Q. भारत को तकनीकी कर्मचारियों और उपकरणों के निर्यात पर चीन द्वारा लगाए गए हालिया प्रतिबंध वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की कमजोरियों को उजागर करते हैं। विश्लेषण कीजिए कि भारत चीन के साथ आर्थिक निर्भरता का प्रबंधन करते हुए अपनी विनिर्माण महत्वाकांक्षाओं को कैसे संतुलित कर सकता है। रणनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करने में घरेलू क्षमता निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय भागीदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि चीन द्वारा भारत को तकनीकी कर्मचारियों और उपकरणों के निर्यात पर हाल ही में लगाए गए प्रतिबंध, किस प्रकार वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुभेद्यताओं को उजागर करते हैं।
  • विश्लेषण कीजिए कि भारत, चीन के साथ आर्थिक निर्भरता का प्रबंधन करते हुए अपनी विनिर्माण महत्त्वाकांक्षाओं में किस प्रकार संतुलन बना सकता है।
  • रणनीतिक स्वायत्तता प्राप्त करने में घरेलू क्षमता निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की भूमिका पर चर्चा कीजिए।

उत्तर

चीन ने अर्धचालकों और रक्षा प्रौद्योगिकियों के लिए आवश्यक गैलियम, जर्मेनियम और एंटीमनी जैसी महत्त्वपूर्ण सामग्रियों पर निर्यात प्रतिबंध लगा दिए हैं। यह कार्रवाई वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं की सुभेद्यताओं को रेखांकित करती है और अप्रैल-अक्टूबर 2024 के दौरान चीन के साथ 57.83 बिलियन डॉलर के व्यापार घाटे को देखते हुए भारत की विनिर्माण महत्त्वाकांक्षाओं को चुनौती देती है ।

चीन के प्रतिबंध और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला की सुभेद्यताओं

  • कुशल कार्यबल में व्यवधान: इंजीनियरों पर चीन के यात्रा प्रतिबंध ने नॉलेज गैप उत्पन्न कर दिया है, जिससे उत्पादन दक्षता और प्रौद्योगिकी हस्तांतरण धीमा हो गया है। 
    • उदाहरण के लिए: फॉक्सकॉन को चीनी इंजीनियरों के स्थान पर ताइवानी श्रमिकों को रखना पड़ा, जिससे असेंबली लाइन की उत्पादकता और ज्ञान हस्तांतरण प्रभावित हुआ।
  • उपकरणों पर एकाधिकार: विशेष मशीनरी निर्यात पर चीन का नियंत्रण भारत के इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में बाधा डालता है, उत्पाद लॉन्च में देरी करता है और आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रभावित करता है। 
    • उदाहरण के लिए: विशेष फॉक्सकॉन मशीनरी पर प्रतिबंधों के कारण भारत में आईफोन 16 प्रो की असेंबली प्रक्रिया बाधित हुई।
  • चीनी घटकों पर निर्भरता: भारत सर्किट बोर्ड और कैमरा मॉड्यूल जैसे प्रमुख स्मार्टफोन पार्ट्स के लिए चीन पर बहुत अधिक निर्भर है, जिसके परिणामस्वरूप घरेलू उत्पादन सुभेद्य हो जाता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत में प्रयुक्त 75% मोबाइल कलपुर्जे आयातित होते हैं, जिनमें चीन प्रमुख आपूर्तिकर्ता है।
  • वैश्विक फर्मों पर प्रभाव: चीन की कार्रवाइयों से एप्पल के भारत में विस्तार में बाधा उत्पन्न हुई है, जिससे कंपनियों को ‘चाइना प्लस वन’ के तहत अपने विविधीकरण पर पुनर्विचार करने के लिए मजबूर होना पड़ा है।
  • व्यापार वार्ता में लाभ: आपूर्ति श्रृंखलाओं को प्रतिबंधित करके, चीन अपने प्रभुत्व को बनाए रखना चाहता है, तथा अनुकूल शर्तों पर व्यापार वार्ता को प्रभावित करना चाहता है।

