Q. भारत का इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम आयात प्रतिस्थापन और कम उत्सर्जन का वादा करता है, किंतु फिर भी कई अनसुलझी चिंताएँ उत्पन्न करता है। इस संदर्भ में, भारत में उच्च इथेनॉल मिश्रणों को लागू करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए और एक सतत् ईंधन के रूप में इथेनॉल की ओर सुचारू रूप से संक्रमण सुनिश्चित करने के उपाय सुझाइए। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में उच्च इथेनॉल मिश्रणों को लागू करने में आने वाली प्रमुख चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • सतत ईंधन के रूप में इथेनॉल की ओर सुचारू परिवर्तन सुनिश्चित करने हेतु उपाय सुझाइये।

उत्तर

कच्चे तेल के आयात को कम करने और उत्सर्जन पर अंकुश लगाने के लिए शुरू किए गए भारत के इथेनॉल मिश्रण कार्यक्रम (EBP) का लक्ष्य वर्ष 2025 तक 20% मिश्रण (E20) हासिल करना है। पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय के अनुसार  वर्ष 2014 से EBP ने भारत को 1.36 लाख करोड़ रुपये से अधिक की विदेशी मुद्रा बचाने और लगभग 193 लाख टन कच्चे तेल को स्थापन्न करने में मदद की है। हालाँकि यह विदेशी मुद्रा में वार्षिक बचत की आशा प्रदान करता है और घरेलू कृषि को समर्थन देता है, लेकिन इस बदलाव के सामने कई तकनीकी, आर्थिक और नीतिगत चुनौतियाँ हैं।

भारत में उच्च इथेनॉल मिश्रणों को लागू करने में प्रमुख चुनौतियाँ

  • खाद्य सुरक्षा जोखिम: इथेनॉल फीडस्टॉक उत्पादन में वृद्धि के परिणामस्वरूप कृषि भूमि में खाद्य फसलों को कम उगाया जा सकता है, विशेष रूप से यदि मक्का की खेती का क्षेत्रफल काफी बढ़ जाता है, तो इससे खाद्य-ईंधन संघर्ष उत्पन्न हो सकता है।
  • असमान लाभ वितरण: इथेनॉल का आर्थिक लाभ सीमांत किसानों, व्यापारियों और गैर-शर्करा फसल उत्पादकों तक नहीं पहुंच सकता है, जिससे क्षेत्रीय असमानताएं बढ़ सकती हैं।
  • आयात पर निर्भरता: विदेशी मुद्रा की बचत उर्वरकों, एथेनॉल फसलों हेतु आवश्यक अन्य इनपुट्स और 85% से अधिक कच्चे तेल के आयात की उच्च लागत से प्रतिसंतुलित हो सकती है, जिससे भारत वैश्विक आपूर्ति समस्याओं और डॉलर अस्थिरता के प्रति सुभेद्य हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: अकेले भारत का उर्वरक आयात बिल लगभग 10 अरब डॉलर प्रति वर्ष है।
  • वाहन अनुकूलता एवं दक्षता ह्वास: जबकि BS 2 मानदंड (वर्ष 2001 के बाद) E15 तक की अनुमति देते हैं वहीं दूसरी ओर पुराने वाहनों में जंग लगने, सामग्री के संक्षारण और ईंधन दक्षता में कमी का जोखिम होता है।
  • उपभोक्ताओं के पास विकल्प का अभाव: यह “वन-साइज-फिट्स-ऑल” दृष्टिकोण असंगत वाहनों वाले उपभोक्ताओं को एथेनॉल मिश्रण का उपयोग करने हेतु बाध्य करता है, जिससे इंजन को क्षति हो सकती है। 
    • उदाहरण: भारत में, पेट्रोल पंप पुराने वाहन मालिकों को, बिना मिश्रित पेट्रोल नहीं देते हैं।
  • वाहन निर्माताओं की ओर से पारदर्शिता की कमी: पुराने वाहनों की इथेनॉल संगतता के बारे में प्रकटीकरण का अभाव उपभोक्ता की तैयारी को सीमित करता है और अप्रत्याशित मरम्मत लागत का जोखिम उत्पन्न करता है।
  • पर्यावरणीय समझौते: एथेनॉल हेतु गन्ने की व्यापक खेती जल आपूर्ति पर दबाव डालती है और विनैस (एक पारिस्थितिक रूप से हानिकारक उप-उत्पाद) उत्पन्न करती है।
    • उदाहरण: नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार गन्ना आधारित इथेनॉल से ग्रीनहाउस गैसों में 65% की कमी आती है, किन्तु मृदा और जल पर पड़ने वाले प्रभावों को लेकर चिंता बनी हुई है।

