उत्तर:
प्रश्न को हल करने का दृष्टिकोण:
- प्रस्तावना: सकारात्मक कार्रवाई की अवधारणा का संछिप्त वर्णन करें साथ ही दोनों देशों के न्यायक्षेत्रों में अंतर को स्पष्ट करते हुए भारत और अमेरिका द्वारा इसे अपनाने का उल्लेख करें।
- मुख्य विषयवस्तु:
- अमेरिका में सकारात्मक कार्रवाई के कानूनी आधार पर चर्चा करते हुए एक उदाहरण प्रस्तुत करें जो अमेरिकी दृष्टिकोण की विशेषता को बताता है।
- सकारात्मक कार्रवाई के संदर्भ में भारतीय संविधान में स्पष्ट प्रावधानों पर चर्चा करते हुए एक उदाहरण प्रस्तुत करें जो, भारत के दृष्टिकोण को दर्शाता है।
- भारत और अमेरिका में समानता की अलग-अलग अवधारणाओं की तुलना करें और प्रत्येक के लिए प्रासंगिक उदाहरण प्रस्तुत करें ।
- निष्कर्ष: सकारात्मक कार्रवाई के संदर्भ में भारत और अमेरिकी संविधान की तुलना करते हुए निष्कर्ष निकालें । इस बात पर जोर दीजिए कि सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भ में प्रत्येक दृष्टिकोण राष्ट्रों के साथ कैसे संरेखित होता है ।
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प्रस्तावना:
सकारात्मक कार्रवाई ,जिसे भारत में आरक्षण के रूप में भी जाना जाता है, एक ऐसी नीति है जहां समाज के कम प्रतिनिधित्व वाले लोगों की स्थिति में सुधार लाने के लिए किसी व्यक्ति के रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या राष्ट्रीय मूल को ध्यान में रखा जाता है। समाज में हाशिये पर रह रहे लोगों को आगे बढ़ाने के लिए किसी व्यक्ति के रंग, नस्ल, लिंग, धर्म या राष्ट्रीय मूल को ध्यान में रखा जाता है। इस प्रकार कोटा आधारित सकारात्मक कार्रवाई के रूप में, आरक्षण को सकारात्मक भेदभाव के रूप में भी देखा जा सकता है । इस प्रकार दुनिया के दो सबसे बड़े लोकतान्त्रिक देश अमेरिका और भारत ने सकारात्मक कार्रवाई के रूपों को अपनाया है, लेकिन उनके संवैधानिक उपचार और समानता की व्याख्या में काफी भिन्नता देखने को मिलती है।
मुख्य विषयवस्तु:
अमेरिकी संविधान में सकारात्मक कार्रवाई :
- कानूनी आधार :
- अमेरिका के संविधान में सकारात्मक कार्रवाई का स्पष्ट रूप से उल्लेख नहीं है।
- हालाँकि इसे 14वें संशोधन के समान सुरक्षा खंड की न्यायिक व्याख्याओं की एक श्रृंखला के माध्यम से संबोधित किया गया है। अमेरिकी संविधान के 14वें संशोधन में कहा गया है कि किसी भी व्यक्ति को उसके अधिकार क्षेत्र में किसी भी राज्य द्वारा कानून के समान संरक्षण से वंचित नहीं किया जाएगा।
- प्रमुख निर्णय और विवाद:
- अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने (कैलिफोर्निया विश्वविद्यालय के रीजेंट्स बनाम बक्के, 1978 मामले में) विश्वविद्यालय में प्रवेश प्रक्रियाओं में नस्ल को एक मानदंड के रूप में इस्तेमाल करने की अनुमति प्रदान की है ।
- हालाँकि, इन नीतियों को ‘सख्त जांच’ परीक्षण से गुजरना होता है और इसके लिए आवश्यक है कि किसी भी नस्लीय वर्गीकरण को सरकारी हित में उचित ठहराया जाए। इन मानदंडों को अपनाने के लिए जरूरी है कि कम से कम प्रतिबंधात्मक साधन मौजूद हों।
- इन फैसलों के बावजूद सकारात्मक कार्रवाई एक विवादास्पद मुद्दा बना हुआ है।
