प्रभावों एवं विकासात्मक अधिकारों के बारे में चिंताओं को दूर करने के लिए राष्ट्रों के बीच पारदर्शी तथा समावेशी परामर्श की सुविधा प्रदान करना, उत्पादन नियमों के लिए एक संतुलित दृष्टिकोण को बढ़ावा देना।
  • ओपन-एक्सेस टेक्नोलॉजी शेयरिंग को मजबूत करना: प्लास्टिक के उपयोग को कम करने एवं विकल्प तैयार करने, वर्जिन प्लास्टिक पर निर्भरता को कम करने के लिए टिकाऊ प्रौद्योगिकियों तथा प्रथाओं को साझा करने के लिए वैश्विक सहयोग को प्रोत्साहित करना।
  • चरणबद्ध लक्ष्यों पर ध्यान देना: उत्पादन में कटौती एवं प्लास्टिक विकल्पों के लिए यथार्थवादी, चरणबद्ध लक्ष्य विकसित करना, जिससे राष्ट्रों को विकास लक्ष्यों से समझौता किए बिना धीरे-धीरे परिवर्तन करने की अनुमति मिल सके।
  • निगरानी एवं अनुपालन बढ़ाना: यह सुनिश्चित करते हुए गैर-अनुपालन की निगरानी एवं समाधान करने के लिए तंत्र स्थापित करना कि यह संधि उभरती प्रौद्योगिकियों तथा वैज्ञानिक प्रगति के अनुकूल बनी रहे।

संदर्भ

भोपाल गैस त्रासदी (Bhopal Gas Tragedy) की 40वीं वर्षगाँठ 3 दिसंबर, 2024 को मनाई गई।

  • भोपाल गैस त्रासदी: यह भारत के मध्य प्रदेश के भोपाल में यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) कीटनाशक संयंत्र में हुई एक भयावह औद्योगिक आपदा है।
  • विषाक्त गैस रिसाव: यह आपदा 3 दिसंबर, 1984 को हुई थी, जब भोपाल शहर में एक कीटनाशक कारखाने से लगभग 40 टन जहरीली मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl Isocyanate-MIC) गैस लीक हो गई थी।

मिथाइल आइसोसाइनेट (Methyl Isocyanate- MIC) के बारे में

  • विशेषता: एक ज्वलनशील, रंगहीन तरल, जिसमें तीखी गंध होती है।
  • MIC का रासायनिक सूत्र: CH3NCO या C2H3NO)।
  • अभिक्रिया: वायु के संपर्क में आने पर जल्दी वाष्पित हो जाती है।
  • घनत्व: गैसीय MIC वायु से अधिक सघन होता है, जो जमीनी स्तर पर जमा होता है।
  • उत्पादन: फॉस्जीन (Phosgene) के साथ मिथाइलमाइन (Methylamine) की अभिक्रिया के माध्यम से प्राप्त किया जाता है।
  • उपयोग
    • मुख्य रूप से कीटनाशकों के उत्पादन में एक रासायनिक मध्यवर्ती के रूप में कार्य करता है।
    • पॉलीयुरेथेन फोम (Polyurethane Foams) और प्लास्टिक के निर्माण में उपयोग किया जाता है।
  • अभिक्रियाशीलता: जल के साथ खतरनाक रूप से अभिक्रिया करता है।
  • असंयोज्यता: ऑक्सीडाइजर, एसिड, क्षार, एमाइन, लोहा, टिन और ताँबे के साथ संयोज्य नहीं है।
  • एंटीडोट: कोई उपलब्ध नहीं है।
  • स्वास्थ्य पर प्रभाव
    • त्वचा और आँखों का संपर्क: जलन उत्पन्न करता है और गंभीर नेत्र क्षति का कारण बन सकता है।
    • अंतर्ग्रहण: गंभीर जठराँत्रीय जलन उत्पन्न करता है।
    • साँस लेना: पल्मोनरी इडेमा (Pulmonary Edema), वायुकोशीय शिराओं को चोट पहुँचाना और संभावित रूप से मृत्यु का कारण बनता है।

विषाक्त अपशिष्ट निपटान की वर्तमान स्थिति

  • जारी की गई धनराशि: मार्च 2024 में केंद्र सरकार द्वारा मध्य प्रदेश को 337 मीट्रिक टन विषाक्त अपशिष्ट के निपटान के लिए 126 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे, इस अपशिष्ट को वर्ष 2005 में एकत्र किया गया था और कारखाने के परिसर में रखा गया था।
  • कोई बुनियादी कार्रवाई नहीं: धनराशि जारी होने के बावजूद, राज्य सरकार ने प्रशासनिक बाधाओं के कारण निपटान प्रक्रिया शुरू नहीं की है।

डॉव केमिकल्स (Dow Chemicals)

  • वर्ष 2001 में, डॉव केमिकल (Dow Chemical) ने यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (UCIL) का अधिग्रहण किया और अमेरिका में एस्बेस्टस पीड़ितों के दावों जैसे मामलों में अपनी देनदारियों की जिम्मेदारी स्वीकार की।
  • हालाँकि, इसने भोपाल में अनसुलझी देनदारियों को संबोधित करने से इनकार कर दिया।

खतरनाक अपशिष्ट के बने रहने के कारण

  • कानूनी प्रयास और प्रारंभिक कार्रवाई (2004-2007)
    • वर्ष 2004 में दायर एक जनहित याचिका (PIL) में डॉव केमिकल्स की जवाबदेही की माँग की गई।
    • BEIL (गुजरात) में प्रस्तावित भस्मीकरण को विरोध के कारण रद्द कर दिया गया था।
      • भस्मीकरण एक दहन प्रक्रिया है, जिसमें अपशिष्ट पदार्थ को जलाया जाता है।
  • सर्वोच्च न्यायालय का निर्देश
    • वर्ष 2010 में, सर्वोच्च न्यायालय ने परीक्षण के बाद मध्य प्रदेश के पीथमपुर उपचार, भंडारण एवं निपटान सुविधा (Treatment, Storage, and Disposal Facility- TSDF) में 346 मीट्रिक टन अपशिष्ट को जलाने की अनुमति दी थी।
  • भस्मीकरण सुविधाओं से जुड़ी चुनौतियाँ (वर्ष 2012)
    • मध्य प्रदेश सरकार ने इंदौर के लिए एक प्रमुख जल स्रोत यशवंत सागर बाँध के संभावित संदूषण और आस-पास के निवासियों के स्वास्थ्य के लिए जोखिम का हवाला देते हुए पीथमपुर में जहरीले अपशिष्ट को जलाने का विरोध करते हुए उच्चतम न्यायालय में एक विशेष अनुमति याचिका दायर की।
    • जर्मन कंपनी GIZ ने पहले 346 मीट्रिक टन अपशिष्ट को हैम्बर्ग में 25 करोड़ रुपये में परिवहन एवं जलाने की पेशकश की थी।
      1. हालाँकि, जर्मन पर्यावरण संगठनों और कार्यकर्ताओं के विरोध के बाद योजना को छोड़ दिया गया था।
  • असफल प्रयास और देरी (वर्ष 2015-2023)
    • रिपोर्ट से पता चला है कि इस सुविधा पर सात में से छह परीक्षण असफल रहे, जिससे जहरीले रसायन उत्पन्न हुए हैं।
    • केंद्र और राज्य के बीच आम सहमति की कमी के कारण सात वर्ष तक प्रगति रुकी रही है।

