उत्तर:
प्रश्न का समाधान कैसे करें
- भूमिका
- जलवायु परिवर्तन और मानसून के बारे में संक्षेप में लिखें
- मुख्य भाग
- भविष्य में मानसूनी वर्षा पर जलवायु परिवर्तन के जटिल परिणामों के साथ-साथ मानसून के दौरान प्रवर्धित परिवर्तनशीलता के बारे में लिखें।
- जल विज्ञान और सामाजिक-आर्थिक पहलुओं पर उनके विविध प्रभावों को लिखें इस संबंध में आगे का उपयुक्त उपाय लिखें।
- निष्कर्ष
- इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।
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भूमिका
जलवायु परिवर्तन का तात्पर्य तापमान और मौसम के स्वरूप में दीर्घकालिक परिवर्तन से है, जो मुख्य रूप से मानवीय गतिविधियों, विशेष रूप से जीवाश्म ईंधन के जलने से होने वाले कार्बन डाइऑक्साइड उत्सर्जन के कारण होता है। उदाहरण- 1880 के बाद से पृथ्वी का तापमान प्रति दशक औसतन 0.14° फ़ारेनहाइट (0.08° सेल्सियस) बढ़ गया है।
मानसून हवा की दिशा में एक मौसमी परिवर्तन है, जो प्रायःभारी वर्षा से संबद्ध होता है, जिसका सामान्यतः दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशिया में अनुभव होता है।
मुख्य भाग
मानसून पर जलवायु परिवर्तन के जटिल परिणाम निम्नलिखित तरीकों से देखे जा सकते हैं
भविष्य में तीव्र मानसून वर्षा
- महासागरीय तापमान में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन के कारण महासागरों के गर्म होने से वाष्पीकरण दर में वृद्धि होती है। उदाहरण के लिए, हिंद महासागर काफी गर्म हो रहा है, जो भारत में अधिक तीव्र मानसून में योगदान दे रहा है। उदाहरण- भारत में अत्यधिक वर्षा की घटनाओं में 20% की वृद्धि का अनुमान है।
- वायुमंडलीय नमी में वृद्धि: जैसे-जैसे वैश्विक तापमान बढ़ता है, हवा अधिक नमी धारण कर सकती है। इससे मानसून के दौरान वर्षा में वृद्धि हो रही है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ की अधिक तीव्र घटनाएँ हो रही हैं, जैसे कि हाल के वर्षों में मुंबई और केरल में देखी गई हैं।
- परिवर्तित जेट धाराएँ: जेट धाराएँ मानसून के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। जेट धाराएँ मानसून के व्यवहार को प्रभावित करती हैं। जलवायु परिवर्तन से प्रभावित आर्कटिक में तापमान वृद्धि जेट धाराओं के स्वरूप में परिवर्तन से सम्बद्ध है, जिससे भारत में अधिक तीव्र मानसूनी वर्षा हो सकती है।
- पिघलते ग्लेशियर और स्नोपैक: हिमालय जैसे क्षेत्रों में , जलवायु परिवर्तन-प्रेरित पिघलन से मानसून प्रणालियों में नमी की मात्रा बढ़ सकती है, इसके अतिरिक्त हिमालयी नदियों में अधिक जल भर सकता है जो विनाशकारी हो सकता है। उदाहरण- 2021 का चमोली आपदा।
- उन्नत संवहन: बढ़ते तापमान से संवहन तेज हो जाता है, जिससे वर्षा वितरण में परिवर्तन होता है। इससे कुछ क्षेत्रों में अत्यधिक वर्षा हो सकती है, जैसे असम में हाल ही में भारी मानसून, जबकि अन्य क्षेत्र सूखे रह सकते हैं।
मानसून अवधि के दौरान वर्षा वितरण में व्यापक परिवर्तनशीलता
- हवा के स्वरूप में परिवर्तन: जलवायु परिवर्तन से हवा के स्वरूप में परिवर्तन हो सकता है, जिससे मानसून की गतिशीलता प्रभावित हो सकती है। उदाहरण के लिए, जलवायु परिवर्तन के कारण होने वाले बदलावों के कारण भारत के मानसून ने अधिक परिवर्तनशीलता और अप्रत्याशितता दिखाई है । उदाहरण- अल नीनो घटनाओं की बढ़ी हुई आवृत्ति। 1900 और 1950 के बीच, 7 अल नीनो वर्ष थे लेकिन 1951-2021 की अवधि के दौरान, 15 अल नीनो वर्ष थे।
- समुद्र की सतह के तापमान में विसंगतियाँ: जलवायु परिवर्तन के कारण समुद्री सतहों का अनियमित रूप से गर्म होना या ठंडा होना, मानसून के स्वरूप को प्रभावित करता है। जलवायु परिवर्तन से तीव्र हुई एल नीनो, ला नीना जैसी घटनाएं भारत के विभिन्न हिस्सों में अनियमित मानसून वर्षा से संबधित हैं।
