Q. भारत में पदानुक्रमित सामाजिक संरचनाओं को सुदृढ़ करने में रंगवाद की भूमिका का विश्लेषण कीजिए। समाज इन स्थापित मानदंडों को कैसे चुनौती दे सकता है और रंग-आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कैसे कार्य कर सकता है? (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में पदानुक्रमिक सामाजिक संरचनाओं को सुदृढ़ करने में रंगवाद की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।
  • चर्चा कीजिए कि समाज किस प्रकार इन मानदंडों को चुनौती देता है और रंग आधारित भेदभाव को समाप्त करने की दिशा में कार्य करता है।
  • आगे की राह लिखिए।

उत्तर

रंगभेद या त्वचा के रंग के आधार पर भेदभाव, भारत की सामाजिक, आर्थिक और सांस्कृतिक संरचनाओं में मजबूती से व्याप्त है। ग्लोबल स्किन लाइटनिंग प्रोडक्ट्स का मार्केट-साइज 2024 में 11.2 बिलियन अमेरिकी डॉलर तक पहुँच गया, जो समाज  में व्याप्त पूर्वाग्रहों को दर्शाता है। औपनिवेशिक इतिहास, जाति पदानुक्रम और मीडिया कार्यक्रमों में निहित रंगभेद, सामाजिक स्तरीकरण और रोजगार व विवाह से संबंधित असमान अवसरों को बढ़ावा देता है।

भारत में पदानुक्रमिक सामाजिक संरचनाओं को सुदृढ़ करने में रंगभेद की भूमिका का विश्लेषण कीजिए।

  • सौंदर्य मानक: गोरी त्वचा को अक्सर आकर्षण से जोड़कर देखा जाता है, जिसके कारण विवाह, नौकरी के अवसरों और मीडिया रिप्रेजेंटेशन में भेदभाव होता है, जिससे सामाजिक पूर्वाग्रहों को बल मिलता है।
    • उदाहरण के लिए: वैवाहिक विज्ञापनों में प्रायः “गोरी” दुल्हनों का उल्लेख किया जाता है तथा बॉलीवुड में अधिकतर गोरी त्वचा वाले अभिनेताओं को लिया जाता है, जिससे प्रतिनिधित्व में विविधता सीमित हो जाती है।
  • आर्थिक अवसर: गोरी त्वचा को समृद्धि और योग्यता से भी जोड़कर देखा जाता है, जिसके कारण विशेषकर कॉरपोरेट और सेवा क्षेत्रों में वरीयतापूर्ण नियुक्ति और पदोन्नति की जाती है।
  • जातिगत अंतर्विभाजन: काले रंग की त्वचा को रूढ़िवादी रूप से निचली जातियों से जोड़ा जाता है, जो सामाजिक स्तरीकरण और बहिष्करण को मजबूत करता है।
    • उदाहरण के लिए: दलित समुदायों को अक्सर जातिगत पूर्वाग्रह और रंगभेद के कारण दोहरे भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे उनकी सामाजिक गतिशीलता और अवसर सीमित हो जाते हैं।
  • सामाजिक स्थिति और विशेषाधिकार: गोरी त्वचा, अक्सर उच्च सामाजिक वर्ग की विशेषता मानी जाने लगती है, जिससे काले रंग की त्वचा वाले व्यक्तियों की सामाजिक स्थिति कमजोर हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: ऐतिहासिक औपनिवेशिक प्रभाव, विभिन्न  धारणाओं को आकार देना जारी रखे हुए हैं तथा ये गोरेपन को बुद्धिमत्ता, शक्ति, सफलता और सामाजिक प्रतिष्ठा से जोड़ते हैं।
  • मीडिया एवं लोकप्रिय संस्कृति का प्रभाव: विज्ञापन और सिनेमा, गोरेपन को एक वांछनीय गुण के रूप में प्रचारित करते हैं तथा अवचेतन पूर्वाग्रहों और अवास्तविक सौंदर्य अपेक्षाओं को मजबूत करते हैं।
    • उदाहरण के लिए: गोरापन लाने वाली क्रीमें, अरबों डॉलर का उद्योग बनी हुई हैं, जिसमें मशहूर हस्तियाँ त्वचा को गोरा करने वाले उत्पादों का प्रचार करती हैं, जो यूरोपीय सौंदर्य आदर्शों को बढ़ावा देते हैं।