विषाक्त अपशिष्ट के निपटान के जोखिम

  • उत्सर्जन से स्वास्थ्य जोखिम: विषाक्त अपशिष्ट को जलाने से हानिकारक उत्सर्जन के कारण स्वास्थ्य संबंधी महत्त्वपूर्ण जोखिम उत्पन्न होते हैं।
    • वर्ष 2022 केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (CPCB) की रिपोर्ट में बताया गया है कि सात में से छह ट्रायल रन के दौरान, आस-पास के निवासियों में डाइऑक्सिन (Dioxins) और फ्यूरान (Furans) का उच्च स्तर पाया गया था।
  • ऑर्गेनोक्लोरीन का प्रभाव: जलाने से बड़ी मात्रा में ऑर्गेनोक्लोरीन (Organochlorines) और कार्सिनोजेनिक (Carcinogenic) रसायन निकल सकते हैं।
    • डाइऑक्सिन (Dioxins) और फ्यूरान (Furans) सहित ये रसायन मानव स्वास्थ्य और पर्यावरण दोनों को नुकसान पहुँचाने के लिए जाने जाते हैं।
  • डाइऑक्सिन की विषाक्तता: डाइऑक्सिन रासायनिक रूप से संबंधित यौगिकों का एक समूह है, जो लगातार पर्यावरण प्रदूषक (POP) हैं।
    • विश्व स्वास्थ्य संगठन (WHO) के अनुसार, डाइऑक्सिन अत्यधिक विषैले होते हैं और ये प्रजनन और विकास संबंधी समस्याओं का कारण बन सकते हैं, प्रतिरक्षा प्रणाली को नुकसान पहुँचा सकते हैं, हार्मोनल संतुलन में बाधा डाल सकते हैं और कैंसर के जोखिम को बढ़ा सकते हैं।

भोपाल गैस त्रासदी के परिणाम

  • खतरनाक अपशिष्ट का निपटान न होना
    • भोपाल गैस त्रासदी के 40 वर्ष बाद भी 337 मीट्रिक टन जहरीले अपशिष्ट के निपटान की योजना अभी तक लागू नहीं हुई है।
    • सरकार ने अभी तक फैक्ट्री परिसर में मौजूद 11 लाख टन दूषित मिट्टी और पारे तथा लगभग 150 टन भूमिगत अपशिष्ट के निपटान के लिए कोई योजना नहीं बनाई है।
    • भूजल संदूषण फैलने के कारण उच्चतम न्यायालय और राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) के आदेशों की वर्षों से अनदेखी की जा रही है।
  • भूजल संदूषण
    • विषाक्त प्रसार: अध्ययनों से पता चला है कि फैक्ट्री के बाहर आवासीय क्षेत्रों में भूजल भारी धातुओं और अन्य विषाक्त पदार्थों से दूषित है, जिससे कैंसर एवं अन्य बीमारियाँ हो सकती हैं।
    • संदूषण का विस्तार: विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि समय के साथ संदूषण और भी फैल रहा है।
      • वर्ष 2018 में, भारतीय विष विज्ञान अनुसंधान संस्थान (Indian Institute of Toxicology Research) ने परित्यक्त यूनियन कार्बाइड के फैक्ट्री के पास दूषित जल से प्रभावित 42 कॉलोनियों की पहचान की।
      • भोपाल स्थित संभावना ट्रस्ट क्लिनिक द्वारा वर्ष 2022 में किए गए अध्ययन में 29 अतिरिक्त कॉलोनियों में संदूषण की सूचना दी गई।
    • न्यायालय की टिप्पणियाँ: राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने सतही और भूमिगत जल को संदूषित करने वाले लीचेट के जोखिम को उजागर किया और वर्षा के दौरान इसके और अधिक फैलने, नदी निकायों तथा अन्य क्षेत्रों को प्रदूषित करने का जोखिम बताया।
  • विषाक्त भस्मीकरण जोखिम: परीक्षण के दौरान जलाए जाने वाले पदार्थों से निकलने वाले उत्सर्जन में डाइऑक्सिन और फ्यूरान जैसे कैंसरकारी रसायन निकलते हैं, जो निवासियों और पर्यावरण को हानि पहुँचाते हैं।
  • प्रशासनिक उदासीनता
    • विलंबित कार्रवाई: कई न्यायिक आदेशों के बावजूद, सफाई के प्रयास अपर्याप्त और धीमे गति से हो रहे हैं।
    • जवाबदेही की उपेक्षा: 310 करोड़ रुपये की सफाई लागत के लिए संदूषण फैलाने वालों को जवाबदेह ठहराने के लिए कोई सख्त उपाय नहीं किए गए।
  • पीड़ितों का संघर्ष
    • लगातार स्वास्थ्य संबंधी समस्याएं: श्वसन, प्रजनन और विकास संबंधी समस्याएँ अभी भी आपदा प्रभावित लोगों को परेशान करती हैं।
    • समापन का अभाव: दशकों के बावजूद, कोई व्यापक पुनर्वास या अपशिष्ट निपटान की व्यवस्था नहीं की गई है।

सार्वजनिक दायित्व बीमा अधिनियम (Public Liability Insurance Act), 1991

  • अधिनियम के बारे में: यह अधिनियम भोपाल गैस त्रासदी के बाद लागू किया गया था।
    • बीमा कवरेज के लिए अधिदेश: यह खतरनाक पदार्थों को प्रबंधित करने वाले उद्यमों के लिए सार्वजनिक देयता बीमा पॉलिसी रखना अनिवार्य करता है।
    • बीमा कवरेज का दायरा: बीमा खतरनाक पदार्थों के कारण होने वाली मृत्यु, चोट या संपत्ति की क्षति के दावों को कवर करता है।
    • बीमा प्रीमियम आवंटन: उद्योगों से एकत्र किया गया प्रीमियम पर्यावरण राहत कोष में योगदान देता है।
    • निधि का उद्देश्य: पर्यावरण राहत कोष भोपाल त्रासदी जैसी आपदाओं के पीड़ितों को मुआवजा प्रदान करने के लिए बनाया गया है।
  • मुआवजा प्रक्रिया
    • पीड़ित घटना के 5 वर्ष के भीतर जिला कलेक्टर के पास दावा दायर कर सकते हैं। 
    • कलेक्टर जाँच करता है, सुबूतों पर विचार करता है और मुआवजा तय करता है। 
    • कंपनी की लापरवाही के बावजूद मुआवजा दिया जाता है।
  • अधिनियम की आलोचनाएँ
    • पुरानी मुआवजा राशि: मुआवजा दरें लगभग दो दशक पहले निर्धारित की गई थीं और उन्हें अपर्याप्त माना जाता है।
      • मृत्यु या स्थायी दिव्यांगता के लिए अधिकतम मुआवजा 25,000 रुपये है, जिसमें चिकित्सा व्यय के लिए 12,500 रुपये तक की प्रतिपूर्ति शामिल है।

निष्कर्ष

  • भोपाल गैस त्रासदी स्थल से खतरनाक अपशिष्ट का निपटान एक बड़ी चुनौती बनी हुई है, क्योंकि इसमें कई वर्षों से देरी हो रही है और उपाय अपर्याप्त हैं।
  • इस खतरनाक अपशिष्ट के उचित निपटान के लिए व्यापक, तत्काल कार्रवाई की आवश्यकता है, ताकि आगे संदूषण को रोका जा सके और स्थानीय समुदायों के स्वास्थ्य की रक्षा की जा सके।

संदर्भ

हूती आतंकवादियों द्वारा लाल सागर में वाणिज्यिक जहाजों पर हमला करने की घटना, जिससे वैश्विक व्यापार में बड़ी बाधा उत्पन्न हुई थी, को एक वर्ष पूरा हो चुका है। हालाँकि वाणिज्यिक जहाज अब बड़े पैमाने पर स्वेज नहर (एशिया एवं यूरोप के बीच सबसे छोटा समुद्री संपर्क) से बचते हैं तथा इसके बजाय दक्षिण अफ्रीका में केप ऑफ गुड होप के चारों ओर लंबी दूरी की यात्रा करते हैं।

