Q. क्षेत्रीय दावों और जल संसाधनों पर चीन की हालिया कार्रवाइयों के माध्यम से दक्षिण एशिया में उसकी विस्तारवादी रणनीति का विश्लेषण कीजिए। चर्चा कीजिए कि द्विपक्षीय वार्ता के लिए भारत का दृष्टिकोण दक्षिण पूर्व एशिया की सामूहिक प्रतिक्रिया से कैसे भिन्न है। क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखते हुए ऐसी चुनौतियों से निपटने के लिए एक व्यापक रूपरेखा का सुझाव भी दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • क्षेत्रीय दावों और जल संसाधनों पर चीन की हालिया कार्रवाइयों के माध्यम से दक्षिण एशिया में उसकी विस्तारवादी रणनीति का विश्लेषण कीजिए।
  • चीन की कार्रवाइयों का मुकाबला करने के लिए भारत की द्विपक्षीय वार्ता की रणनीति की तुलना दक्षिण पूर्व एशिया के सामूहिक दृष्टिकोण से कीजिए।
  • क्षेत्रीय स्थिरता बनाए रखते हुए ऐसी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक रूपरेखा का सुझाव दीजिए।

उत्तर

दक्षिण एशिया में चीन की विस्तारवादी रणनीति, उसके क्षेत्रीय दावों और जल संसाधनों पर नियंत्रण से स्पष्ट है। उल्लेखनीय है कि चीन, तिब्बत में ब्रह्मपुत्र नदी पर बने मेटोक बांध पर 137 बिलियन डॉलर की लागत वाली जल विद्युत परियोजना के निर्माण की योजना बना रहा है। इस योजना ने भारत में संभावित जल संकट और भू-राजनीतिक तनाव के संबंध में गंभीर चिंताएँ उत्पन्न कर दी हैं।

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दक्षिण एशिया में चीन की विस्तारवादी रणनीति

क्षेत्रीय दावे

  • काउंटियों की स्थापना और क्षेत्रों का नाम बदलना: चीन विवादित क्षेत्रों पर नियंत्रण स्थापित करने के लिए स्थानों का नाम बदलने और नई प्रशासनिक इकाइयाँ बनाने जैसी कार्टोग्राफिक आक्रामकता का उपयोग करता है, जिससे पड़ोसी संप्रभुता कमजोर होती है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन ने वर्ष 2023 में लद्दाख में दो नए काउंटी घोषित किए और अरुणाचल प्रदेश में 11 स्थानों का नाम बदल दिया।
  • विवादित क्षेत्रों में बस्तियाँ बसाना: चीन विवादित क्षेत्रों में बुनियादी ढाँचे और गाँव बनाता है और फिर इन्हीं इलाकों में प्रभावी प्रशासनिक नियंत्रण का दावा करता है। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2020 में डोकलाम पठार के पास भूटान के विवादित क्षेत्र में एक गाँव की स्थापना ने चीन की उपस्थिति को मजबूत किया।
  • पड़ोसी देशों के इलाकों पर दावा जताना: चीन आधिकारिक मानचित्रों का इस्तेमाल करके नेपाल, भूटान और भारत के कुछ चुनिंदा इलाकों को अपने क्षेत्र में दिखाता है, जो अंतरराष्ट्रीय मानदंडों की अनदेखी करता है। 
    • उदाहरण के लिए: चीन के वर्ष 2023 के मानक मानचित्र में अरुणाचल प्रदेश, भूटान की भूमि और नेपाली क्षेत्रों को चीन का हिस्सा बताया गया है।

जल संसाधन

  • एकतरफा बांध निर्माण: सीमा पार की नदियों पर बड़े बांध बनाकर चीन नीचे की ओर बहने वाले जल के प्रवाह को सीमित करता है और जल पर नियंत्रण रखता है, जो एक रणनीतिक संपत्ति है। 
    • उदाहरण के लिए: यारलुंग जैंगबो बांध परियोजना भारत और बांग्लादेश को जल की आपूर्ति को खतरे में डालती है, जिससे बाढ़ और सूखे का खतरा है।
  • जल बंटवारे पर पारदर्शिता का अभाव: चीन लगातार जल विज्ञान संबंधी डेटा साझा करने से इनकार करता है, जिससे निचले इलाकों के देश मौसमी बाढ़ या जल की कमी के प्रति संवेदनशील हो जाते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: चीन ने वर्ष 2017 के डोकलाम गतिरोध के दौरान भारत से महत्त्वपूर्ण जल डेटा छिपाया, जिससे सुभेद्यताएँ और अधिक बढ़ गईं।