विनिर्माण महत्त्वाकांक्षाओं और आर्थिक अंतरनिर्भरता में संतुलन

  • आपूर्ति शृंखला विविधीकरण: वियतनाम, ताइवान, दक्षिण कोरिया और जापान से सोर्सिंग करके चीन से परे आपूर्तिकर्ता नेटवर्क का विस्तार करने से आपूर्ति श्रृंखला को प्रत्यास्थ बनाया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: PLI योजना के प्रोत्साहन वैश्विक आपूर्तिकर्ताओं को भारत में परिचालन स्थापित करने के लिए आकर्षित करते हैं।
  • घरेलू उद्योग को मजबूत करना: स्थानीय घटक उद्योगों को विकसित करने से चीनी आयात पर निर्भरता कम होती है और प्रत्यास्थता बढ़ती है। 
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय विनिर्माण मिशन, इलेक्ट्रॉनिक्स उत्पादन में लघु एवं मध्यम उद्यमों को सहायता प्रदान करता है।
  • विदेशी निवेश आकर्षण: ताइवान और पश्चिमी कंपनियों को भारत में अपने क्रिटिकल पारट्स  के निर्माण के लिए प्रोत्साहित करने से चीन पर निर्भरता कम हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: एप्पल के साथ टाटा इलेक्ट्रॉनिक्स की साझेदारी स्थानीयकृत घटक विनिर्माण की दिशा में एक कदम है।
  • रणनीतिक व्यापार कूटनीति: चीन के साथ वार्ता में शामिल होने और एप्पल जैसी बहुराष्ट्रीय कंपनियों का लाभ उठाने से प्रतिबंधों में ढील मिल सकती है। 
    • उदाहरण के लिए: वार्ता में एप्पल और फॉक्सकॉन की भागीदारी से चीन के निर्यात प्रतिबंधों को कम करने में मदद मिल सकती है।
  • अनुसंधान एवं विकास में निवेश: स्वदेशी अनुसंधान और नवाचार पर ध्यान केंद्रित करने से दीर्घकालिक तकनीकी आत्मनिर्भरता सुनिश्चित होती है। 
    • उदाहरण के लिए: ISRO द्वारा स्वदेशी क्रायोजेनिक इंजन का विकास, प्रौद्योगिकी संबंधी अड़चनों पर काबू पाने की भारत की क्षमता को दर्शाता है।

घरेलू क्षमता निर्माण और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी की भूमिका

  • कार्यबल विकास: चिप डिजाइन, रोबोटिक्स और स्वचालन में उद्योग-विशिष्ट प्रशिक्षण कार्यक्रम, कार्यबल की क्षमता को बढ़ाएंगे।
    • उदाहरण के लिए: PLI लाभार्थियों को भारत में विदेशी श्रमिकों द्वारा उत्पन्न किये गये कौशल अंतराल को कम करने के लिए भारतीय इंजीनियरों को प्रशिक्षित करना होगा।
  • सेमीकंडक्टर और कंपोनेंट इकोसिस्टम: सेमीकंडक्टर फ़ैब और कंपोनेंट प्लांट को प्रोत्साहित करने से महत्त्वपूर्ण आपूर्ति श्रृंखलाएँ स्थानीयकृत होंगी। 
    • उदाहरण के लिए: गुजरात में वेदांता का सेमीकंडक्टर प्लांट चिप आत्मनिर्भरता की दिशा में एक कदम है।
  • अंतर्राष्ट्रीय तकनीकी सहयोग: अमेरिका, जापान और यूरोपीय संघ के साथ संबंधों को मजबूत करने से प्रौद्योगिकी हस्तांतरण और आपूर्ति श्रृंखला प्रत्यास्थता को सुगम बनाया जा सकता है। 
    • उदाहरण के लिए: भारत-अमेरिका चिप्स अधिनियम सहयोग से सेमीकंडक्टर विनिर्माण को बढ़ावा मिल सकता है।
  • स्वदेशी ब्रांडों को बढ़ावा: लावा और माइक्रोमैक्स जैसे भारतीय ब्रांडों को बढ़ावा देने से  विदेशी अनुबंध निर्माताओं पर निर्भरता कम होगी। 
    • उदाहरण के लिए: भारतीय स्मार्टफोन ब्रांडों के लिए सरकारी प्रोत्साहन, उनकी वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता बढ़ा सकते हैं।
  • सार्वजनिक-निजी भागीदारी (PPP): वैश्विक फर्मों और भारतीय कंपनियों के बीच संयुक्त उद्यमों को प्रोत्साहित करने से आपूर्ति श्रृंखला सुरक्षा मजबूत होगी।

घरेलू विनिर्माण क्षमताओं को बढ़ाकर, आयात स्रोतों में विविधता लाकर और अंतर्राष्ट्रीय साझेदारी बनाकर भारत चीन पर अपनी आर्थिक निर्भरता कम कर सकता है। “आत्मनिर्भर भारत” अभियान जैसी पहलों का उद्देश्य स्थानीय उद्योगों को बढ़ावा देना है। प्रौद्योगिकी और रक्षा क्षेत्रों में संयुक्त राज्य अमेरिका और दक्षिण कोरिया जैसे देशों के साथ सहयोग करने से भारत की रणनीतिक स्वायत्तता बढ़ सकती है।

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