अवस्थिति

  • लाल सागर सबसे उत्तरी उष्णकटिबंधीय सागर है और वैश्विक व्यापार के लिए एक महत्त्वपूर्ण जलमार्ग है।
  • यह 4,38,000 वर्ग किमी. के सतही क्षेत्र में फैला हुआ है, जिसकी लंबाई 2,250 किमी. अधिकतम चौड़ाई 355 किमी. और सबसे गहरा क्षेत्र ‘सुआकिन गर्त’ (Suakin Trough) (3,040 मीटर) है।

  • अफ्रीका और एशिया के बीच स्थित, यह हिंद महासागर का एक अर्द्ध-संलग्न प्रवेश द्वार है।
  • बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य (Bab el-Mandeb Strait) और अदन की खाड़ी (Gulf of Aden) के माध्यम से अरब सागर और हिंद महासागर से जुड़ा हुआ है।

लाल सागर के आसपास के देश

  • पूर्वी सीमा: सऊदी अरब और यमन।
  • पश्चिमी सीमा: मिस्र, सूडान और इरिट्रिया।
  • अकाबा की खाड़ी की सीमा: मिस्र, इजरायल, जॉर्डन और सऊदी अरब।

जलडमरूमध्य और कनेक्शन

  • बाब अल-मंडेब जलडमरूमध्य: लाल सागर को अदन की खाड़ी और हिंद महासागर से जोड़ता है।
  • तिरान जलडमरूमध्य (Strait of Tiran): लाल सागर के उत्तरी छोर पर स्थित, सिनाई प्रायद्वीप को सऊदी अरब के तट से अलग करता है और अकाबा की खाड़ी तक पहुँच प्रदान करता है।
  • स्वेज नहर (Suez Canal): लाल सागर के उत्तरी छोर को भूमध्य सागर से जोड़ती है, जिससे वैश्विक स्तर पर जहाजों का आवागमन संभव होता है। स्वेज नहर वर्ष 1869 में खोली गई थी और यह समुद्री मार्ग का एक महत्त्वपूर्ण हिस्सा बनी हुई है।

लाल सागर का आर्थिक महत्त्व 

  • वैश्विक व्यापार: वैश्विक समुद्री व्यापार का लगभग 7% लाल सागर और स्वेज नहर से होकर गुजरता है।
  • मत्स्यपालन: तटीय समुदायों की आजीविका का समर्थन करता है, जिससे $230 मिलियन का वार्षिक राजस्व प्राप्त होता है।
  • पर्यटन: प्रवाल भित्तियाँ और रिसॉर्ट्स, पर्यटन के कारण सालाना लगभग $12 बिलियन की कमाई करते हैं।
  • खनिज: जिप्सम, डोलोमाइट, फॉस्फेट और तेल/प्राकृतिक गैस भंडार जैसे संसाधनों से समृद्ध।

लाल सागर के द्वीप

  • 1,000 से अधिक द्वीप, जिनमें फरासन द्वीप (Farasan Islands) (पूर्व) और दहलाक द्वीपसमूह (Dahlak Archipelago) (पश्चिम) शामिल हैं।
  • प्रमुख द्वीपों में तिरान द्वीप (Tiran Island), शादवान द्वीप (Shadwan Island), कामरान (Kamaran) और सोकोत्रा ​(Socotra) ​शामिल हैं।

संदर्भ 

हाल ही में भारत सरकार और एशियाई विकास बैंक (ADB) के बीच भारत में बागवानी उत्पादकता और लचीलापन बढ़ाने के लिए 98 मिलियन डॉलर के ऋण समझौते पर हस्ताक्षर किए गए।

ऋण समझौते की मुख्य विशेषताएँ

  • उद्देश्य: प्रमाणित, रोग-मुक्त रोपण सामग्री तक किसानों की पहुँच में सुधार करना।
    • फसल की पैदावार, गुणवत्ता और जलवायु परिवर्तन के प्रति लचीलापन बढ़ाना।
    • ‘क्लीन प्लांट प्रोग्राम’ (Clean Plant Programme-CPP) के लिए समर्थन: यह परियोजना भारत सरकार के आत्मनिर्भर क्लीन प्लांट प्रोग्राम (CPP) के अनुरूप है, जिसका उद्देश्य बागवानी में ‘प्लांट हेल्थ मैनेजमेंट’ को मजबूत करना है।

एकीकृत बागवानी विकास मिशन (Mission for Integrated Development of Horticulture-MIDH)

  • यह हरित क्रांति कृषोन्नति योजना (Green Revolution Krishonnati Yojana) के तहत वर्ष 2014-15 से प्रभावी एक केंद्र प्रायोजित योजना है।
  • उद्देश्य: फल, सब्जियाँ, जड़ और कंद वाली फसलें, मशरूम, मसाले, फूल, सुगंधित पौधे, नारियल, काजू, कोको और बाँस सहित बागवानी क्षेत्र के समग्र विकास पर ध्यान केंद्रित करना।
  • नोडल मंत्रालय: कृषि और किसान कल्याण मंत्रालय (भारत सरकार)।
  • वित्तपोषण पैटर्न
    • सामान्य राज्य: भारत सरकार (GoI) द्वारा 60% और राज्य सरकारों द्वारा 40%।
    • पूर्वोत्तर और हिमालयी राज्य: भारत सरकार द्वारा 90%।

‘आत्मनिर्भर क्लीन प्लांट प्रोग्राम’ (CPP) के बारे में

  • यह कार्यक्रम बागवानी के एकीकृत विकास मिशन (MIDH) का हिस्सा है।
  • कार्यान्वयन अवधि: इसे एशियाई विकास बैंक (ADB) से 50% वित्तीय सहायता के साथ वर्ष 2024 से वर्ष 2030 तक लागू किया जाएगा।
  • उद्देश्य: CPP का उद्देश्य उच्च गुणवत्ता वाली, रोग-मुक्त रोपण सामग्री तक पहुँच प्रदान करके बागवानी में महत्त्वपूर्ण चुनौतियों से निपटना है।
  • कार्यक्रम का उद्देश्य
    • फसल की पैदावार बढ़ाना: इस कार्यक्रम का उद्देश्य बागवानी फसलों की पैदावार बढ़ाना है।
    • जलवायु-प्रतिरोधी किस्मों को बढ़ावा देना: यह जलवायु-प्रतिरोधी पौधों की किस्मों के प्रसार और अपनाने पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • पारिस्थितिकी तंत्र की सुरक्षा: वायरस और रोग नियंत्रण के लिए सक्रिय उपाय, पर्यावरण की सुरक्षा में मदद करेंगे।
  • प्रमुख कार्यान्वयन एजेंसियाँ: कार्यक्रम का क्रियान्वयन केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय द्वारा निम्नलिखित के सहयोग से किया जाएगा:
    • राष्ट्रीय बागवानी बोर्ड (NHB)
    • भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद (ICAR)

बागवानी उत्पादन के बारे में मुख्य तथ्य

  • कृषि सकल घरेलू उत्पाद में योगदान: बागवानी कृषि सकल घरेलू उत्पाद के सकल मूल्य का 33% हिस्सा है।
  • भूमि कवरेज: यह भारत में कृषि भूमि के 18% हिस्से को कवर करती है।
  • वैश्विक स्थिति: भारत दुनिया भर में फलों एवं सब्जियों का दूसरा सबसे बड़ा उत्पादक है।
  • खाद्यान्न को पीछे छोड़ना: बागवानी उत्पादन में बहुत कम क्षेत्र का उपयोग किया जाता है इसके बावजूद इसका उत्पादन, खाद्यान्न उत्पादन से अधिक (बागवानी के लिए 25.66 मिलियन हेक्टेयर तथा खाद्यान्न के लिए 127.6 मिलियन हेक्टेयर) होता है। 

