प्रश्न की मुख्य माँग
- पूर्वोत्तर में आंतरिक संघर्षों, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और विकास आकांक्षाओं पर चर्चा कीजिये।
- चर्चा कीजिए कि पूर्वोत्तर किस प्रकार एक्ट ईस्ट नीति के लिए रणनीतिक प्रवेशद्वार के रूप में कार्य कर सकता है।
- आंतरिक संघर्षों, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और विकास आकांक्षाओं को संबोधित करने में आगे की राह लिखिये।
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उत्तर
भारत का पूर्वोत्तर क्षेत्र, जो पाँच दक्षिण-पूर्व एशियाई देशों के साथ सीमा साझा करता है, भौगोलिक और सांस्कृतिक रूप से भारत की एक्ट ईस्ट नीति (AEP) का आधार बनने की स्थिति में है। यह ASEAN के साथ संपर्क, व्यापार और क्षेत्रीय एकीकरण को बढ़ा सकता है, लेकिन इसके लिए आंतरिक संघर्षों, पारिस्थितिक संवेदनशीलता और समावेशी विकास का एक साथ समाधान आवश्यक है।
पूर्वोत्तर में आंतरिक संघर्ष, पर्यावरण संबंधी चिंताएँ और विकास आकांक्षाएँ
- नृजातीय और सांप्रदायिक तनाव: मणिपुर में कुकी और मैतेई जैसे समुदायों के बीच लंबे समय से चली आ रही जातीय प्रतिद्वंद्विता, तथा अनसुलझे जनजातीय और शरणार्थी मुद्दे (जैसे, ब्रू शरणार्थी), अक्सर हिंसा में बदल जाते हैं।
- अनसुलझे उग्रवाद और शांति समझौते: यद्यपि NSCN-IM फ्रेमवर्क समझौते (वर्ष 2015) और बोडो समझौते (वर्ष 2020) ने प्रगति दर्शाई, परंतु कार्यान्वयन में विलम्ब से असंतोष उत्पन्न हुआ है।
- पर्यावरणीय सुभेद्यतायें और विरोध: यह क्षेत्र बाढ़, भूस्खलन और भूकंप से ग्रस्त है, जिससे बड़े पैमाने पर बुनियादी ढाँचा परियोजनाएं जोखिमपूर्ण हो जाती हैं।
- उदाहरण: सियांग नदी पर प्रस्तावित विशाल जलविद्युत परियोजना ने विस्थापन, पर्यावरणीय क्षति और सांस्कृतिक ह्वास के भय से स्वदेशी समुदायों में आक्रोश उत्पन्न कर दिया है।
- राज्यों के बीच सीमा विवाद: ऐतिहासिक सीमाएं राज्यों के बीच संघर्ष को जन्म देती रहती हैं।
- उदाहरण: भारत के उत्तर-पूर्वी राज्यों असम और मिजोरम के बीच हिंसक सीमा झड़पें।
- समावेशी विकास और कनेक्टिविटी की आकांक्षा: लोग अपनी सांस्कृतिक पहचान को बरकरार रखते हुए बेहतर स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा, रोजगार और कनेक्टिविटी की माँग करते हैं।
पूर्वोत्तर किस प्रकार एक्ट ईस्ट नीति के लिए रणनीतिक प्रवेशद्वार के रूप में काम कर सकता है
- भौगोलिक लाभ: पाँच देशों (बांग्लादेश, भूटान, चीन, म्यांमार और नेपाल) के साथ सीमा साझा करने के कारण, पूर्वोत्तर सीमा पार व्यापार के लिए आदर्श स्थिति में है।
- उदाहरण: कलादान मल्टी-मॉडल ट्रांजिट ट्रांसपोर्ट परियोजना, मिजोरम को म्यांमार और आगे दक्षिण पूर्व एशिया से जोड़ती है।
- क्षेत्रीय संपर्क के लिए बुनियादी ढाँचा: उन्नत सड़क, रेल और हवाई संपर्क निर्यात मार्गों और विदेशी निवेश को बढ़ावा देता है।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश में सेला सुरंग और भारतमाला योजना के अंतर्गत हो रहा राजमार्ग विस्तार अति महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।
- सांस्कृतिक और ऐतिहासिक संबंध: दक्षिण पूर्व एशिया के साथ इस क्षेत्र की नृजातीय और सांस्कृतिक समानताएं, लोगों के बीच आपसी संपर्क और पर्यटन संबंधों को बढ़ा सकती हैं।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश में बौद्ध धर्म और म्यांमार के साथ जनजातीय संबंध सांस्कृतिक कूटनीति को मजबूत करने में मदद करते हैं।
- उभरता हुआ निवेश केंद्र: बेहतर कानून और व्यवस्था तथा हरित क्षमता घरेलू और विदेशी निवेशकों को आकर्षित करती है।
- उदाहरण: असम में टाटा समूह का 27,000 करोड़ रुपये का सेमीकंडक्टर प्लांट एक ऐतिहासिक औद्योगिक निवेश है।
