Q. भारत के वन क्षेत्र में वृद्धि के बावजूद, जैव विविधता ह्रास, वन क्षरण और जलवायु परिवर्तन के संदर्भ में चिंताएँ बनी हुई हैं। सतत संरक्षण सुनिश्चित करने में भारत की वन नीतियों की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए। आर्थिक विकास को संतुलित करते हुए इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुधार भी सुझाएँ। (15 अंक, 250 शब्द)

प्रश्न की मुख्य माँग

  • चर्चा कीजिए कि किस प्रकार भारत में वन क्षेत्र में वृद्धि के बावजूद जैव विविधता ह्वास, वन क्षरण और जलवायु परिवर्तन संबंधी चिंताएं बनी हुई हैं।
  • भारत की वन नीतियों की प्रभावशीलता का आलोचनात्मक विश्लेषण कीजिए, तथा सकारात्मक और नकारात्मक दोनों पहलुओं पर ध्यान दीजिए।
  • आर्थिक विकास को संतुलित करते हुए इन चुनौतियों का समाधान करने के लिए सुधार सुझाइये।

उत्तर

ISFR-2023 के अनुसार, भारत की वन नीतियों के कारण हरित आवरण में वृद्धि हुई है, जो अब कुल भूमि क्षेत्र का 25.17% है। हालाँकि, जैव विविधता ह्वास, सघन वन क्षरण और मोनोकल्चर वृक्षारोपण की पारिस्थितिक सीमाओं के संबंध में चिंताएँ बनी हुई हैं। वर्ष 2003 और 2023 के बीच, भारत में 24,651 वर्ग किलोमीटर से अधिक सघन वन क्षेत्र का ह्वास हुआ, जिससे संधारणीय संरक्षण के लिए इन नीतियों के महत्त्वपूर्ण मूल्यांकन की आवश्यकता पर प्रकाश डाला गया।

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वन क्षेत्र में वृद्धि के बावजूद बनी हुई चिंतायें

  • सघन वनों का ह्वास: वर्ष 2003 से 2023 के बीच भारत में 24,651 वर्ग किलोमीटर सघन वन क्षेत्र का ह्वास हुआ जिसके परिणामस्वरुप भारत के  पारिस्थितिकी तंत्र की पारिस्थितिक अखंडता कमजोर हो गई
    • उदाहरण के लिए: ISFR-2023 ने मात्र दो वर्षों (2021-2023) में 3,913 वर्ग किलोमीटर घने जंगलों के ह्वास की सूचना दी।
  • प्रतिस्थापन के रूप में मोनोकल्चर वृक्षारोपण : प्राकृतिक वनों को मोनोकल्चर बागवानी क्षेत्र में बदलने से जैव विविधता कम होती है और पारिस्थितिक क्रियाकलाप कम होते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: वर्ष 2021 और 2023 के बीच, 1,420 वर्ग किलोमीटर बागवानी क्षेत्र को सघन वनों के रूप में पुनर्वर्गीकृत किया गया, जो तेजी से वृद्धि करने वाली वृक्ष प्रजातियों पर अत्यधिक निर्भरता को उजागर करता है।
  • जलवायु भेद्यता: मोनोकल्चर बागानों में आग, कीटों और बीमारियों का खतरा अधिक होता है, जिससे जलवायु परिवर्तन को कम करने की उनकी क्षमता सीमित हो जाती है। 
    • उदाहरण के लिए: मध्य भारत में बागानों को आक्रामक कीटों से नुकसान उठाना पड़ा है, जिससे पर्यावरणीय परिवर्तनों के प्रति उनकी प्रत्यास्थता कमजोर हो गई।
  • कार्बन पृथक्करण चुनौतियाँ: बागवानी क्षेत्र की तुलना में प्राकृतिक वन, बायोमास और मृदा दोनों में, काफी अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं। 
    • उदाहरण के लिए: पश्चिमी घाट के वन  क्षेत्र, उसी क्षेत्र में बागवानी की तुलना में 3-5 गुना अधिक कार्बन संग्रहित करते हैं।
  • अस्पष्ट आंकड़े और संशोधन: अस्पष्ट आंकड़ों के संशोधन के लिए  ISFR रिपोर्ट की आलोचना की गई है, जो सघन वन क्षेत्र के आंकड़ों को बढ़ा-चढ़ाकर बताते हैं और निम्नीकरण की वास्तविक सीमा को अस्पष्ट करते हैं।