  • CPP के प्रमुख घटक
    • क्लीन प्लांट सेंटर (Clean Plant Centers-CPCs): उन्नत निदान सुविधाओं, चिकित्सा विज्ञान और ऊतक संवर्द्धन प्रयोगशालाओं के साथ विश्व स्तरीय 9 CPCs की स्थापना की जा रही है।
    • प्रमाणन ढांचा (Certification Framework): स्वच्छ पौधों (क्लीन प्लांट) को प्रमाणित करने के लिए बीज अधिनियम, 1966 के तहत एक विनियामक ढाँचे का विकास किया गया है। 
    • नर्सरियों के लिए सहायता: बड़े पैमाने पर नर्सरियों के लिए बुनियादी ढाँचा विकसित करने के लिए सहायता का प्रावधान किया। 
  • कार्यान्वयन रणनीति
    • क्लीन प्लांट सेंटर (Clean Plant Centers): ये केंद्र रोग मुक्त आधारभूत रोपण सामग्री का रखरखाव करेंगे।
    • उन्नत सुविधाएँ: CPC में अत्याधुनिक निदान प्रयोगशालाएँ और अत्याधुनिक परीक्षण प्रक्रियाओं में प्रशिक्षित कर्मचारी होंगे।
    • प्रमाणन योजना (Certification Scheme): निजी नर्सरियों को मान्यता देने के लिए एक ‘क्लीन प्लांट सर्टिफिकेशन’ योजना बनाई जाएगी, जिससे गुणवत्तापूर्ण रोपण सामग्री तक पहुँच सुनिश्चित होगी।
  • CPP का महत्त्व 
    • आत्मनिर्भर भारत को बढ़ावा देता है: भारत के आत्मनिर्भर भारत के दृष्टिकोण के साथ सामंजस्य स्थापित करते हुए बागवानी में आत्मनिर्भरता में वृद्धि करता है।
    • जलवायु चुनौतियों का समाधान करता है: जलवायु से संबंधित मुद्दों के अनुकूल होने की किसानों की क्षमता को बढ़ाता है।
    • नवाचार को प्रोत्साहित करता है: उन्नत परीक्षण तकनीकों एवं संस्थागत क्षमता निर्माण को बढ़ावा देता है।
    • दीर्घकालिक लाभ: किसानों की उत्पादकता, स्थिरता और आर्थिक कल्याण में सुधार की उम्मीद है।

संदर्भ

हाल ही में उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया है कि धन शोधन निवारण अधिनियम (Prevention of Money Laundering Act- PMLA) के तहत लोक सेवकों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व अनुमति आवश्यक है।

निर्णय के मुख्य बिंदु

  • PMLA की धारा 71: इस बात पर जोर दिया गया कि असंगतता के मामलों में धन शोधन निवारण अधिनियम (PMLA) के प्रावधानों को अन्य कानूनों पर अधिभावी प्राधिकार प्राप्त है।
  • उच्चतम न्यायालय का निर्णय: CrPC की धारा 197 के तहत पूर्व मंजूरी के बिना लोक सेवकों पर PMLA के तहत मुकदमा नहीं चलाया जा सकता है।
    • उच्चतम न्यायालय ने वर्ष 2019 के तेलंगाना उच्च न्यायालय के आदेश को बरकरार रखा, जिसमें पूर्व मंजूरी के अभाव में ट्रायल कोर्ट के संज्ञान को खारिज कर दिया गया था।
  • तर्क: PMLA की धारा 65, CrPC प्रावधानों को लागू करती है, जब तक कि वे असंगत न हों।
    • आरोपी लोक सेवकों के कथित आपराधिक कृत्य उनके आधिकारिक कर्तव्यों से जुड़े होते हैं, जिसके लिए मंजूरी की आवश्यकता होती थी।

पूर्व स्वीकृति प्रावधान (Prior Sanction Provision) के बारे में

  • पूर्व स्वीकृति प्रावधान एक कानूनी सुरक्षा है, जिसे लोक सेवकों को गंभीरता से विचार न करने वाला या राजनीतिक रूप से प्रेरित अभियोगों से बचाने के लिए तैयार किया गया है।
  • इस प्रावधान का उल्लेख दंड प्रक्रिया संहिता, 1973 की धारा 197 और भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता, 2023 की धारा 218 में किया गया है।
  • इसमें यह प्रावधान किया गया है कि प्रवर्तन निदेशालय (ED) जैसी कानून प्रवर्तन एजेंसियों को किसी लोक सेवक के विरुद्ध अभियोजन शुरू करने से पहले सरकार से पूर्वानुमति लेनी होगी। 

पूर्व स्वीकृति हेतु तंत्र

  • लोक सेवक के विरुद्ध आरोप: किसी लोक सेवक के विरुद्ध आरोप लगाया जाता है, जिसमें अक्सर भ्रष्टाचार या पद का दुरुपयोग करना शामिल होता है।
  • जाँच: कानून प्रवर्तन एजेंसियाँ ​​साक्ष्य जुटाने के लिए आरोपों की जाँच करती हैं।
  • पूर्व स्वीकृति अनुरोध: यदि जाँच में अभियोजन के लिए पर्याप्त आधार या साक्ष्य सामने आते हैं, तो एजेंसी को उपयुक्त सरकारी प्राधिकरण से पूर्व स्वीकृति लेनी चाहिए।
  • सरकारी समीक्षा: सरकार साक्ष्य की समीक्षा करती है और यह निर्धारित करती है कि अभियोजन के साथ आगे बढ़ने के लिए प्रथम दृष्टया मामला है या नहीं है।
  • मंजूरी दी गई या अस्वीकृत: सरकार मामले की योग्यता के आधार पर मंजूरी दे सकती है या अस्वीकृत कर सकती है। 
  • अभियोजन: यदि मंजूरी दी जाती है, तो अभियोजन आगे बढ़ सकता है। यदि अस्वीकृत किया जाता है, तो मामले को आगे नहीं बढ़ाया जा सकता है।

लोक सेवकों के लिए पूर्व स्वीकृति पर प्रमुख प्रावधान

  • CrPC की धारा 197 के तहत: न्यायालय सरकारी कर्तव्यों का निर्वहन करते समय लोक सेवकों द्वारा कथित रूप से किए गए अपराधों का संज्ञान सरकार की पूर्व स्वीकृति के बिना नहीं ले सकते हैं।
    • अपवाद: दुष्कर्म, यौन उत्पीड़न, पीछा करना और मानव तस्करी जैसे अपराधों के लिए पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता नहीं होती है।
  • भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम (PCA) के तहत: धारा 19(1) के तहत रिश्वतखोरी एवं अनुचित लाभ जैसे अपराधों पर मुकदमा चलाने के लिए पूर्व स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
  • PMLA की धारा 17A (वर्ष 2018 में संशोधित): आधिकारिक कर्तव्यों के निर्वहन में लिए गए निर्णयों की जाँच करने के लिए सरकार की स्वीकृति की आवश्यकता होती है।
    • उच्चतम न्यायालय का मामला तय करेगा कि धारा 17A 2018 से पहले के मामलों पर लागू होती है या नहीं।

