Q. भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) द्वारा शिक्षा और रोजगार के अवसरों तक पहुँचने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण करें और इन क्षेत्रों में उनके समावेश और प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ। (10 अंक, 150 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के समक्ष शिक्षा प्राप्त करने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwDs) के समक्ष रोजगार के अवसरों तक पहुंचने में आने वाली चुनौतियों का विश्लेषण कीजिए।
  • इन क्षेत्रों में उनके समावेशन और प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के उपाय सुझाएँ।

 

उत्तर:

वर्ष 2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में दिव्यांग व्यक्तियों (PwD) की संख्या कुल जनसंख्या का लगभग 2.21% है। सरकार ने दिव्यांगों की सहायता के लिए विभिन्न नीतियाँ शुरू की हैं, फिर भी शिक्षा और रोजगार तक पहुँच में गंभीर बाधाएँ बनी हुई हैं। इन चुनौतियों का समाधान, एक समावेशी समाज सुनिश्चित करने के लिए महत्त्वपूर्ण है जो सभी व्यक्तियों के अधिकारों और गरिमा का सम्मान करता हो।

भारत में शिक्षा प्राप्त करने में दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • समावेशी बुनियादी ढाँचे का अभाव: कई शैक्षणिक संस्थानों में दिव्यांगों के अनुकूल सुविधाओं जैसे कि रैंप, लिफ्ट और सुलभ शौचालयों का अभाव है, जिससे दिव्यांगों के लिए परिसर में घूमना मुश्किल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: दिव्यांग लोगों हेतु रोजगार को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय केंद्र के अनुसार , 40% से कम स्कूलों में रैंप हैं और केवल 17% में सुलभ शौचालय हैं ।
  • अपर्याप्त शिक्षण सामग्री: अधिकांश शैक्षणिक संस्थानों में ब्रेल पुस्तकों, ऑडियो सामग्री और अन्य सहायक तकनीकों की कमी है, जिससे दिव्यांग छात्रों के लिए सूचना और शिक्षण तक पहुँच सीमित हो जाती है । 
    • उदाहरण के लिए: सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार , केवल कुछ सरकारी वित्त पोषित स्कूल ही दृष्टिबाधित छात्रों के लिए सुलभ प्रारूप में अध्ययन सामग्री प्रदान करते हैं।
  • सीमित शिक्षक प्रशिक्षण: कई शिक्षकों को विशेष शिक्षा या समावेशी शिक्षण विधियों में प्रशिक्षित नहीं किया जाता है, जो मुख्यधारा की कक्षाओं में दिव्यांगों को प्रभावी ढंग से सहायता प्रदान करने की उनकी क्षमता को बाधित करता है।
    • उदाहरण के लिए: भारतीय पुनर्वास परिषद की रिपोर्ट के अनुसार, 1% से भी कम शिक्षक समावेशी शिक्षा पद्धतियों में प्रशिक्षित हैं।
  • सामाजिक कलंक और भेदभाव: दिव्यांगों को अक्सर साथियों और शिक्षकों से सामाजिक कलंक और भेदभाव का सामना करना पड़ता है, जिससे वे अकेले पड़ जाते हैं और उनका आत्म-सम्मान कम हो जाता है, एवं उनका शैक्षणिक प्रदर्शन प्रभावित होता है।
    • उदाहरण के लिए: शिक्षा मंत्रालय द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि मुख्यधारा के स्कूलों में दिव्यांग छात्रों को अक्सर  बहिष्कार का सामना करना पड़ता है ।
  • वित्तीय बाधाएँ: दिव्यांगों के कई परिवार वित्तीय चुनौतियों का सामना करते हैं और विशेष शिक्षा से जुड़े अतिरिक्त व्यय जैसे परिवहन, सहायक उपकरण और चिकित्सा का व्यय वहन नहीं कर सकते।
    • उदाहरण के लिए: दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग के अनुसार, दिव्यांग बच्चों वाले 70% से अधिक परिवार शिक्षा का खर्च उठाने के लिए संघर्ष करते हैं।

भारत में रोजगार के अवसरों तक पहुँचने में दिव्यांगजनों के समक्ष आने वाली चुनौतियाँ