तुलना: भारत की द्विपक्षीय वार्ता बनाम दक्षिण पूर्व एशिया की सामूहिक प्रतिक्रिया

पहलू भारत का द्विपक्षीय दृष्टिकोण दक्षिण पूर्व एशिया का सामूहिक दृष्टिकोण
वार्ता शैली भारत अपने पड़ोसियों के साथ व्यक्तिगत रूप से संबंध रखता है, जो चीन के साथ शक्ति विषमता को दर्शाता है। दक्षिण-पूर्व एशिया, समन्वित प्रतिक्रिया के लिए ASEAN जैसे क्षेत्रीय मंचों का उपयोग करता है ।
प्रभावशीलता विखंडित प्रयासों के कारण इसमें शक्ति की कमी है, जिससे चीन को क्षेत्रीय असमानता का फायदा उठाने का मौका मिल जाता है। एकीकृत सौदेबाजी शक्ति प्रदान करता है और  विवादों की स्थिति में लाभ प्रदान करता है।
दायरा यह मुद्दा चीन के साथ सीमा विवाद और जल मुद्दों तक सीमित है । आर्थिक और सामरिक सहयोग सहित व्यापक चिंताओं का समाधान करता है।
लचीलापन  अनुकूलित समाधान की अनुमति देता है, लेकिन इसमें सामूहिक ढाँचे का अभाव है। संस्थागत तंत्र, बहुपक्षीय वार्ता और समन्वित कार्रवाई को सुविधाजनक बनाते हैं।
सफलता के उदाहरण सीमित सफलता, जैसे 2020 गलवान घाटी संघर्ष,इसमें अस्थायी समाधान प्राप्त हुआ। मेकांग नदी आयोग और दक्षिण चीन सागर वार्ता, दीर्घकालिक सफलता को दर्शाती है।

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चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए व्यापक ढांचा

  • क्षेत्रीय मंच का निर्माण: चीन के साथ विवादों को सुलझाने के लिए दक्षिण एशियाई जल और प्रादेशिक आयोग की स्थापना करना चाहिए जिससे राष्ट्रों के बीच एकता को बढ़ावा मिले।
    • उदाहरण के लिए: ASEAN का मेकांग नदी आयोग नदी विवादों के समाधान और रणनीतिक सहयोग के लिए एक सफल मॉडल प्रस्तुत करता है।
  • उन्नत कूटनीति: चीन के प्रभुत्व का मुकाबला करने और क्षेत्रीय एकजुटता को बढ़ावा देने के लिए दक्षिण एशियाई देशों के बीच बहुपक्षीय संबंधों को मजबूत करना चाहिए 
    • उदाहरण के लिए: भारत की BIMSTEC पहलों में जल सुरक्षा और क्षेत्रीय संघर्ष समाधान को शामिल किया जा सकता है।
  • बुनियादी ढाँचे का विकास: चीन की प्रगति से मेल खाने और रणनीतिक तैयारी सुनिश्चित करने के लिए सुभेद्य क्षेत्रों में जलविद्युत और सीमा परियोजनाओं में तेजी लाना।
    • उदाहरण के लिए: अरुणाचल प्रदेश की जलविद्युत परियोजनाओं में भारत का 1 बिलियन डॉलर का निवेश चीन के बांधों का मुकाबला करने के उद्देश्य से किया गया है।
  • अंतर्राष्ट्रीय मंचों का लाभ उठाना: चीन की एकपक्षीय नीति को उजागर करने और निष्पक्ष समाधान के लिए वैश्विक समर्थन हासिल करने हेतु संयुक्त राष्ट्र जैसे अंतर्राष्ट्रीय मंचों का लाभ उठाना चाहिए
    • उदाहरण के लिए: भारत ने 2023 में संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार परिषद में चीनी आक्रामकता पर चिंता जताई।
  • डेटा साझा करने की प्रणाली: जल-संबंधी जोखिमों की भविष्यवाणी करने और बाढ़ के खिलाफ़ प्रत्यास्थता का निर्माण करने के लिए रियलटाइम हाइड्रोलॉजिकल डेटा को साझा करने हेतु पड़ोसियों के साथ सहयोग करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: ब्रह्मपुत्र बाढ़ पूर्वानुमान पर भारत और बांग्लादेश की संयुक्त पहल ने आपदा प्रभावों को कम किया है।

द्विपक्षीय वार्ता के प्रति भारत का दृष्टिकोण, चीन के विस्तारवाद के प्रति दक्षिण-पूर्व एशिया की सामूहिक प्रतिक्रिया के विपरीत है। जबकि भारत प्रत्यक्ष रूप से चीन के साथ जुड़ाव रखता है, दक्षिण-पूर्व एशियाई देश अक्सर साझा चुनौतियों का समाधान करने के लिए ASEAN जैसे क्षेत्रीय मंचों के माध्यम से सहयोग करते हैं। चीन की रणनीतियों का मुकाबला करने के लिए एक व्यापक ढाँचे में बहुपक्षीय सहयोग, मजबूत क्षेत्रीय गठबंधन और क्षेत्रीय स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए मजबूत कूटनीतिक जुड़ाव शामिल होना चाहिए ।

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