सिविल सेवकों के लिए संवैधानिक संरक्षण

  • अनुच्छेद-309: संसद को सिविल सेवकों की भर्ती और सेवा की शर्तों के बारे में कानून बनाने की शक्ति प्रदान करता है।
  • अनुच्छेद-311: सिविल सेवकों की बर्खास्तगी, हटाने या पदावनति के खिलाफ सुरक्षा प्रदान करता है:-
    • कारण बताने का उचित अवसर।
    • मनमाने ढंग से की गई कार्रवाई के विरुद्ध संरक्षण।
    • विभागीय जाँच के बिना सिविल सेवकों की कुछ श्रेणियों को बर्खास्त या हटाया नहीं जा सकता।
  • प्रसादपर्यंत का सिद्धांत (Doctrine of Pleasure): सरकार अपनी इच्छा से किसी सिविल सेवक को बर्खास्त या हटा सकती है, सिवाय उन मामलों को छोड़कर जहाँ संवैधानिक सुरक्षा उपाय लागू होते हैं।
    • यह सिद्धांत प्राकृतिक न्याय और निष्पक्षता के सिद्धांतों के अधीन है।

‘पूर्व स्वीकृति’ पर उच्चतम न्यायालय के निर्देश की ओर ले जाने वाले मामले

  • देविंदर सिंह बनाम पंजाब राज्य (2016): यह स्थापित किया गया कि धारा 197 का संरक्षण केवल आधिकारिक कर्तव्य के तहत किए गए कार्यों पर लागू होता है, न कि अधिकार के रूप में प्रच्छन्न अपराधों पर।
  • पी. के. प्रधान बनाम सिक्किम राज्य (2001): यह माना गया कि धारा 197 के तहत मंजूरी न होने पर किसी भी परीक्षण चरण में, यहाँ तक ​​कि दोषसिद्धि के बाद भी, आधिकारिक कर्तव्यों से जुड़े होने पर न्यायालय में वाद -प्रतिवाद किया जा सकता है।
  • बिभु प्रसाद आचार्य और आदित्यनाथ दास केस (2023): उच्चतम न्यायालय ने तेलंगाना उच्च न्यायालय के निर्णय को बरकरार रखा कि PMLA के तहत आरोपित लोक सेवकों के लिए धारा 197 के तहत पूर्व मंजूरी अनिवार्य है, क्योंकि उनके कथित कृत्य आधिकारिक कर्तव्यों से जुड़े थे।

लोक सेवकों से जुड़े ED मामलों के निहितार्थ

  • जाँच और शिकायतों पर: इस संदर्भ में ईडी की जाँच और शिकायतें जारी रह सकती हैं, लेकिन ट्रायल कोर्ट बिना पूर्व मंजूरी के लोक सेवकों के खिलाफ आरोप-पत्रों पर संज्ञान नहीं ले सकते हैं।
  • परीक्षणों और अपीलों पर: बिना पूर्व मंजूरी के दोषी ठहराए गए लोक सेवक अपील के दौरान मंजूरी के अभाव का तर्क देते हुए मुकदमे की वैधता को चुनौती दे सकते हैं।
  • लोक सेवक पर: यह निर्णय अधिकार के दुरुपयोग के लिए जवाबदेही सुनिश्चित करते हुए, आधिकारिक कर्तव्यों का पालन करने वाले लोक सेवकों की सुरक्षा की आवश्यकता पर जोर देता है।
    • यह मुकदमों में देरी कर सकता है और आरोपी लोक सेवकों को PMLA आरोपों से जुड़े मामलों में कार्यवाही या दोषसिद्धि को चुनौती देने के लिए कानूनी आधार प्रदान कर सकता है।

संदर्भ 

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्रालय (MoHFW) ने राज्यों से ‘डिजिटल किसान ID’ जारी करने में तेजी लाने का आग्रह किया है, जिसे ‘किसान पहचान-पत्र’ (Kisan Pehchaan Patra) के रूप में जाना जाता है।

डिजिटल कृषि मिशन 

  • ‘डिजिटल कृषि’ शब्द का तात्पर्य खेती एवं अन्य कृषि प्रयासों में कंप्यूटर और अन्य इलेक्ट्रॉनिक उपकरणों के उपयोग से है।
  • केंद्र सरकार ने 2 सितंबर, 2024 को 1,940 करोड़ रुपये के केंद्र सरकार के हिस्से सहित 2,817 करोड़ रुपये के पर्याप्त वित्तीय परिव्यय के साथ ‘डिजिटल कृषि मिशन’ (Digital Agriculture Mission) को मंजूरी दी।
  • डिजिटल कृषि मिशन को विभिन्न डिजिटल कृषि पहलों का समर्थन करने के लिए एक व्यापक योजना के रूप में डिजाइन किया गया है।
  • इनमें डिजिटल सार्वजनिक अवसंरचना (DPI) बनाना, डिजिटल सामान्य फसल अनुमान सर्वेक्षण (Digital General Crop Estimation Survey- DGCES) को लागू करना और केंद्र सरकार, राज्य सरकारों और शैक्षणिक तथा अनुसंधान संस्थानों द्वारा IT पहलों का समर्थन करना शामिल है।

‘किसान पहचान-पत्र’ या ‘फार्मर आईडी’ के बारे में

  • उद्देश्य: किसानों के लिए एक डिजिटल पहचान-पत्र, जिससे उनकी कृषि संबंधी जानकारी का डिजिटलीकरण हो सके तथा सरकारी योजनाओं तक उनकी पहुँच बढ़ सके।
  • इसमें शामिल हैं:
    • भूमि स्वामित्व डेटा।
    • पशुधन विवरण।
    • फसल पैटर्न और खेती की जाने वाली फसलों के प्रकार।
    • गाँव की भूमि के नक्शे।
  • किसान ID को आधार और राज्य भूमि अभिलेखों के साथ एकीकृत किया जाता है, जो ‘एग्री स्टैक’ (Agri Stack) पहल के तहत किसानों की रजिस्ट्री का मूल आधार बनता है।
    • एग्री स्टैक सरकार द्वारा एक डिजिटल बुनियादी ढाँचा पहल है, जिसका उद्देश्य भारत में कृषि क्षेत्र को बढ़ाने के लिए विभिन्न हितधारकों को एकजुट करना है।
    • यह किसानों के लिए बेहतर परिणाम और लाभ प्राप्त करने के लिए डेटा और डिजिटल सेवाओं का लाभ उठाता है।
  • यह पहल केंद्र के डिजिटल कृषि मिशन का हिस्सा है।

किसानों के लिए लाभ

  • फसल बीमा और ऋण जैसी सुविधाओं तक पहुँच के साथ-साथ गाँव के भूमि मानचित्रों और फसल डेटा की जानकारी प्रदान करेगा।
  • बेहतर निगरानी और सहायता के लिए कृषि कार्यों को डिजिटल बनाने की दिशा में एक प्रभावकारी निर्णय साबित होगा।
  • बजट आवंटन: केंद्र सरकार के योगदान के साथ ₹1,940 करोड़ की कुल परियोजना लागत ₹2,817 करोड़ है।
    • विशेष सहायता योजना: किसानों की रजिस्ट्री बनाने के लिए अगस्त 2024 में केंद्रीय वित्त मंत्रालय द्वारा ₹5,000 करोड़ आवंटित किए गए।
    • पहुँच के लिए समय-सीमा: वर्ष 2024-25 के लिए पूँजी निवेश हेतु राज्यों को विशेष सहायता योजना के तहत मार्च 2025 तक राज्यों के लिए धन उपलब्ध कराया जा रहा है।
  • सरकार का लक्ष्य: चरणबद्ध तरीके से 11 करोड़ किसानों के लिए डिजिटल पहचान तैयार की जाएगी:
    • वित्त वर्ष 2024-25: 6 करोड़ किसान। 
    • वित्त वर्ष 2025-26: 3 करोड़ किसान। 
    • वित्त वर्ष 2026-27: 2 करोड़ किसान।

