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Q. नक्सलवाद, जिसे कभी भारत की सबसे बड़ी आंतरिक सुरक्षा चुनौती माना जाता था, अब कम हो रहा है। इस बदलाव के लिए उत्तरदायी बहुआयामी रणनीति का विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत की आंतरिक सुरक्षा के लिए नक्सलवाद की चुनौतियों का उल्लेख कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि बहुआयामी रणनीति ने नक्सलवाद को कम करने में किस प्रकार मदद की।
  • इस बहुआयामी रणनीति की सीमाओं का उल्लेख कीजिये।

उत्तर

वर्ष 1960 के दशक के उत्तरार्ध में एक क्रांतिकारी आंदोलन के रूप में शुरू हुआ नक्सलवाद, 200 से अधिक ज़िलों में एक बड़े विद्रोह के रूप में विकसित हुआ, लेकिन हाल के वर्षों में इसका तीव्रता से पतन हुआ है। 2023 में, CPI (माओवादी) ने 357 कार्यकर्ताओं की मौत की बात स्वीकार की, और केंद्रीय गृह मंत्री को संभावना है कि सुरक्षा, शासन और राजनीतिक उपायों की बहुआयामी रणनीति के चलते 2026 तक इसका अंत हो जाएगा।

भारत में नक्सलवाद की चुनौतियाँ

  • आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरा: नक्सलवाद के अंतर्गत गुरिल्ला युद्ध द्वारा राज्य पर हमला करके राष्ट्रीय अखंडता को कमजोर किया जाता है और अनेक राज्यों में शासन को अस्थिर करने का प्रयास होता है।
  • सुभेद्य आबादी को लक्षित करना: इस आंदोलन ने सामाजिक-आर्थिक असमानताओं का लाभ उठाकर हाशिए पर स्थित जनजातीय और गरीब समुदायों को राज्य की उपेक्षा के विरुद्ध संगठित किया।
    • उदाहरण: इस आंदोलन ने जनजातीय और शहरी गरीबों को संगठित किया, जिन्हें फ्रांत्ज फैनन ने “पृथ्वी के अभागे” कहा था।
  • हिंसा में परिवर्तित होना: प्रारंभ में मार्क्सवादी-लेनिनवादी विचारधारा से प्रेरित होकर, यह शीघ्र ही अंधाधुंध हिंसा और आपसी गुटबाजी में बदल गया।
  • मुख्य क्षेत्रों पर नियंत्रण: विद्रोहियों ने जंगलों से घिरे अंदरूनी इलाकों में “मुक्त क्षेत्र” स्थापित कर लिए, जिससे मध्य भारत में शासन रिक्ति की स्थिति उत्पन्न हो गई। 
    • उदाहरण: दंडकारण्य (बस्तर, गढ़चिरौली, ओडिशा, आंध्र प्रदेश) में शासन रिक्ति की स्थिति उत्पन्न हो गई।
  • शहरी संबंध: आंदोलन का बौद्धिक और छात्र वर्गों तक विस्तार, असहमति और उग्रवाद के बीच की रेखा को धुंधला कर गया, जिससे राजनीतिक विवाद उत्पन्न हुए।
    • उदाहरण: नवीन “अर्बन नक्सल” विमर्श ने असहमति जताने वाले और उग्रवादियों के बीच के अंतर को और जटिल बना दिया।

