Q. भारत में वित्तीय विनियामकों द्वारा परामर्शी विनियमन-निर्माण के महत्त्व का विश्लेषण कीजिए। RBI और SEBI द्वारा अपनाए गए वर्तमान ढाँचों में अंतराल की जाँच कीजिए, और अंतरराष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से सुधारों का सुझाव दीजिए। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में वित्तीय विनियामकों द्वारा परामर्शात्मक विनियमन-निर्माण के महत्त्व का विश्लेषण कीजिये।
  • RBI और SEBI द्वारा अपनाए गए वर्तमान ढाँचे में अंतराल का परीक्षण कीजिए।
  • अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं से नियामक ढाँचे के लिए सुधार का सुझाव दीजिए।

उत्तर

हाल ही में भारतीय रिजर्व बैंक (RBI) ने अपने “नियमों के निर्माण के लिए रूपरेखा” को जारी किया जिसमें विनियमन, निर्देश, दिशा-निर्देश और अधिसूचनाएँ जारी करने की प्रक्रिया का विवरण दिया गया है। SEBI के (नियमों के निर्माण, संशोधन और समीक्षा की प्रक्रिया) विनियमन, 2025 के साथ संरेखित, यह परामर्शी विनियमन-निर्माण की ओर एक व्यापक संस्थागत परिवर्तन को दर्शाता है जो पारदर्शिता, हितधारक भागीदारी और वैश्विक नियामक मानकों के साथ अभिसरण पर बल देता है

विनियमनों के निर्माण के लिए RBI के ढाँचे के प्रमुख प्रावधान

  • अनिवार्य प्रभाव आकलन: विनियमों को अंतिम रूप देने से पहले संभावित प्रभावों का आकलन करने हेतु उनका इम्पैक्ट एनालिसिस करना आवश्यक है‌।
  • सार्वजनिक परामर्श: विनियमन का  प्रारूप RBI की वेबसाइट पर प्रकाशित किया जाएगा, जिससे हितधारकों को प्रतिक्रिया देने के लिए कम से कम 21 दिन का समय मिलेगा।
  • नियम-निर्माण में पारदर्शिता: RBI नियामक दिशानिर्देश तैयार करने और हितधारक सहभागिता बढ़ाने में अधिक पारदर्शिता के लिए प्रतिबद्ध है।
  • समावेशी विनियामक वातावरण: इस ढाँचे का उद्देश्य पारदर्शी और परामर्शात्मक तरीके से विनियमन बनाने की प्रक्रिया को मानकीकृत करना है।

परामर्शदात्री विनियमन-निर्माण का महत्त्व

  • हितधारकों की समावेशिता और पारदर्शिता में वृद्धि: परामर्श से जनता, उद्योग और शिक्षाविदों से इनपुट प्राप्त करने की सुविधा मिलती है, जिससे समावेशिका सुनिश्चित होती है। 
    • उदाहरण के लिए, RBI ने भुगतान प्रणाली स्व-नियामक संगठन (SRO) ढाँचे पर 21-दिवसीय प्रतिक्रिया आमंत्रित की है।
  • साक्ष्य-आधारित और डेटा-संचालित नियम: विनियमन को अंतिम रूप देने से पहले लागत-लाभ विश्लेषण को प्रोत्साहित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, RBI का ढाँचा नए दिशा-निर्देशों से पहले विनियामक प्रभाव आकलन (RIA) को अनिवार्य बनाता है।
  • बाजार में अधिक विश्वास और जवाबदेही: पारदर्शी प्रारूपण से विश्वसनीयता बढ़ती है और प्रतिकूल प्रतिक्रिया कम होती है। 
    • उदाहरणार्थ: SEBI के वर्ष 2025 नियमों के अनुसार हितधारकों की प्रतिक्रिया को स्वीकार या अस्वीकार करने के लिए तर्क प्रकाशित करना आवश्यक है।
  • अनुकूली और दूरदर्शी विनियमन: आवधिक समीक्षा नीतियों को गतिशील बाजार की आवश्यकताओं के साथ संरेखित करती है। 
    • उदाहरण के लिए, SEBI का संशोधित ढाँचा बाजार निगरानी और न्यायिक रुझानों के आधार पर अपडेट को अनिवार्य बनाता है।
  • वैश्विक मानदंडों के साथ सामंजस्य: यह आर्थिक सहयोग और विकास संगठन (OECD) और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिभूति आयोग संगठन (IOSCO) के सिद्धांतों के साथ संरेखित करता है। 
    • उदाहरण के लिए RBI का दृष्टिकोण वित्तीय क्षेत्र विधायी सुधार आयोग (FSLRC) की सिफारिशों को दर्शाता है।

