प्रश्न की मुख्य माँग
- भारत के लिए मेजबानी के सकारात्मक पहलू।
- आर्थिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ।
- आगे की राह।
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उत्तर
भारत का वर्ष 2030 में राष्ट्रमंडल खेल आयोजित करने का निर्णय ऐसे समय आया है, जब इस आयोजन की वैश्विक प्रासंगिकता घट रही है और कई देश मेजबानी से पीछे हट रहे हैं। इसके बावजूद, भारत इस आयोजन को रणनीतिक सॉफ्ट-पॉवर अवसर और वर्ष 2036 के ओलंपिक की मेजबानी के अपने बड़े लक्ष्य की दिशा में एक महत्त्वपूर्ण कदम के रूप में देखता है।
भारत की मेजबानी के सकारात्मक पक्ष
- वैश्विक छवि में सुधार: राष्ट्रमंडल खेलों की मेजबानी भारत को बड़े खेल आयोजनों का सक्षम एवं विश्वसनीय आयोजक सिद्ध करती है तथा ओलंपिक की मेजबानी को मजबूत बनाती है।
- उदाहरण: वर्ष 2036 ओलंपिक के लिए भारत ने अहमदाबाद को प्रस्तावित शहर चुना है।
- खेल महत्त्वाकांक्षा का प्रदर्शन: विविध खेलों में भारत की बढ़ती रुचि प्रदर्शित होती है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर एथलेटिक छवि में सुधार होता है।
- उदाहरण: नीरज चोपड़ा जैसे विश्व-स्तरीय खिलाड़ी उभरती उत्कृष्टता का प्रतिनिधित्व करते हैं।
- सांस्कृतिक कूटनीति को सुदृढ़ करना: यह आयोजन राष्ट्रमंडल देशों में भारत की भूमिका बढ़ाता है और उसके सॉफ्ट पॉवर को मजबूत करता है।
- उदाहरण: 20 वर्षों बाद मेजबान के रूप में वापसी भारत की वैश्विक खेल-केंद्र बनने की मंशा दर्शाती है।
- अवसंरचना उन्नयन को बढ़ावा: स्टेडियम, परिवहन और सार्वजनिक सुविधाओं में निवेश से खिलाड़ियों तथा आम नागरिकों दोनों को लाभ मिलता है।
- युवाओं एवं खेल संस्कृति को प्रेरित करना: घरेलू आयोजन युवा खिलाड़ियों को प्रेरित करता है और बहु-खेल भागीदारी को बढ़ावा देता है।
आर्थिक और प्रशासनिक चुनौतियाँ
आर्थिक चुनौतियाँ
- उच्च वित्तीय बोझ: बढ़ती लागत और संभावित व्यय-अतिरिक्तता के कारण मेजबानी सार्वजनिक वित्त पर दबाव डाल सकती है।
- उदाहरण: ऑस्ट्रेलिया के विक्टोरिया और कनाडा के अल्बर्टा को अति-व्यय के कारण मेजबानी से हटना पड़ा।
- सीमित वैश्विक मूल्य: आयोजनों की संख्या और वैश्विक प्रभाव में गिरावट के साथ निवेश पर प्रतिफल अनिश्चित हो जाता है।
- उदाहरण: ग्लास्गो वर्ष 2026 में केवल 10 खेल शामिल होंगे और कई प्रमुख प्रतियोगिताएँ हटाई गई हैं।
- ओलंपिक सफलता में कमजोर रूपांतरण: राष्ट्रमंडल खेलों में उच्च पदक-गणना ओलंपिक सफलता में परिवर्तित नहीं होती, जिससे विकासात्मक लाभ पर प्रश्न उठता है।
प्रशासनिक चुनौतियाँ
- कुप्रबंधन का जोखिम: पूर्व भ्रष्टाचार मामलों से शासन तंत्र की कमजोरियों को दूर करने की आवश्यकता स्पष्ट होती है।
- उदाहरण: दिल्ली में आयोजित वर्ष 2010 के राष्ट्रमंडल खेल भ्रष्टाचार आरोपों से प्रभावित हुए थे।
- डोपिंग संबंधी चिंताएँ: बढ़ते डोपिंग मामलों से वैश्विक आयोजन में भारत की अंतरराष्ट्रीय प्रतिष्ठा प्रभावित हो सकती है।
- राष्ट्रमंडल खेलों की घटती विश्वसनीयता: लगातार मेजबान देशों के हटने से आयोजन की अस्थिरता बढ़ी है, जिससे भारत के लिए प्रशासनिक अनिश्चितता बढ़ती है।
- उदाहरण: बर्मिंघम ने वर्ष 2022 में डरबन का स्थान लिया; ग्लास्गो ने विक्टोरिया के हटने के बाद वर्ष 2026 की मेजबानी सँभाली।
आगे की राह
- वित्तीय अनुशासन को सुदृढ़ करना: पारदर्शी बजट, स्वतंत्र लेखा-परीक्षण और कड़े व्यय नियंत्रण को अनिवार्य रूप से अपनाना।
- सतत अवसंरचना पर ध्यान देना: दीर्घकालिक एथलेटिक और सार्वजनिक आवश्यकताओं को पूरा करने वाली स्थायी सुविधाओं को प्राथमिकता देना।
- शासन एवं एंटी-डोपिंग प्रणाली में सुधार करना: खेल प्रशासन, परीक्षण तंत्र और संस्थागत क्षमता को मजबूत करना।
- राष्ट्रमंडल खेलों की योजना को ओलंपिक दृष्टि से जोड़ना: राष्ट्रमंडल खेल के निवेशों को प्रस्तावित वर्ष 2036 के ओलंपिक मास्टर-प्लान के अनुरूप बनाना।
- समावेशी खेल संस्कृति को बढ़ावा देना: जमीनी स्तर पर भागीदारी, कोचिंग व्यवस्था और बहु-खेल पारिस्थितिकी को विस्तार देना।
निष्कर्ष
वर्ष 2030 के राष्ट्रमंडल खेल की मेजबानी भारत के लिए सॉफ्ट पॉवर को बढ़ाने, शहरी अवसंरचना को सुदृढ़ करने तथा राष्ट्रीय खेल-संस्कृति को प्रोत्साहित करने का अवसर प्रदान करती है। किंतु, इससे जुड़े आर्थिक और प्रशासनिक जोखिम अनुशासित योजना, पारदर्शिता और दीर्घकालिक दृष्टि की माँग करते हैं। यदि सावधानीपूर्वक क्रियान्वयन किया जाए, तो वर्ष 2030 के राष्ट्रमंडल खेल न केवल क्षमता-प्रदर्शन का मंच बन सकता है, बल्कि वर्ष 2036 के ओलंपिक की दिशा में एक विश्वसनीय कदम भी सिद्ध हो सकता है।
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