- ऊर्जा और प्राकृतिक संसाधनों में संभावना: यह क्षेत्र द्विपक्षीय समझौतों के तहत पड़ोसी देशों को जलविद्युत और संसाधनों का निर्यात कर सकता है।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश से जलविद्युत को भारत-भूटान और भारत-बांग्लादेश ऊर्जा साझेदारी के तहत साझा किया जा सकता है।
आगे की राह: आंतरिक संघर्षों, पर्यावरण संबंधी चिंताओं और विकास आकांक्षाओं का समाधान
आंतरिक संघर्षों को हल करने के लिए
- विद्रोही समूहों के साथ राजनीतिक वार्ता को सुदृढ़ बनाना: रुकी हुई नागा शांति प्रक्रिया की तरह शांति वार्ता को पुनः आरंभ करना और उसमें तेजी लानी चाहिए व यह सुनिश्चित करना चाहिए कि सभी हितधारक समूह (नागरिक समाज और जनजातीय निकायों सहित) इसमें शामिल हों।
- मौजूदा समझौतों के क्रियान्वयन को मजबूत करना: बोडो शांति समझौते (वर्ष 2020) और ब्रू-रियांग समझौते जैसे हस्ताक्षरित समझौतों का पारदर्शी निगरानी तंत्र के साथ पालन करना चाहिए।
- उदाहरण: इस समझौते के तहत मिजोरम से 34,000 से अधिक विस्थापित ब्रू लोगों को त्रिपुरा में स्थायी रूप से बसाया जा रहा है, जिसके लिए केंद्र (MHA) द्वारा 600 करोड़ रुपये आवंटित किए गए हैं।
- अंतर्राज्यीय सीमा विवादों का समाधान: असम-मिजोरम या असम-मेघालय जैसे विवादों को हल करने के लिए केंद्र द्वारा क्षेत्रीय सीमा आयोगों और संरचित मध्यस्थता को बढ़ावा दिया जाएगा।
पर्यावरणीय दृष्टि से संधारणीय विकास को बढ़ावा देना
- समुदाय-आधारित पारिस्थितिक मूल्यांकन को अपनाना: बुनियादी ढाँचा परियोजनाओं के लिए पर्यावरणीय प्रभाव मूल्यांकन (EIA) में स्थानीय भागीदारी सुनिश्चित करना और जनजातीय क्षेत्रों के लिए स्वतंत्र, पूर्व और सूचित सहमति (FPIC) प्रोटोकॉल लागू करना चाहिए।
- उदाहरण: अरुणाचल प्रदेश की दिबांग और सियांग घाटियों में बड़े बांधों के खिलाफ विरोध प्रदर्शन समावेशी परामर्श की आवश्यकता पर प्रकाश डालते हैं।
- कम प्रभाव वाले ऊर्जा विकल्पों को प्राथमिकता देना: बड़े जलविद्युत से ध्यान हटाकर संवेदनशील पारिस्थितिकी प्रणालियों के लिए उपयुक्त सूक्ष्म जलविद्युत, सौर और पवन ऊर्जा परियोजनाओं पर केन्द्रित करना चाहिए।
- आपदा-रोधी अवसंरचना योजना: सभी प्रमुख परिवहन और विद्युत परियोजनाओं में भूकंपीय, बाढ़ और भूस्खलन जोखिम आकलन को शामिल करना चाहिए।
क्षेत्रीय एकीकरण के साथ विकास आकांक्षाओं को जोड़ना
- समावेशी योजना के माध्यम से कनेक्टिविटी का विस्तार करना: दूरदराज के क्षेत्रों में ग्रामीण सड़कों, दूरसंचार और इंटरनेट को प्राथमिकता देकर राष्ट्रीय बुनियादी ढाँचे तक लास्ट माइल एक्सेस सुनिश्चित करना चाहिए।
- उदाहरण: PM गति शक्ति और उड़ान 5.0 सड़क और हवाई संपर्क का विस्तार कर रहे हैं।
- स्थानीय कौशल और उद्यमिता विकास को बढ़ावा देना: जनजातीय समावेशन को लक्षित करते हुए पूर्वोत्तर के उद्यमियों के लिए TRIFED की वन धन योजना, कौशल भारत मिशन और स्टार्ट-अप इंडिया जैसी आजीविका योजनाओं का विस्तार करना चाहिए।
- एक्ट ईस्ट नीति में पूर्वोत्तर आकांक्षाओं को एकीकृत करना: दक्षिण पूर्व एशिया के साथ भारत की विदेश व्यापार रणनीति का एक समर्पित पूर्वोत्तर घटक तैयार करना जिससे हस्तशिल्प, कृषि वानिकी और पर्यटन जैसे स्थानीय उद्योगों को लाभ सुनिश्चित हो सके।
- उदाहरण: यदि स्थानीय आपूर्ति श्रृंखलाएं विकसित की जाएँ तो भारत-म्यांमार-थाईलैंड त्रिपक्षीय राजमार्ग, मणिपुर और मिजोरम के माध्यम से सीमा पार व्यापार को बढ़ावा दे सकता है।
एक्ट ईस्ट नीति के तहत पूर्वोत्तर को रणनीतिक प्रवेशद्वार बनाने के लिए भारत को कूटनीति, स्थानीय सशक्तीकरण, संधारणीय बुनियादी ढाँचे और अंतर-राज्यीय सहयोग के माध्यम से शांति, पारिस्थितिक संरक्षण और समावेशी विकास सुनिश्चित करना होगा, तथा अपनी समृद्ध सामाजिक और पारिस्थितिक विरासत के साथ प्रगति को संतुलित करना होगा।
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