- परिवर्तित परिदृश्य और वनस्पति: जलवायु परिवर्तन के कारण भूमि उपयोग और वनस्पति में परिवर्तन स्थानीय मौसम और वर्षा वितरण को प्रभावित कर सकता है। उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट में विस्तृत स्तर पर वनों की कटाई को क्षेत्र में मानसून के स्वरूप में परिवर्तन से जोड़ा गया है। उदाहरण- पश्चिमी घाट में घने जंगल 19.5% कम हो गए और खुले जंगल 33.2% कम हो गए।
- चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि: जलवायु परिवर्तन से चरम मौसम की घटनाओं में वृद्धि होती है। ये नियमित मौसम स्वरूप को बाधित कर सकते हैं, जिससे मानसून के दौरान असमान वर्षा वितरण हो सकता है, जैसा कि उत्तराखंड और हिमाचल प्रदेश में बाढ़ में देखा गया है।
- मानवजनित उत्सर्जन: ग्रीनहाउस गैस और एरोसोल उत्सर्जन वर्षा को प्रभावित कर सकते हैं । ग्रीनहाउस गैस और एयरोसोल उत्सर्जन वर्षा को प्रभावित कर सकते हैं। ये भारत के विभिन्न क्षेत्रों में वर्षा को बढ़ा या कम कर सकते हैं, जिससे मानसूनी वर्षा का असमान वितरण हो सकता है। उदाहरण- आज, विश्व सामूहिक रूप से प्रत्येक वर्ष लगभग 50 बिलियन टन CO2 उत्सर्जित करता है। यह 1990 के उत्सर्जन से 40% अधिक है
जलवायु परिवर्तन के कारण मानसून के स्वरूप में परिवर्तन का जल विज्ञान संबंधी प्रभावों पर दूरगामी प्रभाव पड़ता है
- जल की उपलब्धता: मानसून के स्वरूप में परिवर्तन जल की मात्रा और समय को प्रभावित करता है
उदाहरण के लिए, पश्चिमी घाट में असमान मानसूनी बारिश के कारण जल की कमी हो गई है, जिससे घरेलू उपयोग और कृषि दोनों प्रभावित हुए हैं। उदाहरण- वर्ष 2021 के लिए औसत वार्षिक प्रति व्यक्ति जल उपलब्धता 2013 में 1486 घन मीटर से घटकर 1367 घन मीटर हो गई है।
- भूजल पुनर्भरण: भूजल पुनर्भरण मुख्यतः मानसूनी वर्षा पर निर्भर करता है। अप्रत्याशित मानसून के कारण, राजस्थान और गुजरात जैसे क्षेत्रों में भूजल पुनर्भरण में चुनौतियों का सामना करना पड़ता है, जिससे जल संकट उत्पन्न हो जाता है। उदाहरण- भारत के 63% जिलों को भूजल स्तर गिरने से खतरा है
- नदी प्रवाह स्वरूप: मानसून भारत की प्रमुख नदियों जैसे गंगा और ब्रह्मपुत्र को जल प्रदान करता है। मानसून की तीव्रता में परिवर्तन नदी के प्रवाह को प्रभावित कर सकता है, जिससे कृषि और अन्य उपयोगों के लिए इन नदियों पर निर्भर क्षेत्रों पर असर पड़ सकता है।
- बाढ़: मानसूनी वर्षा की बढ़ती तीव्रता और असमान वितरण से गंभीर बाढ़ आ सकती है, जैसा कि 2018 में केरल और 2020 में असम में विनाशकारी बाढ़ में देखा गया था।
- मृदा अपरदन: भारी मानसूनी वर्षा से मृदा अपरदन बढ़ सकता है, जिससे भूमि की उर्वरता पर नकारात्मक प्रभाव पड़ेगा और भूमि निम्नीकरण हो सकता है, जैसा कि प्रायः हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों में देखा जाता है।
सामाजिक-आर्थिक प्रभाव
- कृषि: भारतीय कृषि मानसून पर निर्भर है। मानसून स्वरूप में परिवर्तनशीलता से फसल बर्बाद हो सकती है या उपज कम हो सकती है, जिससे किसानों की आय प्रभावित हो सकती है। उदाहरण- 2004 का सूखा वर्ष अल-नीनो वर्ष था।
- भारत के तट पर मछली पकड़ने वाले समुदाय अपनी मछली पकड़ने के लिए मानसून पर निर्भर हैं। मानसून के स्वरूप में परिवर्तन के कारण मछली की पैदावार अनिश्चित हो गई है, जिससे आजीविका प्रभावित हो रही है।
- स्वास्थ्य: अनियमित मानसून जलजनित बीमारियों के फैलने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ उत्पन्न कर सकता है। उदाहरण के लिए, डेंगू और मलेरिया का प्रकोप प्रायः दिल्ली और कोलकाता जैसे शहरों में भारी वर्षा के बाद होता है।