इथेनॉल के सतत उपयोग हेतु सहज संक्रमण सुनिश्चित करने के उपाय

  • खाद्य सुरक्षा की रक्षा: गैर-खाद्य फीडस्टॉक्स (सी-हेवी शीरा, कृषि अपशिष्ट) के उपयोग को प्राथमिकता देना चाहिए तथा यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अनाज का विचलन अधिशेष स्तर से अधिक न हो।
    • उदाहरण: नीति आयोग का रोडमैप गन्ना और अनाज-आधारित एथेनॉल के संतुलित उपयोग से E20 प्राप्त करने का लक्ष्य रखता है, ताकि अन्न की कमी से बचा जा सके।
  • समतामूलक आर्थिक लाभ: लघु किसानों हेतु लक्षित प्रोत्साहन लागू करना चाहिए तथा क्षेत्रीय लाभों को संतुलित करने के लिए गन्ने के अलावा इथेनॉल फीडस्टॉक को बढ़ावा देना चाहिए।
    • उदाहरण: ISMA आर्थिक और पर्यावरणीय लाभों के साथ EBP को एक “राष्ट्रीय अनिवार्यता” के रूप में समर्थन देता है।
  • आयातित इनपुट पर निर्भरता कम करना: कृषि इनपुट के स्वदेशी उत्पादन को बढ़ावा देना चाहिए ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि इथेनॉल की विदेशी मुद्रा बचत अन्य कृषि आयातों से प्रभावित न हो। 
    • उदाहरण: नवीकरणीय अमोनिया का उपयोग करके घरेलू उर्वरक निर्माण को बढ़ावा देना चाहिए।
  • उपभोक्ताओं को ईंधन के विकल्प उपलब्ध कराना: पंपों पर, विशेषकर ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ पुराने वाहन अधिक हैं, मिश्रित और अमिश्रित पेट्रोल के विकल्प उपलब्ध कराने चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: ब्राजील विभिन्न इथेनॉल अनुपात वाले “फ्लेक्स-फ्यूल” पेट्रोल पंप उपलब्ध कराता है।
  • सतत कृषि को बढ़ावा देना: पर्यावरणीय स्वास्थ्य को संतुलित करने के लिए कुशल जल उपयोग, फसल चक्रण और लचीले फीडस्टॉक्स के उपयोग को प्रोत्साहित करना चाहिए।
  • मूल्य पारदर्शिता और प्रोत्साहन लागू करना: उपभोक्ताओं के बीच इथेनॉल मिश्रण को बढ़ावा देने के लिए कम खुदरा मूल्य बनाए रखना चाहिए।
    • उदाहरण: इथेनॉल सम्मिश्रण से होने वाली महत्त्वपूर्ण विदेशी मुद्रा बचत (₹1.44 लाख करोड़) पंप कीमतों में परिलक्षित होनी चाहिए।

निष्कर्ष

भारत का इथेनॉल मिश्रण अभियान उसके ऊर्जा परिदृश्य को पुनः आकार दे सकता है, तेल आयात में 10 अरब डॉलर की कटौती कर सकता है और जलवायु कार्रवाई में योगदान दे सकती है। किंतु इसकी सफलता खाद्य सुरक्षा की रक्षा, लाभों का उचित वितरण, वाहनों की तत्परता सुनिश्चित करने, पर्यावरणीय संसाधनों के संरक्षण और पारदर्शिता व मूल्य निर्धारण सुधारों के माध्यम से उपभोक्ता विश्वास बनाए रखने पर निर्भर करती है।

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