Q. पंजाब में हाल ही में आई बाढ़ से जान-माल का भारी नुकसान हुआ और लोग विस्थापित हुए। इन बाढ़ों के पीछे प्राकृतिक और मानवीय कारकों का विश्लेषण कीजिए, और राज्य में बाढ़ की तैयारी और लचीलापन बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • पंजाब में बाढ़ के लिए कौन-से प्राकृतिक और मानवीय कारण जिम्मेदार हैं?
  • राज्य में बाढ़ की तत्परता और प्रत्यास्थता को बढ़ाने के उपाय।

उत्तर

पंजाब, जिसे ‘भारत का अन्न भंडार’ कहा जाता है, देश की कुल भूमि का केवल 1.5% क्षेत्र कवर करते हुए भी लगभग 20% गेहूँ और 12% चावल का उत्पादन करता है। हालाँकि, इसकी नदी-प्रधान भौगोलिक संरचना इसे स्वभावतः बाढ़-प्रवण बनाती है। हाल ही में पंजाब ने भीषण बाढ़ का सामना किया, जहाँ मौसमी औसत से 45% अधिक वर्षा दर्ज की गई जिससे नदियों में बाढ़ आ गई, जिसके चलते बड़े पैमाने पर विस्थापन और क्षति हुई। ये बाढ़ें प्राकृतिक और मानव-जनित कारकों के जटिल अंतर्संबंध का परिणाम थीं।

पंजाब में बाढ़ के पीछे प्राकृतिक कारक

  • जलग्रहण क्षेत्रों में अत्यधिक मानसूनी वर्षा: पंजाब, हिमाचल प्रदेश और जम्मू-कश्मीर में तीव्र वर्षा ने नदियों में जल प्रवाह उनकी वहन क्षमता से अधिक बढ़ा दिया।
    • उदाहरण के लिए: अगस्त 2025 में क्षेत्र में 45% अधिक वर्षा हुई, जिससे ब्यास में 50,000–55,000 क्यूसेक और रावी में 2 लाख से अधिक क्यूसेक पानी का प्रवाह दर्ज किया गया।
  • पंजाब की भौगोलिक संवेदनशीलता: पंजाब, पाँच नदियों के बेसिन में अवस्थित है और यहाँ की उपजाऊ दोआब मिट्टी वाले मैदान मानसून के दौरान बार-बार बाढ़ का सामना करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: पठानकोट, गुरदासपुर जैसे जिले नदी के निकट होने के कारण अक्सर प्रभावित होते हैं।
  • मौसमी नदियाँ और पहाड़ी नाले: घग्गर जैसी मौसमी नदियाँ और अनेक पहाड़ी नदियाँ भारी वर्षा के दौरान आकस्मिक बाढ़ का कारण बनती हैं।
  • जलवायु परिवर्तनशीलता और चरम घटनाएँ: जलवायु परिवर्तन के कारण चरम वर्षा की घटनाओं की आवृत्ति बढ़ रही है, जिससे प्राकृतिक बाढ़ का जोखिम और गहरा हो रहा है।
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2025 में बाढ़ का प्रवाह 2023 (पिछली बार पंजाब में बाढ़) की तुलना में लगभग 20% अधिक है, जो चरम मौसम की तीव्रता को दर्शाता है।

