प्रश्न की मुख्य माँग
- अफगानिस्तान के साथ भारत के व्यावहारिक जुड़ाव के पीछे रणनीतिक तर्क पर चर्चा कीजिए।
- इस दृष्टिकोण से संभावित चुनौतियाँ क्या हैं?
- भारत के लिए आगे की राह।
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उत्तर
अफगानिस्तान लंबे समय से क्षेत्रीय स्थिरता और संपर्क के लिए भारत की रणनीतिक दृष्टि का केंद्र रहा है। वर्ष 2021 में तालिबान के सत्ता में आने के बाद, भारत को अपनी नीति को विकासात्मक साझेदारी से बदलकर सतर्क, हित-आधारित जुड़ाव की ओर मोड़ना पड़ा।
तालिबान के साथ भारत के व्यावहारिक जुड़ाव के पीछे रणनीतिक तर्क
- भारत के क्षेत्रीय हितों की सुरक्षा: भारत का लक्ष्य अफगानिस्तान में अपनी उपस्थिति बनाए रखना है ताकि पाकिस्तान-चीन के प्रभाव का मुकाबला किया जा सके और उसे भारत-विरोधी आतंकवादी समूहों का केंद्र बनने से रोका जा सके।
- दीर्घकालिक निवेश को संरक्षित करना: भारत का लक्ष्य अफगानिस्तान में अपनी पिछली बुनियादी ढाँचागत और मानवीय परियोजनाओं को सुरक्षित और पूर्ण करना है, जिनके कारण उसे अफगानों के बीच लोकप्रियता प्राप्त हुई है।
- उदाहरण: भारत ने वर्ष 2001 से अफगानिस्तान में 3 अरब अमेरिकी डॉलर से अधिक का निवेश किया है, जिसमें अफगान संसद भवन, हेरात में सलमा बाँध और जरांज-डेलाराम राजमार्ग जैसी प्रमुख परियोजनाओं को वित्तपोषित किया गया है।
- राजनयिक अलगाव से बचना: दूतावास को पुनः खोलना और एक राजदूत की नियुक्ति यह सुनिश्चित करती है कि भारत राजनयिक प्रासंगिकता बनाए रखे और साथ ही तालिबान को समय से पहले मान्यता देने से भी बचा जाए।
- प्रमुख शक्ति गतिशीलता को संतुलित करना: भारत का सतर्क दृष्टिकोण रूस-चीन गुट के साथ गठबंधन से बचता है और अमेरिका तथा अन्य देशों के साथ वार्ता की संभावना को बनाए रखता है।
- आर्थिक और सामरिक लाभ: व्यावहारिक जुड़ाव भारत को अफगानिस्तान के खनिज संसाधनों और मध्य एवं दक्षिण एशिया को जोड़ने वाले रणनीतिक भूगोल तक पहुँच प्रदान करता है।
- उदाहरण: खनन में भारत की भागीदारी की माँग, चीन के बढ़ते आर्थिक प्रभाव का मुकाबला करने के लिए भारतीय निवेश की संभावना को दर्शाती है।
इस दृष्टिकोण की संभावित चुनौतियाँ
- तालिबान को अंतरराष्ट्रीय मान्यता का अभाव: किसी गैर-मान्यता प्राप्त शासन के साथ जुड़ने से कूटनीतिक गतिशीलता सीमित हो जाती है और भारत वैश्विक आलोचना का शिकार हो सकता है।
- मानवाधिकार संबंधी चिंताएँ: लैंगिक भेदभाव और धार्मिक असहिष्णुता के लिए जानी जाने वाली व्यवस्था के साथ जुड़ने से भारत की प्रतिष्ठा को नुकसान पहुँच सकता है।
- पाकिस्तान की शत्रुता और सुरक्षा जोखिम: तालिबान के साथ भारत का बढ़ता सहयोग पाकिस्तान को भड़का सकता है, जिससे सीमा पार आतंकवाद और अस्थिरता फैल सकती है।
- उदाहरण: इस्लामाबाद भारत-तालिबान सहयोग को लेकर चिंतित है, उसे डर है कि इससे काबुल पर पाकिस्तान का पारंपरिक प्रभाव कमजोर हो सकता है।
- चीनी प्रभाव और रणनीतिक प्रतिस्पर्द्धा: अफगानिस्तान में चीन की बढ़ती आर्थिक उपस्थिति भारत के सामरिक उद्देश्यों और क्षेत्रीय संतुलन के लिए एक चुनौती है।
- उदाहरण: भारतीय निवेश के प्रति तालिबान का खुलापन चीन का ‘आर्थिक प्रतिनिधि’ बनने से बचने के उसके प्रयास को दर्शाता है, लेकिन प्रतिस्पर्द्धा अपरिहार्य बनी हुई है।
- तालिबान की अस्थिर आंतरिक गतिशीलता: आंतरिक विभाजन और वैचारिक कठोरता, आपसी संबंधों को अप्रत्याशित बना सकती है तथा द्विपक्षीय परियोजनाओं की प्रगति को सीमित कर सकती है।
भारत के लिए आगे की राह
- संतुलित राजनयिक जुड़ाव: अंतरराष्ट्रीय सहमति बनने तक पूर्ण मान्यता से बचते हुए, एक तकनीकी मिशन के माध्यम से तालिबान के साथ संपर्क बनाए रखना।
- मानवीय और विकासात्मक सहयोग का विस्तार करना: अफ़गानों के बीच सद्भावना बनाए रखने के लिए शिक्षा, स्वास्थ्य और क्षमता निर्माण में जन-केंद्रित सहायता पर ध्यान केंद्रित करना।
- उदाहरण: खाद्य, चिकित्सा और छात्रवृत्ति में भारत की निरंतर सहायता उसकी सॉफ्ट पॉवर को मजबूत करती है और उसे लेन-देन वाली शक्तियों से अलग करती है।
- सुरक्षा समन्वय बढ़ाना: भारतीय हितों, विशेष रूप से पाकिस्तान समर्थित समूहों को निशाना बनाने वाले आतंकवादी नेटवर्क पर अंकुश लगाने के लिए तालिबान अधिकारियों के साथ सावधानीपूर्वक सहयोग करना।
- रणनीतिक सावधानी के साथ आर्थिक जुड़ाव: संपत्तियों की सुरक्षा सुनिश्चित करते हुए चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने के लिए खनन, व्यापार और बुनियादी ढाँचे में चुनिंदा निवेश करना।
- क्षेत्रीय बहुपक्षीय दृष्टिकोण: अफगानिस्तान के लिए एक स्थिर क्षेत्रीय ढाँचा तैयार करने के लिए SCO, मॉस्को फॉर्मेट और संयुक्त राष्ट्र एजेंसियों जैसे मंचों के साथ कार्य करना।
निष्कर्ष
तालिबान के साथ भारत के संबंध, सिद्धांत और व्यावहारिकता के बीच एक सावधानीपूर्वक संतुलन को दर्शाता है। निरंतर संपर्क और क्षेत्रीय सहयोग उसके हितों की रक्षा तथा अफगानिस्तान में स्थिरता को बढ़ावा देने में मदद कर सकता है। यथार्थवाद को क्षेत्रीय सहयोग के साथ जोड़कर, भारत अपने हितों की रक्षा कर सकता है और क्षेत्र में दीर्घकालिक स्थिरता में योगदान दे सकता है।
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