प्रश्न की मुख्य माँग
- चर्चा कीजिए कि ADM जबलपुर के फैसले से आपातकाल के दौरान मौलिक अधिकारों को बनाए रखने में न्यायपालिका की विफलता का पता चला।
- विश्लेषण कीजिए कि न्यायिक आत्मनिरीक्षण और तत्पश्चात सुधार ने भारत में संवैधानिक नैतिकता को सुदृढ़ करने में किस प्रकार योगदान दिया है।
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उत्तर
ADM जबलपुर फैसले (वर्ष 1976) को हैबियस कॉर्पस केस के नाम से भी जाना जाता है, जिसने राष्ट्रीय आपातकाल (वर्ष 1975-77) के दौरान नागरिक स्वतंत्रता के रक्षक के रूप में न्यायपालिका की भूमिका में हुये पतन को दर्शाया। मौलिक अधिकारों के निलंबन में सहायता करके, इसने संस्थागत भेद्यताओं को उजागर किया। हालाँकि, बाद के दशकों में न्यायिक आत्मनिरीक्षण और कानूनी पाठ्यक्रम सुधार ने संवैधानिक नैतिकता और सार्वजनिक विश्वास को मजबूत किया।
आपातकाल के दौरान अधिकारों की रक्षा करने में न्यायपालिका की विफलता
- मौलिक अधिकारों का निलंबन: राष्ट्रीय आपातकाल के दौरान, सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 359(1) के तहत अनुच्छेद 14, 21 और 22 के निलंबन को बरकरार रखा जिससे नागरिकों को न्यायिक उपचारों तक पहुँच से वंचित कर दिया गया।
- उदाहरण के लिए, आंतरिक सुरक्षा अधिनियम (MISA) के तहत 1 लाख से अधिक लोगों को बिना किसी मुकदमे के हिरासत में लिया गया।
- ADM जबलपुर का फैसला और बंदी प्रत्यक्षीकरण से इनकार: ADM जबलपुर बनाम शिवकांत शुक्ला में, 4:1 बहुमत से फैसला सुनाया गया कि कोई भी नागरिक स्वतंत्रता के ह्वास के लिए न्यायिक उपचार नहीं माँग सकता।
- उदाहरण के लिए, बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिकाओं को खारिज कर दिया गया और उच्च न्यायालय की राहत को पलट दिया गया।
- न्यायिक समीक्षा को कमजोर करना: इस फैसले ने अनुच्छेद 32 को कमजोर कर दिया और मौलिक अधिकारों के रक्षक के रूप में सर्वोच्च न्यायालय की भूमिका को खत्म कर दिया।
- उदाहरण के लिए, यहाँ तक कि दुर्भावनापूर्ण हिरासत को भी अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
- असहमति और न्यायिक अखंडता का दमन: न्यायपालिका कार्यपालिका की ज्यादतियों का विरोध करने में विफल रही, प्रेस सेंसरशिप की अनदेखी की और असहमति को दबा दिया।
- उदाहरण के लिए, समाचार पत्रों को पूर्व-सेंसरशिप का सामना करना पड़ा; न्यायमूर्ति HR खन्ना की प्राकृतिक अधिकारों की पुष्टि करने वाली असहमति के कारण उन्हें पद से हटा दिया गया।
- न्यायिक आत्मसमर्पण का प्रतीक: ADM जबलपुर संस्थागत विफलता और न्यायपालिका में जनता के विश्वास की कमी का प्रतीक बन गया।
आपातकाल के बाद न्यायिक आत्मनिरीक्षण और सुधार
न्यायिक आत्मनिरीक्षण
- न्यायिक त्रुटि की मान्यता: सर्वोच्च न्यायालय ने ADM जबलपुर के फैसले को न्यायिक गलती
माना।
- उदाहरण के लिए, वर्ष 2017 में जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़ ने पुट्टस्वामी फैसले को “गंभीर रूप से त्रुटिपूर्ण ” बताया ।
- प्राकृतिक अधिकारों की पुनः पुष्टि: न्यायालयों ने पुनः इस बात पर जोर दिया है कि जीवन और निजता जैसी स्वतंत्रताएं जन्मजात हैं, राज्य द्वारा प्रदत्त नहीं हैं।
- उदाहरण के लिए, पुट्टस्वामी फैसले ने निजता को अनुच्छेद 21 का अविभाज्य अंग घोषित किया ।
- असहमति की आवाज को बुलंद करना: न्यायमूर्ति खन्ना की एकमात्र असहमति को न्यायिक आचरण के लिए एक नैतिक दिशानिर्देश के रूप में सराहा गया।
- अधिकार-सचेत न्यायशास्त्र: आपातकाल के बाद के फैसले मौलिक अधिकारों की विस्तारित व्याख्या को दर्शाते हैं।
- उदाहरण के लिए, न्यायालयों ने शासन में मानवीय गरिमा, निष्पक्ष प्रक्रिया और आनुपातिकता को प्राथमिकता देना शुरू कर दिया।
कानूनी और संवैधानिक सुधार
- मेनका गांधी वाद (वर्ष 1978): अनुच्छेद 14 और 19 के माध्यम से उचित प्रक्रिया की आवश्यकता के द्वारा अनुच्छेद 21 के तहत व्यक्तिगत स्वतंत्रता को फिर से परिभाषित किया गया।
- उदाहरण के लिए, न्यायालय ने आदेश दिया कि स्वतंत्रता पर प्रतिबंध न्यायसंगत, निष्पक्ष और उचित होने चाहिए।
- 44वाँ संविधान संशोधन (1978): अनुच्छेद 20 और 21 को गैर-निलंबित बनाया गया, जिससे व्यक्तिगत अधिकारों की सुरक्षा मजबूत हुई।
- केएस पुट्टस्वामी निर्णय (वर्ष 2017): ADM जबलपुर को खारिज कर दिया और निजता को शामिल करने के लिए मौलिक अधिकारों के दायरे का विस्तार किया।
- उदाहरण के लिए, नौ न्यायाधीशों की पीठ ने स्वतंत्रता को एक मुख्य संवैधानिक मूल्य के रूप में मजबूत किया।
- रिट क्षेत्राधिकार को मजबूत किया गया: उच्च न्यायालय अब अनुच्छेद-226 के माध्यम से सक्रिय रूप से अधिकारों की रक्षा करते हैं जिससे शासन में जवाबदेही सुनिश्चित होती है।
- उदाहरण के लिए, COVID-19 के दौरान, कई उच्च न्यायालयों ने कार्यकारी चूक के खिलाफ़ मरीजो के अधिकारों और स्वास्थ्य सेवा तक पहुँच को बरकरार रखा।
ADM जबलपुर वाद कार्यकारी दबाव में न्यायिक विफलता की एक कठोर याद दिलाता है। फिर भी, इसकी विरासत ने स्थायी सुधारों को प्रेरित किया जिसने भारतीय न्यायशास्त्र में संवैधानिक नैतिकता को अंतर्निहित किया। स्वतंत्रता को सुरक्षित रखने और लोकतंत्र को बनाए रखने के लिए एक सतर्क, आत्मनिरीक्षण करने वाली और स्वतंत्र न्यायपालिका महत्त्वपूर्ण है।
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