भारत की वन नीतियों का आलोचनात्मक विश्लेषण

सकारात्मक

  • राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP): राष्ट्रीय वनीकरण कार्यक्रम (NAP) और राज्य स्तरीय बागवानी अभियान जैसी नीतियों ने समग्र हरित आवरण को बढ़ाने में योगदान दिया है, जो 2023 में 25.17% तक पहुँच जाएगा। 
    • उदाहरण के लिए: महाराष्ट्र के बागवानी प्रयासों ने 2021 और 2023 के बीच 716 वर्ग किमी क्षेत्र में वृक्ष आवरण स्थापित किया।
  • वन संरक्षण अधिनियम (1980):  यह अधिनियम वन भूमि व्यपवर्तन को नियंत्रित करता है और यह सुनिश्चित करता है कि वन क्षेत्रों को प्रभावित करने वाली परियोजनाओं के लिए प्रतिपूरक वनरोपण किया जाए। 
    • उदाहरण के लिए: झारखंड की खनन परियोजनाओं को इस अधिनियम के तहत प्रतिपूरक वनरोपण आवश्यकताओं के अधीन किया गया है।
  • वन अधिकार अधिनियम (2006) के तहत सामुदायिक अधिकार: यह अधिनियम आदिवासी समुदायों को वन संसाधनों का संधारणीय प्रबंधन करने, संघर्षों को कम करने और संरक्षण में सुधार करने का अधिकार देता है। 
    • उदाहरण के लिए: ओडिशा में, वन समुदायों ने 5,000 हेक्टेयर वन भूमि का सफलतापूर्वक प्रबंधन और पुनर्जनन किया है।
  • मैंग्रोव वन बहाली कार्यक्रम : मैंग्रोव संरक्षण पहलों ने, विशेष रूप से सुंदरबन में, तटीय अपरदन को कम करने और जैव विविधता को बढ़ाने में मदद की है। 
    • उदाहरण के लिए: पिछले दशक में सुंदरबन के मैंग्रोव कवर में 110 वर्ग किलोमीटर की वृद्धि देखी गई।
  • तकनीकी एकीकरण : भारतीय वन सर्वेक्षण के तहत GIS-आधारित वन निगरानी का उपयोग वन गुणवत्ता और सघनता संबंधों परिवर्तनों की बेहतर ट्रैकिंग को सक्षम बनाता है।
    • उदाहरण के लिए: ISFR से प्राप्त रियलटाइम डेटा ने केरल के संरक्षित क्षेत्रों में वन निम्नीकरण की निगरानी में मदद की है।

नकारात्मक

  • प्राकृतिक वनों की जगह वृक्षारोपण : वनारोपण अभियान में सागौन और नीलगिरी जैसी तेजी से वृद्धि करने वाली प्रजातियों को प्राथमिकता दी जाती है, जो प्राकृतिक वनों के समान पारिस्थितिक लाभ नहीं प्रदान कर सकता।
    • उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ में सागौन के वृक्षारोपण से भूजल  और आवास विविधता में कमी आई है।
  • सघन वन क्षेत्र में कमी : अत्यधिक सघन वन (VDF) जिनका पारिस्थितिकी तंत्र में सबसे अधिक महत्त्व है, का निरंतर ह्वास,जैव विविधता और कार्बन अवशोषण की क्षमता को कमजोर करता है। 
    • उदाहरण के लिए: ISFR डेटा के अनुसार, 2013 और 2023 के बीच 17,500 वर्ग किलोमीटर से अधिक सघन वन क्षेत्र का ह्वास हुआ।
  • अपर्याप्त जैव विविधता संरक्षण : वर्तमान वन नीतियाँ जैव विविधता-समृद्ध क्षेत्रों की सुरक्षा पर पर्याप्त बल दिए बिना वन क्षेत्र को बढ़ाने पर ध्यान केंद्रित करती हैं। 
    • उदाहरण के लिए: जलविद्युत परियोजनाओं के लिए पश्चिमी घाट में वनों की कटाई से पर्याप्त पर्यायवास ह्वास हुआ है।
  • वन अधिकार अधिनियम का खराब क्रियान्वयन : सामुदायिक अधिकारों को मान्यता देने में हुई देरी ने संघर्षों को जन्म दिया है और सहभागी संरक्षण की प्रभावशीलता को सीमित किया है। 
    • उदाहरण के लिए: छत्तीसगढ़ में, इस अधिनियम के तहत लगभग 40% सामुदायिक दावे अनसुलझे रह गए हैं।
  • वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 में छूट: यह अधिनियम रैखिक अवसंरचना परियोजनाओं के लिए वन भूमि व्यपवर्तन की अनुमति देता है, जो अक्सर संवेदनशील पारिस्थितिक क्षेत्रों में होता है। 
    • उदाहरण के लिए: अरुणाचल प्रदेश में राजमार्गों के निर्माण ने महत्त्वपूर्ण एलीफैंट कॉरिडोरों को बाधित किया है।