कार्यान्वयन रणनीति

  • पंजीकरण शिविरों का आयोजन: राज्य तेजी से और समावेशी किसान पंजीकरण के लिए शिविर आयोजित करेंगे।
  • राज्यों के लिए प्रोत्साहन:
    • क्षेत्र स्तर पर प्रति शिविर ₹15,000
    • प्रति किसान आईडी ₹10
    • प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि (PM-Kisan) योजना से वित्तपोषण किया जाएगा।
  • राज्यों में प्रगति: डिजिटल किसान ID जारी करने में गुजरात, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और उत्तर प्रदेश अग्रणी राज्य हैं।
    • असम, छत्तीसगढ़ और ओडिशा जैसे राज्य अभी भी फील्ड-परीक्षण चरण से गुजर रहे हैं।

संदर्भ

भारत को वर्ष 2025-2026 के कार्यकाल के लिए संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना आयोग (Peacebuilding Commission-PBC) में पुनः चुना गया। 

  • आयोग में भारत का वर्तमान कार्यकाल 31 दिसंबर को समाप्त हो रहा था।

संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों का अंतरराष्ट्रीय दिवस और डैग हैमरशॉल्ड मेडल (Dag Hammarskjold Medal)

  • संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों का अंतरराष्ट्रीय दिवस: यह दिवस प्रतिवर्ष 29 मई को मनाया जाता है।
    • 29 मई वह दिन है, जब वर्ष 1948 में पहले संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन, ‘संयुक्त राष्ट्र ट्रूस पर्यवेक्षण संगठन’ (UN Truce Supervision Organisation-UNTSO) ने फिलिस्तीन में परिचालन शुरू किया था।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों के 76वें अंतरराष्ट्रीय दिवस, 2024 का विषय: ‘फिट फॉर द फ्यूचर, बिल्डिंग बेटर टूगेदर’ (Fit for the Future, Building Better Together)।
  • डैग हैमरशॉल्ड मेडल (Dag Hammarskjold Medal): यह संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा उन सैन्य कर्मियों, पुलिस या नागरिकों को मरणोपरांत दिया जाने वाला पुरस्कार है, जो संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान में सेवा करते हुए अपनी जान गँवा देते हैं।
    • प्रत्येक वर्ष शांति रक्षक दिवस (29 मई) पर, यह पदक किसी भी सदस्य देश को दिया जाता है, जिसने संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय यानी न्यूयॉर्क शहर में एक समारोह में एक या एक से अधिक सैन्य या पुलिस शांति सैनिकों को खो दिया हो।
    • वर्ष 2024 में, नाइक धनंजय कुमार सिंह, जो डेमोक्रेटिक रिपब्लिक ऑफ कांगो में संयुक्त राष्ट्र स्थिरीकरण मिशन (MONUSCO) का भाग थे उनको मरणोपरांत डैग हैमरशॉल्ड मेडल से सम्मानित किया गया।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना (UN Peacekeeping) के बारे में 

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना, संघर्ष से शांति की ओर संक्रमण कर रहे देशों की सहायता के लिए संयुक्त राष्ट्र (UN) द्वारा स्थापित एक तंत्र/उपकरण है।
  • ब्लू हेलमेट/ब्लू बेरेट्स (Blue Helmets/Blue Berets): संयुक्त राष्ट्र शांति सैनिकों को ‘ब्लू हेलमेट’ भी कहा जाता है क्योंकि वर्ष 1947 में पारित महासभा के प्रस्ताव 167 (II) ने संयुक्त राष्ट्र के झंडे के लिए हल्के नीले रंग को मंजूरी दी थी।
  • सिद्धांत: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना तीन बुनियादी सिद्धांतों द्वारा निर्देशित होती है:
    • पक्षों की सहमति
    • निष्पक्षता
    • आत्मरक्षा और जनादेश की रक्षा के अलावा बल का प्रयोग न करना।
  • शांति स्थापना का दायरा: आधुनिक शांति स्थापना अभियान शांति और सुरक्षा बनाए रखने से कहीं आगे तक जाते हैं, बल्कि निम्नलिखित पर भी ध्यान केंद्रित करते हैं:
    • राजनीतिक प्रक्रियाओं को सुविधाजनक बनाना, नागरिकों की सुरक्षा करना, निरस्त्रीकरण और पुनः एकीकरण का समर्थन करना, चुनाव आयोजित करना, तथा मानवाधिकारों और कानून के शासन को बहाल करना।
  • वर्तमान शांति अभियान: वर्तमान में तीन महाद्वीपों पर 11 संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान तैनात हैं।
  • नोबेल शांति पुरस्कार: संयुक्त राष्ट्र शांति सेना को विभिन्न क्षेत्रों में शांति बनाए रखने और संघर्ष को रोकने के उनके प्रयासों के लिए वर्ष 1988 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था।

शांति स्थापना कोष (Peacebuilding Fund-PBF)

  • इसे वर्ष 2006 में संघर्ष की रोकथाम और शांति स्थापना के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्राथमिक वित्तीय साधन के रूप में स्थापित किया गया था।
  • यह शांति स्थापना पहलों को व्यापक वित्तीय सहायता प्रदान करने के लिए संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं, सरकारों, नागरिक समाज और बहुपक्षीय भागीदारों के साथ कार्य करता है।
  • आज तक, PBF ने 60 से अधिक देशों में शांति स्थापना प्रयासों का समर्थन करने के लिए 1.9 बिलियन डॉलर से अधिक का निवेश किया है।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना आयोग के बारे में

  • स्थापना: शांति निर्माण आयोग (PBC) की स्थापना वर्ष 2005 में महासभा और सुरक्षा परिषद द्वारा संयुक्त रूप से की गई थी।
  • भूमिका: PBC संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर-सरकारी सलाहकार निकाय है, जो संघर्ष प्रभावित देशों में शांति प्रयासों का समर्थन करता है।
    • यह व्यापक शांति एजेंडे के तहत शांति निर्माण के लिए अंतरराष्ट्रीय समुदाय की क्षमता को बढ़ाता है।
  • संरचना: संयुक्त राष्ट्र महासभा, सुरक्षा परिषद और आर्थिक एवं सामाजिक परिषद से चुने गए 31 सदस्य देशों से मिलकर बना है।
  • मुख्य उद्देश्य
    • संघर्ष के बाद शांति स्थापना और पुनर्प्राप्ति के लिए संसाधनों को जुटाने के लिए प्रासंगिक हितधारकों को एक साथ लाता है। पुनर्निर्माण, संस्था निर्माण और सतत् विकास के लिए एकीकृत रणनीतियों पर सलाह देता है।
  • जिम्मेदारियाँ 
    • संघर्ष के बाद पुनर्प्राप्ति प्रयासों पर ध्यान केंद्रित करता है।
    • शीघ्र पुनर्प्राप्ति गतिविधियों के लिए पूर्वानुमानित वित्तपोषण को बढ़ावा देता है।
    • संघर्ष के बाद पुनर्प्राप्ति पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान केंद्रित करता है।
    • सभी अभिनेताओं के बीच समन्वय को बेहतर बनाने के लिए सिफारिशें और जानकारी प्रदान करता है।
  • रणनीतिक दृष्टिकोण
    • एकीकृत, रणनीतिक और सुसंगत शांति निर्माण ढाँचे की वकालत करता है।
    • सुरक्षा, विकास और मानवाधिकारों के बीच अंतर्संबंधों पर जोर देता है।
    • शांति निर्माण की आवश्यकताओं और प्राथमिकताओं पर सलाह देते हुए संयुक्त राष्ट्र के अंगों के बीच एक सेतु के रूप में कार्य करता है।
  • शांति निर्माण सहायता कार्यालय (Peacebuilding Support Office-PBSO): शांति निर्माण कोष (PBF) का प्रशासन करता है।
    • शांति निर्माण गतिविधियों के समन्वय में संयुक्त राष्ट्र महासचिव की सहायता करता है।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में भारत का योगदान

