प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में सार्वजनिक अवसंरचना के बार-बार ढहने के पीछे प्रमुख कारणों का विश्लेषण कीजिए।
- सुझाव दीजिए कि बुनियादी ढाँचे की प्रत्यास्थता सुनिश्चित करने के लिए कौन-से संस्थागत और नीति-स्तरीय उपाय किए जा सकते हैं।
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उत्तर
जुलाई 2025 में वडोदरा में 40 साल पुराने पुल के ढहने से 18 लोगों की मौत हो गई थी। यह मोरबी पुल त्रासदी और मिजोरम रेलवे पुल के ढहने सहित पूरे भारत में सार्वजनिक बुनियादी ढाँचे की विफलताओं का हिस्सा है। ये घटनाएँ व्यवस्थागत उपेक्षा को दर्शाती हैं, न कि छिटपुट दुर्घटनाओं को।
बार-बार बुनियादी ढाँचे के ढहने के कारण
- शहरी दबाव में पुराना बुनियादी ढाँचा: दशकों पहले बनी कई संरचनाएँ, तेजी से बढ़ते शहरीकरण और जनसंख्या वृद्धि के कारण अत्यधिक दबाव में हैं।
- उदाहरण के लिए, गुजरात में मोरबी पुल वर्ष 2022 में ढह गया, जिसमें 140 से अधिक लोगों की मृत्यु हुई।
- उपेक्षा और अप्रभावी प्रबंधन: स्थानीय अधिकारी अक्सर संरचनात्मक ऑडिट और रखरखाव की अनदेखी करते हैं।
- उदाहरण के लिए: स्थानीय लोगों ने वडोदरा पुल के ढहने के लिए लंबे समय से हो रही लापरवाही को जिम्मेदार ठहराया।
- अपर्याप्त वित्तपोषण और विभागों में कर्मचारियों का अभाव: नगर निकायों के पास पुरानी परिसंपत्तियों के निरीक्षण और मरम्मत के लिए संसाधनों और क्षमता का अभाव है।
- विफलता रिपोर्ट की पारदर्शिता का अभाव: जाँच को शायद ही कभी सार्वजनिक किया जाता है, जिससे सुधार में बाधा आती है।
- सीमित लेखापरीक्षा क्षेत्र: दुर्घटना के बाद की लेखापरीक्षाएँ संकीर्ण होती हैं तथा विभिन्न क्षेत्रों में समान संरचनाओं तक विस्तारित नहीं होती हैं।
संस्थागत और नीति स्तरीय उपाय
- अनिवार्य आवधिक संरचनात्मक ऑडिट: सभी नगरपालिका बुनियादी ढाँचों के लिए आधारभूत ऑडिट ढाँचों का एक समान प्रवर्तन सुनिश्चित किया जाना चाहिए।
- उदाहरण: AMRUT और शहरी बुनियादी ढाँचा विकास निधि के अंतर्गत ऑडिट को परियोजना निर्माण से आगे बढ़ाकर नियमित अनुरक्षण तक विस्तारित करना।
- संपत्ति निर्माण की बजाय संपत्ति प्रबंधन: भारत को केवल नए बुनियादी ढाँचे के निर्माण से हटकर शहरी और अर्द्ध-शहरी क्षेत्रों में पुरानी सार्वजनिक संपत्तियों के रखरखाव पर ध्यान केंद्रित करना होगा।
- उदाहरण के लिए: पुलों, सड़कों और सार्वजनिक भवनों के नियमित रखरखाव को प्राथमिकता देने के लिए AMRUT जैसी योजनाओं का पुनर्गठन करना चाहिए, विशेषकर 10 लाख से अधिक आबादी वाले शहरों में।
- दुर्घटनाओं के बाद वैधानिक जाँच: बुनियादी ढाँचे के ध्वस्त होने पर वैधानिक जाँच शुरू होनी चाहिए और देश भर में ऐसी संपत्तियों का स्वचालित पूर्ण ऑडिट होना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: वडोदरा पुल के ढहने (2025) के बाद, एक कानूनी ढाँचे के तहत ऐसे ही पुलों का अनिवार्य ऑडिट करने का आदेश दिया जाना चाहिए।
- डेटा-संचालित सार्वजनिक रिपोर्टिंग: पारदर्शिता और सार्वजनिक निगरानी को बढ़ावा देने के लिए सभी विफलता विश्लेषण रिपोर्ट और लेखापरीक्षा निष्कर्षों को अनिवार्य रूप से प्रकाशित किया जाना चाहिए।
- शहरी स्थानीय निकायों (ULB) को मजबूत करना: बुनियादी ढाँचे की निगरानी के लिए जिम्मेदार नगर निकायों के लिए धन, स्टाफ और प्रशिक्षण में वृद्धि।
- उदाहरण: कई विभागों में अभी भी कम धन और स्टाफ की कमी है; लक्षित क्षमता निर्माण को स्मार्ट सिटीज और अमृत मिशनों में एकीकृत किया जाना चाहिए।
- पूर्व-चेतावनी और निगरानी प्रणालियाँ: रियल टाइम चेतावनियों के लिए IoT और AI-सक्षम अवसंरचना स्वास्थ्य निगरानी प्रणालियों को अपनाना चाहिए।
- उदाहरण के लिए: मुंबई और कोलकाता जैसे उच्च यातायात वाले पुलों पर संरचनात्मक कमजोरियों का पता लगाने और दुर्घटनाओं को रोकने के लिए सेंसर का उपयोग किया जा सकता है।
निष्कर्ष
नियमित संरचनात्मक ऑडिट, विशेष रूप से उच्च घनत्व वाले शहरी केंद्रों में, पारदर्शी रिपोर्टिंग और नगरपालिका की मजबूत क्षमता के साथ, आवश्यक हैं। इन प्रणालीगत सुधारों के बिना, भारत का बुनियादी ढाँचा रोके जा सकने वाली विफलताओं के प्रति संवेदनशील बना रहेगा।
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