प्रश्न की मुख्य माँग
- भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण की मौसमी दृष्टिकोण की विफलताएँ।
- वायु गुणवत्ता में सुधार हेतु दीर्घकालिक रणनीतियाँ।
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उत्तर
भारत के शहरों में वायु प्रदूषण एक सालभर चलने वाली बहु-क्षेत्रीय चुनौती है। विश्व वायु गुणवत्ता रिपोर्ट वर्ष 2024 के अनुसार, विश्व के 10 सबसे प्रदूषित शहरों में से 9 भारत में हैं, जहाँ दिल्ली का PM2.5 स्तर WHO मानक से 18 गुना अधिक पाया गया। यदि इसे केवल त्योहारों या मौसमी समस्या के रूप में देखा जाए, तो इसके संरचनात्मक कारणों और स्वास्थ्य पर पड़ने वाले निरंतर प्रभावों को नजरअंदाज किया जाता है।
मुख्य भाग
भारतीय शहरों में वायु प्रदूषण: मौसमी दृष्टिकोण की विफलता
- वायु प्रदूषण बहु-स्रोत और बहु-मौसमी समस्या है: वायु गुणवत्ता केवल दीवाली के समय नहीं, बल्कि वाहनों से उत्सर्जन, औद्योगिक गतिविधियों, जैव-अवशेष जलाने और धूल के कारण वर्षभर प्रभावित होती है।
- उदाहरण: दिल्ली में पराली जलाने से पोस्ट-मानसून अवधि में 30–40% PM2.5 बढ़ता है, लेकिन शेष वर्ष में परिवहन और धूल मुख्य कारण रहते हैं (SAFAR, 2023)।
- प्रतिक्रियात्मक नीतियाँ मूल कारणों को अनदेखा करती हैं: पटाखों पर रोक या अस्थायी प्रतिबंध जैसे कदम निर्माण-धूल, पुराने औद्योगिक बॉयलरों जैसे स्थायी स्रोतों को संबोधित नहीं करते।
- स्वास्थ्य पर प्रभाव निरंतर रहते हैं, मौसमी नहीं: दीर्घकालिक प्रदूषण संपर्क से श्वसन और हृदय रोगों में स्थायी वृद्धि होती है।
- उदाहरण: AIIMS ( वर्ष 2023) के अध्ययन में पाया गया कि दिल्ली में बच्चों में अस्थमा के मामलों में 10% वृद्धि सर्दी के महीनों के अतिरिक्त भी दर्ज की गई।
- संस्थागत समन्वय की कमी: नगरपालिका, राज्य और केंद्र स्तर पर विभिन्न संस्थाएँ कार्य करती हैं, परंतु आपसी समन्वय की कमी से प्रवर्तन कमजोर होता है।
- जन-जागरूकता और व्यवहार परिवर्तन का अभाव: नागरिक प्रदूषण नियंत्रण को केवल “खराब वायु दिनों” से जोड़ते हैं, न कि इसे दैनिक जिम्मेदारी के रूप में देखते हैं (जैसे वाहन रखरखाव, कचरा पृथक्करण)।
- अल्पकालिक प्रतिबंध आजीविका को प्रभावित करते हैं: पटाखों या निर्माण पर पूर्ण प्रतिबंध जब संरचनात्मक सुधारों के साथ नहीं आते, तो इससे जन असंतोष और नीतिगत थकान बढ़ती है।
वायु गुणवत्ता सुधार के लिए दीर्घकालिक रणनीतियाँ
- समग्र बहु-क्षेत्रीय कार्य योजनाएँ: प्रत्येक शहर के लिए स्वच्छ वायु कार्य योजना बनाई जाए जो परिवहन, अपशिष्ट, निर्माण और ऊर्जा क्षेत्रों को लक्षित करे।
- उदाहरण: राष्ट्रीय स्वच्छ वायु कार्यक्रम (NCAP) का लक्ष्य 131 शहरों में वर्ष 2026 तक PM2.5 में 40% की कमी लाना है, जो सालभर के उपायों पर आधारित है।
- स्वच्छ ईंधन और सार्वजनिक परिवहन की ओर संक्रमण: CNG, EVs, जैव-ईंधन को बढ़ावा देना तथा मेट्रो और बस नेटवर्क का विस्तार करना आवश्यक है।
- उदाहरण: दिल्ली का CNG बस अभियान (2000 के दशक) और EV नीति (2020) से वाहन प्रदूषण में उल्लेखनीय कमी आई।
- कृषि एवं जैव-अवशेष जलाने पर नियंत्रण: फसल विविधीकरण, हैप्पी सीडर और अवशेष आधारित उद्योगों को प्रोत्साहन देना चाहिए।
- उदाहरण: पुसा डीकंपोजर (ICAR) के प्रयोग से पंजाब में पराली जलाने की घटनाएँ 30% घटी (2023)।
- औद्योगिक और ऊर्जा क्षेत्र में सुधार: सतत उत्सर्जन निगरानी प्रणाली को अनिवार्य करना और थर्मल पॉवर संयंत्रों के लिए कठोर मानक लागू करना।
- उदाहरण: CAQM (वर्ष 2023) के तहत NCR की औद्योगिक इकाइयों में PNG जैसे स्वच्छ ईंधन अपनाए गए।
- शहरी नियोजन और धूल प्रबंधन: सड़क अवसंरचना , निर्माण गतिविधियों का नियमन, और हरित आवरण बढ़ाना चाहिए ताकि धूल का पुन: निलंबन घटे।
- उदाहरण: अहमदाबाद की रोड डस्ट कंट्रोल योजना (वर्ष 2022) से दो वर्षों में PM10 में 20% की कमी दर्ज की गई।
- निगरानी और शासन तंत्र को सशक्त बनाना: रियल-टाइम मॉनिटरिंग नेटवर्क का विस्तार किया जाए और CAQM को अंतर-राज्यीय समन्वय के लिए अधिकार प्रदान किए जाएँ, विशेषकर इंडो-गैंगेटिक मैदान में।
- जनसहभागिता और व्यवहार परिवर्तन: कार-फ्री डे, कचरा पृथक्करण, छतों पर हरियाली जैसे नागरिक अभियानों को विद्यालयों और RWA पहलों से जोड़ा जाए।
निष्कर्ष
भारतीय शहरों में वायु गुणवत्ता सुधार के लिए त्योहार-केंद्रित या मौसमी प्रतिबंधों के बजाय दीर्घकालिक, प्रणालीगत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाना आवश्यक है। स्वच्छ ऊर्जा संक्रमण, सतत कृषि, बेहतर परिवहन और जन-सहभागिता के माध्यम से ही भारत अपने शहरों को वास्तविक रूप से स्वच्छ हवा देने में सफल हो सकता है।
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