  • संस्थापक सदस्य: भारत PBC का संस्थापक सदस्य है।
  • स्थायी शांति स्थापना के लिए वकालत: संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में एक महत्त्वपूर्ण योगदानकर्ता के रूप में, भारत वैश्विक शांति और स्थिरता के लिए प्रतिबद्ध है।
    • भारत शांति निर्माण प्रक्रियाओं में समावेशी विकास, क्षमता निर्माण और स्थानीय स्वामित्व के महत्त्व पर जोर देता है।
    • इसने संघर्ष के बाद की स्थिति से उबरने के लिए दक्षिण-दक्षिण सहयोग को एक मॉडल के रूप में भी बढ़ावा दिया है।
  • संयुक्त राष्ट्र में वर्दीधारी कर्मियों का योगदान: भारत संयुक्त राष्ट्र शांति अभियानों में वर्दीधारी कर्मियों का सबसे बड़ा योगदान देने वाले देशों में से एक है।
    • वर्ष 1948 से अब तक दुनिया भर में स्थापित 71 संयुक्त राष्ट्र शांति मिशनों में से 49 में 2,00,000 से अधिक भारतीयों ने अपनी सेवाएँ दी हैं।
    • लगभग 6,000 भारतीय सैन्य और पुलिस कर्मी अबेई, मध्य अफ्रीकी गणराज्य, साइप्रस, कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य, लेबनान, मध्य पूर्व, सोमालिया, दक्षिण सूडान और पश्चिमी सहारा में मिशनों में तैनात हैं।
    • करीब 180 भारतीय शांति सैनिकों ने कर्तव्य निभाते हुए अपने प्राणों की आहुति दी, जो किसी भी सैन्य योगदान देने वाले देश से सबसे अधिक संख्या है।
  • वित्तीय योगदान: भारत ने शांति स्थापना कोष में वित्तीय योगदान दिया है, जो संघर्ष से शांति की ओर बढ़ रहे देशों का समर्थन करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना पहल में भारतीय महिलाएँ: भारत में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मिशनों में महिलाओं को भेजने की एक लंबी परंपरा है।
    • वर्ष 2007 में भारत संयुक्त राष्ट्र शांति मिशन में महिला सैन्य टुकड़ी तैनात करने वाला पहला देश बन गया।
    • भारत ने लेबनान और कांगो लोकतांत्रिक गणराज्य जैसे देशों में महिला सहभागिता दल (Female Engagement Teams-FETs) और महिला संगठित पुलिस इकाइयों (Female Formed Police Units-FFPUs) को तैनात करके लैंगिक समानता के प्रति दृढ़ प्रतिबद्धता प्रदर्शित की।
    • भारत ने गोलान हाइट्स में महिला सैन्य पुलिस और विभिन्न मिशनों में महिला स्टाफ अधिकारियों/सैन्य पर्यवेक्षकों को भी तैनात किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र की क्षमता विकास: भारत संयुक्त राष्ट्र, मेजबान राष्ट्रों और साझेदार राष्ट्रों के लिए क्षमता विकास में सबसे आगे रहा है।
    • उदाहरण: भारत ने प्रशिक्षण, बुनियादी ढाँचे के विकास और नागरिक सैन्य समन्वय (CIMIC) गतिविधियों के माध्यम से मेजबान देश की क्षमता विकास के लिए सक्रिय समर्थन प्रदान किया है।
  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (CUNPK) की स्थापना: भारतीय सेना ने शांति स्थापना अभियानों में विशिष्ट प्रशिक्षण प्रदान करने के लिए नई दिल्ली में संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना केंद्र (CUNPK) बनाया गया है।
    • यह केंद्र प्रत्येक वर्ष 12,000 से अधिक सैनिकों को प्रशिक्षित करता है।
    • CUNPK संभावित शांति सैनिकों और प्रशिक्षकों के लिए आकस्मिक प्रशिक्षण से लेकर राष्ट्रीय और अंतररराष्ट्रीय पाठ्यक्रमों तक कई तरह की गतिविधियाँ संचालित करता है।
    • यह सर्वोत्तम प्रथाओं को साझा करने के हिस्से के रूप में विदेशी प्रतिनिधिमंडलों की मेजबानी भी करता है।
  • भारत की प्रतिबद्धता: 05-06 दिसंबर, 2023 को घाना के अकरा में आयोजित संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना मंत्रिस्तरीय बैठक के दौरान, भारत ने संयुक्त राष्ट्र की आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए अगले दो वर्षों के लिए एक इन्फैंट्री बटालियन समूह, विभिन्न उप-समूहों, प्रशिक्षकों के लिए संयुक्त राष्ट्र तैनाती पूर्व प्रशिक्षण पाठ्यक्रम और संयुक्त राष्ट्र सैन्य पर्यवेक्षक पाठ्यक्रम की प्रतिबद्धता जताई है।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना आयोग में भारत के पुनःनिर्वाचन का महत्त्व

  • संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना में रणनीतिक भूमिका: भारत का पुनः चुनाव वैश्विक शांति और सुरक्षा प्रयासों में इसकी निरंतर सक्रिय भूमिका को उजागर करता है, जो अंतरराष्ट्रीय कूटनीति में एक प्रमुख हितधारक के रूप में इसकी स्थिति को और मजबूत करता है।
    • यह भारत की सॉफ्ट पॉवर को भी मजबूत करता है।
  • स्थानीय पहलों के लिए समर्थन: PBC में भारत की भूमिका स्थानीय मुद्दों एवं समाधानों को शामिल करने को बढ़ावा देती है, यह सुनिश्चित करती है कि समुदाय द्वारा संचालित शांति निर्माण प्रयासों को अंतरराष्ट्रीय रणनीतियों के साथ एकीकृत किया जाए।
    • उदाहरण: भारत ने दक्षिण सूडान में शांति निर्माण में स्थानीय भागीदारी बढ़ाने की वकालत की है।
  • वैश्विक शांति निर्माण नीतियों को आकार देना: भारत संघर्ष की रोकथाम, आर्थिक पुनर्निर्माण और संघर्ष के बाद के समाजों में लचीलापन निर्माण पर जोर देने वाली नीतियों को प्रभावित करने के लिए अपनी सदस्यता का लाभ उठा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट के लिए वकालत: UNPBC में भारत का पुनः चुनाव संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सीट सहित वैश्विक शासन में अधिक महत्त्वपूर्ण भूमिका के लिए इसकी बोली को मजबूत करता है।