पतन के पीछे बहुआयामी रणनीति

  • सुरक्षा-केन्द्रित उपाय: लक्षित सुरक्षा अभियानों ने समन्वित कार्रवाई के माध्यम से उग्रवादियों को कमजोर कर दिया। 
    • उदाहरण: “ऑपरेशन समाधान-प्रहार” (2017 के बाद से) में खुफिया जानकारी, प्रौद्योगिकी और CoBRA जैसे विशेष बलों को एकीकृत किया गया
  • समावेशी अवसंरचना विकास: अवसंरचना विस्तार से माओवादियों के गढ़ों में सुरक्षा की गहरी पैठ संभव हुई।
    • उदाहरण: सड़कों और दूरसंचार के विस्तार ने माओवादी गढ़ों में सुरक्षा बलों की गहरी पैठ को संभव बनाया।
  • प्रौद्योगिकी का एकीकरण: प्रौद्योगिकी के उपयोग से निगरानी में वृद्धि हुई, जिससे जंगलों और दुर्गम इलाकों में माओवादियों को मिलने वाला सामरिक लाभ कम हो गया।
    • उदाहरण: UAV और सैटेलाइट इमेजरी की तैनाती से छत्तीसगढ़ में नक्सली गतिविधियों पर नज़र रखने में मदद मिली।
  • लक्षित नीति कार्यान्वयन: कल्याणकारी योजनाएँ हाशिए पर स्थित समूहों को रोजगार, खाद्य सुरक्षा और कनेक्टिविटी प्रदान करके असंतोष के मूल कारणों का समाधान करती हैं।
    • उदाहरण: नक्सल प्रभावित जिलों में मनरेगा और PMGSY  जैसी प्रमुख योजनाओं को प्राथमिकता दी गई।
  • शिक्षा और क्षमता निर्माण: शिक्षा और कौशल निर्माण पहलों ने वैकल्पिक आजीविका का सृजन करके जनजातीय युवाओं को उग्रवाद से दूर रखने में मदद की।
    • उदाहरण: झारखंड और ओडिशा में स्थापित “एकलव्य मॉडल स्कूल” और कौशल केंद्र।
  • सतत राजनीतिक सहमति: आत्मसमर्पण और पुनर्वास नीतियों ने माओवादियों को मुख्यधारा में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित करके उनकी स्थिति को कमजोर कर दिया।
    • उदाहरण: वित्तीय सहायता, व्यावसायिक प्रशिक्षण, आवास और नौकरी की पेशकश करने वाली आत्मसमर्पण सह पुनर्वास नीति।

बहुआयामी रणनीति की सीमाएँ

  • संघर्ष का अति-सुरक्षाकरण: मुठभेड़ों और बल-केंद्रित उपायों पर अत्यधिक निर्भरता से आदिवासी आबादी के अलग-थलग पड़ने और नए असंतोष के पनपने का खतरा रहता है।
    • उदाहरण: बस्तर में कथित फर्जी मुठभेड़ों की रिपोर्टों ने स्थानीय लोगों और सुरक्षा बलों के बीच अविश्वास को बढ़ाया है।
  • असहमति को अतिवाद के रूप में गलत तरीके से वर्गीकृत करना: कार्यकर्ताओं, शिक्षाविदों या नागरिक समाज समूहों को “अर्बन नक्सल” कहकर वैध हितों के लिए आवाज उठाने वालों का दमन करने का प्रयास किया जाता है जिससे लोकतंत्र को भी खतरा होता है।
    • उदाहरण: अनेक मानवाधिकार कार्यकर्ताओं पर अपर्याप्त साक्ष्यों के बावजूद UAPA आरोप लगाए गए हैं, जिससे अतिरेक संबंधी चिंताएँ बढ़ी हैं।
  • सामाजिक-आर्थिक अभाव का बने रहना: विकास प्रयासों के बावजूद गरीबी, भूमि से बेदखली, तथा स्वास्थ्य/शिक्षा की कमी असंतोष के कारण बने रहते हैं।
    •  उदाहरण: छत्तीसगढ़ और झारखंड के आदिवासी जिले मानव विकास संकेतकों में सबसे निचले पायदान पर बने हुए हैं।
  • हिंसा का भौगोलिक विस्थापन: एक राज्य में की गई सख्त कार्रवाई प्रायः विद्रोही गतिविधियों को पड़ोसी संवेदनशील क्षेत्रों में स्थानांतरित कर देती है, जिससे हिंसा का चक्र उत्पन्न होता है।
  • खतरे की धारणा में संज्ञानात्मक पक्षपात: केवल माओवादियों पर अधिक ध्यान केंद्रित करने से नीति-निर्माता, असंतोष और उग्रवाद के नए रूपों की उपेक्षा कर सकते हैं।
    • उदाहरण: सुरक्षा बलों द्वारा माओवाद पर अत्यधिक बल देने से पूर्वोत्तर और शहरी केंद्रों में उभरते उग्रवादी संगठनों की उपेक्षा का जोखिम रहता है।

निष्कर्ष

नक्सलवाद का पतन भारत की संतुलित, बहुआयामी रणनीति की सफलता को दर्शाता है, जिसमें सुरक्षा बलों का प्रभुत्व, नेतृत्व पर प्रहार और शासन की पैठ को एकीकृत किया गया है, साथ ही अत्यधिक सैन्यीकरण से परहेज़ किया गया है। जैसा कि द्वितीय प्रशासनिक सुधार आयोग (ARC) ने सुझाया है, उग्रवाद-प्रवण क्षेत्रों में बेहतर शासन हेतु लोकतांत्रिक विकेंद्रीकरण का महत्व अत्यंत आवश्यक है।

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