Q. ब्रिटिशकालीन भारत सरकार अधिनियम, 1919 के मुख्य प्रावधानों का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। (15 अंक, 250 शब्द) अतिरिक्त

 उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: भारत सरकार अधिनियम, 1919 के विषय में संक्षेप में लिखें।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • भारत सरकार अधिनियम, 1919 के मुख्य प्रावधानों को लिखिए।
    • भारत सरकार अधिनियम, 1919 की आलोचनात्मक व्याख्या कीजिए।
  • निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

प्रस्तावना:

भारत सरकार अधिनियम 1919, जिसे मोंटेंग्यु-चेम्सफोर्ड सुधार के रूप में भी जाना जाता है, भारत में राजनीतिक सुधारों और सीमित स्वशासन की बढ़ती मांगों को संबोधित करने के लिए प्रस्तुत किया गया था।

मुख्य विषयवस्तु:

  • प्रशासन की दो सूचियाँ: इसने प्रशासन की दो सूचियाँ प्रदान कीं, अर्थात् केंद्रीय सूची और प्रांतीय सूची।
  • केंद्र में द्विसदनीय विधायिका: इस अधिनियम ने पहली बार राज्य परिषद और केंद्रीय विधान सभा अर्थात राज्य सभा और लोक सभा का गठन किया गया। इसके अलावा, इस अधिनियम ने केंद्रीय विधान परिषद के आकार में वृद्धि की और भारतीयों के प्रतिनिधित्व का विस्तार किया। परिषद में निर्वाचित और नामांकित दोनों सदस्य थे, जिनमें से अधिकांश सदस्य नामांकित होते थे।

8.1

  • द्वैध शासन: इस अधिनियम ने प्रांतीय स्तर पर शासन की दोहरी प्रणाली स्थापित की, जिसमें विषयों को आरक्षित और हस्तांतरित क्षेत्रों में विभाजित किया गया। आरक्षित विषयों पर गवर्नर कार्यपालिका परिषद की सहायता से शासन करता था, जो विधानपरिषद के प्रति उत्तरदायी नहीं था। जबकि हस्तांतरित विषयों पर गवर्नर का शासन होता था और वह इस कार्य में वह उन मंत्रियों की सहायता लेता था, जो विधान परिषद के प्रति उत्तरदायी थे।
  • विधायिका के प्रति प्रांतीय मंत्रियों की जिम्मेदारी: इसने हस्तांतरित विषयों पर प्रांतीय मंत्रियों की जिम्मेदारी तय की।
  • पृथक निर्वाचन क्षेत्र: इस अधिनियम ने मुसलमानों के अलावा सिखों, एंग्लो इंडियन, यूरोपीय आदि के लिए धर्म के आधार पर पृथक निर्वाचन क्षेत्र की व्यवस्था का विस्तार किया।
  • लोक सेवा आयोग: एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया गया जो सिविल सेवकों की भर्ती और नियुक्ति को विनियमित करने के लिए 1926 में केन्द्रीय लोक सेवा आयोग के नाम से गठित हुई ।
  • सीमित अधिकार: इस अधिनियम ने संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
  • राजस्व पर नियंत्रण: इस अधिनियम ने प्रांतीय सरकारों को उनके राजस्व पर नियंत्रण दिया और उन्हें कुछ कर लगाने की अनुमति दी। इस प्रावधान का उद्देश्य प्रांतों को कुछ वित्तीय स्वायत्तता प्रदान करना था।
  • कार्यों का पृथक्करण: इस अधिनियम ने कार्यकारी और विधायी कार्यों को अलग कर दिया। कार्यकारी अधिकार गवर्नर में निहित थे, जबकि विधायी कार्य विधान परिषदों द्वारा किए जाते थे।

भारत सरकार अधिनियम 1919 की आलोचना

  • 20 अगस्त 1917 को ब्रिटिश सरकार ने घोषित किया था कि उसका उद्देश्य भारत में क्रमिक रूप से उत्तरदायी सरकार की स्थापना करना था। किन्तु इस अधिनियम से ऐसी आकांक्षाओं को पूर्ण नहीं होने दिया।
  • विशाल संख्या में नामांकित सदस्यों ने लोकप्रिय संप्रभुता को कमजोर कर दिया।
  • केंद्रीय विधान सभा में प्रांतों को सीटों का आवंटन उनके महत्व पर आधारित था, जैसे पंजाब का सैन्य महत्व, बम्बई का व्यावसायिक महत्व आदि।
  • द्वैधशासन से संबंधित मुद्दे: इसके कारण निर्वाचित और नियुक्त अधिकारियों के बीच लगातार झड़पें हुईं, जिससे निर्णय लेने की प्रक्रिया बोझिल हो गई।
  • सीमित मताधिकार: उदाहरण के लिए, इस अधिनियम ने संपत्ति, कर या शिक्षा के आधार पर सीमित संख्या में लोगों को मताधिकार प्रदान किया।
  • अपर्याप्त प्रतिनिधित्व: परिषदों में अधिकांश सदस्य अभी भी भारतीय जनता द्वारा चुने जाने के बजाय ब्रिटिश सरकार द्वारा नियुक्त किए जाते थे।
  • महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर गवर्नर का प्रभुत्व: ब्रिटिश सरकार ने रक्षा, वित्त और प्रशासन जैसे महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर महत्वपूर्ण नियंत्रण बरकरार रखा।
  • सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व: सांप्रदायिक प्रतिनिधित्व के प्रावधान से धार्मिक आधार पर समाज का ध्रुवीकरण हुआ।
  • केंद्रीकृत संरचना: इस अधिनियम ने शासन की एक केंद्रीकृत संरचना को बनाए रखा, स्थानीय सरकारों को सत्ता के हस्तांतरण को सीमित किया और स्थानीय स्तर पर लोकतंत्र को बाधित किया।

निष्कर्ष:

निष्कर्षतः भारत सरकार अधिनियम, 1919 ने महत्वपूर्ण प्रावधान किए  जिससे शासन में भारतीयों की भागीदारी  व शक्ति के हस्तांतरण आदि में वृद्धि हुई। हालाँकि यह अधिनियम पूर्ण स्वशासन  के लक्ष्य से काफी दूर था किन्तु,  इसने भारत में भविष्य के संवैधानिक विकास की नींव जरूर रखी।

 

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