प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में मतदाता सूची तैयार करने में प्रणालीगत मुद्दे
- ECI में जनता के विश्वास को मज़बूत करने के लिए सुधार।
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उत्तर
मतदाता सूचियों में बड़े पैमाने पर विसंगतियों के हालिया आरोपों ने भारतीय चुनाव आयोग (ECI) की कार्यप्रणाली पर गंभीर चिंताएँ खड़ी कर दी हैं। प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में फर्जी एवं एक से अधिक मतदाता पंजीकरण के दावे मतदाता पंजीकरण की विश्वसनीयता को चुनौती देते हैं तथा जनता के विश्वास को कम करते हैं। भारत के 96 करोड़ से अधिक मतदाताओं के विशाल निर्वाचन क्षेत्र को देखते हुए, ये विसंगतियाँ तत्काल प्रणालीगत चुनौतियों को उजागर करती हैं जिनमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया की सुरक्षा के लिए सुधार की आवश्यकता है।
भारत में मतदाता सूची तैयार करने में प्रणालीगत समस्याएँ
- ढीली सत्यापन प्रणाली: मतदाता सूचियाँ स्व-घोषणाओं पर अत्यधिक निर्भर होती हैं, जिनमें पहचान सत्यापन कमजोर होता है, जिससे नकली या डुप्लिकेट प्रविष्टियाँ हो सकती हैं।
- उदाहरण: बेंगलुरु के महादेवपुरा में, वर्ष 2024 के विधानसभा चुनावों में एक ही व्यक्ति के कई पंजीकरण दर्ज किए गए थे।
- दुर्गम प्रारूपों में बड़ी मात्रा में डेटा जारी करना: चुनाव आयोग मतदाता डेटा को खोज योग्य पाठ के बजाय बड़ी छवियों वाली पीडीएफ़ में प्रकाशित करता है, जिससे राजनीतिक दलों एवं नागरिक समाज द्वारा सत्यापन प्रयासों में बाधा आती है।
- जल्दबाजी में किए गए संशोधन कार्य: विशेष गहन संशोधन (Special Intensive Revision- SIR) कार्यों को जल्दबाजी में लागू किए जाने एवं त्रुटिपूर्ण पहचान जाँच के लिए आलोचना का सामना करना पड़ा, जिससे वैध मतदाताओं के नाम हटाने का जोखिम था।
- घर-घर जाकर सत्यापन की कमी: घर-घर जाकर व्यापक सत्यापन के अभाव में, विशेष रूप से ग्रामीण एवं प्रवासी-बहुल क्षेत्रों में, गलत सूची तैयार होती है।
- बाहरी प्रवासियों एवं अस्थायी लोगों के साथ खराब व्यवहार: मतदाता सूचियों में प्रवासियों एवं अस्थायी आबादी का सटीक रूप से पता लगाना मुश्किल होता है, जिसके परिणामस्वरूप दोहरा पंजीकरण या गलत तरीके से बहिष्करण होता है।
- सीमित पारदर्शिता एवं जन भागीदारी: अस्पष्ट डेटा प्रबंधन एवं सार्वजनिक जाँच के सीमित अवसर मतदाता सूची अद्यतन में जवाबदेही को कम करते हैं।
भारतीय चुनाव आयोग (ECI) में जनता का विश्वास मजबूत करने के लिए सुधार
- मजबूत पहचान सत्यापन लागू करना: बायोमेट्रिक प्रमाणीकरण लागू करना या नकली या फर्जी पंजीकरणों को रोकने के लिए आधार-आधारित सत्यापन का उपयोग करना।
- उदाहरण: केरल ने मतदाता पहचान पत्रों के साथ आधार लिंकेज का प्रायोगिक परीक्षण किया, जिससे वर्ष 2023 के स्थानीय चुनावों में मतदाता सूची की सटीकता में सुधार हुआ।
- खोज योग्य प्रारूपों में चुनावी डेटा का डिजिटलीकरण: हितधारकों द्वारा रियल-टाइम ऑडिटिंग को सक्षम करने के लिए मतदाता सूचियों को संरचित, खोज योग्य डेटाबेस में उपलब्ध कराएँ।
- उदाहरण: ECI के राष्ट्रीय मतदाता सूची शुद्धिकरण एवं प्रमाणीकरण कार्यक्रम (NERPAP) का उद्देश्य डेटा की पहुँच में सुधार करना एवं मतदाता सूची में त्रुटियों को कम करना है।
- घर-घर जाकर व्यापक सत्यापन करना: मतदाता सूची की सटीकता एवं समावेशिता सुनिश्चित करने के लिए देश भर में घर-घर जाकर सत्यापन को संस्थागत रूप देंना।
- स्वतंत्र ऑडिट तंत्र स्थापित करना: पारदर्शिता के लिए मतदाता सूची एवं इलेक्ट्रॉनिक वोटिंग मशीनों (EVMs) का तृतीय-पक्ष ऑडिट स्थापित करना।
- डेटा साझाकरण एवं जनभागीदारी बढ़ाना: समय पर डेटा साझा करके एवं नागरिकों व राजनीतिक दलों को विसंगतियों को तुरंत चिह्नित करने में सक्षम बनाकर पारदर्शिता बढ़ाना।
- उदाहरण: चुनाव आयोग का ऑनलाइन मतदाता शिकायत पोर्टल शिकायत पंजीकरण की सुविधा प्रदान करता है, लेकिन इसके लिए व्यापक जागरूकता एवं जवाबदेही की आवश्यकता है।
- चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति प्रक्रिया में सुधार: संस्थागत विश्वसनीयता बढ़ाने के लिए भारत के मुख्य न्यायाधीश सहित एक पारदर्शी चयन समिति के लिए सर्वोच्च न्यायालय की सिफारिशों का पालन करना।
निष्कर्ष
मतदाता सूची में विसंगतियाँ भारतीय चुनाव आयोग (ECI) द्वारा मतदाता पंजीकरण एवं डेटा प्रबंधन में प्रणालीगत खामियों को उजागर करती हैं। बायोमेट्रिक सत्यापन, डिजिटलीकरण, स्वतंत्र ऑडिट तथा पारदर्शी नियुक्तियों सहित व्यापक सुधार जनता का विश्वास बहाल करने एवं लोकतांत्रिक अखंडता को मजबूत करने के लिए आवश्यक हैं।
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