पंजाब में बाढ़ के पीछे मानवीय कारक

  • बाँध और जलाशयों का अव्यवस्थित प्रबंधन: जुलाई–अगस्त में जलाशयों का स्तर अधिक होने से बाढ़ नियंत्रण हेतु आवश्यक फ्लड कुशन कम हो जाता है, जिसके कारण भारी वर्षा के समय अचानक पानी छोड़ना पड़ता है।
  • एजेंसियों के बीच कमजोर समन्वय: ऊपरी और निचले क्षेत्रों के प्राधिकरणों के बीच रियल-टाइम संवाद की कमी से समय रहते रोकथाम के उपाय नहीं हो पाते।
    • उदाहरण के लिए: पंजाब सिंचाई विभाग और BBMB के बीच खराब समन्वय के कारण माधोपुर बैराज में गेट फेल हो गए।
  • धुस्सी बाँधों पर अतिक्रमण और उनका कमजोर होना: अवैध खनन और रखरखाव की कमी ने तटबंधों को कमजोर कर दिया है, जिससे उनकी बाढ़ सुरक्षा क्षमता घट गई है।
    • उदाहरण के लिए: केंद्रीय कृषि मंत्री ने तटबंध टूटने के पीछे अवैध खनन को एक प्रमुख कारण बताया।
  • अनियोजित शहरीकरण और जल निकासी अवरोध: तेजी से हो रहे शहरी विस्तार ने प्राकृतिक जल निकासी चैनलों को अवरुद्ध कर दिया है, जिसके चलते शहरी क्षेत्रों में भीषण जलजमाव और बाढ़ की स्थिति उत्पन्न होती है।

बाढ़ की तत्परता और प्रत्यास्थता बढ़ाने के उपाय

  • एकीकृत बाँध और जलाशय प्रबंधन: जलवायु पूर्वानुमानों को ध्यान में रखते हुए डायनेमिक रूल कर्व्स अपनाए जाने चाहिए, ताकि पर्याप्त फ्लड कुशन बनाए रखा जा सके।
    • उदाहरण के लिए: सिंचाई, विद्युत और बाढ़ नियंत्रण आवश्यकताओं में संतुलन लाने के लिए BBMB जलाशय प्रबंधन को संशोधित करना।
  • तटबंधों को सुदृढ़ एवं आधुनिक बनाना: जियो-सिंथेटिक सामग्रियों से धुस्सी बाँधों (मिट्टी के तटबंधों) को सुदृढ़ बनाना चाहिए तथा अवैध खनन को रोकना।
  • उन्नत प्रारंभिक चेतावनी प्रणालियाँ: AI-आधारित रियल टाइम बाढ़ पूर्वानुमान और सामुदायिक चेतावनी प्रणालियाँ लागू करनी चाहिए।
  • प्राकृतिक जल निकासी और आर्द्रभूमि का पुनरुद्धार: हरिके आर्द्रभूमि का पुनरुद्धार करना चाहिए और अतिरिक्त जल के मुक्त प्रवाह के लिए पहाड़ी नालों (Choes) को साफ करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: हरिके आर्द्रभूमि का पुनरुद्धार ब्यास और सतलुज के लिए प्राकृतिक बाढ़ अवरोधक के रूप में कार्य कर सकता है।
  • जलवायु-अनुकूल शहरी नियोजन: बाढ़-प्रवण शहरों में जोनिंग विनियमों को लागू करना और संधारणीय जल निकासी प्रणालियों का निर्माण करना चाहिए।
  • समुदाय-केंद्रित बाढ़ प्रबंधन: स्थानीय आपदा प्रतिक्रिया दलों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए और किसानों के लिए बाढ़ बीमा को बढ़ावा दिया जाना चाहिए।
  • अंतर-राज्यीय और केंद्र-राज्य समन्वय तंत्र: हिमाचल, जम्मू-कश्मीर, हरियाणा और पंजाब को शामिल करते हुए एक एकीकृत नदी बेसिन प्राधिकरण बनाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण ने उत्तर प्रदेश और बिहार में बेहतर समन्वय सुनिश्चित किया है।

निष्कर्ष

विशेषज्ञों का सुझाव है कि पंजाब में बाढ़ जोखिमों को कम करने के लिए वैज्ञानिक बाँध प्रबंधन, तटबंधों का रखरखाव, जलवायु-संवेदनशील योजना और अवैध खनन पर रोक आवश्यक है। एक राज्य स्तरीय फ्लड मैनेजमेंट अथॉरिटी का गठन, BBMB में प्रतिनिधित्व, प्रभावित हो सकने वाले राज्यों के साथ रियल-टाइम डेटा साझा करना और सक्रिय जोखिम न्यूनीकरण के प्रयास—ये सभी कदम पंजाब को एक जलवायु-प्रत्यास्थ कृषि राज्य बनाने में सहायक हो सकते हैं।

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