- आधारभूत संरचना: अत्यधिक वर्षा की घटनाओं से आधारभूत संरचना को नुकसान हो सकता है, जिससे आर्थिक नुकसान हो सकता है। अत्यधिक मानसूनी वर्षा के कारण 2015 में चेन्नई में आई बाढ़ के कारण बड़े पैमाने पर आधारभूत संरचना और संपत्ति की क्षति हुई।
- प्रवासन: मानसून स्वरूप में परिवर्तन और उसके बाद के प्रभावों के कारण प्रवासन हो सकता है। उदाहरण के लिए, बुन्देलखण्ड क्षेत्र में बार-बार पड़ने वाले सूखे ने कई परिवारों को आजीविका के लिए शहरों की ओर पलायन करने के लिए मजबूर कर दिया है।
इस संबंध में आगे बढ़ने का उपयुक्त रास्ता
- जलवायु-स्मार्ट कृषि: जलवायु परिवर्तनशीलता के प्रति लचीली कृषि पद्धतियों, जैसे सूखा प्रतिरोधी फसल किस्मों के कार्यान्वयन की आवश्यकता है। राजस्थान के शुष्क क्षेत्रों में सूखा प्रतिरोधी बाजरा की खेती एक मॉडल के रूप में कार्य करती है जिसे दोहराया जा सकता है।
- जल प्रबंधन: एकीकृत जल संसाधन प्रबंधन जल संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकता है। तरूण भारत संघ द्वारा विकसित राजस्थान के अलवर में जल संचयन संरचनाएँ सतत जल प्रबंधन के लिए एक अच्छा मॉडल हैं।
- वनीकरण: वनीकरण से मिट्टी का अपरदन कम हो सकता है और वर्षा में वृद्धि हो सकती है। सिक्किम में वनीकरण परियोजना एक सफल दृष्टिकोण का उदाहरण है जिसका स्थानीय मौसम स्वरूप और मिट्टी संरक्षण पर महत्वपूर्ण सकारात्मक प्रभाव पड़ा है।
- आधारभूत संरचना विकास: चरम मौसम की घटनाओं का सामना करने के लिए मजबूत ● आधारभूत संरचना का निर्माण आवश्यक है। 2006 की बाढ़ के बाद सूरत में बेहतर जल निकासी प्रणाली एक मॉडल के रूप में कार्य करती है कि कैसे शहरी आधारभूत संरचना को जलवायु प्रभावों के प्रति लचीला बनाया जा सकता है।
- स्वास्थ्य संबंधी तैयारी: अनियमित मानसून के बाद संभावित बीमारी के प्रकोप से निपटने के लिए स्वास्थ्य देखभाल प्रणालियों को मजबूत करना आवश्यक है। मानसून के बाद की अवधि में मलेरिया जैसी संवाहक जनित बीमारियों पर भारत की बढ़ती निगरानी और नियंत्रण एक सक्रिय दृष्टिकोण का उदाहरण है।
- वैकल्पिक आजीविका: वैकल्पिक आजीविका प्रदान करने से मानसून पर निर्भर व्यवसायों पर पड़ने वाले प्रभाव को कम किया जा सकता है। तटीय आंध्र प्रदेश में कौशल विकास कार्यक्रम मछली पकड़ने वाले समुदायों को उनके आय स्रोतों में विविधता लाने में मदद करने के प्रयासों का एक उदाहरण है।
- सामुदायिक भागीदारी: जलवायु कार्रवाई में समुदायों को शामिल करना महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र के रालेगण सिद्धि में समुदाय के नेतृत्व वाली जल प्रबंधन पहल , ऐसे प्रयासों की सफलता का एक उल्लेखनीय उदाहरण है।
- अंतर्राष्ट्रीय सहयोग: भारत जलवायु परिवर्तन पर अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के माध्यम से तकनीकी और वित्तीय सहायता प्राप्त कर सकता है। भारत और फ्रांस द्वारा शुरू किया गया अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (आईएसए) ऐसे सफल सहयोग का एक उदाहरण है ।
- शिक्षा और जागरूकता: : जलवायु परिवर्तन और उसके प्रभावों के बारे में जागरूकता बढ़ाने से जलवायु-लचीले व्यवहार को बढ़ावा मिल सकता है। केरल के स्कूलों में जलवायु शिक्षा पहल जैसे कार्यक्रम जलवायु शिक्षा के लिए एक अच्छे मॉडल के रूप में काम करते हैं।
निष्कर्ष
भारत के मानसून स्वरूप पर जलवायु परिवर्तन से उत्पन्न महत्वपूर्ण चुनौतियों के बावजूद, समन्वित प्रयासों और नवीन रणनीतियों के साथ, भारत प्रभावों को कम कर सकता है और प्रभावी ढंग से अनुकूलन कर सकता है। प्रौद्योगिकी, समुदाय की भागीदारी और नीतिगत हस्तक्षेपों का लाभ उठाकर, एक लचीला और सतत भविष्य वास्तव में प्राप्त किया जा सकता है।
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