Q. पवन ऊर्जा के दोहन की चुनौतियों और अवसरों का विश्लेषण कीजिए। पवन ऊर्जा को भारत के ऊर्जा मिश्रण का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए किन नीतिगत सुधारों की आवश्यकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

उत्तर:

प्रश्न का समाधान कैसे करें

  • भूमिका
    • पवन ऊर्जा और भारत की पवन ऊर्जा स्थापना के बारे में लिखें।
  • मुख्य भाग
    • पवन ऊर्जा के दोहन की चुनौतियों के बारे में लिखें
    • पवन ऊर्जा के दोहन के अवसर लिखें
    • पवन ऊर्जा को भारत के ऊर्जा मिश्रण का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधार लिखें
  • निष्कर्ष
    • इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए

 

भूमिका    

पवन ऊर्जा का दोहन अनुकूल स्थानों जैसे चिकनी, गोलाकार पहाड़ियों की चोटियों, खुले मैदानों और जल , तथा पहाड़ों की दरारों के माध्यम से किया जा सकता है जो हवा को प्रवाहित एवं  तीव्र करते हैं। अगस्त, 2023 तक भारत की कुल स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता 44.089 गीगावाट (GW) थी, जो इसे स्थापित पवन ऊर्जा के मामले में चीन, संयुक्त राज्य अमेरिका एवं  जर्मनी के बाद विश्व स्तर पर चौथी सबसे बड़ी स्थापित पवन ऊर्जा क्षमता बनाती है।

मुख्य भाग

पवन ऊर्जा के दोहन की चुनौतियाँ

  • पर्यावरणीय प्रभाव: यद्यपि जीवाश्म ईंधन की तुलना में पवन ऊर्जा अधिक स्वच्छ हैं, फिर भी इनका वन्यजीवों एवं स्थानीय पारिस्थितिकी तंत्रों पर प्रभाव पड़ सकता है। उदाहरण के लिए, राजस्थान में जैसलमेर पवन ऊर्जा पार्क को रेगिस्तानी वन्यजीवों , विशेष रूप से ग्रेट इंडियन बस्टर्ड पर संभावित प्रभावों के कारण जांच का सामना करना पड़ा है
  • भूमि उपयोग विवाद: ऐसी उपयुक्त भूमि ढूँढना मुश्किल है जिससे कृषि या आवास के साथ संघर्ष उत्पन्न न हो । तमिलनाडु में वृहद्  सुजलॉन पवन फार्म को जटिल भूमि अधिग्रहण प्रक्रियाओं से गुजरना पड़ा।
  • बाजार एवं वित्तीय जोखिम: बाजार की मांग में अस्थिरता एवं  सरकारी नीतियों में परिवर्तन, जैसे कि भारत में त्वरित मूल्यह्रास लाभ वापस लेने के मामले में देखा गया , पवन ऊर्जा परियोजनाओं की वित्तीय व्यवहार्यता को प्रभावित करते हैं।
  • आपूर्ति श्रृंखला की बाधाएं: कोविड-19 महामारी के कारण उत्पन्न व्यवधानों ने पवन ऊर्जा क्षेत्र को बुरी तरह प्रभावित किया है, जिसके कारण भारत की सबसे वृहद् पवन टरबाइन आपूर्तिकर्ताओं में से एक, सुजलॉन एनर्जी द्वारा प्रारंभ  की गई परियोजनाओं में विलंब हुआ है ।
  • तकनीकी विकास: प्रतिस्पर्धी बने रहने के लिए निरंतर नवाचार आवश्यक है। कच्छ जिले जैसे पवन फार्मों में स्थिर गति से परिवर्तनीय गति टर्बाइनों में परिवर्तन इस आवश्यकता को दर्शाता है, लेकिन यह डेवलपर्स पर वित्तीय बोझ भी डालता है।
  • अंतर्विराम(Intermittency) तथा विश्वसनीयता ; पवन  की अनियमित पूर्ति राजस्थान के जैसलमेर पवन ऊर्जा पार्क जैसी परियोजनाओं को प्रभावित करती है , जहां पवन ऊर्जा की उपलब्धता के साथ उत्पादन में उतार-चढ़ाव होता है, जिससे ग्रिड की विश्वसनीयता प्रभावित होती है।
  • भौगोलिक संकेन्द्रण: गुजरात और तमिलनाडु में ही परियोजनाएं केंद्रित हैं क्योंकि वहां पवन ऊर्जा की उच्च क्षमता है, जिससे ग्रिड पर भारी दबाव पड़ता है। तमिलनाडु में मुप्पंडल पवन फार्म, जो एशिया में सबसे बड़ा है, इस प्रवृत्ति का उदाहरण है, क्योंकि इस क्षेत्र को देश के अन्य भागों में उत्पादित बिजली को संचारित करने में चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है।

