Q. सामाजिक न्याय की दिशा में डॉ. बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी के विचारों का विश्लेषण कीजिए। इसे प्राप्त करने के लिए उन्होंने जिन विरोधाभासी मार्गों की वकालत की, उन पर प्रकाश डालिए । (10 अंक, 150 शब्द) अतिरिक्त

उत्तर:

दृष्टिकोण:

  • प्रस्तावना: डॉ. बी.आर. अंबेडकर और गांधीजी के बारे में लिखिए।
  • मुख्य विषयवस्तु:
    • सामाजिक न्याय की खोज में डॉ. बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी की सम्मिलित दृष्टि के बारे में लिखिए।
    • दोनों नेताओं के दृष्टिकोण में अंतर लिखिए।
  • निष्कर्ष: इस संबंध में उचित निष्कर्ष दीजिए।

 

प्रस्तावना:

बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी दो प्रमुख शख्सियत थे जिन्होंने सामाजिक न्याय के विचार को आकार देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, विशेषकर दलितों के लिए दोनों नेताओं ने अपने कार्यों के माध्यम से अस्पृश्यता को दूर करने में सफलता पूर्वक कार्य किया ।

सामाजिक न्याय की खोज में बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी की अभिसारी दृष्टि

  • अस्पृश्यता के खिलाफ लड़ाई: अंबेडकर और गांधी दोनों ने अस्पृश्यता व जाति-आधारित कार्यो का पुरजोर विरोध किया और इसके उन्मूलन की दिशा में कार्य किया। उदाहरण- गांधीजी द्वारा हरिजन सेवक संघ की स्थापना।
  • शिक्षा पर जोर दिया: दोनों नेताओं ने शिक्षा पर जोर दिया। जहां अंबेडकर ने पीपुल्स एजुकेशन सोसाइटी की स्थापना की, वहीं गांधी ने जनता के उत्थान के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में बुनियादी शिक्षा की वकालत की।
  • महिला अधिकार के लिए कार्य: अम्बेडकर ने भारतीय संविधान में लैंगिक समानता प्रावधानों को शामिल करना सुनिश्चित किया। वहीं गांधी जी ने महिलाओं की शिक्षा और स्वतंत्रता संग्राम में उनकी भागीदारी की वकालत की। उदाहरण- धरासना नमक सत्याग्रह में सरोजिनी नायडू की भूमिका।
  • ग्राम का विकास: गांधी की ग्राम स्वराज की अवधारणा और अम्बेडकर के लेखन में ग्रामीण उत्थान पर जोर ने इस क्षेत्र में उनके अभिसरण को प्रदर्शित किया।
  • हिंसा का विरोध: गांधी का अहिंसक सविनय अवज्ञा का दर्शन और अंबेडकर का संवैधानिक तरीकों पर जोर, हिंसक साधनों की अस्वीकृति में संरेखित है।

बी.आर. अम्बेडकर और महात्मा गांधी द्वारा प्रतिपादित विरोधाभासी मार्ग:

  • जाति व्यवस्था के प्रति दृष्टिकोण: गांधी जी जाति व्यवस्था में सुधार चाहते थे और उन्होंने हरिजन आंदोलन की शुरुआत की, जबकि अंबेडकर जाति व्यवस्था का पूर्ण उन्मूलन चाहते थे। इसके अलावा, गांधी “वर्णाश्रम” की कार्यात्मक उपयोगिता में विश्वास करते थे जबकि डॉ. अंबेकर के लिए, “वर्णाश्रम” ब्राह्मणवाद की सर्वोच्चता को दर्शाता है।
  • राजनीतिक प्रतिनिधित्व: गांधी जी ने सामाजिक न्याय को संबोधित करने के साधन के रूप में राजनीतिक भागीदारी की वकालत की, लेकिन अंबेडकर द्वारा मांग की जा रही दलितों के लिए अलग निर्वाचन क्षेत्रों का समर्थन नहीं किया। उदाहरण- पूना समझौता 1932
  • आर्थिक सशक्तिकरण: गांधीजी ने विकेन्द्रीकृत ग्राम-आधारित अर्थव्यवस्था पर ध्यान केंद्रित किया, लेकिन अम्बेडकर ने उत्पीड़ितों के उत्थान के लिए व्यापक आर्थिक सुधारों और राज्य के हस्तक्षेप की वकालत की।
  • शिक्षा और सशक्तिकरण: गांधीजी ने नैतिक और बौद्धिक विकास के लिए शिक्षा पर जोर दिया। वहीं अम्बेडकर ने सामाजिक और राजनीतिक स्थिति में सुधार के लिए शिक्षा को एक उपकरण के रूप में महत्व दिया।
  • धर्म और सामाजिक परिवर्तन: गांधीजी ने अम्बेडकर के नेतृत्व में दलितों के बौद्ध धर्म में बड़े पैमाने पर धर्मांतरण की आलोचना की, इसे जाति-आधारित भेदभाव को अस्वीकार करने का एक साधन माना। डॉ. अम्बेडकर के विपरीत, गांधीजी का मानना था कि दलित वर्गों को उनका उचित हिस्सा दिलाने के लिए हिंदू धर्म में भीतर से सुधार किया जा सकता है।

निष्कर्ष:

बी.आर. अंबेडकर और महात्मा गांधी सामाजिक न्याय की खोज में एक साथ थे और एक न्यायपूर्ण और समावेशी समाज के लिए साझा दृष्टिकोण रखते थे, लेकिन अस्पृश्यता को खत्म करने, राजनीतिक प्रतिनिधित्व और आर्थिक सशक्तिकरण सुनिश्चित करने के प्रति उनके अलग-अलग दृष्टिकोण थे। हालाँकि, उनके मतभेदों ने उन्हें अपने-अपने लक्ष्यों की दिशा में काम करने से नहीं रोका।

 

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