चुनौतियों से निपटने और आर्थिक विकास को संतुलित करने के लिए सुधार

  • प्राकृतिक वन पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना: जैव विविधता को बहाल करने के लिए देशी प्रजातियों पर ध्यान केंद्रित करते हुए,मोनोकल्चर वृक्षारोपण की तुलना में क्षरित प्राकृतिक वनों की बहाली को प्राथमिकता देनी चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: नीलगिरी बायोस्फीयर रिजर्व में देशी वनस्पति को बहाल करने, वन्यजीव आवासों में सुधार करने के संबंध में सफलता देखी गई है।
  • सामुदायिक अधिकारों को मजबूत करना: सामुदायिक वन अधिकारों को मान्यता प्रदान करनी चाहिए और वन प्रबंधन तथा संरक्षण प्रयासों में स्थानीय आबादी को शामिल करना चाहिए। 
    • उदाहरण के लिए: मध्य प्रदेश में संयुक्त वन प्रबंधन समितियों ने वन पुनर्जनन में सुधार लाने में मदद की है
  • मोनोकल्चर वृक्षारोपण को सीमित करना: पारिस्थितिकी तंत्र की प्रत्यास्थता बढ़ाने के लिए मिश्रित प्रजातियों के वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करना चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि वृक्षारोपण जैव विविधता और कार्बन लक्ष्यों में सहायक सिद्ध हो।
    • उदाहरण के लिए: पश्चिमी घाट पुनर्वनीकरण कार्यक्रम में दीर्घकालिक पारिस्थितिक लाभों के लिए विविध देशी प्रजातियों का उपयोग किया गया है।
  • प्रतिपूरक वनरोपण मानदंडों में संशोधन: यह सुनिश्चित करना चाहिए कि प्रतिपूरक वनारोपण एक ही पारिस्थितिक क्षेत्र में किया जाए और इसमें विविध देशी प्रजातियाँ शामिल हों। 
    • उदाहरण के लिए: हिमाचल प्रदेश की परियोजनाओं में अब एक ही जलग्रहण क्षेत्र के भीतर पुनर्वनरोपण को अनिवार्य बना दिया गया है।
  • तकनीकी निगरानी को बढ़ावा देंना: अवैध कटाई, वन निम्नीकरण और वृक्षारोपण की उत्तरजीविता दर की निगरानी करने के लिए ड्रोन निगरानी और AI-संचालित उपकरणों का उपयोग करना चाहिए।
    • उदाहरण के लिए: उत्तराखंड में AI-आधारित निगरानी से संरक्षित क्षेत्रों में अवैध अतिक्रमण के प्रमुख स्थलों की पहचान की गई है।
  • वन नीतियों में छूट का पुनर्मूल्यांकन करना : छूट को सीमित करने और सभी परियोजनाओं के लिए कठोर पर्यावरणीय आकलन सुनिश्चित करने हेतु वन संरक्षण (संशोधन) अधिनियम, 2023 को संशोधित  करना चाहिए
    • उदाहरण के लिए: वन्यजीव कॉरिडोर की सुरक्षा के लिए सख्त पर्यावरणीय सुरक्षा उपायों से काजीरंगा राष्ट्रीय उद्यान राजमार्ग परियोजना लाभान्वित हो सकती है।

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भारत की वन नीतियों ने हरित क्षेत्र को बढ़ाने में योगदान तो दिया  है परंतु इसके साथ-साथ भारत को प्राकृतिक वन ह्वास , जैव विविधता ह्वास और जलवायु प्रत्यास्थता जैसी समस्याओं से भी जूझना पड़ा है । पारिस्थितिकी तंत्र को बहाल करना, सामुदायिक भागीदारी को बढ़ाना और वनीकरण मानदंडों को संशोधित करना संधारणीय संरक्षण के लिए महत्त्वपूर्ण है ।भारत के वनों की जैव विविधता को समृद्ध करने और जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने में सहायता करने हेतु एक संतुलित दृष्टिकोण की आवश्यकता है जो पारिस्थितिकी संरक्षण के साथ एकीकृत हो।

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