उत्तर:
दृष्टिकोण:
- भूमिका : भारत में बढ़ती बेरोज़गारी की चुनौती की रूपरेखा तैयार करें, आर्थिक मंदी और जनसांख्यिकीय दबाव के कारण इसकी हालिया वृद्धि पर प्रकाश डालें।
- मुख्य भाग :
- जनसांख्यिकीय चुनौतियों, नीतिगत प्रभावों, तकनीकी विस्थापन और कौशल बेमेल सहित आर्थिक कारकों पर चर्चा करें।
- व्यावसायिक प्रशिक्षण बढ़ाने, एसएमई का समर्थन करने, उद्यमिता को बढ़ावा देने, तकनीक-संचालित क्षेत्रों में निवेश करने और बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचा परियोजनाओं को शुरू करने जैसे व्यावहारिक उपाय सुझाएं।
- निष्कर्ष: एक बहुआयामी रणनीति की आवश्यकता का सारांश प्रस्तुत करें जो बेरोजगारी से प्रभावी ढंग से निपटने और भारत के जनसांख्यिकीय लाभ का लाभ उठाने के लिए शैक्षिक, आर्थिक और ढांचागत सुधारों को एकीकृत करे।
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भूमिका :
भारत में बेरोजगारी एक स्थायी चुनौती रही है, जो हाल के वर्षों में विभिन्न आर्थिक और जनसांख्यिकीय कारकों के कारण और भी गंभीर हो गई है। भारतीय अर्थव्यवस्था के विशेष संदर्भ में रोजगार सृजन को प्रोत्साहित करने के लिए प्रभावी रणनीति तैयार करने के लिए इन योगदानकर्ताओं को समझना आवश्यक है।
मुख्य भाग :
बेरोजगारी में योगदान देने वाले कारक:
- जनसांख्यिकी रुझान: भारत के जनसांख्यिकीय लाभांश के परिणामस्वरूप हरवर्ष एक बड़ी युवा आबादी नौकरी बाजार में प्रवेश कर रही है। नौकरी चाहने वालों की संख्या नौकरी सृजन से अधिक है, जिससे बेरोजगारी दर में वृद्धि हुई है।
- आर्थिक मंदी: हाल के वर्षों में आर्थिक विकास मंद हो गया है, 2016 में विमुद्रीकरण और 2017 में जीएसटी कार्यान्वयन से इसमें और वृद्धि हुई, जिसने छोटे और मध्यम उद्यमों को काफी प्रभावित किया। कोविड-19 महामारी ने आर्थिक गतिविधियों को और अधिक संकुचित कर दिया, जिससे नौकरियों की हानि हुई और रोजगार के अवसर कम हो गए।
- तकनीकी परिवर्तन: स्वचालन और डिजिटलीकरण ने पारंपरिक नौकरियों को विस्थापित कर दिया है, खासकर विनिर्माण और सेवाओं जैसे क्षेत्रों में। तेजी से विकसित हो रहे तकनीकी परिदृश्य में कार्यबल कौशल की मांग के अनुरूप ढलने में धीमा रहा है
- असंगत कौशल: भारतीय श्रम बाजार में एक महत्वपूर्ण कौशल विसंगति है। शैक्षणिक संस्थान अक्सर उद्योगों की व्यावहारिक कौशल आवश्यकताओं के अनुरूप नहीं होते हैं, जिससे ऐसी योग्यता वाले स्नातकों की संख्या अधिक हो जाती है जो नौकरी बाजार की आवश्यकताओं को पूरा नहीं करते हैं।
रोजगार सृजन के लिए रणनीतियाँ:
- कौशल और शिक्षा में वृद्धि: व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रम लागू करें जो उद्योग की आवश्यकताओं के अनुरूप हूं। शैक्षणिक संस्थानों और उद्योगों के मध्य साझेदारी से यह सुनिश्चित किया जा सकता है कि पाठ्यक्रम समृद्ध बाजार की आवश्यकताओं के साथ मेल खाता है।
- आर्थिक विकास को बढ़ावा देना: नवीन प्रौद्योगिकियों को अपनाने के लिए वित्त और प्रोत्साहन तक आसान पहुंच के माध्यम से लघु एवं मध्यम उद्यमों (एसएमई) को पुनर्जीवित और समर्थन करना। एसएमई महत्वपूर्ण रोजगार सृजनकर्ता हैं और कार्यबल को समाहित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं।
- उद्यमिता को बढ़ावा देना: स्टार्टअप इन्क्यूबेशन कार्यक्रमों, कर लाभ और स्टार्टअप पारिस्थितिकी तंत्र के सरलीकरण के माध्यम से उद्यमिता को प्रोत्साहित करें। यह रोजगार की आवश्यकता वाले व्यक्ति को रोजगार प्रदाता में परिवर्तित कर सकता है
- प्रौद्योगिकी का लाभ उठाना: डिजिटल सेवाओं, ई-कॉमर्स और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे प्रौद्योगिकी-संचालित क्षेत्रों में निवेश करें। ये क्षेत्र न केवल सतत विकास मैं सहायता करते हैं बल्कि श्रम प्रधान भी हैं।
- आधारभूत संरचना विकास: सड़क, रेलवे और शहरी विकास जैसी आधारभूत संरचना परियोजनाओं में निवेश में वृद्धि करना। ऐसी परियोजनाएं कौशल स्तरों पर बृहद स्तर पर रोजगार के अवसर का सृजन करती हैं और विभिन्न संबंधित क्षेत्रों में रोजगार पर कई गुना प्रभाव डालती हैं।
निष्कर्ष:
भारत में उच्च बेरोजगारी स्तर एक बहुआयामी समस्या है जिसे जनसांख्यिकीय प्रवृत्तियों, आर्थिक नीतियों, प्रौद्योगिकी परिवर्तनों, और शैक्षिक अंतरालों से प्रभावित किया जाता है। इस मुद्दे का समाधान करने के लिए एक व्यापक रणनीति की आवश्यकता है जिसमें शैक्षिक सुधार, आर्थिक प्रोत्साहन और ढांचागत विकास शामिल हो। नीतिगत पहलों को वास्तविकता के साथ जोड़कर और उच्च रोजगार क्षमता वाले क्षेत्रों पर ध्यान केंद्रित करके, भारत अपने जनसांख्यिकीय लाभांश का प्रभावी ढंग से उपयोग कर सकता है और बेरोजगारी को काफी हद तक कम कर सकता है।
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