Q. केन्द्र प्रायोजित योजनाएं (CSS) राष्ट्रीय विकास लक्ष्यों को प्राप्त करने के उद्देश्य से बनाई जाती हैं, लेकिन ये अक्सर राजकोषीय नियंत्रण और राज्य स्वायत्तता के बीच संतुलन को विखंडित करती हैं। विश्लेषण कीजिए कि पीएम श्री और समग्र शिक्षा जैसी पहल भारत के सहकारी संघीय ढांचे में उभरते तनावों को कैसे उजागर करती हैं। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • केंद्र प्रायोजित योजनाएँ किस प्रकार राजकोषीय संघवाद पर दबाव डालती हैं।
  • राजकोषीय तनाव को हल करने के तरीके।

उत्तर

हाल ही में तमिलनाडु और केरल के बीच पीएम श्री (PM SHRI) तथा समग्र शिक्षा को लेकर उत्पन्न विवाद ने एक बार फिर केंद्र–राज्य संबंधों में तनाव को उजागर किया है। जहाँ इन योजनाओं का उद्देश्य शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार करना है, वहीं केंद्र सरकार का बढ़ता वित्तीय एवं नीतिगत नियंत्रण राज्यों की स्वायत्तता और सहकारी संघवाद की भावना को लेकर चिंता उत्पन्न कर रहा है।

कैसे पीएम श्री और समग्र शिक्षा संघवाद में तनाव दर्शाते हैं 

  • केंद्रीय शर्तों से राज्यों की स्वतंत्रता सीमित: राज्यों को अक्सर केंद्रीय रूप से तैयार की गई योजनाएँ स्वीकार करने के लिए बाध्य किया जाता है ताकि उन्हें धनराशि प्राप्त हो सके, जिससे नीतिगत लचीलापन घटता है।
    • उदाहरण: केरल और तमिलनाडु को समग्र शिक्षा योजना के तहत निधि रोकने की स्थिति का सामना करना पड़ा क्योंकि उन्होंने NEP-आधारित पीएम श्री योजना को नहीं अपनाया, जबकि उनके पास पहले से मजबूत राज्य शिक्षा प्रणाली मौजूद थी।
  • वित्तीय दबाव एक नीतिगत उपकरण के रूप में: वित्तीय नियंत्रण के माध्यम से केंद्र सरकार अपनी नीतियों को लागू करवाने में सक्षम होती है, भले ही राज्य सहमत न हों — जिससे सहयोग का रूप अनुपालन में बदल जाता है।
    • उदाहरण: केंद्र ने पीएम श्री योजना को NEP 2020 से जोड़ा, जिससे अनिच्छुक राज्यों पर इसे अपनाने का दबाव बढ़ा।
  • समवर्ती सूची में असंतुलन: चूँकि शिक्षा समवर्ती सूची  का विषय है, इसलिए केंद्रीय प्रभुत्व राज्य-स्तरीय नवाचार की गुंजाइश को कम करता है।
  • कमजोर संघीय समन्वय: नीति आयोग और अंतर-राज्य परिषद जैसी संस्थाएँ वास्तविक अधिकार के अभाव में केंद्र–राज्य विवादों के समाधान में प्रभावी नहीं हो पातीं।
  • राजनीतिक पक्षपातपूर्ण वित्तीय आवंटन:  कई बार धन का वितरण विकासात्मक प्राथमिकताओं के बजाय राजनीतिक समीकरणों के आधार पर किया जाता है, जिससे विश्वास का क्षरण होता है।

केंद्र–राज्य तनाव को कम करने के उपाय 

  • वित्तीय संघवाद को सुदृढ़ करना:  धन अंतरण को पूर्वानुमेय, नियम-आधारित और राजनीतिक प्रभाव से मुक्त बनाया जाना चाहिए।
  • राज्यों को नीतिगत लचीलापन देना: राज्यों को स्थानीय आवश्यकताओं के अनुसार केंद्रीय योजनाओं को अनुकूलित करने की स्वतंत्रता दी जानी चाहिए, जबकि उनके मुख्य उद्देश्यों को बरकरार रखा जाए।
    • उदाहरण: केंद्रीय प्रायोजित योजनाओं (CSS) में ‘फ्लेक्सी-फंड’ तत्त्व जोड़ना राज्यों को लचीले क्रियान्वयन में मदद करेगा।
  • संघीय संस्थानों को सशक्त बनाना:  नीति आयोग और अंतर-राज्य परिषद जैसी संस्थाओं को नीति संवाद और मध्यस्थता के अधिकार दिए जाएँ।
    • उदाहरण: किसी योजना को NEP से जोड़ने से पहले राज्यों से परामर्श लिया जाए, जिससे सर्वसम्मति  बने।
  • न्यायिक पर्यवेक्षण सुनिश्चित करना: न्यायालयों को राज्यों के वित्तीय अधिकारों की रक्षा करनी चाहिए और केंद्रीय निधियों के दुरुपयोग या दबावपूर्ण उपयोग को रोकना चाहिए।
  • प्रतिस्पर्धात्मक संघवाद को प्रोत्साहन:  समानता थोपने के बजाय नवाचार और सर्वोत्तम प्रथाओं को पुरस्कृत किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण: केरल की शिक्षा और स्वास्थ्य में उपलब्धियाँ सहयोग और सीखने के माध्यम से अन्य राज्यों को प्रेरित कर सकती हैं, न कि नियंत्रण से।

निष्कर्ष 

उद्देश्य केंद्रीय पहलों को कमजोर करना नहीं, बल्कि उन्हें वास्तव में सहकारी बनाना होना चाहिए। एक संतुलित दृष्टिकोण, जहाँ केंद्र संसाधन और दिशा प्रदान करे तथा राज्य कार्यान्वयन में लचीलापन रखें, संघीय सौहार्द को मजबूत करेगा। नीति-निर्माण में विविधता का सम्मान ही राष्ट्रीय लक्ष्यों और राज्य सशक्तीकरण  दोनों की प्राप्ति का आधार है।

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