  • कार्यस्थल पर पहुँच: कई कार्यस्थलों पर बुनियादी सुविधाओं का अभाव है  जैसे कि रैंप, लिफ्ट और सुलभ शौचालय, जिससे दिव्यांगों के लिए अपने कार्यस्थल तक पहुँचना और उसमें कार्य करना मुश्किल हो जाता है।
    • उदाहरण के लिए: नैसकॉम द्वारा किए गए एक अध्ययन के अनुसार, भारत में केवल 5% से भी कम कार्यालय दिव्यांग लोगों के लिए पूरी तरह से सुलभ हैं।
  • जागरूकता और संवेदनशीलता का अभाव: नियोक्ताओं में अक्सर दिव्यांगता के संबंध में जागरूकता की कमी होती है और वे दिव्यांगों की आवश्यकताओं के प्रति संवेदनशील नहीं होते हैं, जिसके कारण उन्हें कार्य पर रखने में अनिच्छा होती है। 
    • उदाहरण के लिए: दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम के बावजूद, कई कंपनियों में समावेशी नियुक्ति नीतियों का अभाव है
  • कौशल अंतराल और प्रशिक्षण के अवसर: दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर व्यावसायिक प्रशिक्षण और कौशल विकास कार्यक्रमों में भाग लेने की सुविधा मिलती है, जो उनकी विशिष्ट आवश्यकताओं को पूरा करते हैं, जिससे उनकी रोजगार क्षमता सीमित हो जाती है।
    • उदाहरण के लिए: राष्ट्रीय कौशल विकास निगम के अनुसार, केवल 2% प्रशिक्षण केंद्र दिव्यांग व्यक्तियों को विभिन्न ट्रेडों में प्रशिक्षित करने के लिए सुसज्जित हैं।
  • भेदभाव और पूर्वाग्रह: कई नियोक्ता दिव्यांग व्यक्तियों की क्षमताओं के संबंध में पूर्वाग्रही विचार रखते हैं, जिसके परिणामस्वरूप भेदभावपूर्ण नियुक्ति प्रथाएँ और कम वेतन मिलता है 
    • उदाहरण के लिए: दिव्यांगता अधिकार गठबंधन द्वारा किए गए एक सर्वेक्षण में पाया गया कि दिव्यांग व्यक्तियों को अक्सर समान भूमिका के लिए उनके गैर-दिव्यांग समकक्षों की तुलना में 20-30% कम भुगतान किया जाता है ।
  • सहायक तकनीकों का अभाव : सहायक उपकरणों और तकनीकों की उपलब्धता सीमित है, जो दिव्यांगों को उनके कार्य को प्रभावी ढंग से करने में मदद कर सकती हैं।
    • उदाहरण के लिए: श्रम और रोजगार मंत्रालय ने पाया कि 10% से भी कम दिव्यांगों के पास कार्यस्थल पर आवश्यक सहायक तकनीक तक पहुँच है।

दिव्यांगजनों के समावेशन और प्रतिनिधित्व को बढ़ाने के उपाय

  • बुनियादी ढाँचे का विकास: शिक्षण संस्थानों और कार्यस्थलों पर रैंप बनाकर, लिफ्ट लगाकर और सुलभ शौचालय उपलब्ध कराकर उन्हें भौतिक रूप से सुलभ बनाने में निवेश करना चाहिए
    • उदाहरण के लिए: भारत सरकार के सुगम्य भारत अभियान का उद्देश्य स्कूलों और कार्यस्थलों सहित सार्वजनिक और निजी स्थानों को सुलभ बनाना है।
  • शिक्षक और नियोक्ता प्रशिक्षण: समावेशी शिक्षा और कार्यस्थल प्रथाओं पर शिक्षकों और नियोक्ताओं के लिए अनिवार्य प्रशिक्षण प्रदान करना चाहिए, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि वे दिव्यांगजनों को सहायता प्रदान करने में सक्षम हैं।
  • वित्तीय सहायता और छात्रवृत्तियाँ: दिव्यांग व्यक्तियों के परिवारों को विशेष शिक्षा और अतिरिक्त सेवाओं के
    आर्थिक बोझ को कम करने के लिए छात्रवृत्तियाँ और वित्तीय सहायता प्रदान करनी चाहिए।

    • उदाहरण के लिए: दिव्यांग व्यक्तियों के लिए राष्ट्रीय फेलोशिप उच्च शिक्षा प्राप्त करने वाले दिव्यांग व्यक्तियों को छात्रवृत्तियाँ प्रदान करती है।
  • नीति और कानूनी सुधार : शैक्षणिक संस्थानों और नियोक्ताओं द्वारा अनुपालन सुनिश्चित करने के लिए
    दिव्यांग व्यक्तियों के अधिकार अधिनियम, 2016 जैसे मौजूदा कानूनों के प्रवर्तन को मजबूत करना। 

    • उदाहरण के लिए: दिव्यांग व्यक्तियों के सशक्तिकरण विभाग ने सुगम्यता मानदंडों का पालन न करने पर सख्त दंड की शुरुआत की है ।
  • समावेशी प्रौद्योगिकियों को बढ़ावा देना: सहायक प्रौद्योगिकियों के उपयोग को विकसित करना और सब्सिडी देना चाहिए जिससे दिव्यांगजन शिक्षा और रोजगार में पूरी तरह से भाग ले सकें।
    • उदाहरण के लिए: दिव्यांगजन सहायता योजना के तहत दिव्यांगजनों को निःशुल्क सहायक उपकरण प्रदान करने की भारत सरकार की पहल।

वर्ष 2047 तक दिव्यांग व्यक्तियों हेतु वास्तविक समावेशिता प्राप्त करने के लिए, भारत को सुलभ शिक्षा और रोजगार उत्पन्न करने, कानूनी ढाँचे को बढ़ाने और सार्वजनिक जागरूकता बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए। बुनियादी ढाँचे के विकास, नीतिगत सुधारों और सामाजिक परिवर्तन को एकीकृत करने वाले समग्र दृष्टिकोण को अपनाकर, भारत यह सुनिश्चित कर सकता है, कि दिव्यांग व्यक्तियों को राष्ट्र की वृद्धि और विकास में योगदान करने के समान अवसर मिलें।

 

To get PDF version, Please click on "Print PDF" button.

Need help preparing for UPSC or State PSCs?

Connect with our experts to get free counselling & start preparing

THE MOST
LEARNING PLATFORM

Learn From India's Best Faculty

      
Quick Revise Now !
AVAILABLE FOR DOWNLOAD SOON
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध
Quick Revise Now !
UDAAN PRELIMS WALLAH
Comprehensive coverage with a concise format
Integration of PYQ within the booklet
Designed as per recent trends of Prelims questions
हिंदी में भी उपलब्ध

<div class="new-fform">







    </div>

    Subscribe our Newsletter
    Sign up now for our exclusive newsletter and be the first to know about our latest Initiatives, Quality Content, and much more.
    *Promise! We won't spam you.
    Yes! I want to Subscribe.