RBI और SEBI में अंतराल 

  • परामर्श की छोटी अवधि: व्यापक प्रतिक्रिया के लिए इक्कीस दिन पर्याप्त नहीं हो सकते। 
    • उदाहरण के लिए, SEBI की 21 दिन की निश्चित अवधि विविध हितधारकों से गहन प्रतिक्रिया को प्रतिबंधित करती है।
  • लघु हितधारकों की सीमित भागीदारी: कम जागरूकता और पहुँच के कारण इनपुट में बाधा आती है। 
    • उदाहरण के लिए, RBI के परामर्शों को सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यमों (MSMEs) और नागरिक समाज से न्यूनतम प्रतिक्रिया मिलती है।
  • SEBI में विस्तृत RIAs का अभाव: मजबूत पूर्व-विधायी लागत-लाभ विश्लेषण का अभाव। 
    • उदाहरण के लिए, SEBI की वर्ष 2025 प्रक्रिया में अनिवार्य विनियामक प्रभाव आकलन (RIA) खंड शामिल नहीं हैं।
  • खराब फीडबैक एकीकरण: इस बात पर कोई स्पष्टता नहीं है कि सार्वजनिक टिप्पणियाँ अंतिम निर्णयों को कैसे प्रभावित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए, SEBI अस्वीकृति के कारणों का खुलासा करता है, लेकिन यह नहीं बताता कि फीडबैक अंतिम नियमों को कैसे आकार देता है।
  • परामर्श से विवेकाधीन छूट: आपातकालीन प्रावधान पारदर्शिता को दरकिनार करने की सुविधा प्रदान करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए, SEBI अत्यावश्यकता, कम विश्वास और पूर्वानुमान का हवाला देते हुए परामर्श को छोड़ सकता है।

अंतर्राष्ट्रीय सर्वोत्तम प्रथाओं पर आधारित सुधार 

  • परामर्श अवधि को 45-60 दिनों तक बढ़ाना: इससे व्यापक और गहन प्रतिक्रिया सुनिश्चित होती है। 
    • उदाहरण के लिए, UK वित्तीय आचरण प्राधिकरण (FCA) आमतौर पर 60-दिवसीय परामर्श अवधि की अनुमति देता है
  • सभी विनियामकों के लिए RIA को अनिवार्य बनाना: मात्रात्मक विश्लेषण निर्णय लेने में सुधार करता है। 
    • उदाहरण अमेरिकी प्रतिभूति एवं विनिमय आयोग (SEC) प्रमुख नियम-निर्माण में RIA को अनिवार्य बनाता है।
  • फीडबैक और प्रतिक्रियाओं तक सार्वजनिक पहुँच :पारदर्शिता और जवाबदेही बढ़ाती है। 
    • उदाहरण अमेरिकी SEC अपनी वेबसाइट पर हितधारकों की राय और नियामक के तर्क प्रकाशित करता है।
  • लघु हितधारकों के लिए क्षमता निर्माण: समान भागीदारी को बढ़ावा देता है। 
    • उदाहरण यूरोपीय पर्यवेक्षी प्राधिकरण (ESA) प्रारुप नीतियों पर हितधारकों को शिक्षित करने के लिए कार्यशालाएं आयोजित करते हैं।
  • परामर्श प्रक्रिया की स्वतंत्र निगरानी: चुनावी नियम परिवर्तनों में जवाबदेही, पारदर्शिता और प्रक्रियात्मक अनुपालन को बनाए रखने के लिए बाहरी जाँच को सक्षम बनाता है ।
    • उदाहरण के लिए, ऑस्ट्रेलियाई ट्रेजरी बाहरी सहकर्मी समीक्षा के माध्यम से विनियामक परामर्श प्रथाओं का मूल्यांकन करता है।

एक मजबूत परामर्शी ढाँचा भारत की नियामक संस्थाओं की भागीदारीपूर्ण और नियमबद्ध संस्थाओं के रूप में परिपक्वता को दर्शाता है। जैसे-जैसे वित्तीय बाज़ारों की जटिलता बढ़ती है, ऐसे ढाँचे लोकतांत्रिक वैधता, संस्थागत विश्वास को मजबूत कर सकते हैं और यह सुनिश्चित कर सकते हैं कि विनियमन न केवल दक्षता ही नहीं बल्कि समानता भी प्रदान करे।

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