प्रश्न की मुख्य माँग
- भारतीय जहाज निर्माण उद्योग की संरचनात्मक बाधाएँ।
- जहाज निर्माण को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के उपाय।
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उत्तर
भारत का जहाज निर्माण क्षेत्र, जो व्यापार, ऊर्जा सुरक्षा और समुद्री शक्ति के लिए अत्यंत महत्त्वपूर्ण है, वर्ष 2015 से नीति समर्थन के बावजूद संघर्षरत है। पिछले एक दशक में केवल कुछ छोटे व्यापारी जहाज बने हैं, जिससे भारत चीन, जापान और दक्षिण कोरिया से बहुत पीछे है। यह गहन संरचनात्मक बाधाओं को दर्शाता है, जिन्हें वैश्विक प्रतिस्पर्द्धात्मकता के लिए तत्काल सुधारों की आवश्यकता है।
भारतीय जहाज निर्माण उद्योग की संरचनात्मक बाधाएँ
- बड़े व्यापारी जहाजों की सीमित क्षमता: भारत की जहाज निर्माण क्षमता नगण्य है, और पिछले एक दशक में केवल आधा दर्जन छोटे व्यापारी जहाज बने हैं।
- उदाहरण: कुछ शिपयार्डों को रक्षा ऑर्डर मिलने के बावजूद भारत कोरिया या चीन के पैमाने पर बड़े जहाज नहीं बना पाया है।
- शिपयार्ड में पुराना बुनियादी ढाँचा: भारतीय शिपयार्ड में लंबे ड्राई डॉक, 1000-टन क्रेन और प्रीफैब्रिकेटेड ब्लॉक असेंबली की जगह नहीं है, जिससे निर्माण में देरी होती है।
- उदाहरण: जहाँ कोरियाई और जापानी शिपयार्ड 3–4 माह में कील से लेकर जलावतरण तक पूरा कर लेते हैं, वहीं भारतीय शिपयार्ड इस प्रक्रिया में 2–3 वर्ष लेते हैं।
- कमजोर सहायक उद्योग समर्थन: मजबूत सहायक कारखानों की अनुपस्थिति आपूर्ति शृंखला को बाधित करती है, जिससे लागत और समय दोनों बढ़ जाते हैं।
- उदाहरण: चीन के औद्योगिक क्लस्टर घटक निर्माण को एकीकृत करते हैं, जबकि भारत में बिखरे और कमजोर सहायक उद्योगों के कारण विलंब होता है।
- कुशल मानव संसाधन और प्रशिक्षण संस्थानों की कमी: भारत ने विशेष जहाज निर्माण प्रशिक्षण के लिए पर्याप्त संस्थान विकसित नहीं किए हैं।
- अनिश्चित माँग और वित्तीय बाधाएँ: भारतीय जहाज मालिक, लागत बढोतरी, विलंब और दीर्घकालिक अनुबंधों की कमी के कारण निवेश करने में रूचि नहीं रखते हैं।
जहाज निर्माण को वैश्विक स्तर पर प्रतिस्पर्द्धी बनाने के उपाय
- उन्नत प्रौद्योगिकी से शिपयार्ड का आधुनिकीकरण: अत्याधुनिक उपकरण, क्रेन और मॉड्यूलर निर्माण में निवेश से विलंब कम होने की संभावना है।
- उदाहरण: कोरियाई शिपयार्ड की तरह ब्लॉक प्रीफैब्रिकेशन अपनाने से निर्माण अवधि लगभग एक वर्ष तक कम सकती है।
- सहायक उद्योगों वाले शिपबिल्डिंग क्लस्टर का विकास: घटकों और स्पेयर पार्ट्स के लिए औद्योगिक क्लस्टर दक्षता में सुधार करेंगे।
- छोटे जहाज निर्माण को शुरुआती आधार बनाना: 500 ग्रॉस टनेज वाले जहाजों से शुरुआत कर धीरे-धीरे तकनीकी क्षमता बढ़ाई जा सकती है।
- जहाज निर्माण को हरित ऊर्जा नीति से जोड़ना: काकीनाडा और कोच्चि जैसे बंदरगाहों में हरित ईंधन परियोजनाओं का लाभ उठाकर हरित जहाजों का निर्माण माँग उत्पन्न करेगा।
- उदाहरण: हरित ईंधन निर्यात को हरित ईंधन चालित जहाज निर्माण से जोड़ने पर स्थायी ऑर्डर सुनिश्चित होंगे।
- दीर्घकालिक ऑफ-टेक अनुबंध सुनिश्चित करना: शिपिंग अनुबंधों के माध्यम से माँग की गारंटी देने से जहाज मालिक घरेलू ऑर्डर देने के लिए प्रोत्साहित होंगे।
- उदाहरण: राज्य-स्वामित्व वाली यूटिलिटीज द्वारा कोयला आयात या तेल कंपनियों द्वारा कच्चे तेल आयात हेतु समय-निश्चित चार्टर भारतीय शिपयार्डों को माँग की स्थिरता प्रदान कर सकते हैं।
निष्कर्ष
भारत के जहाज निर्माण पुनरुद्धार की सफलता इस पर निर्भर करेगी कि वह पिछली विफलताओं से सीख लेकर दक्षता, प्रौद्योगिकी और सुनिश्चित माँग पर ध्यान केंद्रित करे। जहाज निर्माण को हरित ऊर्जा लक्ष्यों से जोड़ना और छोटे जहाजों से क्रमिक दृष्टिकोण अपनाना भारत को विदेशी निर्भरता कम करने तथा धीरे-धीरे एक वैश्विक प्रतिस्पर्द्धी समुद्री केंद्र के रूप में उभरने में मदद करेगा।
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