समाज में गहराई से व्याप्त मानदंडों को चुनौती देना और रंग आधारित भेदभाव को मिटाना

  • समावेशी मीडिया प्रतिनिधित्व: विभिन्न सौंदर्य मानकों का सामान्यीकरण करने के लिए फिल्मों, टीवी, विज्ञापनों और फैशन उद्योगों को बिना किसी पूर्वाग्रह के विविध त्वचा रंग वाले व्यक्तियों से कार्य करवाना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: कुछ ब्रांड अब “वास्तविक सुंदरता” को बढ़ावा देते हैं और अपने अभियानों में काले रंग की मॉडल्स को दिखाते हैं, जो पारंपरिक गोरेपन से प्रेरित सौंदर्यशास्त्र को चुनौती देते हैं।
  • शैक्षिक सुधार: स्कूलों को विविधता, पूर्वाग्रह और “बॉडी पॉजिटिविटी” से संबंधित अध्यायों को पाठ्यक्रम में शामिल करना चाहिए तथा बच्चों को कम आयु से ही सभी त्वचा के रंगों को समान रूप से महत्त्व देना सिखाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: कुछ प्रगतिशील पाठ्यक्रमों में अब रंगभेद, नस्लीय विविधता और प्रतिनिधित्व पर चर्चा शामिल है, जो युवा मन में समावेशिता को प्रोत्साहित करती है।
  • नीति एवं कानूनी हस्तक्षेप: भेदभाव विरोधी कानूनों के अंतर्गत नियुक्तियों, मीडिया और सार्वजनिक सेवाओं में होने वाले रंग आधारित पूर्वाग्रह को स्पष्ट रूप से संबोधित किया जाना चाहिए।
  • सामुदायिक जागरूकता अभियान: सामाजिक आंदोलन, मीडिया पक्षकारिता और जागरूकता अभियान, रंग आधारित पूर्वाग्रहों को समाप्त कर सकते हैं और सेल्फ एक्सेप्टेंस (Self-acceptance) को प्रोत्साहित कर सकते हैं।
    • उदाहरण के लिए: “डार्क इज ब्यूटीफुल” जैसी पहल गोरेपन से जुड़ी रूढ़िवादिता को चुनौती देती है और व्यक्तियों को आत्मविश्वास के साथ अपने प्राकृतिक रंग को अपनाने के लिए प्रोत्साहित करती है।
  • निष्पक्ष नियुक्ति प्रथाएँ: कंपनियों को दिखावे के बजाय योग्यता पर ध्यान केंद्रित करके, नौकरी के आवेदनों से फोटो का कॉलम हटाकर, निष्पक्ष भर्ती सुनिश्चित करनी चाहिए।

आगे की राह 

  • कानूनी ढाँचे को मजबूत करना: जवाबदेही सुनिश्चित करने और समान अवसरों को बढ़ावा देने के लिए रंगभेद को स्पष्ट रूप से भेदभाव विरोधी कानूनों के अंतर्गत शामिल किया जाना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: दक्षिण अफ्रीका जैसे देश त्वचा आधारित पूर्वाग्रह को अपराध मानते हैं; भारत में इसी प्रकार की नीतियाँ कानूनी रूप से प्रणालीगत रंगभेद को चुनौती देने में मदद कर सकती हैं।
  • जमीनी स्तर पर लामबंदी: गोरेपन से संबंधित मिथकों को चुनौती देने और सौंदर्य विविधता को बढ़ावा देने के लिए गैर-सरकारी संगठनों, कार्यकर्ताओं और सामाजिक कार्यकर्ताओं को स्थानीय स्तर पर सक्रिय होना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: ग्रामीण समुदायों को सेल्फ-एक्सेप्टेंस के बारे में शिक्षित करने वाले जागरूकता अभियानों के परिणामस्वरूप कुछ क्षेत्रों में फेयरनेस क्रीम की बिक्री में काफी कमी आई है।
  • माता-पिता और सामाजिक अनुकूलन: माता-पिता को बच्चों में उनके प्राकृतिक रंग के प्रति विश्वास उत्पन्न करना चाहिए और शुरू से ही गोरेपन के उत्पादों के उपयोग को हतोत्साहित करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: कुछ माता-पिता अब गोरेपन से जुड़े पूर्वाग्रहों को सक्रिय रूप से चुनौती दे रहे हैं तथा यह सुनिश्चित कर रहे हैं कि उनके बच्चे हानिकारक सौंदर्य संबंधी रूढ़ियों को आत्मसात् किए बिना बड़े हों।
  • जिम्मेदार विपणन प्रथाएँ: नियामक निकायों को ऐसे विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगाने के लिए सख्त दिशा-निर्देश लागू करने चाहिए, जो गोरेपन को श्रेष्ठता के गुण के रूप में बढ़ावा देते हैं।
    • उदाहरण के लिए: भारत में ASCI ने गोरी त्वचा को सफलता, आत्मविश्वास या विवाह की संभावनाओं के लिए आवश्यक बताने वाले विज्ञापनों पर प्रतिबंध लगा दिया है।
  • काले रंग वाले व्यक्तियों को आदर्श व्यक्तित्व के रूप में प्रोत्साहित करना: काले रंग वाले व्यक्तियों की उपलब्धियों का प्रचार -प्रसार करने से सामाजिक परिवर्तन को प्रेरणा मिल सकती है तथा सौंदर्य मानदंडों को पुनर्परिभाषित किया जा सकता है।
    • उदाहरण के लिए: नंदिता दास जैसे कलाकार रंग आधारित पूर्वाग्रहों को खुले तौर पर चुनौती देते हैं और भावी पीढ़ियों के लिए सकारात्मक उदाहरण पेश करते हैं।

रंगभेद को समाप्त करने के लिए जागरूकता, नीति और सांस्कृतिक बदलावों को मिलाकर एक बहुआयामी दृष्टिकोण की आवश्यकता है। भेदभाव विरोधी कानूनों को मजबूत करना, मीडिया में समावेशी प्रतिनिधित्व और स्कूल-आधारित संवेदनशीलता, पूर्वाग्रहों को चुनौती दे सकती है। विविध सौंदर्य मानकों, सामाजिक अभियानों और जमीनी स्तर पर सक्रियता को बढ़ावा देने से एक समतापूर्ण समाज को बढ़ावा मिलेगा, जहाँ मेलेनिन नहीं बल्कि योग्यता मूल्य और अवसर को परिभाषित करेगी।

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