प्रश्न की मुख्य माँग
- प्रतिस्पर्द्धी लोकलुभावनवाद द्वारा उत्पन्न प्रणालीगत खतरे।
- प्रतिस्पर्द्धी लोकलुभावन के लाभ।
- “ईमानदार कल्याण” के लिए व्यावहारिक कानूनी और नीतिगत उपाय।
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उत्तर
संविधान ने कल्याण को क्षमता निर्माण के रूप में परिभाषित किया है जैसे अनुच्छेद-38 सामाजिक न्याय सुनिश्चित करता है, अनुच्छेद-39 जीविकोपार्जन की सुरक्षा का लक्ष्य रखता है और अनुच्छेद-47 पोषण एवं स्वास्थ्य को प्राथमिकता देता है। किंतु “फ्रीबीज (Freebies)” या मुफ्त सुविधाएँ इन संवैधानिक उद्देश्यों को दरकिनार करते हुए केवल चुनावी लाभ के लिए दी जाने वाली वस्तुएँ या नकद प्रोत्साहन बन जाती हैं। ये मतदाताओं को निर्भरता की मानसिकता में बाँध देती हैं, जिससे अल्पकालिक उपभोग तो बढ़ता है परंतु शिक्षा, कौशल और आर्थिक स्वायत्तता जैसी दीर्घकालिक क्षमताओं का विकास नहीं हो पाता।
प्रतिस्पर्द्धी जनलोकलुभावनवाद से उत्पन्न प्रणालीगत खतरे
- राजकोषीय असंतुलन: राजनीतिक दल बजट से कहीं अधिक लागत वाले वादे कर देते हैं, जिससे राज्य पर ऋण का बोझ बढ़ जाता है।
- उदाहरण: बिहार में चुनावी घोषणाओं की कुल लागत लगभग ₹8 लाख करोड़ थी, जो राज्य के बजट से तीन गुना अधिक थी।
- विकास का चुनावी चक्रों के लिए बलिदान: धन का प्रवाह उत्पादक क्षेत्रों जैसे- रोजगार, सिंचाई, शिक्षा से हटकर नकद फ्रीबीज में चला जाता है।
- दीर्घकालिक आर्थिक अस्थिरता: अत्यधिक सब्सिडी और नकद योजनाएँ भविष्य में करदाताओं पर ऋण का बोझ डालती हैं।
- उदाहरण: RBI ने चेतावनी दी थी कि कुछ राज्य “वित्तीय पतन” की कगार पर हैं।
- सार्वजनिक धन से मत-खरीद: कल्याणकारी योजनाएँ लोक-लुभावन साधन बनकर मतदाताओं को प्रभावित करती हैं।
- कानूनी खामियाँ: सर्वोच्च न्यायालय (वर्ष 2013) ने कहा कि फ्रीबीज “निर्वाचन की निष्पक्षता की जड़ों को हिला देती हैं”, परंतु चुनावी घोषणा-पत्र में वादों को अवैध नहीं ठहराया गया।
- उदाहरण: एक मतदाता को चाय पिलाना रिश्वत है, परंतु करोड़ों को ₹2,500/माह देने का वादा कानूनी है।
प्रतिस्पर्द्धी जनलोकलुभावनवाद के लाभ
- कल्याण पर राजनीतिक ध्यान केंद्रित: प्रतिस्पर्द्धा से दल जनता की आवश्यकताओं पर ध्यान देने को विवश होते हैं।
- उदाहरण: बिहार की साइकिल योजना से लड़कियों के स्कूल नामांकन में 30% से अधिक वृद्धि हुई।
- अत्यधिक गरीबी एवं असमानता में कमी: लक्षित कल्याण योजनाएँ गरीबों को जीवन निर्वाह और लोकतंत्र में भागीदारी की क्षमता देती हैं।
- उदाहरण: ₹2 प्रति किलो चावल जैसी योजनाओं से भुखमरी मृत्यु समाप्त हुई।
- नागरिक सशक्तीकरण में वृद्धि: कल्याण योजनाएँ नागरिकों की बातचीत की शक्ति बढ़ाती हैं।
- उदाहरण: मनरेगा (MGNREGA) ने ग्रामीण रोजगार की सुरक्षा सुनिश्चित की है।
- संकटकालीन स्थिरता: नकद अथवा वस्तु हस्तांतरण योजनाएँ आर्थिक झटकों के दौरान खपत बनाए रखती हैं।
- उत्तरदायित्व और प्रदर्शन आधारित राजनीति: प्रतिस्पर्द्धा से कार्यान्वयन की राजनीति को प्रोत्साहन मिलता है।
- उदाहरण: शिक्षा/स्वास्थ्य से जुड़ी योजनाएँ मानव विकास सूचकांक को सुधारती हैं।
“ईमानदार कल्याण” हेतु कानूनी एवं नीतिगत उपाय
- लागतयुक्त घोषणा-पत्र अनिवार्य बनाना: दलों को अपने वादों के वित्तीय स्रोतों का खुलासा करना चाहिए।
- प्रत्यक्ष नकद वादों को रिश्वत घोषित करना: जन प्रतिनिधित्व अधिनियम (RPA) की धारा 123 में संशोधन कर इन्हें भ्रष्ट आचरण घोषित किया जाए।
- उदाहरण: सर्वोच्च न्यायालय ने एस. सुब्रमण्यम बालाजी बनाम तमिलनाडु (वर्ष 2013) मामले में कहा कि फ्रीबीज निष्पक्ष चुनावों की जड़ों को हिला देते हैं।
- चुनाव पूर्व नई नकद योजनाओं पर प्रतिबंध: “कूलिंग ऑफ पीरियड्स” से अंतिम समय में मतदाता को प्रभावित करने से रोका जा सकता है।
- स्वतंत्र फ्रीबी नियामक निकाय: एक ऐसा निकाय बने, जो “कल्याण” और “फ्रीबी” के बीच वस्तुनिष्ठ परिभाषा तय करे।
- क्षमता-विकास आधारित कल्याण को प्राथमिकता: उपभोग-सहायता के बजाय शिक्षा, रोजगार और कौशल विकास पर ध्यान केंद्रित हो।
- उदाहरण: मिड-डे मील योजना ने पोषण व उपस्थिति दोनों में सुधार किया है।
निष्कर्ष
लोकतंत्र तभी विकसित होता है, जब कल्याण मानव क्षमता और आर्थिक सुदृढ़ता का निर्माण करे, न कि फ्रीबीज के माध्यम से कृतज्ञता खरीदने का साधन बने। भारत को ऐसे नियम-आधारित और वित्तीय रूप से जिम्मेदार कल्याण मॉडल की आवश्यकता है, जो नागरिकों को स्वतंत्र निर्णय लेने की शक्ति दे, न कि उन्हें निर्भर बनाए। वेलफेयर नागरिक को सशक्त बनाता है, जबकि फ्रीबीज पीढ़ियों तक उसकी क्षमता को क्षीण करती हैं।
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