- उदाहरण के लिए, स्टूडेंट्स फॉर फेयर एडमिशन बनाम हार्वर्ड मामले में प्रवेश प्रक्रिया में एशियाई-अमेरिकियों के खिलाफ भेदभाव के आरोप जांच के दायरे में हैं।
भारत के संविधान में सकारात्मक कार्रवाई:
- कानूनी आधार :
- भारतीय संविधान, अमेरिका के विपरीत स्पष्ट रूप से अनुच्छेद 15(4), 16(4), और 46 में सकारात्मक कार्रवाई का प्रावधान करता है।
- ये अनुच्छेद राज्य को किसी भी सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े वर्ग की उन्नति के लिए या अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लिए विशेष प्रावधान करने की अनुमति देते हैं।
- कार्यान्वयन और विवाद:
- भारत में आरक्षण की नीति का उद्देश्य शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों और यहां तक कि विधायिकाओं में सीटें आरक्षित करके इन समूहों द्वारा झेले गए ऐतिहासिक अन्याय और भेदभाव को सुधारना है।
- विशेष रूप से इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ (1992) के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट ने माना कि अवसर की समानता और सामाजिक न्याय के बीच संतुलन बनाए रखने के लिए असाधारण स्थितियों को छोड़कर आरक्षण की सीमा 50% से अधिक नहीं हो सकती है ।
समानता की धारणा में अंतर:
अमेरिकी दृष्टिकोण :
- अमेरिका में समानता का अर्थ ‘औपचारिक समानता’ या ‘अवसर की समानता’ पर अधिक केंद्रित है, इसमें सुनिश्चित किया गया है कि सभी व्यक्तियों को बिना किसी भेदभाव के समान अवसर मिले।
- यहाँ सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को अपवाद के रूप में देखा जाता है, जिन्हें विशिष्ट शर्तों के तहत अनुमति दी जाती है।
- उदाहरण के लिए, ग्रटर बनाम बोलिंगर (2003): अमेरिकी सुप्रीम कोर्ट ने एक सकारात्मक कार्रवाई नीति को बरकरार रखा, जिसमें कहा गया कि कॉलेज प्रवेश में नस्ल को कई कारकों में से एक, माना जा सकता है । यह अनिवार्य शैक्षिक लाभ के लिए विविधता को मान्यता प्रदान करता है ।
भारतीय दृष्टिकोण :
- दूसरी ओर भारत ने इस तथ्य को स्वीकार किया है कि ऐतिहासिक और सामाजिक समस्याओं ने कुछ समूहों को समान स्तर पर प्रतिस्पर्धा करने से रोका है।
- भारत में सकारात्मक कार्रवाई नीतियों को एक समाधान के तौर पर देखा जा सकता है ।
- उदाहरण के लिए, मंडल आयोग (1979-1980): नागरिक पदों और सेवाओं में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 27% आरक्षण की सिफारिश की गई, जो ‘परिणामों की समानता’ प्राप्त करने के लिए भारत की प्रतिबद्धता का उदाहरण है। हालांकि इस आरक्षण के कार्यान्वयन का व्यापक विरोध प्रदर्शन हुआ किन्तु सकारात्मक कार्रवाई के महत्व की पुष्टि हुई ।
निष्कर्ष:
अमेरिकी और भारतीय संविधानों में अलग-अलग व्याख्याओं के बावजूद भी सकारात्मक कार्रवाई समानता को बढ़ावा देने की आकांक्षा से उत्पन्न होती है। जबकि अमेरिका ने व्यक्तिगत अधिकारों और अवसर की समानता पर ध्यान केंद्रित करते हुए अधिक सतर्क दृष्टिकोण अपनाया है, भारत ने सामाजिक संरचनाओं और परिणाम की समानता पर विचार करते हुए व्यापक, और अधिक समावेशी दृष्टिकोण अपनाया है। ये अंतर इन देशों के अद्वितीय रूप से सामाजिक, ऐतिहासिक और राजनीतिक संदर्भों और एक समतापूर्ण समाज की उनकी निरंतर खोज को दर्शाते हैं।
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