प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत में अंगदान के संदर्भ में लैंगिक असंतुलन को कम करने के लिए NOTTO द्वारा शुरू किए गए परिवर्तनों पर चर्चा कीजिए।
- इन नए परिवर्तनों के समक्ष आने वाली चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
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उत्तर
स्वास्थ्य सेवा महानिदेशालय के अधीन राष्ट्रीय अंग एवं ऊतक प्रत्यारोपण संगठन (NOTTO), भारत में अंग एवं ऊतक की खरीद और आवंटन की देख-रेख करता है। यह मानते हुए कि महिलाएँ अधिक अंगदान करती हैं, लेकिन कम प्रत्यारोपण प्राप्त करती हैं, NOTTO ने निष्पक्षता को बढ़ावा देने और सामाजिक-सांस्कृतिक पूर्वाग्रहों को दूर करने हेतु महिला रोगियों और मृतक दाताओं के परिजनों को प्राथमिकता देने की सलाह दी है।
लैंगिक असंतुलन को दूर करने के लिए NOTTO द्वारा प्रस्तुत उपाय
- महिला प्राप्तकर्ताओं के लिए प्राथमिकता: लाभार्थियों में लिंग असमानता को दूर करने के लिए प्रत्यारोपण की प्रतीक्षा कर रही महिला रोगियों को अंग आवंटन के मामले में प्राथमिकता देना चाहिए।
- उदाहरण: वर्ष 2023 में, जीवित दाताओं में महिलाओं की संख्या 63% थी लेकिन अंग के प्रकार के आधार पर, प्राप्तकर्ताओं में उनकी संख्या केवल 24-47% होगी।
- मृतक दाताओं के रिश्तेदारों को मान्यता: आवंटन प्रक्रिया में मृतक अंग दाताओं के निकट रिश्तेदारों को प्राथमिकता दी जाएगी तथा दाता परिवारों के योगदान को मान्यता दी जाएगी।
- पितृसत्तात्मक मानदंडों का समाधान: उन सामाजिक प्रतिमानों का मुकाबला करने के लिए इसे अभिकल्पित किया गया है, जहाँ महिलाओं द्वारा अंगदान करने की संभावना अधिक होती है, परंतु प्रत्यारोपण प्राप्त करने की संभावना कम होती है।
- उदाहरण: ब्रिटिश मेडिकल जर्नल का विश्लेषण (2018-23) के अनुसार, 36,038 महिलाओं ने अंग दान किए; केवल 17,041 को अंग प्राप्त हुए।
- आवंटन नीति में समावेशिता: परामर्श को अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक मानदंडों को पुनर्लेखित करने के सुधारात्मक उपाय के रूप में तैयार किया गया।
- जागरूकता और पारदर्शिता को प्रोत्साहित करना: प्रक्रिया को अधिक न्यायसंगत और दृश्यमान बनाने के लिए संस्थागत उद्देश्यों को प्रोत्साहित करना चाहिए, जिससे अधिक महिलाएँ प्रत्यारोपण के लिए पंजीकरण कराएँ।
इन परिवर्तनों को लागू करने में चुनौतियाँ
- समानता और तात्कालिकता में संतुलन: महिलाओं को प्राथमिकता देने से सबसे गंभीर रोगी को पहले बचाने के मूल सिद्धांत पर कोई प्रभाव नहीं पड़ना चाहिए।
- उदाहरण: इस सिद्धांत पर बल दिया गया है कि सबसे अधिक चिकित्सीय आवश्यकता वाले व्यक्ति को इनकार न हो।
- वर्तमान प्रोटोकॉल के साथ संघर्ष: मौजूदा अंग आवंटन नियम केवल चिकित्सीय तात्कालिकता को प्राथमिकता देते हैं, लिंग को नहीं; मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम के तहत कानूनी ढाँचे में लिंग आधारित प्रावधानों का अभाव है।
- ‘निकटतम रिश्तेदारों’ को परिभाषित करने में अस्पष्टता: समावेशन मानदंडों पर विवाद, आवेदन में असंगतता पैदा कर सकता है।
- दुरुपयोग और आउट-ऑफ-टर्न आवंटन का जोखिम: इस प्रणाली का दुरुपयोग विशेष लाभ प्राप्त करने के लिए बैक डोर एंट्री के रूप में हो सकता है।
- प्रशासनिक और सत्यापन संबंधी बाधाएँ: आवंटन में लैंगिक-आधारित प्रणाली लागू करने हेतु दाता का इतिहास और पात्रता की पुष्टि के लिए अतिरिक्त सत्यापन चरण आवश्यक होंगे, जो पहले से ही समय-संवेदी प्रक्रिया को धीमा कर सकते हैं।
- उदाहरण: अतिरिक्त दस्तावेजीकरण और कई एजेंसियों के साथ समन्वय से प्रत्यारोपण में देरी हो सकती है।
- बहु-एजेंसी समन्वय की आवश्यकता: सफलता अस्पतालों, राज्य प्राधिकरणों और NOTTO के बीच सहयोग पर निर्भर करती है, जो भारत की विविध स्वास्थ्य प्रणाली में चुनौतीपूर्ण हो सकता है।
- उदाहरण: परामर्श में सभी कार्यान्वयन एजेंसियों को शामिल करते हुए सहभागी प्रक्रिया पर बल दिया जाता है।
निष्कर्ष
अंग प्रत्यारोपण में लैंगिक असमानता का समाधान केवल उद्देश्य से नहीं बल्कि स्पष्ट परिभाषाओं, पारदर्शी मानदंडों, मजबूत सुरक्षा उपायों और कड़ी निगरानी से संभव है। NOTTO को सहभागितापूर्ण निर्णय-निर्माण, मानव अंग प्रत्यारोपण अधिनियम का अनुपालन और नियमित ऑडिट के साथ डेटा-आधारित निगरानी सुनिश्चित करनी चाहिए। जन जागरूकता के जरिए महिलाओं के स्वास्थ्य के प्रति पूर्वाग्रहों को चुनौती देनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि अंग आवंटन समावेशी तथा चिकित्सकीय रूप से न्यायसंगत हो।
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