पवन ऊर्जा के दोहन के अवसर

  • अप्रयुक्त क्षमता: राष्ट्रीय पवन ऊर्जा संस्थान के अनुमान के अनुसार 150 मीटर की ऊंचाई पर 1,164 गीगावाट तक की विशाल क्षमता है , जिसका अभी पूरी तरह से दोहन किया जाना बाकी है, जिससे विशेष रूप से राजस्थान और गुजरात जैसे राज्यों में विकास की अपार संभावनाएं हैं, ।
  • तकनीकी उन्नयन : पुराने टर्बाइनों को नए , अधिक कुशल टर्बाइनों से परिवर्तित करने से भारत का पवन ऊर्जा उत्पादन संभावित 60 गीगावाट तक बढ़ सकता है , क्योंकि तकनीकी प्रगति ने पवन ऊर्जा का उपयोग अधिक संभव  एवं  उत्पादक बना दिया है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा: विशेष रूप से पश्चिमी तट पर अपतटीय पवन ऊर्जा क्षमता की खोज से भारत को ऊर्जा क्षमता में उल्लेखनीय वृद्धि का अवसर प्राप्त हुआ है  । उदाहरण :केंद्र सरकार ने 2029-2030 तक अगले आठ वर्षों में 37 गीगावॉट के बराबर अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं पर बोली लगाने के लिए एक नीलामी योजना जारी की है।।
  • भौगोलिक लाभ: भारत की 7,516.6 किमी लंबी तटरेखा तटीय एवं अपतटीय पवन ऊर्जा परियोजनाओं के विकास के लिए रणनीतिक लाभ प्रदान करती है, जिसमें पश्चिमी तट को स्थिर तथा मजबूत पवन धाराओं के लिए जाना जाता है।
  • राज्यवार संभावना: गुजरात, राजस्थान, महाराष्ट्र, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश जैसे विविध राज्यों की पहचान उच्च पवन ऊर्जा क्षमता के लिए की गई है, जो क्षेत्रीय विकास एवं ऊर्जा सुरक्षा के लिए अवसर प्रस्तुत करते हैं।
  • नीतिगत समर्थन: राष्ट्रीय पवन-सौर हाइब्रिड नीति , 2018 और राष्ट्रीय अपतटीय पवन ऊर्जा नीति, 2015 जैसी नीतिगत पहलों के माध्यम से सरकारी समर्थन के साथ एक रूपरेखा मौजूद है जिसे पवन ऊर्जा के परिनियोजन में तेजी लाने के लिए और मजबूत किया जा सकता है।

पवन ऊर्जा को भारत के ऊर्जा मिश्रण का महत्वपूर्ण हिस्सा बनाने के लिए आवश्यक नीतिगत सुधार

  • योजनाओं के माध्यम से अनुसंधान एवं नवाचार को बढ़ावा देना: उन्नत पवन टरबाइन प्रौद्योगिकियों में अनुसंधान को समर्थन देने के लिए राष्ट्रीय स्वच्छ ऊर्जा कोष (एनसीईएफ) जैसी योजनाओं का उपयोग करने से अधिक कुशल ऊर्जा उत्पादन हो सकता है।
  • ग्रिड अवसंरचना को मजबूत करना : पवन ऊर्जा की परिवर्तनशीलता और बाधाओं  को प्रबंधित करने के लिए ग्रिड को अपग्रेड करना महत्वपूर्ण है। स्मार्ट ग्रिड प्रौद्योगिकियों एवं  ऊर्जा भंडारण समाधानों में निवेश से प्रणाली  में अधिक पवन ऊर्जा को एकीकृत करने में मदद मिलेगी।
  • सुव्यवस्थित विनियामक प्रक्रियाएं: पवन ऊर्जा परियोजना की मंजूरी तथा भूमि अधिग्रहण की प्रक्रिया को सरल बनाने से क्रियान्वयन में तेजी आ सकती है। नौकरशाही संबंधी बाधाओं को कम करने के लिए केंद्र तथा  राज्य सरकारों के मध्य  अधिक समन्वित दृष्टिकोण की आवश्यकता है।
  • अपतटीय पवन ऊर्जा के लिए नीतिगत ढांचा: अपतटीय पवन ऊर्जा विकास के लिए विशेष रूप से नीतियों एवं योजनाओं का मसौदा तैयार करना, जिसमें FOWIND (भारत में अपतटीय पवन ऊर्जा को सुगम बनाना) परियोजना जैसे मॉडलों की खोज शामिल है, जो भारत की अपतटीय क्षमता का दोहन कर सकता है।
  • वित्तीय साधन एवं योजनाएं: IREDA (भारतीय अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी) जैसी योजनाओं का लाभ उठाकर पवन ऊर्जा पर केंद्रित निधियों का वित्तपोषण एवं  कार्यान्वयन करके पवन परियोजनाओं के लिए आवश्यक पूंजी उपलब्ध कराई जा सकती है।
  • फीड-इन टैरिफ तथा नीलामी प्रणाली: लघु  परियोजनाओं के लिए फीड-इन टैरिफ तथा  वृहद् परियोजनाओं के लिए प्रतिस्पर्धी बोली के बीच एक संतुलित तंत्र स्थापित करने से स्थिरता मिल सकती है और विविध प्रकार के निवेशकों की भागीदारी को प्रोत्साहन  मिल सकता है।
  • पुनःशक्तिकरण के लिए नीतिगत समर्थन: नई प्रौद्योगिकियों के साथ पुराने पवन फार्मों को पुनः सशक्त बनाने के लिए एक ढांचा तैयार करने से मौजूदा पवन स्थलों से उत्पादन को अधिकतम किया जा सकता है , जो अक्सर उच्च पवन-संभावित क्षेत्रों में स्थित होते हैं।
  • सामुदायिक सहभागिता और लाभ साझाकरण: कंपनी अधिनियम में सीएसआर प्रावधानों के समान सामुदायिक लाभ योजनाओं को लागू करना , जहां डेवलपर्स आधारभूत संरचना के विकास के लिए स्थानीय समुदायों के साथ काम कर सकते हैं, साथ ही पवन परियोजनाओं के लिए समर्थन बढ़ा सकते हैं।

निष्कर्ष

भारत के पवन ऊर्जा क्षेत्र में व्यापक संभावनाएं हैं तथा  ठोस नीति सुधारों, सहायक योजनाओं एवं  रणनीतिक निवेशों के साथ, यह देश के ऊर्जा पोर्टफोलियो की आधारशिला बनने, सतत विकास को बढ़ावा देने एवं  हरित भविष्य में योगदान देने के लिए तैयार है।

 

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