शांति स्थापना में सुरक्षा परिषद की भूमिका

  • सुरक्षा परिषद: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद, जिसकी स्थापना वर्ष 1945 में संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत की गई थी, संयुक्त राष्ट्र के छह प्रमुख अंगों में से एक है।
    • परिषद में 15 सदस्य हैं: पाँच स्थायी सदस्य और दस अस्थायी सदस्य, जो दो वर्ष के कार्यकाल के लिए चुने जाते हैं।
    • पाँच स्थायी सदस्य संयुक्त राज्य अमेरिका, रूसी संघ, फ्राँस, चीन और यूनाइटेड किंगडम हैं।
    • भारत संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद का अस्थायी सदस्य रहा है।
  • शांति और सुरक्षा के लिए प्राथमिक जिम्मेदारी: सुरक्षा परिषद संयुक्त राष्ट्र चार्टर के तहत अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा बनाए रखने की प्राथमिक जिम्मेदारी रखती है।
    • कुछ मामलों में, सुरक्षा परिषद अंतरराष्ट्रीय शांति और सुरक्षा को बनाए रखने या बहाल करने के लिए प्रतिबंध लगाने अथवा बल प्रयोग को अधिकृत करने का सहारा ले सकती है।
  • शांति अभियानों की तैनाती: परिषद मामले-दर-मामला मूल्यांकन के आधार पर यह निर्धारित करती है कि संयुक्त राष्ट्र शांति अभियान कब और कहाँ तैनात किए जाने चाहिए।
  • नए शांति अभियानों के लिए विचारणीय कारक
    • युद्ध विराम की स्थिति और राजनीतिक समाधान के लिए शांति प्रक्रिया के प्रति प्रतिबद्धता।
    • एक स्पष्ट राजनीतिक लक्ष्य का अस्तित्व जो जनादेश में परिलक्षित हो सकता है।
    • संयुक्त राष्ट्र के संचालन के लिए एक सटीक जनादेश तैयार करने की क्षमता।
    • संयुक्त राष्ट्र कर्मियों की सुरक्षा और संरक्षा सुनिश्चित करना, जिसमें शामिल मुख्य पक्षों की ओर से गारंटी शामिल हो।
  • शांति अभियानों की स्थापना: सुरक्षा परिषद सुरक्षा परिषद के प्रस्ताव को अपनाकर शांति अभियान की स्थापना करती है।
    • यह प्रस्ताव उस मिशन के अधिदेश और आकार को निर्धारित करता है।
  • सदस्य देशों का दायित्व: चार्टर के अनुच्छेद-25 के तहत, सभी संयुक्त राष्ट्र सदस्य सुरक्षा परिषद के निर्णयों को स्वीकार करने और उन्हें लागू करने के लिए बाध्य हैं।
  • चल रही निगरानी: परिषद महासचिव की रिपोर्ट का उपयोग करके और विशिष्ट मिशनों की समीक्षा करने के लिए सत्र आयोजित करके संयुक्त राष्ट्र के शांति अभियानों की निरंतर निगरानी करती है।
  • मिशन अधिदेशों में संशोधन: सुरक्षा परिषद के पास आवश्यकतानुसार मिशन अधिदेशों को विस्तारित करने, संशोधित करने या समाप्त करने का अधिकार है।

संयुक्त राष्ट्र शांति स्थापना संरचना की चुनौतियाँ

  • संसाधन अंतराल और वित्तपोषण बाधाएँ: एक प्रमुख सीमा शांति निर्माण पहल के लिए अपर्याप्त और अप्रत्याशित वित्तपोषण है।
    • शांति स्थापना कोष, यद्यपि महत्त्वपूर्ण है, लेकिन अक्सर सीमित संसाधनों के कारण संघर्ष करता है, जिससे शांति निर्माण कार्यक्रमों का समय पर और प्रभावी क्रियान्वयन बाधित होता है।
  • स्थानीय आवश्यकताओं की उपेक्षा: स्थानीय शांति निर्माण समूहों की रिपोर्ट है कि शांति निर्माण कोष (PBF) अक्सर अंतरराष्ट्रीय गैर-सरकारी संगठनों और सरकारी भागीदारों के नेतृत्व वाली बड़ी, उच्च-दृश्यता वाली परियोजनाओं को प्राथमिकता देता है।
    • यह दृष्टिकोण संघर्ष से सीधे प्रभावित समुदायों की प्राथमिकताओं और आवश्यकताओं को नजरअंदाज करता है।
  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद (UNSC) की प्रभावशीलता में पर्याप्त प्रतिनिधित्व की कमी, विशेष रूप से अफ्रीका की अनुपस्थिति के कारण बाधा उत्पन्न होती है।
    • यह अपर्याप्त प्रतिनिधित्व वैश्विक शांति और सुरक्षा मामलों में यूएनएससी की क्षमता को सीमित करता है।
  • अंतरराष्ट्रीय अभिनेताओं पर अत्यधिक निर्भरता: शांति निर्माण प्रक्रिया अक्सर बड़े अंतरराष्ट्रीय संगठनों द्वारा संचालित होती है, जिससे स्थानीय अभिनेताओं की न्यूनतम भागीदारी रह जाती है।
  • संचालन संबंधी चुनौतियाँ: संयुक्त राष्ट्र में स्थायी सैन्य और पुलिस बल का अभाव है।
    • क्षेत्रीय मिशनों के लिए अपने सदस्य देशों से सैन्य और पुलिस कर्मियों को तेजी से जुटाना एक चुनौतीपूर्ण कार्य है।
  • राजनीतिक चुनौतियाँ: संघर्षशील क्षेत्रों में कार्य करने के लिए संयुक्त राष्ट्र का जनादेश कभी-कभी भू-राजनीतिक हितों और स्थानीय शक्ति संरचनाओं द्वारा सीमित होता है, जो प्रगति में बाधा डाल सकता है।
  • प्रणालीगत मुद्दों पर सीमित प्रभाव: जबकि संयुक्त राष्ट्र की शांति स्थापना संरचना संघर्ष के बाद की बहाली पर ध्यान केंद्रित करती है, यह अक्सर गरीबी, असमानता और शासन घाटे जैसे अंतर्निहित प्रणालीगत मुद्दों को संबोधित करने के लिए संघर्ष करती है, जो संघर्ष की पुनरावृत्ति में योगदान करते हैं।

आगे की राह 

  • संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार: वैश्विक चुनौतियों से निपटने में अधिक प्रतिनिधित्व और प्रभावशीलता सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में सुधार करना महत्त्वपूर्ण है।
    • उदाहरण: संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यों की संख्या बढ़ाना।
  • स्थानीय स्वामित्व और भागीदारी को मजबूत करना: शांति निर्माण पहलों को समुदाय-संचालित बनाकर और जमीनी स्तर के संगठनों के लिए धन की पहुँच को सरल बनाकर स्थानीय समुदायों को सशक्त बनाना।
    • उदाहरण: स्थानीय गैर-सरकारी संगठनों के साथ सहयोग बढ़ाया जा सकता है।
  • संयुक्त राष्ट्र संस्थाओं में बेहतर समन्वय: शांति निर्माण, सुरक्षा, विकास और मानवाधिकारों को संबोधित करने के लिए एक सुसंगत दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों के बीच बेहतर सहयोग को बढ़ावा देना।
    • उदाहरण: हाइब्रिड युद्ध और गैर-पारंपरिक युद्ध रणनीति में शांति सैनिकों को प्रशिक्षित करना।
  • संघर्ष रोकथाम तंत्र को मजबूत करना: उदाहरण: खुफिया जानकारी एकत्र करने में सुधार, विशेष दूतों की भूमिका का विस्तार करके कूटनीतिक प्रयासों को बढ़ावा देना।
  • पर्याप्त वित्तपोषण सुनिश्चित करना: राजनीतिक और शांति निर्माण मामलों के विभाग (DPPA) और शांति संचालन विभाग (DPO) को पर्याप्त संसाधन उपलब्ध कराएँ।
  • अधिक राजनीतिक इच्छाशक्ति और नेतृत्व सुनिश्चित करना: शांति निर्माण प्रयासों का समर्थन करने के लिए राष्ट्रीय सरकारों और अंतरराष्ट्रीय हितधारकों से मजबूत राजनीतिक समर्थन प्राप्त करना।

निष्कर्ष 

बढ़ते संघर्षों, आतंकवाद, मानवीय संकटों और नए वैश्विक खतरों के बीच, एक अधिक मजबूत और कुशल संयुक्त राष्ट्र शांति तथा सुरक्षा प्रणाली की आवश्यकता है।

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