प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के रोजगार परिदृश्य के समक्ष चुनौतियाँ।
- युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ाने और जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी ढंग से उपयोग करने के लिए आवश्यक नीतिगत उपाय।
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उत्तर
भारत उच्च बेरोजगारी और स्नातकों के बीच कम रोजगार क्षमता की समस्या से जूझ रहा है। आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 से पता चलता है कि केवल 51.25% स्नातक ही नौकरी के लिए तैयार हैं, जिससे देश की विशाल युवा क्षमता का दोहन और सतत् आर्थिक विकास हासिल करने के लिए एक गंभीर चुनौती खड़ी हो गई है।
भारत के रोजगार परिदृश्य में चुनौतियाँ
- कौशल के साथ असंगतता: कई स्नातकों में AI और क्लाउड कंप्यूटिंग जैसी उभरती तकनीकों में कौशल की कमी होती है।
- उदाहरण: ‘हीरो स्किल्स ऑफ द फ्यूचर-विजन 2030’ अध्ययन के अनुसार, 77% पेशेवरों का मानना है कि भविष्य की नौकरी की माँगों को पूरा करने के लिए उनके पास आवश्यक कौशल का अभाव है।
- अल्फाबीटा-अमेजन सर्विसेज (AWS) अध्ययन के अनुसार, भारत को वर्ष 2025 तक 3.9 मिलियन क्लाउड पेशेवरों की आवश्यकता होगी।
- सीमित व्यावसायिक प्रशिक्षण: बहुत कम युवाओं को अपनी नौकरी की तैयारी में सुधार के लिए औपचारिक प्रशिक्षण मिलता है।
- उदाहरण के लिए, आर्थिक सर्वेक्षण 2023-24 के अनुसार, केवल 2.2% युवाओं को औपचारिक व्यावसायिक प्रशिक्षण प्राप्त है।
- स्नातकों की कम रोजगार क्षमता: आधे से भी कम भारतीय स्नातकों के पास, नियोक्ताओं द्वारा आवश्यक कौशल प्राप्त है।
- उदाहरण के लिए: इंडिया स्नातक कौशल सूचकांक 2025 के अनुसार, वर्ष 2024 में केवल 42.6% स्नातक ही रोजगार योग्य माने जाएँगे, जो वर्ष 2023 के 44.3% से कम है।
- शहरी युवाओं में बेरोजगारी: सीमित रोजगार उपलब्धता के कारण शहरी क्षेत्रों में युवा बेरोजगारी तेजी से बढ़ रही है।
- उदाहरण के लिए: अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन की रिपोर्ट (2024) के अनुसार, 83% बेरोजगार भारतीय युवा हैं।
- अनौपचारिक नौकरियों का प्रभुत्व: औपचारिक क्षेत्र सभी स्नातकों को समायोजित नहीं कर पाता, जिसके कारण कई स्नातक अनौपचारिक नौकरियों की ओर रुख करते हैं।
- उदाहरण: भारत का 90% से अधिक कार्यबल अनौपचारिक क्षेत्र में कार्यरत है, जो देश के सकल घरेलू उत्पाद में 50% से अधिक का योगदान देता है।
- लिंग और क्षेत्रीय असमानताएँ: महिला युवाओं को पुरुषों की तुलना में काफी अधिक बेरोजगारी दर का सामना करना पड़ता है।
- ग्रामीण रोजगार कार्यक्रमों में कमी: मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं को कम वित्त पोषण और कार्यान्वयन चुनौतियों का सामना करना पड़ा है, जिससे ग्रामीण रोजगार प्रभावित हुआ है।
ये चुनौतियाँ रोजगार क्षमता और नौकरी वृद्धि में सुधार के लिए केंद्रित नीतिगत सुधारों की तत्काल आवश्यकता को दर्शाती हैं।
युवाओं की रोजगार क्षमता बढ़ाने के लिए नीतिगत उपाय
- व्यावसायिक प्रशिक्षण का विस्तार करना: PMKVY और दीनदयाल उपाध्याय ग्रामीण कौशल योजना (DDU-GKY) जैसे कार्यक्रमों के माध्यम से औपचारिक कौशल विकास में वृद्धि करनी चाहिए।
- जैसे: DDU-GKY 15-35 वर्ष की आयु के ग्रामीण युवाओं को बेहतर वैश्विक रोजगार अवसरों के लिए प्रशिक्षित करता है।
- उभरती हुई तकनीकों के लिए पाठ्यक्रम को अद्यतन करना: शिक्षा में कृत्रिम बुद्धिमत्ता, क्लाउड और अन्य नई तकनीकों के कौशल को एकीकृत करना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: पीपल मैटर्स इंडिया की रिपोर्ट के अनुसार, 81 प्रतिशत संगठनों को “पॉवर यूजर या डेवलपर” तकनीकी कौशल की कमी का सामना करना पड़ रहा है।
- उद्योग-अकादमिक संबंधों को मजबूत करना: कौशल अंतराल को पाटने के लिए उद्योगों को शामिल करते हुए इंटर्नशिप और पाठ्यक्रम डिजाइन को प्रोत्साहित करना चाहिए।
- राष्ट्रीय सीमाओं से परे ध्यान केंद्रित करना: भारत को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर रोजगार के अवसरों का विस्तार करने के लिए पश्चिमी देशों की वृद्ध होती आबादी की श्रम बाजार संबंधी आवश्यकताओं के अनुरूप कौशल और प्रशिक्षण कार्यक्रम तैयार करने चाहिए।
- भारतीय शिक्षा सेवा की स्थापना: भारतीय प्रशासनिक सेवा (IAS) के समान एक भारतीय शिक्षा सेवा (IES) की स्थापना की जानी चाहिए।
- आइडिया लैब और टिंकर लैब को अनिवार्य करना: रचनात्मकता और व्यावहारिक शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए स्कूलों और कॉलेजों में नवाचार प्रयोगशालाएँ स्थापित की जानी चाहिए।
निष्कर्ष
लक्षित कौशल विकास और समावेशी रोजगार सृजन के माध्यम से युवा रोजगार क्षमता को बढ़ाकर भारत अपने जनसंख्या की लाभांश का दोहन कर सकता है। ये सुधार वर्ष 2047 तक भारत के ₹30 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था बनने के अपने लक्ष्य को प्राप्त करने का मार्ग प्रशस्त करेंगे, जिससे समतापूर्ण समृद्धि सुनिश्चित होगी।
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